Friday, February 13, 2009

प्रेम के ढाई आखर

प्रेम के ढाई आखर हर किसी के दिल में एक मीठी सी गुदगुदी पैदा कर देते हैं। कभी ना कभी हर व्यक्ति इस रास्ते से हो के ज़रूर निकलता है पर कितना कठिन है यह रास्ता। कोई मंज़िल पा जाता है तो कोई उम्र भर इस को जगह-जगह तलाशता रहता है। किसी के एक व्यक्ति के संग बिताए कुछ पल जीवन को एक नया रास्ता दे जाते हैं तब जीवन मनमोहक रंगो से रंग जाता है और ऐसे पलों को जीने की इच्छा बार-बार होती है।

प्रेम की स्थिति सच में बहुत विचित्र होती है। मन की अनन्त गहराई से प्यार करने पर भी यदि निराशा हाथ लगे तो ना जिया जाता है ना मरा। जैसे कोई रेगिस्तान की गरम रेत पर चल रहा हो जहाँ चलते-चलते पैर जल रहें हैं पर चलना पड़ता है। बस एक आशा या मृगतृष्णा सी दिल में कहीं जागी रहती है कि अब कोई सच्चा प्रेम करने वाला मिल जायेगा शायद जीवन के अगले मोड़ पर ही।
परन्तु जीवन चलने का नाम है और यह निरंतर चलता ही रहा है,बह रहा है,समय की धारा में। कुछ समय पहले कही पढ़ा था कि प्रतिक्रिया,संयोजन और चाहत किसी भी सबंध के तीन अहम चरण होते हैं। कोई भी रिश्ता यूँ ही एक दम से नही जुड़ जाता। हर रिश्ता अपना वक़्त लेता है। कोई भी व्यक्ति सभी से सहजता से संबंध नही बना लेता,अपने जीवन में वो अपने दिल के क़रीब बहुत कम लोगो को आने देता है। जब दो व्यक्ति एक दूसरे की तरफ़ आकर्षित होते हैं तो उनके भीतर होने वाली रासायनिक क्रियाएँ ऐसे प्रभाव पैदा करती है जिनसे उनके हाव भाव बदलने लगते हैं,घंटो एक-दूसरे से बाते करना चाहे उनका कोई अर्थ हो ना हो, दोनो के दिल को सुहाता है। पहले-पहल कोई भी रिश्ता दिल से नही जुड़ पाता पर धीरे-धीरे सब कुछ जान कर व्यक्ति आपस में बंधने लगता है। यह बात हर रिश्ते पर लागू होती है। चाहे वह पति-पत्नी का रिश्ता हो या फ़िर सास बहू का। रिश्ता जितना पुराना होता है उतने ही उसके टूटने की संभावना उतनी कम होती है।

एक लेख में यह जानकारी पढ़ने को मिली जो मुझे बहुत रोचक लगी। रूमी वॉल्ट और प्रेमी युगलों के अनुभवों के आधार पर एक विद्वान् व्यक्ति ने प्रेम के सात चरणो का उल्लेख किया है, ये चरण हैं, आकर्षण,प्रेमोन्माद,प्रणय पूर्व के सम्बन्ध,घनिष्ठता,समपर्ण,चाहत और पराकाष्ठा। इसे आकर्षण,रोमांस,घनिष्ठता और समर्पण जैसे पाँच चरणो में बाँट कर आसानी से समझा जा स्कता है।


आकर्षण क्या है,किसी के दिल में कुछ सकरात्मक भाव रखना ही आकर्षण कहलाता है, यह दोस्ती से अलग है पर इसमें शारीरिक होना ज़रूरी नही। यह भावात्मक भी हो सकता है। शारीरिक आकर्षण तभी होता है जब हमारे शरीर में किसी दूसरे को देख कर कोई प्रतिक्रिया हो और इसकी परिणति हृदय गति,शरीर के तापमान और पसीने के बढ़ोतरी के रूप में होती है। जब यह प्रतिक्रिया होती है तो हथेली में पसीना आ जाता है और गला सुखने लगता है। यह लक्षण बहुत आम है, जबकि यही प्रेम के सबसे पहली स्थिति हैं और यही किसी दूसरे के दिल के क़रीब होने का एहसास करवाते हैं।

आकर्षण के बाद रोमांस का स्थान आता है। यह दूसरों को ख़ुद से प्रभावित करने की स्थिति है। हम उपहारों और किसी अन्य प्रकार की विधि द्वारा दूसरे के दिल को लुभाने की कोशिश करते हैं तो इसमें प्यार की संभावना पैदा हो जाती है। इसकी भी दो स्थिति है एक तो जो सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए किया जाता है और दूसरा वह जो स्वार्थ से परे हो यहाँ स्वार्थी होने से मतलब उस स्थिति से है जब हम साथी को ख़ुश देखने और सुख देने की जगह इस चीज़ो की चाह सिर्फ़ ख़ुद अपने लिए करते हैं लेकिन निस्वार्थ रोमांस की स्थिति वह है जब हम इन चीज़ो की कल्पना अपने लिए नही बल्कि अपने साथी के लिए करते हैं। उसकी ख़ुशी को ही अपनी ख़ुशी समझते हैं तभी रोमांस पैदा होता है और हम प्रेम की तीसरी स्थिति तक जा पहुँचते हैं। रोमांस करते व्यक्ति की चाह अपने साथी के लिए इतनी बढती चली जाती है और भावात्मक संबंध की परिणति के रूप में दिल में काम संबधी विचार पैदा होने लगते हैं। यह प्रेम की सबसे महत्त्वपूर्ण स्थिति है। प्रेम अब एक ऐसे दोराहे पर आ जाता है जिसमें से एक ऐसा मोड़ है जहाँ कोई संबंध या तो उच्च अवस्था को प्राप्त कर लेता है या फिर गर्त में चला जाता है। इस मोड़ पर आ कर एक बार सोच ज़रूर लेना चाहिए कि उन्हे कौन सा मार्ग चुनना है। अगर संबंध आगे बढ़ता है तो घनिष्ठता भी बदती है। दो प्रेम करने वाल के बीच बहुत सहजता और सरलता पैदा हो जाती है। आपस की बातचीत में कोई औपचारिकता नही रहती। वो एक-दूसरे के विचारों के साथ-साथ भावनाओं और सपनो का भी हिस्सेदार बनने लगते हैं और यही घनिष्ठता एक-दूसरे के प्रति समर्पण का भाव पैदा करती है। एक ऐसा समपर्ण जिस में कोई अगर-मगर नही होता। यह स्थिति हर माहौल में एक-दूसरे को साथ निभाने का वचन देती है और फिर अलग-अलग जीवन बिताने का सोचा भी नही जा सकता। जिस्म से जरूरी रूह तक पहुंचना होता है,तभी पूर्ण समर्पण सम्भव है।

पर अब वह समय कहाँ रहा है, अब तो प्रेम के नाम पर सिर्फ़ स्वार्थ है। सब कुछ स्वार्थवश और समय की सुविधा के अनुसार होता है। आज कल सिर्फ़ सब अपने विषय में सोचते हैं सब। स्वार्थवश दोस्ती करेंगे और स्वार्थवश ही प्रेम और अपने स्वार्थों की पूर्ति होते ही वो संबंध कसमे और दोस्ती तोड़ देंगे,गिरगिट की तरह रंग बदल लेंगे। यह संबंध बनाने बहुत आसान है, पर इनको निभाना उतना ही मुश्किल।

कभी कभी पंजाबी लिखने का जनून चढ़ जाता है मुझे भी उसी एक कोशिश में इश्क का यह रंग ॥

अज चन्न ने सूरज नु न्योता दिता अपने घर आन दा
इक प्याला इश्के दा पिता सजना मैं तेरे नामं दा

जिवें देख सूरज नूँ चन्न बदरा विच शरमा गया
उंज चढ्या मैनूं वीं खुमार तेरे दीदार दा

तू रया सामने ते मैं अपना सब कुछ भुल गयीं
ख्याल किथे रहन्दा मैनूं फ़िर किसी दिन -रात दा

आ के भर ले बवाँ विच तू इंज सोनेया
फ़िर रवे न कुछ वि होश मेनू इस संसार दा

रंजू



इसी लेख से जुड़ी पहले लिखी कड़ियाँ यहाँ पर पढ़े ..

ढाई आखर का जादू कड़ी

ढाई आखर प्रेम के दूसरी कड़ी

प्रेम में स्वंत्रता


रंजना © ©

28 comments:

Mohinder56 said...

प्यार का बहुत गहरा और सुन्दर विशलेषण किया है आपने..लेख के लिये बधाई

seema gupta said...

प्रेम की सुंदर शब्दों मे प्रेम से ही लिखी गयी परिभाषा...."

Regards

सुशील छौक्कर said...

सही और सच्ची बात कह दी आपने। वैसे इन प्रेम चरणो‍ के बारें आज ही पता चला। शुक्रिया। आजकल तो प्रेम की परिभाषा ही बदलने लगी है। बाकी कडी फ़ुरसत मे‍ ही पढी जाएगी।

मोहन वशिष्‍ठ said...

सच में बहुत ही सुंदर प्रस्‍तुतिकरण किया है आपने प्रेम का और बहुत ही अच्‍छी रोचक जानकारी भी उपलब्‍ध कराई सच्‍चाई पर आधारित इस प्रस्‍तुति के लिए आपको कोटि कोटि धन्‍यवाद

अविनाश said...

रया सामने ते मैं अपना सब कुछ भुल गयीं
ख्याल किथे रहन्दा मैनूं फ़िर किसी दिन -रात दा

सुंदर लिखा है आपने रंजना जी
प्रेम का एक खूबसूरत परिभाषा को कहा है.

बधाई
धन्यवाद

सुशील छौक्कर said...

जिवें देख सूरज नूँ चन्न बदरा विच शरमा गया
उंज चढ्या मैनूं वीं खुमार तेरे दीदार दा

तू रया सामने ते मैं अपना सब कुछ भुल गयीं
ख्याल किथे रहन्दा मैनूं फ़िर किसी दिन -रात दा

मीठी,प्यारी सी रचना।

रंजना said...

सुंदर विवेचना प्रस्तुत की आपने....सही कहा- समर्पण,परस्पर सम्मान,एकनिष्टता ही प्रेम है.

Arvind Mishra said...

बहुत उम्दा और बेखौफ लिखा है आपने -वैलेन्टाईन की पूर्व संध्या पर इअसे बेहतरीन क्या हो सकता है ! शुक्रिया !

Abhishek Ojha said...

पूरी अनालिसिस हो रखी है यहाँ तो ढाई अक्षरों की ! बहुत बढ़िया आलेख.

शारदा अरोरा said...

बहुत अच्छा लिखा है आपने , और गीत भी ,खुदा करे चाँद ऐसे ही शर्मा के सूरज को न्योता देता रहे | मुझे लगता है प्रेम में मंजिलें कहने को मिलती हैं , अंतर्मन में एक प्यास बनी ही रहती है | शायद कुदरत का नियम है कि कुछ पाने को बाकी रहना ही चाहिए , वरना इंसान चलेगा कैसे |

Asha Joglekar said...

वाह रंजूजी आपने तो प्रेम पर पूरी थीसिस लिख डाली ।
त्वाडी कविता भी बडी सोहणी हैगी ।

Himanshu Pandey said...

क्या ऐसा प्रेम की मुग्धावस्था का प्रभाव है कि मैं यह पोस्ट पढ़कर कुछ भी कहने में अपने को असमर्थ पा रहा हूं. ऐसी मुग्धावस्था में कैसे साहचर्य हो भिन्न इन्द्रियों का. ठीक ही कहा होगा तुलसी बाबा ने ’गिरा अनयन नयन बिनु बानी’

शोभा said...

प्रेम के विषय में इतनी गूढ़ जानकारी देने के लिए आभार।

अनिल कान्त said...

bahut hi pyaar bhara varnan tha ....pasand aaya

रश्मि प्रभा... said...

तू रया सामने ते मैं अपना सब कुछ भुल गयीं
ख्याल किथे रहन्दा मैनूं फ़िर किसी दिन -रात दा
........ प्यार के मोहक रंग बिखेर दिए ढाई अक्षर में

Anonymous said...

वाकई प्यार के ये ढाई आखर चमत्कारिक हैं।

आपके ब्लॉग पर भी छोटा सा गुलाबी दिल धड़कता हुआ दिख रहा है..

Alpana Verma said...

प्यार के इस ढाई आखर को खूब समझाया है आप ने...
प्रेम दिवस की पूर्व संध्या पर यह भी एक तोहफा ही तो है.
.बहुत अच्छा लेख लगा...ब्लॉग पर ये धड़कता गुलाबी दिल बहुत प्यारा लगा रहा है.[मैं ने भी अपने ब्लॉग पर लगा लिया है]..

जैसे सारी फिज़ा प्रेममई हो गई -

पञ्जाबी में लिखी कविता भी ख़ूब है! !!!

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी जानकारी मिली प्रेम के विभिन्‍न चरणों की.....प्रेम दिवस की पूर्व संध्‍या पर इतना सुंदर प्रस्‍तुतीकरण .....आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut sundar...

आलोक साहिल said...

gud,very gud ji....
ALOK SINGH ""SAHIL

अमिताभ श्रीवास्तव said...

prem anubhooti he..ahsaas he aour bs prem he ...kisi paribhasha me ise pirona vakai kathin hota he aour aapne jis andaaz me bayaa kiya vo laazvaab he..
aapko padhne me sach me mujhe aanad aata he..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए ।
स्वप्न आशा भरे देखने के लिए-
नयन में नींद का आवरण चाहिए ।।

Anonymous said...

रंजनाजी, प्यार (और शादी का) का कुछ ऐसा ही फलसफा हमने भी समझाया था अपने प्यार की सीरिज के सात एपिसोड में, वक्त मिले तो एक नजर जरूर डालियेगा, शायद काफी नयी बातें मालूम हो।

दिनेशराय द्विवेदी said...

महत्वपूर्ण आलेख है संभाल कर रखना पड़ेगा संदर्भ के लिए।

अभिषेक मिश्र said...

गहन विश्लेषण कर दिया है प्रेम का आपने इस पोस्ट में.

मीनाक्षी said...

अरे वाह...आज हम भी लस्ट और लव पर चर्चा कर रहे थे...भावनाओं के साथ साथ हमारे शरीर और दिमाग के रसायनो पर साइंस ने खूब खुलासा किया है..वैसे हमेशा की तरह इस लेख ने भी मन को बान्ध लिया है...

Unknown said...

bahut accha likha hai...

गौतम राजऋषि said...

देर से आया मगर पूरा पढ़ गया.....पता नहीं कैसे छूट गये थे ये सारे के सारे
प्रेम के इन हसीन शब्दों पर ये सजा हुआ तीर{करसर} भी बड़ा भाया