Friday, July 20, 2012

परिवर्तन का बोझ

परिवर्तन का बोझ ..यह विषय था इस बार शब्दों की चाक पर ...इस विषय पर लिखी है हास्य व्यंग कविता .पढ़ कर बताये की कैसा लगा यह प्रयास :)

तोडा नहीं है
बुढापे ने कमर को
यह तो अपनी बीते दिनों को
तलाश करने के लिए
हमने इसे  झुकाया है
दोस्तों समझना न
इसको  बोझ बदलती उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है

झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
 करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है
समझना न
इसको  बदलाव  उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है

नहीं ला सकता है कोई
बीते दिनों को वापस
यह सोच कर दिल जो कभी मुरझाया है
तभी किसी ने  पलट के दी आवाज़
तो फिर से सारा माहौल गुनगुनाया है
बीते हर लम्हा  ख़ुशी का
दोस्तों की महफ़िल में
 दर्द को यूँ ही थपका थपका के सुलाया है
समझना न
इसको बदलाव  उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है !!

रंजना (रंजू) भाटिया 

29 comments:

सदा said...

वाह ... बहुत ही बढिया ... आभार

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह....
बहुत बढ़िया रंजना जी....
:-)

अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है

:):) बहुत खूब ... सच्चाई को हास्य का जामा पहना दिया है ...

राघवेन्द्र अवस्थी said...

एक बेंत भी हांथों में होता :)))

राघवेन्द्र अवस्थी said...

kya kahoon :))

राघवेन्द्र अवस्थी said...

...

प्रवीण पाण्डेय said...

बस बीते जीवन का पुनरावलोकन कर लें।

shikha varshney said...

झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है
गज़ब...इसे कहते हैं ज़ज्बा ..बहुत ही बढ़िया :)

Vinay said...

बहुत ही उम्दा!

Maheshwari kaneri said...

वाह: रंजना जी बहुत सुन्दर..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (21-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

उम्र वह पडाव है,गुजरा जमाना कहते है
मिले अनुभवों को,आज बुढापा कहते है,,,,,,,

बहुत सुंदर रचना,,,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....

Asha Joglekar said...

वाह वाह, क्या व्यंग है क्या हास्य है । बहुत बढिया ।

Suresh kumar said...

Waah bahut hi khubsurat...

Arvind Mishra said...

मजेदार मगर हंसी के फौवारों में भी
इक दर्द उभर आया है ! :-)

वाणी गीत said...

दिल बहलाने को कितनी बहाने ...मगर बड़े प्यारे , बड़े सच्चे लगे !

saroj sharma said...

nice ranjana ji

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब
शब्दों की चाक पर हर शब्द खरा सा हैं :)

शिवनाथ कुमार said...

दर्द में भी सुंदर हास्य उभर कर आया है
वाकई गुजरा ज़माना याद आया है :)
सुंदर रचना
साभार !!

Rajesh Kumari said...

रंजू जी आपको यहाँ देखकर बहुत अच्छा लग रहा है धन्य चर्चा मंच बहुत रोचक लगी यह रचना चलो मिलते रहेंगे दोनों जगह

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर है !
आँख में
मोती या
जो है !

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

अनामिका की सदायें ...... said...

lajawaab rahi aapki ye koshish.

padh k maja aa gaya...jb ham boodhe honge to u hi jawab denge..ha.ha.ha.

Darshan Darvesh said...

तीखी चुभन का अनोखा नमूना |

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... कुछ इस तरह भी गुजरा ज़माना याद आता है ... लाजवाब ...

संगीता पुरी said...

समझना न
इसको बदलाव उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है !!

जो भुलायी नहीं जा सकती ..

सुंदर प्रस्‍तुति !!

Kailash Sharma said...

झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है

....बहुत खूब! लाज़वाब प्रस्तुति...

Arshia Ali said...

रंजु जी, आपका गुजरा जमाना हमें सचमुच भा गया। बधाई।

............
International Bloggers Conference!

Arshia Ali said...

रंजु जी, हार्दिक बधाई स्‍वीकारें।

............
International Bloggers Conference!