Tuesday, May 01, 2007

क्या -क्या ना मुझे याद आया ..


देखा जब खिलते हुए फूलो को क्या -क्या ना मुझे याद आया
वो तेरा प्यार से मुझे पुकारना वो तेरा प्यार का साया

छ्लका जो जामय का तेरी महफ़िल में
मुझे तेरी नज़रो का ख़ुद की नज़रो से मिलना याद आया

देख के रोनक-ए -बहार फ़िज़ा में महकती सी ख़ुश्बू
वो तेरा प्यार से मेरे लबो को चूमना याद आया

देखा जो सुरमई शाम का ढलता आँचल
मुझे तेरी बाहों में अपना सिमाटना याद आया

देखा जो मेहन्दी के फूलो को अपने हाथ में महकते
मुझे तेरा ख़ुद से किया गया हर वादा-ए -वफ़ा याद आया !!


ranju

11 comments:

Anonymous said...

बहुत सुन्दर! अच्छा लिखा है।

देख के रोनक-ए -बहार फ़िज़ा में महकती सी ख़ुश्बू
वो तेरा प्यार से मेरे लबो को चूमना याद आया


:)

मगर मुझे याद नहीं आ रहा :) :) :)

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

वाह, अच्छी रचना है. बधाई!!

Divine India said...

वैसे यह तो आपका प्रिय विषय है तो ज्यादा कहना भी अतिशयोक्ति होगी…मगर इम्तहाँ तो यही है की कही गई हर शब्द में उसी की आहट उसी क तरन्नुम याद आया… बधाई!!!

Mohinder56 said...

निकले थे घर से अपनी प्यास बुझाने के लिए
ले के किसी समुंदर का पता
पर कभी उसके साहिल तक को छू भी ना पाए
हाथ में आई सिर्फ़ रेत मेरे
और लबो पर आज तक है अनबुझी किसी प्यास के साये

जागे हुये अहसासो का बाकोल इजहार

रंजू भाटिया said...

shukriya joshi ji ...[:)]yaad aayega bhi nahi [:)]

रंजू भाटिया said...

shukriya घुघूती ji :)

रंजू भाटिया said...

shukriya sameer ji

रंजू भाटिया said...

shukriya divyabh aapne is ko dil se padha [:)]

रंजू भाटिया said...

shukriya mohinder ji ...

Mukesh Garg said...

bahut kuhb
kya kya na mujhe yaad aaya