स्त्री मन की यह बातें दिल मे ही एक कहानी बुनते रहते हैं ।
यह शब्द दर्द में भीगे हुए बरसते रहते हैं ,ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार पकडती रहती है ,जब जब पुरुष प्रेम उमड़ता है तो वह तोहफे देने का भी मौका नहीं छोड़ना चाहता पर स्त्री जो अब तक अपनी घर गृहस्थी में डूबी हुई खुद को ही भूल चुकी है वह अचानक से जैसे जाग जाती है और कह देती है एक मासूम सी फरमाइश जो उसके अस्तित्व से जुडी हुई है
यह शब्द दर्द में भीगे हुए बरसते रहते हैं ,ज़िन्दगी अपनी रफ़्तार पकडती रहती है ,जब जब पुरुष प्रेम उमड़ता है तो वह तोहफे देने का भी मौका नहीं छोड़ना चाहता पर स्त्री जो अब तक अपनी घर गृहस्थी में डूबी हुई खुद को ही भूल चुकी है वह अचानक से जैसे जाग जाती है और कह देती है एक मासूम सी फरमाइश जो उसके अस्तित्व से जुडी हुई है
शादी की सालगिरह,
और उनका यह मुस्करा कर पूछना
आज तुमको किन गहनों से सज़ा दूं
"ला दूँ साड़ी" या फिर बोलो तो डियर
किसी "'नई मूवी "'की टिकट बुक करवा दूं?
मैने कुछ मुस्करा के
अपनी नज़रें रसोईघर में उलझा ली
यादों की खुली जैसे कोई पिटारी
और एक बार फ़िर से दिल ने बीती बातें दोहरा ली,
याद आई
वो शादी की घड़ी सुहानी
जब छोड़ बाबुल के नाम की पहचानबनी मैं तेरे नाम की कहानी।
बसा के तन मन में तुझको
हर पल इस घर को संवारा
और उनका यह मुस्करा कर पूछना
आज तुमको किन गहनों से सज़ा दूं
"ला दूँ साड़ी" या फिर बोलो तो डियर
किसी "'नई मूवी "'की टिकट बुक करवा दूं?
मैने कुछ मुस्करा के
अपनी नज़रें रसोईघर में उलझा ली
यादों की खुली जैसे कोई पिटारी
और एक बार फ़िर से दिल ने बीती बातें दोहरा ली,
याद आई
वो शादी की घड़ी सुहानी
जब छोड़ बाबुल के नाम की पहचानबनी मैं तेरे नाम की कहानी।
बसा के तन मन में तुझको
हर पल इस घर को संवारा
बस यूं ही बीतती रही
वक्त की धारा
कभी किसी ने बुलाया
कह के "गुडिया की मम्मी "
तो कभी किसी ने
तुम्हारे नाम से पुकारा।
पर...
कल अचानक यूँ ही
एक मोड़ पर एक नाम से
मुझे किसी ने आवाज़ लगाई
तब झनझना के जाग उठा दिल
और
अपने अस्तित्व की याद आई
दिखायी दिए कितने रंग
अपने भूले व्यक्तित्व के
जब उस नाम के साथ उसनेकई बीती बातें याद कराई
जाग उठा तब दिल का वह कोना
जो ख़ुद से ख़ुद की पहचान चाहता है
कैसे जीं लिया बिन अपने नाम के मैंने
आज इस अजब से सवाल का
मेरा दिल जवाब मांगता है,
सुनो,
आज एक गुज़ारिश है तुमसे
मुझे आज कोई गहना ना कपडा दो
"बस दे दो वापस मेरा नाम मुझकोऔर मेरा परिचय मुझसे ही करवा दो"!
अपने भूले व्यक्तित्व के
जब उस नाम के साथ उसनेकई बीती बातें याद कराई
जाग उठा तब दिल का वह कोना
जो ख़ुद से ख़ुद की पहचान चाहता है
कैसे जीं लिया बिन अपने नाम के मैंने
आज इस अजब से सवाल का
मेरा दिल जवाब मांगता है,
सुनो,
आज एक गुज़ारिश है तुमसे
मुझे आज कोई गहना ना कपडा दो
"बस दे दो वापस मेरा नाम मुझकोऔर मेरा परिचय मुझसे ही करवा दो"!
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-09-2019) को "मजहब की बुनियाद" (चर्चा अंक- 3455) पर भी होगी।--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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