Sunday, May 31, 2009

मृगतृष्णा



दो अलग रंग .....

१)
एक मृगतृष्णा
एक प्यास..
को जीया है
मैंने तेरे नाम से
दुआ न देना
अब मुझे..
लम्बी उम्र की
और ..........
न दुबारा...
जीने को कहना

२)
बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास सा
हर लम्हा हुआ..
तन डोलने लगा
सावन के झूले सा..
मन फूलों का
आंगन हुआ..
जब से नाम आया
तेरा ,मेरे अधरों पर
अंग अंग चंदन वन हुआ |

रंजना (रंजू ) भाटिया

38 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

दो अलग अलग अहसासों की कविताएँ। सुंदर अभिव्यक्तियाँ।

Arvind Mishra said...

आपकी कविताओं में श्रृंगार और वियोग रत्ती माशा तोला बराबर बराबर रहता है एंड आयी लायिक दैट !

रावेंद्रकुमार रवि said...

दूसरा रंग इंद्रधनुष का लगा!
हवा के झोंके की मधुर छुअन से,
आकाश की बाहों में झूलता हुआ!

MANVINDER BHIMBER said...

sunder bhinmb hai......khoobsurat andaj....

गौतम राजऋषि said...

दोनों ही रंग अनूठे...

रश्मि प्रभा... said...

दो रंगों का अद्भुत तालमेल....बहुत बढिया

"अर्श" said...

आपके दोनों ही रंग बेहद खुसूरत है है .... कमाल की आदाकारी है कलम की इन दोनों खुबसूरत कवितावों में ... बधाई

अर्श

Shikha Deepak said...

दो जुदा रंगों की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.............खूबसूरत रचना। अच्छी लगी।

रंजन said...

सुन्दर..

Alpana Verma said...

मृगतृष्णा के दो जुदा रूप ..

दोनों ही अपने आप में पूरी तरह से सफल अभिव्यक्त.
दोनों ही रचनाएँ अद्भुत हैं.

सुशील छौक्कर said...

दोनो के रंग और संगीत बहुत ही बेहतरीन।

मीनाक्षी said...

यहाँ सहरा की प्यास महसूस होने लगी...फिर पूनम की रात में सहरा की ठंडक और खूबसूरती याद आने लगी...आपके भाव नए एहसास जगा देता है....
यहाँ दोनो भाव अपने आप में खूबसूरत और सम्पूर्ण..

दिगम्बर नासवा said...

अनूठे रंग में रंगी हैं दोनों रचनाये ............... अलग अलग मौसम
एक प्यास..
को जीया है
मैंने तेरे नाम से.................. जीवन की प्यास ख़त्म नही होती अगर उनका नाम हो............पर अगर वो मर्ग तृष्णा हो तो कौन जीने की चाह रखता है..............लाजवाब कहा है.
बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास सा
हर लम्हा हुआ............. किसी का मधुर एहसास अक्सर ऐसा ही कर जाता है.............. स्वप्न में डूबी रचना

vandana gupta said...

mrigtrishna..........lajawab
tera naam...........shandaar

dono hi rachnayein beshkimti.

P.N. Subramanian said...

वास्तव में ही दो अलग अलग रंग थे. बहुत ही सुन्दर रचनाएं..

Unknown said...

pyar jaisee pyari
kavitayen tumhari
lelo badhai hamari

अनिल कान्त said...

bahut khoobsurat rachnayein hain
waah !!

अजय कुमार झा said...

ek post mein do mijaaj....kamaal hai...achha laga...visheshkar dosree kavitaa .....

Divine India said...

कैसी हैं रंजू जी, बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग पर आकर ऐसा लगा कि वही भाव-प्रवीणता शब्दों को निखार रही हैं…। बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है दो नजरों से पढ़ा हुआ…
बहुत बढ़िया लगा…। बहुत खुब!

डॉ. मनोज मिश्र said...

काब्य के दो अनोखे उम्दा रंग ,दोनों बेहतरीन .

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर रचनाएं.

रामराम.

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

भावनाओं को शब्दों के साथ इस तरह जोड़ती हैं कि ना शब्द अलग किया जा सकता है ना ही भावनायें अद्भुअत संगम ....

बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास सा
हर लम्हा हुआ..
तन डोलने लगा
सावन के झूले सा..
मन फूलों का
आंगन हुआ


सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Abhishek Ojha said...

दोनों बहुत पसंद आई.

Himanshu Pandey said...

बेहतर रहीं कविता की दोनों भंगिमायें । आभार ।

Vinay said...

मन आनन्दित हो गया!

डॉ .अनुराग said...

मैंने तेरे नाम से
दुआ न देना
अब मुझे..
लम्बी उम्र की
और ..........
न दुबारा...
जीने को कहना





हमें तो पहला रंग खूब जंचा जी.....ये इस्टाइल सूट करता है आपको लेखन में

महुवा said...

beauuuuuuuuuuuuuutiful......!!!!!

राज भाटिय़ा said...

मृगतृष्णा के के दो अलग अग्लग रूप दोनो ही अति सुंदर.
धन्यवाद

Asha Joglekar said...

इतनेअलग अहसास और दोनो अपने आप में मुकम्मल और खूबसूरत रचनाएँ । पहली वाली जितनी विरक्त दूसरी उतनी ही अनुरागी ।

Unknown said...

aap ki kavita kaafi khoobsurthai,or title bhi behad umda hai.

अभिषेक मिश्र said...

पसंद आई रचनाएँ आपकी.

योगेन्द्र मौदगिल said...

सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद स्वीकारें...

KK Yadav said...

जब से नाम आया
तेरा ,मेरे अधरों पर
अंग अंग चंदन वन हुआ |
....आपने इतना सुन्दर लिखा कि बार-बार पढने को जी चाहे.
__________________
विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!

दिल दुखता है... said...

न दुबारा...
जीने को कहना

बहुत ही बेहतरीन रचनायें... दोनों ही रंग सुर्ख है... खूबसूरत है...

Prem Farukhabadi said...

उमड़ी घटा
दीवाने बदरा
शोर मचाये
नाचा मन मोर भी
पर तुम न आये ..
बिखरी जुल्फों को
अब कौन सुलझाए ...

!!अक्षय-मन!! said...

आपके सुन्दर एहसास आपकी रचना को आपके ही शब्दों से सुशोभित कर रहे हैं............

अक्षय-मन

Ashish Khandelwal said...

दोनों ही रंग मोहक लगे.. आभार

रंजना said...

अब क्या कहूँ........

लाजवाब !!! दिल से निकली और इतनी असरदार कि सीधे दिल में उतर गयी.........वाह !!!