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Friday, May 16, 2008
मचलते हुए दिल की धड़कन न सुलझे....
साहित्यक मीना कुमारी की माँ इकबाल एक उर्दू साहित्यिक परिवार की बेटी थीं उर्दू साहित्य में उन्हें रूचि थी उनेक पिता जनाब शाकिर मेरठी अपने वक्त के ख्याति प्रपात कहानी कार शायर और साहित्यकार थे बच्चो के लिए वह अपने अंदाज़ में विशेष रूप से कहानी लिखा करते थे ..मीना जी के पिता जी मास्टर अलीबक्श स्टेज पर हारमोनियम बजाय करते थे ...काम कम मिलता था मीना की पहली फ़िल्म की आय से घर चलाना शुरू हुआ उनका बचपन खेल खिलोने में नही स्टूडियो के आर्क लेम्पों और बड़े बड़े पंखों के शोर में गुजरा ... कई साल तक बाल कलाकार के रूप में काम किया रुपया भी कमाया और एक बंगला भी खरीदा वह उनकी माँ इकबाल के नाम ही रखा गया
इस तरह मीना कुमारी की फिल्मी यात्रा आगे बदती गई कई लोग सामने आए कुछ पल साथ चले तमाम नामी निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर मिला इन्हे निर्माता निर्देशक केदार शर्मा के साथ फ़िल्म चित्रलेखा में काम किया उनका काम लेने का ढंग अपना ही था वह बहुत प्यार से सभी कल्कारों को संवाद और दृश्य समझाया करते थे और जब वह किसी के काम से खुश हो जाते थे तो इनाम के फलस्वरूप उसको एक दुअन्नी देते थे बाद में उन्होंने इसको चवन्नी कर दिया एक बार इसी फ़िल्म की शुटिंग के दौरान मीना ने कहा कि अब तो आपके पास बहुत सी चवन्नी दुअन्नी हो गई है अब तो रेट बड़ा दीजिये और उन्होंने मीना जी के दृश्य के अभिनय से खुश हो कर उन्हें १०० रूपए दिए थे एक बार एक फ़िल्म काजल में एक डायालग लिखा था ॥औरत और धरती एक समान होते हैं मानों कितना कुछ अपने सीने में दबा के रखते हैं यही डायालग जब केदार शर्मा जी ने मीना जी के सामने दोहराया तो मीना ने चिढ कर कहा आप बार बार यह कहते हैं कि औरत और धरती एक समान हैं लेकिन मैं कहती हूँ कि यह बात बिल्कुल ग़लत है औरत सहनशील होती है हर अत्याचार अन्याय को सहन कर लेती है जबकि धरती कभी सहनशील नही रहती है उस में भूकम्प आते हैं तूफ़ान आते हैं वह हर अत्याचार का बदला लेती है लेकिन औरत कहाँ लेती है उसको लेना चाहिए उसको अन्याय और अत्याचार के ख़िलाफ़ बोलना चाहिए ,,सुन के सब वही चुप हो गए
अपनी फ़िल्म फ़र्ज़न्द ऐ वतन से लेकर मीनाकुमारी की आखरी फ़िल्म गोमती के किनारे तक मीना कुमारी का अपना वय्क्तितव अपना चरित्र साथ चलते रहे मानो मीना हर चरित्र में ख़ुद को जीती रहीं और उन्हें इसके लिए कई इनाम पुरस्कार भी मिले
मीना कुमारी यदि एक मशहुर अभिनेत्री होती तो शायद उनके बारे में कुछ यादो को समेटा जा सकता है .पर इसके साथ ही वह एक बेहद भावुक शायरा भी थी उन्होंने न ज़िंदगी की कड़वी सच्चाई को जीया बलिक एक सच्चाई बन गई जिन पर कई किताबे लिखी गई और हर साल उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें याद किया जाता है उनके लिखे से भी ...उनकी एक रचना ..
मेरी तरह कोई न हो ..
अल्लाह करे कि कोई भी मेरी तरह न हो
अल्लाह करे कि रूह की कोई सतह न हो
टूटे हुए हाथों से कोई भीख न मांगे
जो फ़र्ज़ था वह क़र्ज़ है पर इस तरह वह भी न हो .....
उलझे
मचलते हुए दिल की धड़कन न सुलझे
जो काजल से छूटे तो आँचल से उलझे
ग़मगीन आंखों से पोंछों शिकायत
कहो बूंद से यूं न बादल से उलझे
तंग आ गए हैं दिल की एक एक जिद से
खुदा की पनाह कैसे पागल से उलझे
****मीना कुमारी की कलम से ..
शेष बहुत बाकी है दास्तान उस महजबीं की जिसको पढ़ते लिखते न जाने कितने लफ़ज़ दिल में मचल उठते हैं
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12 comments:
that's vry great rajana ji... :-)
बहुत सुन्दर लिखा है रंजू जी। मीना कुमारी की कविताएँ भावुक कर देती हैं। पढ़वाने के लिए बधाई।
nice effort .. Ranju ji..
आपका प्रयास सराहनीय है.
मीनाजी की शायरी सदा जवां है. " आबला पा कोई इस दश्त में आया होगा" से लेकर " जिसका जितना आँचल था " उनकी सोच के आयामों को जाहिर करते हैं.
मीना कुमारी मचलते हुए दिल की धड़कन न सुलझे...कहानी पढ़ी अच्छी लगी! रंजू जी आपकी इन रचनाओ से आनंदविभोर हो जाता हूँ ! कहानी समागम के लिए धन्यवाद ! जुगल गौड़
आभार मीना कुमारी जी पर इस जानकारी का. शायरी का तो बस मत पूछिये-बहुत उम्दा!!
Ranju g mai apki ahesaan-mand hoon k apney itni badi hasti ki likhi lines hamsey share varna hum to kabi pad nahi pateyki........shukriya aap ka.....
seema
meena kumari jipar bahut achchha lekh padne ko mila ahut achchha laga.
bahut hi mahan adakara thi
एक चलता फिरता दर्द थी मोहतरमा.....तन्हा,गमजदा
aaj hi shop par mina ji ke bare main baat chal rahi thii or net on kiya to aapne bhi mina ji ka bare main itna kuch likha jo hume malum hi nahi tha. thnx jo mina ji ke bare main aapne itna kuch bataya.
very nice note..........
RANJANA JI BAHUT SUNDAR, AAP SATAT LIKHATI RAHE HAMARI KAMANA.
KUCHHA MUHABARO AUR DHARA PRAVAH PAR DHYAN DE YAH HAMARA VICHAR HAI.
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