Monday, November 05, 2012

प्यासी है नदिया

सुख -दुख के दो किनारों से सजी यह ज़िन्दगानी है
हर मोड़ पर मिल रही यहाँ एक नयी कहानी है
कैसी है यह बहती नदिया इस जीवन की
प्यासी है ख़ुद ही और प्यासा ही पानी है

 

हर पल कुछ पा लेने की आस है
टूट रहा यहाँ हर पल विश्वास है
आँखो में सजे हैं कई ख्वाब अनूठे
चाँद की ज़मीन भी अब अपनी बनानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है  नदिया और प्यासा ही पानी है

जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यों  लगते हैं झूठे
हर चेहरे पर है झूठी हँसी, झूठी कहानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद प्यासा ही पानी है

हर तरफ़ बढ़ रहा है यहाँ लालच का अँधियारा
ख़ून के रिश्तो ने ख़ुद अपनो को नकारा
डरा हुआ सा बचपन और भटकी हुई सी जवानी है
कैसी है यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है

रंजू भाटिया .........

25 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 07/11/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

सदा said...

जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यूं लगते हैं झूठे
हर चेहरे पर है झूठी हँसी, झूठी कहानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद प्यासा ही पानी है
बहुत ही सशक्‍त पंक्तियां

अरुन अनन्त said...

बेहद भावपूर्ण उम्दा रचना दिल में उतर गई

vandana gupta said...

सुन्दर रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

कैसी है यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है,,,

सशक्त भाव लिये सुंदर,,,,पंक्तियाँ,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत उम्दा!

ANULATA RAJ NAIR said...

जीवन का कड़वा यथार्थ लिख डाला रंजू....

अच्छी कविता बन पड़ी है...सोच में डाल रही है...

सस्नेह
अनु

sandhya jain said...


जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यों लगते हैं झूठे....behad sunder :-)

sandhya jain said...


जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यों लगते हैं झूठे....bahut sunder :-)

Vinay said...

महकता हुआ फूल

प्रवीण पाण्डेय said...

प्यास नदी की सागर है..उसी की ओर भागती है।

ashish said...

जीवन का यथार्थ और मनुष्य की मृगतृष्णा को सही शब्द दिए आपने . सुन्दर

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 6/11/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।

Maheshwari kaneri said...

जीवन का कड़वा यथार्थ ...सुन्दर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जीवन के सत्य को कहती गहन भाव लिए अच्छी प्रस्तुति

विभूति" said...

बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बहुत सुंदर रचना !
~सादर !

सूर्यकान्त गुप्ता said...

"जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यों लगते हैं झूठे
हर चेहरे पर है झूठी हँसी, झूठी कहानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद प्यासा ही पानी है"
वर्तमान का सही चित्रण.....saadar!

रंजू भाटिया said...

bahut bahut shukriya aap sabhi dosto ke is saneh ka ..:)

Asha Joglekar said...

हर तरफ़ बढ़ रहा है यहाँ लालच का अँधियारा
ख़ून के रिश्तो ने ख़ुद अपनो को नकारा
डरा हुआ सा बचपन और भटकी हुई सी जवानी है
कैसी है यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है

आज के हालात का जीवंत चित्रण । बहुत अछ्छी पोस्ट ।

विभूति" said...

जीवन का कटु सत्य है...

Bhawna Pandey said...

kadava sach sundar panktiyon me

Unknown said...

bahut badiya.....
कैसी है यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है...

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर रंजू....
आज तो ब्लॉग देखते ही मन खुश हो गया :-)

अनु

Anju (Anu) Chaudhary said...

जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यों लगते हैं झूठे
हर चेहरे पर है झूठी हँसी, झूठी कहानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद प्यासा ही पानी है...................बहुत सही आंकलन ...सादर