Sunday, August 25, 2019

"बीमार होना भी एक कला है "


""बीमार होना भी एक कला है ""
जब से ज़िन्दगी शुरू होती है , हम जो भी करते है वह एक कलाकारी सा ही होता है , सांस लेना एक कला , चलना ,उठना ,बैठना ,खाना सीधे मुहं से खाना एक कला ही तो है । ऐसे ही बीमार होना भी एक कला है , और यह करतब आप नहीं आपका शरीर करता है ,बेशक उस कला के "कर्ता -धर्ता" आप ही है पर शरीर उस "क्रियाकलाप" से क्या बीमारी की कला दिखायेगा यह वह ही जाने !
   अब ज़िन्दगी के 50 साल तक "खुद को मैं "यह समझने वाली कि "लकड़ भी हज़म ,पत्थर भी हज़म " ,पेट को अपने खूब लाड़ से खिलाती पिलाती रही , पर अचानक एक दिन पेट को न जाने क्या सूझी खाने ले जाने वाली नली को रिवर्स गेयर में चलाने लगा ,अब जो लकड़ ,पत्थर हज़म कर रहा था पेट वो खिचड़ी ,दलिया पर भी अटक अटक के उनको भी वापस गले के रास्ते बाहर करने  लगा ।
   पेट की तो हो गयी "कलाकारी" और अपनी जेब का बज गया बैंड । हालात बिगड़े तो सबसे पहले "आयुर्वेद "की शरण मे पहुंचे क्योंकि विश्वास था कि यह दवाई और शरीर की कलाकारी दिखाए बिना ठीक कर देगी । पहुंचे तो नब्ज़ की चाल ,जुबान का हाल देख कर घोषित किया गया कि "अल्सर" है ,इसके लिए कई रंग की गोली और काढ़े के साथ ,क्या क्या खाना है लिस्ट थमा दी । अभी उन गोलियों ,काढ़े के पीने के सदमे से उबरे भी नहीं थे कि खाने के नाम पर मात्र चार चीजें ,खिचड़ी ,दलिया और घिया टिंडे पढ़ कर चार दिन की ज़िंदगी की रात दिखाई देने लगी  और ऊपर से  बिल थमा दिया 2500 का इस आश्वासन के साथ कि महीने भर में ठीक हो जाएंगे ।इस परहेज और दवाई को पूरा करके 15 दिन बाद फिर दवाई ले जाना । 
पर वो महीना 2 महीने में बदल गया पर हालात कभी ठीक कभी वही उसी पटरी पर ।फिर उस पर यह कि पेट महाशय वह चार चीजें भी खाने से इनकार करने लगे ।और "वमन क्रिया" तब लगा मामला कुछ "खुराफाती" सा है यह तो ,फिर सब अपना  अपना सब आयुर्वेद "ज्ञान व ईगो "छोड़ कर "ऐलोपेथी डॉक्टर"  की शरण मे पहुंच गए ।
   अब चूंकि यह डॉक्टर "फोटोग्राफी" में ज्यादा यकीन रखते हैं सो "पेट के अंदर की सेल्फ़ी" ली गयी । इनका नतीज़ा यह निकला कि" लिवर साहब "कुछ मुटिया गए हैं ,सो उसका इलाज होगा । पकड़ा दी इन्होंने भी दवाई की लिस्ट और फीस की रक़म ।( बिल देते नहीं ऐसे डॉक्टर हॉस्पिटल के सिवा 😊) हलांकि यह दिल्ली के माने हुए  हॉस्पिटल के डॉक्टर हैं और साइड में अपना यह क्लिनिक भी चलाते हैं
अब इनकी दवाई में भूख बढ़ाने की  दवा प्रमुख थी । परन्तु हमारे पेट महाशय तो हड़ताल पर थे । अब जो हम वो दवाई के असर से उन्हें भेजे वो वापस हमारे मुहं से उसको निकलवा दे। इसी प्रकार की प्रक्रिया में हमारे पूरे शरीर के पुर्जे हड़ताल पर जाने की धमकी देते सुनाई देने लगे ।
    फिर से हमने डॉक्टर साहब को जान बचाने की गुहार लगाई तो डॉक्टर साहब भी पूरी तरह से" एक्शन" में आ गए और कहा कि आपका पेट कुछ ज्यादा ही अकड़े हुए पोज़ दे रहा है तो इसकी एक "सेल्फी" कैमरा अंदर जा कर लेगा । और इस सेल्फी कैमरे का नाम " एंडोस्कोपी" बताया गया। गहन पूछताछ के बाद ज्ञात हुआ कि यह हमारे गले के रस्ते से अंदर जा "पेट की सेल्फी" लेगा । शीशे में कई बार मुहं खोल कर देखने की कोशिश की पर समझ नहीं पाए तो फिर हथियार फेंक कर कहा कि "मेरे होश गुम करो पहले यह सेल्फी लेने की प्रक्रिया हमारे होश से बाहर है ।" कहने की देर थी कि होश गड़प गड़प होते हुए न जाने कहाँ सैर करने चले गए और जब वापस आये तो अंदर की सेल्फी सामने थी । जो अभी भी मुहं चिढ़ाती हुई बता रही थी कि इतने पैसे में ( लगभग 6000) में इतना ही मिलेगा और गहन सेल्फी के लिए और खर्च करना पड़ेगा ,और इस का नाम है सिटी स्कैन ।"
   मेरा दिल पेट के इन नखरों से बेहद निराश हो चुका था ,पर दिमाग अभी पूरी तरह से शरीर की चौकीदारी में जुटा था तो जी पूरे दो लीटर कोई दवा मिला पानी पी कर , चहलकदमी करा कर सम्पूर्ण  शरीर को एक अंदर ,बाहर जाने की मशीन में "हैंड्स- अप" की मुद्रा में धकेल दिया गया । अब तक तो यह मशीन फिल्मों में ही देखी थी जब कोई हीरो ,हीरोइन सीरियस किस्म के बीमार दिखाते थे। अब खुद को उसमे "आता -जाता " देख कुछ खास सा महसूस करने लगे । लगभग 15 मिनट में यह प्रक्रिया भी समाप्त हुई । इसकी रिपोर्ट ले कर अब दूसरे बड़े हॉस्पिटल के डॉक्टर की शरण मे गए । पूरा सिर से पैर तक देखने के बाद घोषित किया कि हम मरने से बच गए है।सिर्फ  पेट जो शरीर का" गार्ड " होता है वह "gerd "बीमारी का रूप ले चुका है । गूगल देवता से इस गुंडा गर्दी करने वाले "गर्ड "की जानकारी ली ।          दवा शुरू करवाई गई और कहा गया सब कुछ खाओ । पर थोड़ी थोड़ी देर में ,क्योंकि अभी  आपका पेट अब नखरीले रस्ते पर है ।
 धीरे धीरे पचायेगा। इस दवा के साथ साथ हम खाते पीते रहे जो दिल किया । कुछ दिन ठीक चला । फिर हालात हाथ से बाहर होने लगे । यह देख कर मेरी एक बहन ने सलाह दी " बाबा रामदेव" की शरण मे जाओ । फिर से बिंदास जीने की ललक में पहुंच गए हम उनके "योगग्राम ।"  वहां खाने के नाम पर जब उबला चुकंदर और जौ का फीका दलिया , खाने को मिला तो सात दिन में पेट के सब नखरे निकल गए । स्पा, मिट्टी के लेप लगवा कर यह कुछ होश में आ गया तो वापिस घर आये । 
   अब इसको ठीक रखने के लिए यही सब चालू रखना था । सो अब तक चालू था , पर पेट तक पहुंचने का रास्ता जीभ से जाता है और जीभ को अब यह स्वाद पसन्द नहीं आ रहे थे। अब तक इस तरह की मेहनत के बाद" दिल " भी कई तरह के खाने के स्वाद की मांग करने लगा था। तो एक दिन घर की पार्टी में पेट के सब नखरों को लात मारते हुए, जीभ और दिल पकवान पर टूट पड़े । नतीजा दो दिन में मिला जब गुस्से से लाल इनकी मनमानी से पेट फिर से बिगड़ गए ।  और इस बार मुझे हॉस्पिटल के कमरे में ला पटका है । पहले तो लगा कि यह तो "ऊपर का टिकट "मिल गया है बिना वीजे के झन्झट के परन्तु यह वीजा लगाने वाला भी मेरे usa में वीजा लगाने वाले बन्दे की तरह अड़ियल था सो बच गए ,किसी बड़ी मुसीबत से ।
  किंतु  इस बार दिल की इस कलाकारी ने "दिमाग भी आउट" घोषित करवा दिया है। और मैं इस वक़्त हॉस्पिटल में  दिल , पेट और अब दिमाग की लड़ाई में भी  सच मे खुद को" साइको "महसूस कर रही हूं ।और   यह  लिख रही हूं। इस विश्वास के साथ जीत सभी की हो तभी यह मेरा शरीर किसी नई कलाकारी को करने से बच जाएगा । साथ ही  इसका सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि मैं अपने "आईडल वजन "तक पहुंच गयी हूँ ।😊 स्लिम ट्रिम अगेन । बी पॉजिटव यार 😊😊

7 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-08-2019) को "मिशन मंगल" (चर्चा अंक- 3440) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

shekhar tandon said...

get well soon.

Meena Bhardwaj said...

जल्दी से ठीक हो जाइए... बहुत अच्छा लिखती हैं आप ।

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद

रंजू भाटिया said...

धन्यवाद ,आपका कॉमेंट और मेरे ब्लॉग पर आना मेरा बहुत होंसला बढ़ाता है । यूँ ही साथ रहे ।