बिखरी हुई मैं अपनी ही कविता के अस्तित्व में
जैसे कोई बूँद बारिश की गिर के मिट जाती है
और कह जाती है वह सब कुछ अनजाना सा
दिल में कभी एक तड़प ,कभी एक सकून दे जाती है
करना हो मुझे तलाश तो कर लेना इन लफ्जों में.........यह लफ्ज़ उपलब्ध रहेंगे" कुछ मेरी कलम से "संग्रह ...यह संग्रह उपलब्ध है अब चार फ़रवरी से दस फ़रवरी तक विश्व पुस्तक मेले में हाल नम्बर १२ के स्टाल नम्बर बी -१० में ...........मुझे आप सबका इन्तजार रहेगा ....
जैसे कोई बूँद बारिश की गिर के मिट जाती है
और कह जाती है वह सब कुछ अनजाना सा
दिल में कभी एक तड़प ,कभी एक सकून दे जाती है
करना हो मुझे तलाश तो कर लेना इन लफ्जों में.........यह लफ्ज़ उपलब्ध रहेंगे" कुछ मेरी कलम से "संग्रह ...यह संग्रह उपलब्ध है अब चार फ़रवरी से दस फ़रवरी तक विश्व पुस्तक मेले में हाल नम्बर १२ के स्टाल नम्बर बी -१० में ...........मुझे आप सबका इन्तजार रहेगा ....
12 comments:
बहुत बहुत बधाई रंजू......
आपकी खुशियों में हमें भी शामिल समझिये....
ढेर सारी शुभकामनाएं ...
सस्नेह
अनु
शुभकामनायें!
बहुत बहुत बधाई..
बहुत बधाईयाँ..
धन्यवाद जी!
aapki rachna ati-sundar hai.shabdo ka chayan aisa hai mano motiyo ko dhage me piroya ho.maine bhi likhna shuru kiya hai aap bhi apne bahumulya vicharo se kratarth kare.
very impressive post .... very well written & fabulous as always
plz . visit -http://swapniljewels.blogspot.in/2013/01/a-kettle-of-glitters.html
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें
बहुत बहुत बधाई ओर शुभकामनाएं ...
आपके लिखने का अंदाज़ बहुत ही उम्दा और अलग है.. !
Bahut badhaee Ranjaana jee aapki kalam se sada zarati rahe kavy dhara.
behtreen prastuti..congratulation...
please visit my blog..kaynatanusha.blogspot.in
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