Pages
Tuesday, September 08, 2009
प्यार का प्रतिदान
धरा का रूप धरे
उजाला तुझ सूरज से पाती
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती
कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
50 comments:
माधुर्य रस की वह सरिता बहाई आपने कि मन बस उसमे उभ चुभ हो रहा है....वाह !! अतिसुन्दर !!..आभार स्वीकारें..
beautiful
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
बहुत सुंदर कविता है दिल की गहराई से उपजी है
कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ .......जो दिल करीब लगी.
चिर आकांक्षा !
बढ़िया ख्याल अच्छी रचना . आभार
सुन्दर रचना है।
बधाई!
अदभुत, बहुत सुंदर.
अति सुन्दर। एक अलग सा अहसास जगाती।
कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती
वाह क्या बात है।
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !....bahut khoobsurat kavita.....
बेहतर तरीके से हृदय की अभिव्यक्ति दी है आपने । बधाई ।
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
बहुत सुन्दर. सुन्दर आकान्क्षा. भावपूर्ण रचना का माधुर्य दिल को छू गयी.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
रामराम.
कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती
बहुत सुन्दर अध्यात्म रस बरस रहा है जब प्यास है तो वो जरूर मिलेगा बहुत बहुत बधाई आप बहुत गहरे मे उतर कर लिखती हैं
कई बार आ नहीं पाई ...पर आज आपकी सुन्दर पंक्तियों ने मन मोह लिया है :)
अब आगे की प्रविष्टियाँ भी पढ़ती हूँ
स्नेह सहित,
- लावण्या
सुन्दर रचना !!
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती
अति सुन्दर
bhawnaaon ka adbhut sanyojan hai...
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर रचना .. दिल की गहराइयों से लिख गयी .. बहुत बहुत बधाई !!
हाथ बढ़ा के थाम जो लेता
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती !!
प्रेम, sneh की anoki parakaashta पर है आपकी rachna .............. shaant gahre samundar सी bati huyee दिल में samaati rachna .......... lajawaab लिखा है
"मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती"
फलक का विस्तार है इस रचना में, गहराई भी । आभार ।
adbhut ..bahut khub ...aap ki is kavita ne kume jit liya ...is tarah ki gaherai bahut kum dekhne milti hai ..."
thanx
plz wellcome on my blog
----- eksacchai {AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
Hath badha kar tham jo leta apne pyar ka pratidan pa jatee Bahut sunder Ranju jee.
तेरे बिना सजना मैं
श्याम वर्ण ही कहलाती
वाह अतिउत्तम।
वाह.. आज तो आपने कुछ हटकर लिखा है
bahut khubsurat
आज तो रचना ने निशब्द कर दिया……………………………हर शब्द दिल मे गहरे उतर गया………………एक असीम अनुभूति।
Behatreen.. Happy Blogging
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती!
सुन्दर रचना .
आभार आपका
अदभुत भावाभिव्यक्ति।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुंदर.
हर बार की तरह लाजवाब.
"मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती"
प्रेम भरे भावों की सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
'मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती'
बहुत ही सुन्दर कविता है.
भावों की गहनता लिये हुए.
-----
'हर खोज एकाकी सी रह जाती'
खास कर यह पन्क्ति बहुत ही खास लगी.अपने आप मे जैसे सम्पूर्न अभिव्यक्ति हो..
bas ek hei word...
"waah"
बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....
चिर आकांक्षा !yes true word....
तो अपने प्यार का प्रतिदान पा जाती।
बहुत ही सुंदर बढ़िया।
बहुत सुंदर अभिलाषा है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कहाँ तलाशुं तुमको मैं प्रीतम
हर खोज एकाकी सी रह जाती
घिरी इस दुनिया के मेले में
तेरा कहीँ ठौर तो पाती........
bahut hi sunder lines.......... dil mein utar gayin.......
्रंजना जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बहुत बहुत बधाई
रंजना जी,
बहुत ही संजीदा कविता जो आगे बढते हुये दिल में उतरने लगती है।
मन की अटल गहराई सिंधु सी
हर पीड़ा को हर जाती
सृष्टि के नव सृजन सी
ख़ुद पर ही इठलाती
वाह क्या बात कही है!!!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
bahut hi achha likha hai aap ne Ranju di!! I am like wow!!
Such pritty hindi words ... i am learning a lot.
Wish you all the best! :)
'पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
धूमती धुरी पर जैसे धरती
युगों युगों तक साथ तेरा निभाती'
- सुन्दर
.
कोमल शब्दों और सुंदर छंद में एक मन को छूती रचना मैम...
अब पुरानी डायरी के पन्नों को साया-२ की शक्ल दे ही दीजिये!
पाती जो तेरे प्यार की तपिश
तो हिमखण्ड ना बन पाती
bahut sundar panktiyan..
बेबस हुई मन की तरंगों से
कुछ सवालों का जवाब बन जाती
बहुत ही सुन्दर. गहन भावों से भरा आपका यह विरह-गीत दिल को छू गया.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
सुन्दर पंक्तियों..... से बनी ये रचना......
मन सब का मोहे........ये रचना.....
सारी पीड़ा समेट कर कविता का रूप दे दिया? क्यों हर कहीं तुम्हारी सिसक सुनाई देती है.रूप निखर उठता है जब सूरज धरती पर अपने प्रेम की किरनों को बिखेर देता है.दुगनी वेग से बहने लगती है नदी जब एक और जल धारा उसमे आ कर समा जाती है किन्तु यही धरती या नदी के भाग्य निर्माता तो नही!देखो सकल ब्रह्माण्ड में धरती सा कोई नही.सारे ब्रह्माण्ड की ख़ूबसूरती को सहेजने,सराहने वाली मात्र धरती और उससे जुड़े लोग हैं.क्या कहूँ?क्या लिखू? दर्द के गीत हमारे लिए नही हैं बस.
Post a Comment