परिवर्तन का बोझ ..यह विषय था इस बार शब्दों की चाक पर ...इस विषय पर लिखी है हास्य व्यंग कविता .पढ़ कर बताये की कैसा लगा यह प्रयास :)
तोडा नहीं है
बुढापे ने कमर को
यह तो अपनी बीते दिनों को
तलाश करने के लिए
हमने इसे झुकाया है
दोस्तों समझना न
इसको बोझ बदलती उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है
झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है
समझना न
इसको बदलाव उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है
नहीं ला सकता है कोई
बीते दिनों को वापस
यह सोच कर दिल जो कभी मुरझाया है
तभी किसी ने पलट के दी आवाज़
तो फिर से सारा माहौल गुनगुनाया है
बीते हर लम्हा ख़ुशी का
दोस्तों की महफ़िल में
दर्द को यूँ ही थपका थपका के सुलाया है
समझना न
इसको बदलाव उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है !!
रंजना (रंजू) भाटिया
तोडा नहीं है
बुढापे ने कमर को
यह तो अपनी बीते दिनों को
तलाश करने के लिए
हमने इसे झुकाया है
दोस्तों समझना न
इसको बोझ बदलती उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है
झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है
समझना न
इसको बदलाव उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है
नहीं ला सकता है कोई
बीते दिनों को वापस
यह सोच कर दिल जो कभी मुरझाया है
तभी किसी ने पलट के दी आवाज़
तो फिर से सारा माहौल गुनगुनाया है
बीते हर लम्हा ख़ुशी का
दोस्तों की महफ़िल में
दर्द को यूँ ही थपका थपका के सुलाया है
समझना न
इसको बदलाव उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है !!
रंजना (रंजू) भाटिया
29 comments:
वाह ... बहुत ही बढिया ... आभार
वाह....
बहुत बढ़िया रंजना जी....
:-)
अनु
झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है
:):) बहुत खूब ... सच्चाई को हास्य का जामा पहना दिया है ...
एक बेंत भी हांथों में होता :)))
kya kahoon :))
...
बस बीते जीवन का पुनरावलोकन कर लें।
झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है
गज़ब...इसे कहते हैं ज़ज्बा ..बहुत ही बढ़िया :)
बहुत ही उम्दा!
वाह: रंजना जी बहुत सुन्दर..
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (21-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
उम्र वह पडाव है,गुजरा जमाना कहते है
मिले अनुभवों को,आज बुढापा कहते है,,,,,,,
बहुत सुंदर रचना,,,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
वाह वाह, क्या व्यंग है क्या हास्य है । बहुत बढिया ।
Waah bahut hi khubsurat...
मजेदार मगर हंसी के फौवारों में भी
इक दर्द उभर आया है ! :-)
दिल बहलाने को कितनी बहाने ...मगर बड़े प्यारे , बड़े सच्चे लगे !
nice ranjana ji
वाह बहुत खूब
शब्दों की चाक पर हर शब्द खरा सा हैं :)
दर्द में भी सुंदर हास्य उभर कर आया है
वाकई गुजरा ज़माना याद आया है :)
सुंदर रचना
साभार !!
रंजू जी आपको यहाँ देखकर बहुत अच्छा लग रहा है धन्य चर्चा मंच बहुत रोचक लगी यह रचना चलो मिलते रहेंगे दोनों जगह
सुंदर है !
आँख में
मोती या
जो है !
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
lajawaab rahi aapki ye koshish.
padh k maja aa gaya...jb ham boodhe honge to u hi jawab denge..ha.ha.ha.
तीखी चुभन का अनोखा नमूना |
बहुत खूब ... कुछ इस तरह भी गुजरा ज़माना याद आता है ... लाजवाब ...
समझना न
इसको बदलाव उम्र का
बस गुजरा ज़माना याद आया है !!
जो भुलायी नहीं जा सकती ..
सुंदर प्रस्तुति !!
झाँका अब के जब
उन्होंने हमारी आँखों में
तो कहा मोतिया उतर आया है
कहा हमने
करवाओ इलाज अपनी नजरो का
यह तो बीते दिनों को याद कर के
आंसुओं का झिलमिल साया है
....बहुत खूब! लाज़वाब प्रस्तुति...
रंजु जी, आपका गुजरा जमाना हमें सचमुच भा गया। बधाई।
............
International Bloggers Conference!
रंजु जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें।
............
International Bloggers Conference!
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