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Wednesday, September 16, 2009
जाने अपने बच्चे के अंतर्मन और स्वभाव को ..
बच्चो का मनोविज्ञान समझना कोई आसान बात नहीं है | उनका स्वभाव .उनकी रुचियाँ और उनके शौक यदि हर माता पिता समझ ले तो बच्चों के दिल तक आसानी से पहुंचा जा सकता है | बहुत सी ऐसी बातें होती है जिनको समझने के लिए कई तरकीब ,कई तरह के मनोविज्ञानिक तरीके हैं जिस से बच्चो को समझ कर उनके स्वभाव को समझा जा सकता है | एक मनोवेज्ञानिक ने इसी आधार पर बच्चे के व्यक्तितव को समझने के लिए उनके लिखने के ढंग ,पेंसिल के दबाब और वह रंग करते हुए किस किस रंग का अधिक इस्तेमाल करते हैं ..के आधार पर विस्तार पूर्वक लिखा है ...माता पिता के लिए इस को जानना रुचिकर होगा ...
बच्चो को चित्रकला बहुत पसंद आती है | वह पेन्सिल हाथ में पकड़ते हो कुछ न कुछ बनना शुरू कर देते हैं | इसी आधार पर कुछ बच्चो के समूह को एक बड़ा कागज और उस पर चित्र बनाने को कहा गया ..कुछ बच्चो ने तो पूरा कागज ही भर दिया ..कुछ ने आधे पर चित्र बनाये और कुछ सिर्फ थोडी सी जगह पर चित्र बना कर बैठ गए | इसी आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि जो बच्चे पूरा कागज भर देते हैं वह अक्सर बहिर्मुखी होते हैं |ऐसे बच्चे उत्साही और दूसरे लोगों से बहुत जल्दी घुल मिल जाते हैं .इस तरह के बच्चे स्वयम को अच्छे से अभिव्यक्त कर पाते हैं और अक्सर मनमौजी स्वभाव के और कम भावुक होते हैं |
आधा कागज इस्तेमाल करने वाले बच्चे अधिकतर अन्तर्मुखी होते हैं |ऐसे बच्चे बहुत कम मित्र बनाते हैं ,लेकिन जिसके साथ दोस्ती करते हैं उसके साथ लम्बे समय तक दोस्ती निभाते हैं | इस तरह के बच्चो में अधिक सोच विचार करने की आदत होती है |
बिलकुल छोटा चित्र बनाने वाले बच्चे में आत्मविश्वास की कमी होती है और यह निराशा वादी होते हैं इनका आत्मविश्वास बढाने के लिए प्रोत्साहन बढाना बहुत जरुरी है ...
पेंसिल का दबाब
बच्चा आपका पेंसिल कैसे पकड़ता है किस तरह से उसको दबाब डाल कर लिखता है ,इस से भी उसके स्वभाव को जाना जा सकता है|यदि आपका बच्चा किसी रेखा या बिंदु पर पेंसिल का अधिक दबाब डालता है तो इसका अर्थ है कि वह अपनी मांसपेशियों को अधिक इस्तेमाल कर रहा है और वह किसी तनाव में है जिस से वह मुक्त होना चाहता है | यदि बच्चे ने कोई मानव आकृति बनायी है और उस में उस आकृति की बाहें ४५ डिग्री से अधिक ऊपर उठी हुई हैं या अन्दर की और मुडी हैं तो बच्चे का ध्यान आपको अधिक रखना होगा यह उसकी अत्यधिक उत्सुकता कई निशानी है |
बच्चे का लिखने के ढंग से भी आप उसके स्वभाव को परख सकते हैं | जैसे लिखते वक़्त बच्चे ने चित्र में उन स्थानों पर तीखे कोनों का इस्तेमाल किया है जहाँ हल्की गोलाई होनी चाहिए थी तो यह उस बच्चे की आक्रामकता की सूचक है| यदि यह आक्रमकता उसके ताजे चित्रों में दिख रही तो उसके पुराने बनाए चित्र और शैली देखे इस से आप जान सकेंगे कि घर में ऐसा क्या घटित हुआ है जो आपके बच्चे के मनोभाव यूँ बदले हैं | अक्सर इस तरह से बदलाव दूसरे बच्चे के आने पर पहले बच्चे में दिखाई देते हैं उसको अपने प्यार में कमी महसूस होती है और वह यूँ आकर्मक हो उठता है |
रंगों के इस्तेमाल से
बच्चे किस तरह के रंगों का इस्तेमाल अधिक करते हैं यह भी मनुष्य के स्वभाव की जानकारी देता है ..लाल रंग अधिक प्रयोग करने वाले बच्चे मानसिक तनाव से गुजर रहे होते हैं
नीले रंग का प्रयोग करने वाले बच्चे धीरे धीरे परिपक्व होने की दिशा मेंबढ़ रहे होते हैं और अपनी भावनाओं परनियंत्रण पाने की कोशिश में होते हैं ,पर यदि यह नीला रंग अधिक से अधिक गहरा दिखता है तो यह भी आक्रमकता का सूचक है ऐसे में बच्चे के मन में छिपी बात को समझने की कोशिश करनी चाहिए
पीला रंग इस्तेमाल करने वाले बच्चे अधिकतर उत्साही बाहिर्मुखी और अधिक भावुक होते हैं ऐसे बच्चे दूसरो अपर अधिक निर्भर रहते हैं और हमेशा दूसरो का ध्यान अपनी और आकर्षित करने कि कोशिश में रहते हैं |हरा रंग इस्तेमाल करने वाले बच्चे शांत स्वभाव के होते हैं और अक्सर उनके स्वभाव में नेतर्त्व के गुण पाए जाते हैं |
काला रंग या गहरा बेंगनी रंग इस्तेमाल करने वाले बच्चे को आपकी सहायता चाहिए |यह रंग बच्चे में दुःख और निराशा का प्रतीक है |
इस प्रकार आप बच्चो की शैली ,चित्र रंग इस्तेमाल करने की विधि से उनके स्वभाव को अच्छे से समझ सकते हैं ,जिन्हें बच्चे अक्सर आपसे छिपाते हैं ..यह तरीका एक मनोविज्ञानिक के जांचे परखे प्रयोग पर आधारित है जो कई स्कूलों में भी अजमाया जा चूका है ..यदि माता पिता अपने बच्चे को यूँ समझ ले तो उनके असमान्य व्यवहार को सुधरा जा सकता है |
मेरा यह लेख हरी भूमि में प्रकाशित हुआ था ...
रंजू भाटिया
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37 comments:
बिलकुल नयी जानकारी मेरे लिए .
धन्यवाद
बहुत सही लिखा है आपने। गहन शोध का परिणाम है यह। आपको बधाई।
ये तो बड़ा अच्छा आलेख रहा बच्चों के अंतर्मन को पढने का. ब्लॉगर होने के क्या पहचान हैं जी :)
वाह ! अतिउपयोगी आलेख.....बहुत बहुत आभार आपका....
कृपया आगे भी इस प्रकार के आलेख प्रेषित करें,जिससे कि बाल मनोविज्ञान को समझने में अभिभावक समर्थ हो सकें...
जैसे कि विभिन्न प्रकार के रुचियाँ रखने वाले बालकों का मनोविज्ञान कैसे और किस माध्यम से जाना जा सकता है...
बहुत ही उपयोगी आलेख, बहुत-बहुत आभार
बहुत काम की जानकारी है उन माता पिता के लिए .. जो अपने ही बच्चों को समझ नहीं पाते !!
bachchon ka manovigyan janne mein kafi sahayak hoga lekh...........achcha likha hai.
बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए जरूरी पोस्ट।
"पाँव के नाखून से बच्चा उकेरता है/ ज़मीन पर आक्रोश के चित्र" अपनी कविता की यह पंक्तियाँ याद आ गईं ।
जानकारी बहुत काम की है ...शुक्रिया
गहन शोध के बाद लिखा लगता है आपका यह जानकारी परक लेख.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
ये अच्छी जानकारी है। शायद इसे पढ़कर माता-पिता बच्चों को बेहतर समझ सके।
बहुत अच्छा लेख रहा, आपका।
आपकी हिदायतों का ध्यान रखा जायेगा।
आभार!
ALAG AUR NAYE TARAH KI JAANKAARI DI HAI AAPNE ...... DEKHUNGA APNE BACHHON KO AUE UNKI MAANSIKTA KO .... IS ADHYAN KA KUCH FAAYDA HAMKO BHI MILEGA ........ SUNDAR POST HAI AAPKI ....
बच्चों के मनोविज्ञान पर एक दस्तावेज !
बच्चों को सही ढंग से समझाने का ढंग पसंद आया
Kash! yah jankaari aaj se tees chalis saal pahle mili hoti. Bahut hi sundar, gyanvardhak aalekh. abhar.
एक बेहतरीन और उपयोगी आलेख.
बचपन कैसे गुल खिलाता है
पहचानने की समझ देने का
अनुठा तरीका दिया आपने ।
आभार ।
अच्छी और नई जानकारी। धन्यवाद
रंजना जी आप ने बहुत ही अच्छे ढंग से बच्चों के मन को समझने का तरीका समझाया है.
आप का यह लेख बहुत पसदं आया.
रंगों mein un ki pasand और उनके लिखने के तरीके- पेन्सिल पर दवाब आदि यह सब बातें अगर ध्यान से observe की जाएँ तो शिक्षक और अभिभावक अपने बच्चे के अंतर्मन को आसानी से समझ सकेंगे.
aur अगर समस्या का समय से पता चले तो उसका निदान सरल हो जाता है.
बहुत अच्छा लेख.बधाई.
एक बेहद ज्ञानवर्धक लेख ............बहुत बहुत आभार
अच्छी जानकारी देते हुई आपकी पोस्ट। बच्चों का मनोविज्ञान का पता चला। कुछ चीजें जो पहले पता नही थी अब पता चली। वैसे आजकल हमारी बेटी तो मैडम जी बनी रहती है। और हमें ही पढता रहती है। कुर्सी पर बैग लगाकर।
लगता है साइकोलोजी की स्टुडेंट रही है आप.....नारी के मन को समझ पायी है कभी ?
बच्चों के प्रति आपका किया हुआ विशलेषण बहुत ही शानदार है। इसको पढ़ते हुए खुद को आंकने की कोशिश भी कर रहा था, क्योंकि मैं भी एक दिन बच्चा था, अब ब्लॉग जगत का बच्चा हूं।
is lekh mein aapne psychological treatment bahut hi scientifically kiya hai.......
hamein bachchon ko psychologically hi samajhna hoga......
AAA+++++++++
Regards.......
बहोत अच्छी जानकारी दी आपने... आभार....!!!
www.nayikalam.blogspot.com
जानकारियां अच्छी लगीं।
अब क्या है कि बाल मनोविज्ञान पैदा कैसे हो रहा है? कैसे विकसित होता है? बच्चों के पैदा होते ही शुरू हो जाने वाला लालन-पालन और उसके बालमन पर पड़ने वाले प्रभावों के जरिए किस तरह का व्यक्तित्व का विकास सुनिश्चित होता है? सामान्यतयाः यह हमारे अभिप्राय और रुची का क्षेत्र होता ही नहीं है।
समझ के क्षेत्र में जिस तरह मां-बाप लगभग खाली होते हैं, उसी तरह उनके इस हेतु प्रयास भी लगभग खाली होते हैं। बच्चे अभी भी उसी परम्परागत रूप से बड़े हो रहे हैं जिस से वे हजारों वर्षों से हो रहे हैं। बड़े किये जाने का भाव भी अभी पैदा नहीं हुआ है, कैसे किया जाएगा यह प्रश्न उठने का सवाल ही कहां उठता है।
बस यही हाथ में है अभी तो, जिसको कि आपका यह आलेख बखूबी निभा रहा है।
मतलब कि अब जैसा भी बच्चा बन चुका है, या बनने की प्रक्रिया में है, उसे ही कम से कम समझने की कोशिश कर ली जाए। इस तरह की शोधें इसी प्रयास का नतीज़ा होती हैं।
यही जान लिया जाए कि हमारी किस्मत? में किस बालमनोविज्ञान का बच्चा लिखा है, भगवान? ने हमारे हिस्से में क्या बना कर भेजा है।
अब आजकल के मां-बाप जो अकादमिक पढ़ाई पढ़ लिख भी गये है, इतने समझदार तो होते ही हैं कि कम से कम यह पता लगा कर कि अपना बच्चा किस तरह का है, फिर उस पर अपनी तथाकथित समझदारी और व्यवहारिकता के प्रयोग कर सकें।
वो अलग बात है कि यह सब भी सिर्फ़ सोचते हुए ही रहना है, करना उन्हें आईआईटीयन की दिशा के अंतर्गत ही है। आखिर व्यवहारिकता का भी कोई तकाज़ा होता है? लाखों के पैकेजों के सपनों से अपने को विरत रख पाना कितना मुश्किल कार्य है।
आपका यह आलेख इस दिशा से अलग सोचने को प्रेरित करता है, बच्चों के संबंध मे प्रचलित धारणाओं से हट कर कुछ किए जाने की आवश्यकता महसूस करवाता है।
शुक्रिया।
बेहद खूबसूरत आलेख । बाल मन का आँकलन और उस हिसाब से व्यवहार नियमन की आवश्यकता सदैव है । आभार इस आलेख के लिये ।
रंजना जी,
बाल मनोविज्ञान को बहुत ही प्रभावी तरीके से समझने का रास्ता बताया। बहुत ही अच्छा, सारगर्भित और अतिउपयोगी लेख। खासकर आज के दौर में जब माँ-बाप दोनों को ही अपने काम से फुर्सत नही होती है इसके उपयोग से बच्चों को हमारी कहां मदद चाहिये समझ सकते हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत बढिया जानकारी. असल में होता यही है कि हम बच्चों का मनोविग्यान समझे बिना उन पर अपनी इच्छाएं थोपने लगते हैं.
बाल मनोविग्यान की अच्छी जानकारी----
पूनम
अरे वाह, ये तो आपने बडे काम की बातें बताईं। शुक्रिया।
( Treasurer-S. T. )
बडे जतन से लिखा है आपने, आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ranjna ji jo jankariya aapne di hai bahut hi acchi hai, wese inke alawa bhi bahut kuch esa hai jo hume samjhna cchiye, bacche nhi yaha me bado ki bhi kar raha hu.
bacha to baccha hi hota hai but hum kai bar baccho se bhi jada zid karte hai jiska hume pata hota hai ki ye puri karna muskil hi nahi namumkin hai.but.........
bahut si baate hai jo yaha karna muskil hai.iske bare me kabhi online mile to baat kare to jada better hoga.
बच्चे मन के सचे होते हैं . उनके बारे में लिए जाने वाले किसी भी निर्णय से पहले उनकी इच्छा जरुर जननी चाहिए .
बच्चे भगवान होते हें .भगवान को पाना है तो बच्चों के दिल को जित लो भगवान मिल जायेगा.
लूणकरण छाजेड , बीकानेर
जानकारी के लिए धन्यवाद ।
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