Wednesday, July 17, 2013

मुंबई शहर के रंग मेरे नजरिये से (भाग २ )

वाह "मुंबई दर्शन भाग एक "के बहुत से कमेंट आ गए .. आपके सबके दिए कमेंट भी जैसे इस यात्रा का यादगार हिस्सा बन गए हैं ..मुंबई वाकई सपनों का शहर है और सबके अपने नजरिये अपने ख्याल और अपनी बातें हैं उस पर ....... ..मुंबई वाकई मुंबई है सही कहा अरविन्द जी ने की यह स्वर्ग भी है और नरक भी ...आशीष जी के अनुसार रूखे सूखे लोग यहीं होते हैं ..रश्मि जी अनु ने भी यही कहा ..पर रश्मि जी की बात से कुछ सहमत नहीं हो पायी की मदद करते हैं ..शायद यह तभी संभव होता यदि हम वहां अधिक दिन रहते ..अभी तो सिर्फ एक पर्यटक के तौर पर जाना हुआ ...सो यही अनुभव रहा बाकी भी जिन लोगों ने इस कड़ी को पढ़ कर अपनी राय दी ..आमची मुंबई के बारे में वह बहुत ही बढ़िया लगी तहे दिल से शुक्रिया और इसी आपके स्नेह को ले कर चलते हैं चलिए आगे की यात्रा पर .......

अभी जैसा की कहा दूसरी बार जाना हुआ  अब ..जब छोटी बहन के पतिदेव मुंबई में पोस्टेड है ..उनका  घर मुंबई की सबसे आलिशान जगह पर हीरानंदानी पवई लेक के पास ही है यही लालच और बहन के कहे से फिर से मुंबई जाने का दिल बना लिया । बारिश के मौसम में मुंबई देखने का एक सपना था ..पिक्चर में सुना गया डायलाग जहन में था मुंबई देखनी हो तो बारिश में आये तब यह अपने  ही अलग रंग में होती है । तो यह रंग जब वक़्त ने दिखाने का इरादा किया तो राजधानी एक्प्रेस से पहुचं गए मुंबई ..आप सोचे चाहे कुछ भी पर कहीं का भी दाना पानी आपको बुला ही लेता है ...अँधेरी स्टेशन उतरते ही रिमझिम तेज बारिश ने स्वागत किया और नमकीन हवा साँसों में धुलने लगी ..। स्टेशन का वही हाल था जो पीछे राजधानी पर चलते वक़्त दिल्ली निजामुद्दीन में गंदगी देख कर आये थे ...यह बात कभी समझ नहीं आई कि इतना भारी बजट का शोर मचाने वाला रेल मंत्रालय क्यों सफाई नहीं रख पाता कुछ हम आप लोगों की भी जिम्मेवारी बनती है ..पर वही खुद से ही बहाना है कि इतनी पब्लिक है इतनी जनसँख्या और आम लोगों के सफ़र की जगह ..आखिर कैसे साफ़ रहे ...जैसे तैसे भीड़ से बचाते हुए स्टेशन से बाहर आये तो एक लम्बी सी लाइन लोगों की दिखाई दी ...उस दिन मुंबई में ऑटो रिक्शा की  स्ट्राइक थी ..लगा टैक्सी के लिए यह लाइन लगी है ..क्यों की हमने भी टैक्सी लेनी थी ..और पता नहीं था की वहां से किस तरफ कैसे जाना है ..बाद में पता करने पर यह लाइन बेस्ट बस के लिए थी ..अच्छा लगा देख कर .."दिल्ली में कहाँ कोई लाइन का पालन करता है ?"...बड़े लोगों ने कहा .बच्चों ने बहस की नहीं जी "मेट्रो के लिए दिल्ली के लोग पंक्तिबद्ध होते हैं" ..खैर बहस को वही छोड़ कर टैक्सी से वहां तक ३५० में जाना तय किया गया ...पहले ३०० रूपये और जब तक हम फ़ोन कर के बहन से सही पैसे जाने के पूछते तब तक वह ३५० पर पहुँच चूका था ..उधर से बारिश जोर पकड रही थी ..सो बैठ गए और चल पड़े सपनो की नगरी को बारिश में भीगते हुए देखते हुए ..। हर शहर की अपनी एक महक होती है ..और यह आपके ऊपर है कि  वह गंध  आपको पसंद है या नहीं ..खैर मुझे थोडा वक़्त लगा इस गंध  को अपनाने में :) बारिश के पानी से भरी टूटी सड़कों से ग्रस्त और भारी ट्रैफिक जाम से पस्त फिर भी भीगा-भीगा सा भागता सा मुंबई। न रुकने की कसम खाया हुआ ही लगा ठीक पिछली बार इस शहर से हुई मुलाकात  की तरह । हाई वे पर पहुच कर मुंबई के पहाड़ दिखे और उसकी तलहटी में बसी  पवई लेक |यही पर बने हुए पवई लेक से कुछ दूर हीरानंदानी गार्डन्स और उस में बने आलिशान फ्लेट्स के उस इलाके की मुंबई को भी देखा इस बार। हरे-हरे पहाड़ों की तलहटी में सुंदर सुंदर मकान, बेहद सुंदर सी सड़कें, मुंबई के सबसे खूबसूरत और सबसे महंगे इलाकों में से एक है ये जगह। अचानक लगता है जैसे किसी बाहर के देश में आ गए हैं ..बहन ने कहा भी दीदी सिंगापुर भी इसके आगे फीका है .आलीशान फ्लैट्स ऊपर बने नीले गुम्बद वाकई दिल मोह गए बस दिल किए जा रहा था कि बरसती बारिश में जंगले लगे बालकनी से बस यही नजारा देखते रहे बहते रहे इस मौसम की हवा में बस यही गड़बड़ थी की कहीं भी वहां से जाने के लिए कम से कम दो तीन घंटे  लग जाते थे ..और इस स्वर्गिक जगह से निकलते ही जैसे किसी नरक के द्वार के दर्शन होने लगते थे .अधिकतर .काले काले बिल्डिंग में बसे घर .या हमारे जाने वाले रास्ते में वही दिखाई देते थे ...नीले प्लास्टिक से ढकी झोपड़ियां और काले अजीब से पुराने घर क्यों हैं वहां ...समुंदरी हवा के कारण शायद ? तो क्या कोई ऐसे पेंट नहीं है जो इसको सही हालात में रख सके ...? या जो नए बन रहे हैं जो अभी बढ़िया हालत में दिखे वो भी ऐसे हो जायंगे ? काले रंग और उस पर बनी टेढ़ी मेढ़ी सर्पाकार लाइन खिंची हुई होने की वजह बहुत दिमाग लगाने पर भी समझ नहीं आई ..आख़िर में हार कर ऑटो वाले से पूछा तो जवाब मिला ऐसेच ही होता है :) और हर जगह नजर आता तो सिर्फ कूड़ा प्लास्टिक और गंदगी के ढेर .. और एक अजीब सी गंध  नमकीन सी या  न जाने कौन सी ...पवई लेक दूर से बहुत सुन्दर लगी पर पास आने पर वही कूड़े से अटे हुए किनारे और उसी पानी में मछली  पकड़ कर वहीँ बेचते लोग जो जगह जगह झुण्ड बना के मशगूल थे अपने कार्य में .. शर्तिया जब पवई लेक बनायी गयी होगी तब उसकी सुन्दरता बहुत स्वर्गिक रही होगी ..पर अब वहां किनारे पर कूड़ा ही कूड़ा नजर आया ..शायद लोगों को सुन्दरता पसंद नहीं ..इस मामले में दिल्ली भी कम नहीं ..पर वहां जा कर न जाने क्यों दिल्ली अधिक साफ सुथरी लगी :)
वहां से जितनी बार क्रॉस किया बांद्रा या जुहू जाने के लिए ...कमाल अमरोही स्टूडियो बड़े बड़े पेड़ों और बड़े बंद गेट के पीछे दिखता रहा और यही विचार आता रहा कि कभी यहाँ कितनी शूटिंग होती होगी
..इन के बगीचे में लगे बड़े ऊँचे पेड़ों ने मीना कुमारी को देखा तो होगा .यहाँ के बगीचों पर चली भी होंगी अपने उन्ही नाजुक पेरों से ...न जाने कितने किस्से उन हवाओं में उस दीवारों में अभी भी वक़्त बे वक़्त महक जाते होंगे ....उत्सुकता बहुत थी की काश देख पाती उस जगह को पर इत्ता आसान थोड़े न है ........अभी तो वहां कोई शूटिंग होती भी है या नहीं पता नहीं चल पाया (वहां रहने वाले इस बारे में बता सकते हैं कुछ )....यह मुख्य फर्क था हीरानंदानी और आगे क्रॉस करते हुए मुंबई शहर के फ्लेट्स में....जो अपने बने तरीके से इसको दर्शा रहा था ...जारी है यह यात्रा अभी ....







12 comments:

Unknown said...

Naya har jagah ka kareeb kareeb ek jaisa hi hota hai....ek hi jaise pattern par ho rahe nav nirman . Kisi jagah ki khasiyat uski purani baaton aur jaghon se hi hoti. Is blog mein mujhay jis cheez ne aakarshit kiya wo hai kamal amrohi studio ka jikr...meena kumari ke un pedon ko dekhe jaane ki baat....:)

प्रवीण पाण्डेय said...

करोड़ों के सपनों को शहर है मुम्बई..

Anju (Anu) Chaudhary said...

यात्रा ज़ारी रखे ....आभार

rashmi ravija said...

@.पर रश्मि जी की बात से कुछ सहमत नहीं हो पायी की मदद करते हैं ..शायद यह तभी संभव होता यदि हम वहां अधिक दिन रहते .
सही कहा आपने, अधिक दिन रहतीं, तभी यह अनुभव होता.
पोस्ट लम्बी है बाद में आराम से पढ़ती हूँ. अभी बस प्रथम पैराग्राफ पढ़कर टिपण्णी दी है.

Madan Mohan Saxena said...

महत्वपूर्ण जानकारी चित्र भी बहुत सुन्दर है .धन्यवाद
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

दिगम्बर नासवा said...

मुंबई नगरी शुरू से ही आकर्षित करने वाली ... सपनों की नगरी है ... और जैसा सेलुलाइड में दिखाया जाता है ... ये सपनों की ही नगरी है ...
फोटोस के साथ रोचक चित्रण ...

बी एस पाबला said...

रोचक वृतांत

ashish said...

हीरानंदानी इस्टेट बहुत सुन्दर है , कोई दो राय नहीं . पोवाई लेक शायद एक प्राकृतिक झील है . हिंदुस्तान में कोई भी झील नदी हो सब प्रदुषण की शिकार है . बढ़िया चल रही है मुंबई वृतांत . लिखते रहिये .

ashish said...

हीरानंदानी इस्टेट बहुत सुन्दर है , कोई दो राय नहीं . पोवाई लेक शायद एक प्राकृतिक झील है . हिंदुस्तान में कोई भी झील नदी हो सब प्रदुषण की शिकार है . बढ़िया चल रही है मुंबई वृतांत . लिखते रहिये .

ANULATA RAJ NAIR said...

बढ़िया वृत्तांत....
बढ़िया फोटोस.......

सस्नेह
अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुंदर चित्र ..... बारिश में तो मुंबई में इतना जाम लग जाता है कि फ्लाइट्स तक मिस हो जाती हैं ... रोचक वर्णन

vandana gupta said...

रोचक वृतांत