आज कल सुबह जब भी अखबार उठाओ तो एक ख़बर जैसे अखबार की जरुरत बन गई है की
फलानी जगह पर इस बन्दे या बंदी ने आत्महत्या कर ली ..क्यों है आखिर
जिंदगी में इतना तनाव या अब जान देना बहुत सरल हो गया है ..पेपर में अच्छे
नंबर नही आए तो दे दी जान ...प्रेमिका नही मिली तो दे दी जान ...अब तो लगता
है जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है लोग इसी तनाव में आ कर इस रेशो को ऑर न
बड़ा दे ...कल एक किताब में एक कहानी पढी इसी विषय पर लगा आप सब के साथ
इसको शेयर करूँ ..एक नाम कोई भी ले लेते हैं ...राम या श्याम क्यूंकि
समस्या नाम देख कर नही आती ..ऑर होंसला भी नाम देख कर अपनी हिम्मत नही खोता
है .खैर ...राम की पत्नी की अचानक मृत्यु हो गई ऑर पीछे छोड़ गई वह बिखरी
हुई ज़िंदगी ऑर दो नन्ही मासूम बच्चियां ..सँभालने वाला कोई था नही नौकरी पर
जान जरुरी .ऑर पीछे से कौन बच्चियों को संभाले ..वेतन इतना कम की आया नही
रखी जा सकती . ऑर आया रख भी ली कौन सी विश्वास वाली होगी ..रिश्तेदार में
दूर दूर तक कोई ऐसा नही था जो यह सब संभाल पाता..क्या करू .इसी सोच में एक दिन
सोचा की इस तरह तनाव में नही जीया जायेगा ज़िंदगी को ही छुट्टी देते हैं
..बाज़ार से ले आया चूहा मार दवा ..ऑर साथ में सल्फास की गोलियां भी ...अपने
साथ साथ उस मासूम की ज़िंदगी का भी अंत करके की सोची ..परन्तु मरने से पहले
सोचा की आज का दिन चलो भरपूर जीया जाए सो अच्छे से ख़ुद भी नहा धो कर
तैयार हुए ऑर बच्चियों को भी किया ...सोचा की पहले एक अच्छी सी पिक्चर
देखेंगे फ्री अच्छे से होटल में खाना खा कर साथ में इन गोलियों के साथ
ज़िंदगी का अंत भी कर देंगे ...
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Saturday, January 17, 2015
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