Saturday, March 03, 2007

मोहब्बत बिखरी है दुनिया में मगर यह दिल फिर भी तरसता है*!*!


"""यह दिल अब भी जलता है उनकी याद की आरज़ू ले कर
जो दिल में बस गया है मेरे एक तमन्ना बन कर

मोहब्बबत बिखरी हुई हैं फ़िज़ाओ में एक ख़ुश्बू की तरह'
वो उतर रहा है दिल में मेरे एक प्यारा सा ख्वाब बन कर !!!! ""


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ज़मीन कही पर सूखी है बादल कही और बरसता है
मोहब्बत बिखरी है दुनिया में मगर यह दिल फिर भी तरसता है

मिलती हैं नज़रे तो दिल क्यूं धड़कता है
वोह नाम लेते हैं वहाँ पर हमारा और दम यहाँ पर निकलता है

कभी तो बहेगी इश्क़ की हवा इस तरफ़ भी थोड़ी
अब देखते हैं की मोसाम का मिज़ाज़ कब फिर से बदलता है

बिखेरगी कभी मेरे अंधेरे रास्तों पर रोशनी भी
इंतज़ार है उस पल का "एक दीप प्यार का" कब मेरी दुनिया में जलता है

खिले हैं फूल बहारो के बाग़बाँ में ना जाने कितने
अब देखना है की यह इश्क़ का फूल कब यहाँ महकता है

कब तक उठा के घुमेंगे हम इन बेनाम से रिश्तो का बोझ
कब तलक कोई आँसू मेरी इन पलको पर ठहराता है

यूँ तो बाक़ी है अभी ना जाने कई ऐसे सवाल मेरे ख़्यालो की दुनिया में
आ के बेठो जो तुम पहलू में तो आँखो में कोई ख्वाब उतरता है !!!

15 comments:

Divine India said...

सुंदर लिखा है!!!
"जरा बैठो धैर्य रखकर कुछ देर बाह्य मंडल में
और महसूस करो क्या कोई नहीं जो तुम्हें
निहारता रहता है…तुम्हें प्रेम निमंत्रण भेज़ रहा है,
पत्तों की झुरमुट से जो आवाज आती है कानों में
सागर की लहरें फुफकारा करती हैं…पाने को तुम्हें
हवायें सायं-सायं बहती है तुम्हारी अंगराइयों के साथ,
चारों दिशाएँ वाहें फैला कर तुम्हारा आलिंगन चाहती है…देखों जरा शांत भाव से ये तुमसे कुछ कहना
चाहती हैं…"।

Neeraj Rohilla said...

रंजनजी,
एक उत्तम गजल लिखने के लिये साधुवाद स्वीकार करें । मैं कविता और गीत/गजल पढता बहुत हूँ परन्तु कभी अच्छा लिख नहीं सका । इसलिये जानता हूँ कि काव्य स्रजन कितना दुष्कर कार्य है । यदि आप अन्यथा न लें तो आपकी रचना के बारे में कुछ टीपा करूँगा, आशा है आप इस टिप्पणी को सकारात्मक रूप में ही लेंगे ।

आपने अपनी गजल में "बहर" अर्थात अशारों की लम्बाई समान नहीं रखी है । आपकी गजल को संशोधित करने की सामर्थ्य मुझमें नहीं है, शायद आप स्वयं इसमें संशोधन करके इसे गजल के "बहर" के नियमों के अनुरूप बना सकें ।

यदि आप इस टिप्पणी को अनुचित समझें, तो मुझे आशा है कि मेरी इस द्र्ष्टता के लिये आप मुझे क्षमा कर सकेंगे ।

How do we know said...

Very romantic!

Mohinder56 said...

सुन्दर कविता शायद यही कहना चाह रही हैं

मैं जब भी अकेली होती हूं,
तुम चुपके से आ जाते हो
और थाम के मेरी बाहों को
बीते दिन याद दिलाते हो
रो रो के तुम्हें खत लिखती हूं
और खुद पढ कर रो लेती हूं
हालात की बह्ती आंधी में
जजबात की नैया खेती हूं

Monika (Manya) said...

aisaa lagtaa hai dil ke saare bhaaw kalam lekar kaagaz par utaar diye.. bahut kashish hai.. aapke bhaawon mein.. pyaaar ka deep jaroor jala hai kahin na kahin.. uski roshan se hi to raoshan hai ye dil ki duniya.. ye deep intezaar ka bhi hai.. jo jalaaye baithi hai nayika preetam ke intezaar mein.. mausam jaror badelga... hawa to badalne hi lagi h.. bas kuchh aur intezaar,,

ghughutibasuti said...

होली की शुभकामनाएँ ।
सुन्दर रचना है!
घुघूती बासूती

रंजू भाटिया said...

बहुत बहुत शुक्रिया दिव्याभ ....बहुत गहरी बात लिख दी आपने ..बहुत अच्छा लगा पढ़ के

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया नीरज जी ....
आगे से लिखने पर ध्यान रखूँगी
पर मैं अक्सर ऐसा नही कर पाती
क्यूं की जब भाव आते हैं तो वह
फिर किसी नियम में मुझसे बाँध नही पाते ..पर मेरी अच्छा लिखने की कोशिश जारी रहेगी ..शुक्रिया आपके यहाँ आने का और इतने प्यार से इसको पढ़ने का !!

रंजू भाटिया said...

shukriya ji ..how do we know:)

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया मोहिंदेर जी
आपने मेरी कविता को इतने प्यारे गाने से जोड़ दिया ..अच्छा लगा ..आपका यहाँ आना और इसको इतने प्यार से पढ़ना !!

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया मान्या ..सारे भाव तुमने सच में बहुत अच्छे से समझे .....हाँ सच में एक इंतज़ार है सब बदलने का इस मासूम दिल को मेरे [:)]

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया घुघूती बासूती जी.....:)

Soliloquy said...

It's an, undoubtedly, great Gazal with complete command while conveying the message to Premika...

Soliloquy said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

main pagal or bewakoof tha
dhond raha tha nischal pyaar,
khub mahakta khub dahakta,
khusiyon se ujjaval sansar,

main pagal tha, jod raha tha
do kone gangaji ke,
chala raha tha nav prem ke
bich bhawanr bin majhi ke,
khoj raha tha satya jagat main
karta tha us par viswas,
par kone main kahi hrday ke
jaga raha ek aviswas,

swarth bhare the jehan main aur dhoond raha tha nischal pyaar,
aise kaise byarth jayegee dil kee sacchi ek pukaar,
jab tak man main mail rahegee nahi milega saccha pyaar.

uth priytam sun meree pookar main hoon tera sachcha pyaar,