Tuesday, December 16, 2008

लास्ट सपर'

२६ /११ को ..जो हुआ वह किसी से सहन नही हो रहा है..क्यों नही सहन हो रहा है यह ? बम ब्लास्ट तो हर दूसरे महीने में जगह जगह जहाँ तहां होते रहते हैं ..लोग भी मरते रहते हैं ,पर इस बार का होना शायद सीमा को लाँघ गया .....या जगा कर हमें एहसास करवा गया कि हम भी जिंदा है ...और यह बता गया कि हम एक हैं .अलग अलग होते हुए भी ..आज भी आँखों से मेजर संदीप .हेमंत करकरे और कई उन लोगों के चेहरे दिल पर एक घाव दे जाते हैं ..यह कुछ चेहरे हम निरंतर देख रहे हैं ..पर इतने दिनों की ख़बरों में अब धीरे धीरे बहुत कुछ सामने आया है ..वह लोग जो अपनी शाम का शायद आखिरी खाना खाने इन जगह गएँ जहाँ यह उनके लिए" लास्ट सपर "बन गया ...वह मासूम लोग जो स्टेशन से अपने घर या कहीं जाने को निकले थे पर वह उनका आखिरी सफर बन गया ..उनका नाम कहीं दर्ज नही हुआ है ....

एक लौ मोमबत्ती की
उन के नाम भी .....
जिन्होंने..
अपने किए विस्फोटों से
अनजाने में ही सही
पर हमको ...
एक होने का मतलब बतलाया

एक लौ मोमबत्ती की..
उन लाशों के नाम....
जिनका आंकडा कहीं दर्ज़ नही हुआ
और न लिया गया उनका नाम
किसी शहादत में....
और ...................
न कहीं उनको मुर्दों में गिना गया


चुपचाप जली यह लाशें
कितनी मासूम थी
क्या जानती थी वह
कि वह ....
अपनी ज़िन्दगी का
मानने आई थी आखिरी जश्न
और उन्होंने खाया था
अपनी ज़िन्दगी का "लास्ट सपर"

पर ......

आज सिर्फ़ उनके नाम क़ैद हैं
उन आंकडों में कहीं दबे हुए
जो दर्शाए गए नहीं कहीं भी
सिर्फ़ इसी डर से....
कि कहीं जो आग सुलगी है
वह जल कर उनकी कुर्सियां
उनसे छीन न सके
और वह लाशें भी कहीं
उन इंसानों की तरह
मांगने न लगे इन्साफ
जो अभी अभी हुए
बम ,गोली के धमाकों से
जाग उठी है ....!!!!

रंजना [रंजू ] भाटिया
१६ दिसम्बर २००८

26 comments:

P.N. Subramanian said...

संसद भवन में हमले के बाद एक बड़े पैमाने में खुल कर किया गया हमला था मुंबई में इसलिए इसका असर भी हम लोगों पर कुछ अलग सा रहा.
उस अन्तिम सपर और सफर पर आपकी रचना सार्थक लगी. आभार.

Mohinder56 said...

इस भावभीनी श्रद्धांजली रूपी रचना को एक संवेदनशील मन ही लिख सकता है... सुन्दर अभिव्यक्ति

Anonymous said...

बहुत दुखद मंजर था वह... चाहकर भी नहीं भूल सकते। आज विजय दिवस ('71 के युद्ध में भारतीय सेना की जीत) के अवसर पर आपकी इस संवेदनशील कविता ने सेना के उन शूरवीरों की याद भी दिलाई है, जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर दहशतगर्दी को नेस्तनाबूद किया..

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

सचमुच बहुत भयावह मंजर था वो.. कितने ही मासूम लोग चले गये बिना कुछ बोले ..
बहुत मार्मिक लिखा है आपने

यही सच्ची शृद्धांजलि है...

रश्मि प्रभा... said...

ek nirmam sachchaai ukerti rachna......har panktiyon me sulagti bhawna hai

डा. अमर कुमार said...


बहुत दिनों तक याद रह जाने वाली कविता ..
इसे भूलना एक नामालूम कृत्घ्नता ही होगी !
बेहतरीन शब्द संयोजन

रंजन गोरखपुरी said...

Aise vishay ko uthane ke liye behad abhaar. Ab Inquilaab ke liye waqt ko aise hi lekh/kavya/ghazal/nazm ki zaroorat hai.....

Mujhe ummeed hai ki aajke lekhak/kavi/shayar apni is zimmewari ko samjhengi!

Mujhe ab raushni dikhne lagi hai,
Dhue'n ke beech aakhir lau jali hai...

admin said...

हार्दिक श्रद्धांजलि।

Himanshu Pandey said...

अत्यन्त संवेदनापूर्ण रचना . धन्यवाद.

अजित वडनेरकर said...

सार्थक संवेदनशील रचना

कुश said...

बिल्कुल ठीक कहा आपने...

seema gupta said...

" बहुत मार्मिक ...हार्दिक श्रद्धांजलि।"
regards

Abhishek Ojha said...

सच में एक सार्थक रचना !

L.Goswami said...

कहने को कुछ नही है ..हम सब स्तब्ध हैं ..कुछ न कर पाने का एहसास आक्रोश को निराशा में बदल गया है

सुशील छौक्कर said...

हिम्मत और हौंसलो की लौ जलती रहनी चाहिए। एक मार्मिक श्रद्धांजलि।

डॉ .अनुराग said...

हार्दिक श्रद्धांजलि।
कृपया पहला फोटो हटा दे....

Arvind Mishra said...

उन्हें तो मोमबत्तियां कदापि नहीं जिन्होंने आतंक का परचम लहराया ! हमें इस कीमत पर एकता का अहसास ही क्यों चाहिए ?

रंजू भाटिया said...

@ अनुराग जी शायद वह फोटो आपको विचलित कर रही थीं ..इस लिए हटा दी है ..पर जो देखा है हमने वह हम कैसे भुलायेंगे ?

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप में वाकई बहुत आग थी। पर सारी क्यों उड़ेल दी? कुछ तो बचाई होती अपने पास।

संगीता पुरी said...

बहुत संवेदना भरी रचना ....हार्दिक श्रद्धांजलि।

राज भाटिय़ा said...

हार्दिक श्रद्धांजलि।
धन्यवाद

Smart Indian said...

बहुत ही सार्थक रचना और सटीक श्रद्धांजलि!धन्यवाद!

Alpana Verma said...

बेहद संवेदनशील रचना.
शहीदों को श्रद्धांजलि.
ईश्वर से प्रार्थना है कि फिर कहीं ऐसी कोई घटना न होने पाए.

Anonymous said...

मार्मिक कविता !

आलोक साहिल said...

सॉरी, कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हूँ..........
आलोक सिंह "साहिल"

रंजना said...

बहुत सही और मर्मस्पर्शी बात कही आपने.... काव्य पंक्तियाँ अत्यन्त सार्थक हैं.