बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें
उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है
जो कदरें वो सुनाती थी कि जिनके
जो रिश्ते वो सुनाती थी वो सारे उधरे-उधरे हैं
किताबें और उनको पढ़ना अब ज़िन्दगी से कम होता जा रहा है,उसकी जगह किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से
(गुलज़ार)
पर मेरे लिए यह किताबों की दुनिया कभी अजनबी नहीं रही , किस्से ,कहानियां ,और उनको पढ़ने का रोमांच मुझे बहुत छोटी उम्र से आकर्षित करता था । याद आता है बचपन में चंपक, नंदन , लोटपोट ,चंदामामा , दीवाना आदि खूब पढ़ते थे। मेरी बड़ी मासी कर घर में एक स्टोर रूम में यह किताबें भरी रहती थी और हम भाई बहनों में इन्हें सबसे पहले और सब पढ़ने की होड़ होती थी।
फिर कॉलेज टाइम में धर्मयुग, कादम्बनी आदि पढ़नी शुरू की उसके साथ ही "अमृता प्रीतम और शिवानी" को पढ़ने का चस्का लग गया । फिर यह पढ़ने की यात्रा रुकी नहीं है अब तक ।
हर किताब ज़िन्दगी के किसी न किसी बात को बताती है ,और हम उस किताब से कुछ न कुछ सीखते जरूर हैं ,ऐसा मेरा मानना है । पर कौन सी ऐसी खास किताबें हैं जिन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया तो काम कुछ मुश्किल जरूर है ,पर आज के इस लेख में जो पूर्वा भाटिया के लिखे blueskydreamers(https://www.blueskydreamers.com/)
में लिखे से प्रभावित है ,(जिसमे उन्होंने अपनी पढ़ी बीस बुक्स का जिक्र किया ,बहुत पसंद आया यह लेख ) कुछ अपनी पसंद की किताबें तो मैंने 2 से अधिक बार भी पढ़ी है ,जैसे,रसीदी टिकट ,बुखारी, परिणीता, मुझे चांद चाहिए आदि । पर ज़िक्र अभी सिर्फ 10 किताबों का
1 रसीदी टिकट ( अमृता प्रीतम)
अमृता प्रीतम की यह आत्मकथा बेबाकी से अपनी ज़िंदगी की सच्चाई बताती है । मैंने इसको कई बार पढ़ा पर पहली बार पढ़ कर यह जाना कि सच हमेशा सच ही होता है ,उसको कहने से डरना ,झिझकना क्या , रसीदी टिकट का हर पन्ना बयां करता है कि कैसे अमृता ने एक स्त्री होते हुए, बन्धनों के बीच, बन्धनों का सशक्त विरोध किया। अन्याय और असमानताओं के खिलाफ लिखती – बोलती रहीं।एक स्त्री, एक मां, एक प्रेमिका और एक लेखिका होने के बीच उलझतीं रही और निकलने को राह भी बनाती रहीं। उनके लिए, जीवन यथार्थ से यथार्थ तक पहुंचने का सफर रहा। यथार्थ को पाने का हासिल, आखिर कितनों का मकसद होता है और कितने उसे छू भर भी पाते हैं? अमृता जैसी साहसी लेखिका कागज पर काले अक्षरों से सुनहरा इतिहास लिख जाती हैं और हम पन्ने पलट – पलट कर उनकी छाया का महज अनुमान लगा सकते हैं
2 ) 36 चक (अमृता प्रीतम)
रूहानी प्रेम क्या होता है ,यह इस किताब को पढ़ कर जाना ,इसमे लिखे कई पन्ने मुझे हमेशा इस किताब के बारे में सोचते ही याद आ जाते हैं, अलका , कुमार और कॉफी की खुशबू ,पहाड़ी घर में लगे उन फूलों सी महकने लगती है । एक चित्रकार कुमार और अलका के बीच बनते बिगड़ते रिश्ते की, एक औरत के विश्वास की, स्वतंत्र और स्वछंद मर्द की मानसिक वेदना और स्त्री - पुरुष संबंधों की अंतर्वेदना की यह एक अत्यंत मर्मस्पर्शी कहानी है जो हर किसी के दिल को छू लेती है|
3) बुखारी (श्यामल चटर्जी )
प्राकृतिक आपदाओं के कारण ही हर रोज दुनिया के सबसे ऊँचे युद्धक्षेत्र में माइनस चालीस- पचास डिग्री ...पर रहना और थोड़ी सी गर्मी पाना ,उस वक़्त की सबसे बड़ी जरूरत लगती है ,विपरीत हालात में ज़िन्दगी को जीने का तरीका बताती यह भारतीय सैनिकों के झेले हालात हमेशा सकरात्मक सोच से भर देते हैं मुझे । यह किताब भी मैंने जब जब खुद को जब भी अधिक नेगिटिव पाती हूँ तो इसको पढ़ते ही हालात से लड़ने की ताकत आ जाती है।
4) खानाबदोश (अजीत कौर)
अजीत कौर पंजाबी की उन लेखिकाओं में हैं जिनका नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। इन्होंने कई किताबें लिखी है जो मुख्य रूप से स्त्री वादी कही जाती है ,खानाबदोश और कूड़ा कबाड़ा इनकी आत्मकथा हैं जिनके ऊपर tv सीरयल भी बनें ।
5)आपका बंटी (मन्नू भंडारी)
आपका बंटी मन्नू भंडारी के बेहतरीन उपन्यासों में एक है। (1970 में) लिखा गया यह उपन्यास आज भी नया लगता है ,बंटी और शकुन की कहानी आज भी नई लगती है ।बच्चों के मनोविज्ञान को समझने के लिए यह उपन्यास बहुत बढ़िया है।
6) क्या भूलूँ क्या याद रखूं (हरिवंशराय बच्चन)
बच्चन जी की आत्मकथा सीरीज में यह चार भाग है । चारों ही एक से बढ़ कर एक । आत्मकथा लिखना कोई आसान काम नहीं है ,सच्चाई से सब बातें दुनिया को बताना कोई कोई ही कर पाता है । पहली पत्नी श्यामा और फिर तेजी बच्चन के बारे में पूरी रोचक जानकारी इन्हीं से मिली । जब इसका पहला भाग यह पढ़ते हैं तो बाकी 3 भाग पढ़ने को उत्सुक हो जाते हैं। नीड़ का निर्माण फिर', 'बसेरे से दूर' और 'दशद्वार से सोपान तक' । इनको पढ़ने से न केवल उनके जीवन के बारे में बल्की पूरे उस वक़्त के समय ,जीवन के बारे में समझा जा सकता है।
7 ) चीड़ों पर चाँदनी (निर्मल वर्मा)
यह एक यात्रा वृतांत है जो लेखक निर्मल वर्मा ने यूरोप के दौरे पर लिखा है। निर्मल वर्मा ने जो 60 के दशक में यूरोप की यात्रा पर थे उस वक़्त की अपनी यात्रा संस्मरण लिखा पढ़ने पर ऐसा लगता है कि एक के बाद एक शहर कर बारे में पढते जाओ, और यूँ लगेगा कि आप उसे अपनी आंखों से देख रहे हो। यह ट्रेवेल करने वालों के लिए एक रोचक किताब है ।
8) पचपन खम्बे लाल दीवारें ( ऊषा प्रियम्वदा)
यह उपन्यास मैंने दो बार पढ़ा । पहली बार कॉलेज टाइम में ,फिर दूरदर्शन पर यह दिखाया गया ,उसमे मीता की एक्टिंग देखने लायक थी । उसको देखने के बाद फिर दुबारा इसको पढ़ा ,एक भारतीय औरत की सामाजिक ,और आर्थिक विवशता की घुटन इस को पढ़ कर ही समझी जा सकती है ।इसके बारे में एक पंक्ति अक्सर कही जाती है कि 'आधुनिक जीवन की यह एक बड़ी विडंबना है कि जो हम नहीं चाहते वही करने को विवश हैं। इन्हीं हालात को बहुत ही सुंदर ढंग से इस उपन्यास में बताया गया है।
9) मुझे चाँद चाहिए( सुरेंद्र वर्मा)
चाँद ,यह एक ऐसा नाम है जो मेरे ख्याल से एक बार सबको ज़िन्दगी में चाहिए ।यह उपन्यास भी निराशा में आशा का संचार करता है । इसमे आयी कुछ पंच पंक्तियों से इसको बखूबी समझा जा सकता है जैसे "ख़ुशी का कोई स्विच नहीं होता वह अपने आप पनपती है। उसके लिए अवसर तो देना होगा न।"और ज़िन्दगी में जब हार लगने लगे तो अपने विश्वास के चाँद को तलाशना ही पड़ेगा।
10) लेडीज कूपे --(अनिता नायर )
अनिता नायर का यह उपन्यास ,उस
अखिला की कहानी है जो पैंतालीस साल की, अकेली, इन्कम टैक्स क्लर्क, और एक औरत जिसे कभी अपनी ज़िंदगी जीने की इजाज़त नहीं मिली– हमेशा किसी की बेटी, बहन, मौसी, रही। फिर एक दिन वह समुंदर किनारे बसे शहर कन्याकुमारी के लिए निकल लेती है । ज़िंदगी में पहली बार शानदार ढंग से अकेली रहती है और निश्चय करती है कि वह खुद को हर उस बंधन से आज़ाद कर लेगी जिससे रूढ़िवादी तमिल ब्राह्मण ज़िंदगी ने उसे बांध रखा है। ट्रैन के कूपे में अलग अलग 5 औरतों की कहानी अंत तक इस उपन्यास से बांधे रखता है ।
आप भी इस लिस्ट में अपनी पसंद की किताबें बताएं । क्योंकि पढ़ी हुई किताबों की खुशबू ही अलग होती है । नेक्स्ट भाग में ट्रेवल की दस बेस्ट किताबों की बात करेंगे ,मेरी शीशे की अलमारी से झांकती किताबों से
4 comments:
बहुत सुन्दर।
आप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।
सुंदर लेखन
सुंदर लेखन
सटीक चुनाव
Post a Comment