Wednesday, September 24, 2014

वक़्त की रफ़्तार

यह सर्द रातो में
 सिमटी हुई सी कोई नाज़ुकी
दिल में जैसे कोई पिघल के शमा जले

कोई शोला सा भड़के जैसे बदन में
आज फिर से
कोई इश्क़ का जाम नज़रो में ढले


कर प्यार बढ़ते चाँद की रोशनी में
मुझे चुपके से
तेरी   बाहों  में  आज सहम् का घूँघट फिसले

महक रहा है आज यह   ठंडी हवाओ का धुआँ
मिले आज कुछ ऐसे की वक़्त की रफ़्तार कुछ रुक रुक के चले!!

6 comments:

Asha Joglekar said...

कर प्यार बढ़ते चाँद की रोशनी में
मुझे चुपके से
तेरी बाहों में आज सहम् का घूँघट फिसले

महक रहा है आज यह ठंडी हवाओ का धुआँ
मिले आज कुछ ऐसे की वक़्त की रफ़्तार कुछ रुक रुक के चले!!

बहुत ही सुंदर । सहम की जगह संयम हो तो.।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

ranjana ji

aafareen....

meri nayi post par aapka swagat hai!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत उम्दा ...

Rajendra kumar said...

आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (26.09.2014) को "नवरात महिमा" (चर्चा अंक-1748)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें।

Kailash Sharma said...

महक रहा है आज यह ठंडी हवाओ का धुआँ
मिले आज कुछ ऐसे की वक़्त की रफ़्तार कुछ रुक रुक के चले!!
...वाह...बहुत ख़ूबसूरत अहसास और उनकी सुन्दर प्रस्तुति...

Golu Yadav said...

aap bade hi umde kavi hai..


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