Monday, March 24, 2014

चार पहर की बात ........

चार पहर की बात ........

सुबह ....

रोज़ होती सुबह
आँख खोलते ही
सामने आ कर मुस्कराती है
पकड़ा देती है
चाय की प्याली हाथ में
और नए अखबार की
बासी खबरों में गुम हो जाती है !!
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दोपहर

भरी उमंगों सी
ऊपर से जवान
अन्दर से बच्ची सी लगती है
सर्दी में भाये इसकी गर्माहट
गर्मी में यह आग उगलती
फेक्ट्री सी लगती है !!
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शाम
ढला सूरज
गोधुली का साया
दुनिया हुई उधर से इधर
आसमान को जैसे
किसी ने घूंट कोई
नशे का पिलाया !!
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रात
कभी काली
कभी मतवाली
कभी तन्हाई बेहिसाब
चाँद तारों की गिरह खोले
करके  दिल की हर बात !!

@ रंजू भाटिया

8 comments:

दिगम्बर नासवा said...

चारों पहर यूँ ही गुजार जाते हैं ... जिंदगी तमाम हो जाती है ऐसे ही ...

प्रवीण पाण्डेय said...

समय को बाँचती अर्थभरी क्षणिकायें।

ब्लॉग बुलेटिन said...


ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन युद्ध की शुरुआत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

मेरा मन पंछी सा said...

चारो पहर कि खूबसूरती...
बहुत सुन्दर......
:-)

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह चारों पहर ही समेट लि‍ए.

Smart Indian said...

सुंदर शब्दचित्र

Anonymous said...

Waah bahut khoob...pehle ki trah...badnaam_shayar

Yogi Saraswat said...

बहुत सुन्दर