Monday, April 13, 2009

बहुत दिन हुए ...........



एक लम्हा दिल फिर से
उन गलियों में चाहता है घूमना
जहाँ धूल से अटे ....
बिन बात के खिलखिलाते हुए
कई बरस बिताये थे हमने ..
बहुत दिन हुए ...........
फिर से हंसी की बरसात का
बेमौसम वो सावन नहीं देखा ...

बनानी है एक कश्ती
कॉपी के पिछले पन्ने से,
और पुराने अखबार के टुकडों से..
जिन्हें बरसात के पानी में,
किसी का नाम लिख कर..
बहा दिया करते थे ...
बहुत दिन हुए .....
गलियों में छपाक करते हुए
दिल ने वो भीगना नहीं देखा .....

एक बार फिर से बनानी है..
टूटी हुई चूड़ियों की वो लड़ियाँ,
धूमती हुई वह गोल फिरकियाँ,
और रंगने हैं होंठ फिर..
रंगीन बर्फ के गोलों...
और गाल अपने..
गुलाबी बुढ़िया के बालों से,
जिनको देखते ही...
मन मचल मचल जाता था
बहुत दिन हुए ..
यूँ बचपने को .....
फिर से जी के नहीं देखा....

और एक बार मिलना है
उन कपड़ों की गुड़िया से..
जिनको ब्याह दिया था..
सामने वाली खिड़की के गुड्डे से
बहुत दिन हुए ..
किसी से यूँ मिल कर
दिल ने बतियाना नहीं देखा ..

बस ,एक ख़त लिखना है मुझे
उन बीते हुए लम्हों के नाम
उन्हें वापस लाने के लिए
बहुत दिन हुए ..
यूँ दिल ने
पुराने लम्हों को जी के नहीं देखा ....

रंजना (रंजू ) भाटिया
चित्र
गूगल से

50 comments:

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभ कामनाये . ऐसे ही अनेकोअनेक वर्षो तक साहित्य की सेवा करती रहे आप

संगीता पुरी said...

बचपन के दिन तो लौटकर नहीं आ सकते ... पर आज आपका जन्‍मदिन है ... आज घूम ही लें उन दिनों की यादों में ... बहुत बढिया भावाभिव्‍यक्ति ... जन्‍मदिन की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

Mohinder56 said...

कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन
बीते हुये दिन हाये प्यारे पल छिन...

सुन्दर भाव भीनि रचना... पढ कर बीते दिनों की याद आ गई..

Mohinder56 said...

belated happy birthday... sorry for the delayed expression :(

mehek said...

एक बार फिर से बनानी है..
टूटी हुई चूडियों की वो लडियां,
धूमती हुई वह गोल फिरकियाँ,
और रंगने हैं होंठ फिर..
रंगीन बर्फ के गोलों...
और गाल अपने
गुलाबी बुढ़िया के बालों से,
waah kya kashish hai in panktiyon ki,un galiyon se khayal jaise abhi abhi ghumne gaye hai.sunder bachpan ki yaad dila di aapne,aapko janamdin ki bahut bahut badhai.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बचपन की हर बात निराली होती है।
बीती यादों में खो जाना अच्छा लगता है,
बाल्यकाल का स्वप्न सलोना अच्छा लगता है,
गुड्डे-गुड़िया खूब सजाना अच्छा लगता है,
उछल-कूद कर पतंग उड़ाना अच्छा लगता है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जन्‍मदिन की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...

जन्मदिन की बहुत बहुत बहुत बहुत शुभकामनाएं.. अब जब बीते हुए दिनों में पहुंच ही गए हैं तो हमारी टॉफी दो .. बहुत अच्छी कविता.. वाकई मैं तो बचपन में पहुंच गया..

Sajeev said...

great poem have a wonderful birthday

मुकेश कुमार तिवारी said...

रंजना जी,

जन्मदिन की हार्दिक बधाईयाँ,
यही शुभकामना है कि साहित्य-सेवा करती रहें.

सच में आज ही मन ख्याल आता है कि काश वक्त वहीम थम जाता और हम फिर बच्चे हो जाते. यदि यह संभव हो जाता तो हम रंजना जी को साहित्य सेवा करते कहां पाते.

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

PN Subramanian said...

हर एक की अंतिम पंक्ति बहुत कशिश पैदा करती है. आप को जन्मदिन पर हमारी शुभकामनायें

Shikha Deepak said...

बहुत दिन हुए ..
यूँ बचपने को .....
फिर से जी के नहीं देखा....

......यह कसक तो मेरे दिल में भी ही। बचपन याद दिला दिया आपने।
जन्मदिन की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

सुशील छौक्कर said...

जन्मदिन की ढेरों बधाई।
जन्मदिन के दिन इतनी प्यारी और सुन्दर रचना लिख दी।कि दिल खुश हो गया। ऐसा लगा जैसे पुराने दिन लौट आए हो।
बनानी है एक किश्ती..
कापी के पिछले पन्ने से,
और पुराने अखबार के टुकडों से..
जिन्हें बरसात के पानी में,
किसी का नाम लिख कर..
बहा दिया करते थे ...
बहुत दिन हुए .....
गलियों में वो छपाक करते हुए
दिल ने वो भीगना नहीं देखा

ये लाईन तो दिल के करीब है। मैने भी अपनी एक तुकबंदी में ऐसा ही जिक्र किया था। जी कर रहा है कि इस रचना को अपने पास ही रख लूँ।
एक बार फिर से जन्मदिन की बधाई।

नीरज गोस्वामी said...

जाने कहाँ गए वो दिन.....बेहद शशक्त रचना...हमेशा की तरह....बधाई रंजना जी...
नीरज

कुश said...

ऐसा ही थोट तो आज मेरे पास भी है.. बहुत ही उम्दा.. जन्मदिवस कि शुभकामनाये

Anonymous said...

happy birthday to u
kafi achi poem hai

रश्मि प्रभा... said...

पुराने लम्हों को यूँ जीना सुकून दे गया......

अनुराग अन्वेषी said...

रंजना जी, कमेंट की भरमार देखकर रश्क होता था अगर इस कविता पर आपकी बाकी कविताओं से ज्यादा कमेंट नहीं आए तो दुख होगा, आपकी बेहतरीन कविताओं में यह कविता सबसे ऊपर खड़ी दिख रही है। बेहद खूबसूरत

Unknown said...

सही बात कहने के लिये कभी बिलम्ब नहीं .... ईश्वर आप्के हर स्वप्न को साकार करे - जन्म दिवस की हार्दिक शुभकामना.

डॉ .अनुराग said...

हमारा भी एक ख़त डाल देना जी उस में.....

रहा जन्मदिन.....

कुछ इस तरह मेरी मुश्किलें कम की उसने
एक साल ओर ले गया मेरी उम्र का....

HAPPY B"DAY....
वैसे उम्र क्या हुई तकरीबन मोहतरमा ?

"अर्श" said...

janm din ki dhero badhaayeeyaan aur shubhkaamanaayen... kamaal ki rachnaa prastut kiya hai aapne apne janm din pe ......anuraag ji ne sahi she'r kahe hai magar aapki umra puchh ke kahin galti to nahi kar di..?

ha ha ha ..

badhaayee swikaaren

arsh

अनिल कान्त said...

Happy B'Day
बधाईयाँ ...पटाखे

दिगम्बर नासवा said...

अलग अलग मूड को कहती एक से बढ़ कर एक रचना.........
कुछ न कुछ कहती हुईं..........दूर यादों को कुरेदते हुवे.........बहुत कुछ कहती हैं यह साड़ी रचनाएँ .............

बस इतना ही कहूँगा......लाजवाब, अद्वितीय

vijay kumar sappatti said...

ranjana ji , janmdin ki bahut badhai .. kavita ne mujhe apne bachpan me pahuncha diya boss.

padhkar kya kya hone laga , kya kahun .. mere bhi ek khat daal dena ji , jaisa anurag ji ne kaha..

mithai kab khilayenge ye bataaye...kuch party rakhi hai bloggers ke liye ya nahi...

ha ha , badhai .der saari ..

Alpana Verma said...

बहुत ही सुन्दर कविता है.बचपन के दिनों की यादों को समेटे हुए.
ख़ास कर बारिश के पानी में भीगना और छपाक करते हुए चलाना..बर्फ के गोले ,कागज़ की नाव..गुलाबी बुढ़िया के बालों की मिठास...क्या बात है.!
आप के जनम दिन की भी ढेर सारी बधाईयाँ और शुभकामनायें.
बैसाखी की भी ढेर सारी मुबारकां!

आलोक सिंह said...

आपकी रचना पढ़ कर बचपन की यादे ताजा हो गई .
बनानी है एक कश्ती
कॉपी के पिछले पन्ने से,
और पुराने अखबार के टुकडों से..
जिन्हें बरसात के पानी में,
किसी का नाम लिख कर..
बहा दिया करते थे ...

जन्‍मदिन की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

rajiv said...

कहते हैं गुजरा वक्त लौट कर नहीं आता
लेकिन बात है कुछ ऐसी कि
बचपन जाए बचपना नहीं जाता
कहते हैं मेरी उम्र हो चली है
पर शुक्र है उस खुदा का
मुझे उम्र गिनना नही आता
सफर में पीछे छूटते जाते हैं वक्त के निशां
न जाने क्यूं सोलहवीं मील का पत्थर नहीं आता

जितेन्द़ भगत said...

बचपन की यादें बस यादें ही रह जाती हैं, वे लौट के तो आती नहीं हैं, पर आपने उसे दुबारा जीवि‍त कर दि‍या,
जन्‍म दि‍न की हार्दि‍क बधाई।

travel30 said...

yeh bahut bada gud hai aapka ... itti dur baithe hue bhi apne shabdo se kabhi hasa dena.. kabhi rula dena... bahut pyari bachpan ki tasvir.. keep writing

New Post - Memorable Moment - A Sweet Journey with an Unknown Girl

vandana gupta said...

ranjana ji
janamdin ki hardik shubhkamnayein.

aapki rachna ne to kuch pal ke liye bachpan mein pahuncha diya...........jo hum bhool chuke the wo sab yaad dila diya.
waah ..........bahut khoob likha .

jeevan tumhara mahakta rahe
bachpan ki tarah chahkta rahe

उन्मुक्त said...

बचपन के दिन भी क्या दिन थे,
उड़ते फिरते तितली बन।
रंजना जी, हम सब चाहते हैं कि कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, बीते हुए दिन वो मेरे प्यारे पल छिन। शैली ने ठीक ही कहा है Our sweetest songs are those that tell of saddest thought.

Prakash Badal said...

बहुत खूब रंजना जी आपकी कविताएं मुझे अपने बचपन की यादों के हसीन सफर में ले गयी। वाह! आपको जन्म दिवस की देर से ढेरों बधाईयाँ।

ताऊ रामपुरिया said...

आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाईयां. इस रचना को पडःअकर यही सोच रहा हूं " काश बचपन को फ़िर से जी सकते".

रामराम.

अविनाश वाचस्पति said...

शुभकामनाएं मेरी भी आपको आपके जन्‍मदिन पर
दूर वालों की जल्‍दी मिलीं, भीड़ में देते तो शायद
हो जातीं गुम
अब आप समझदार हो गई होंगी
पहचानने लगी होंगी
पर चाहे कितना भी जानना पहचानना
और होना खूब समझदार
पर बचपने के खुशनुमा अहसासों से
कतई न आना बाहर
उसी में रमे रहना
आनंद वहीं मिलता है
उस आनंद का नहीं
मुकाबला किसी और आनंद से चलता है
वो कागज की कश्‍ती
वो यादों की कहानी
कोई न भी सुनाए
पर नहीं भूली जाती।

दिनेशराय द्विवेदी said...

जब जब आए ये दिन बार बार बचपन याद आए।
जन्म दिन पर बहुत बहुत शुभ कामनाएँ।

irfan said...

apne baare me itni tareef padhne ke liye bhi aapko khaasa samay nikaalna padta hoga.
..baharhaal aapki phir vahi galiyon me ghoomne ke ichchha zahir karne wali rachna bahut dil ke paas mehsoos huee..
Good as ever!

Pratibha Katiyar said...

जन्मदिन बहुत मुबारक हो रंजना जी. एक खत तो हमें भी लिखना है बीते हुए लम्हों के नाम. कुछ को वापस बुलाना है. कुछ के पास जाने का वादा करना है. पर क्या करें जीते हुए लम्हे बीते हुए लम्हों तक जाने ही नहीं देते....

Pratibha Katiyar said...

जन्मदिन बहुत मुबारक हो रंजना जी. एक खत तो हमें भी लिखना है बीते हुए लम्हों के नाम. कुछ को वापस बुलाना है. कुछ के पास जाने का वादा करना है. पर क्या करें जीते हुए लम्हे बीते हुए लम्हों तक जाने ही नहीं देते....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Ranjna jee,
Many Happy Returns of the Day ..hope you enjoyed your special day -- Nice poem may your wishes be fulfilled.

Abhishek Ojha said...

ओह, आपका जन्मदिन था. चलिए देर से ही सही... ढेर सारी शुभकामनायें

कडुवासच said...

जिनको देखते ही...
मन मचल मचल जाता था
बहुत दिन हुए ..
यूँ बचपने को .....
फिर से जी के नहीं देखा....
... behad khoobasoorat abhivyakti!!!

कंचन सिंह चौहान said...

अरे .! देर हो गई मुझे तो फिर भी बहुत बहुत बधाई जन्मदिन की...!

नीरज मुसाफ़िर said...

रंजना जी, आज क्या ख़ास दिन है?
आज मैंने कई सारी इसी तरह की पोस्टें पढ़ी हैं. इन्हें पढ़कर मन बेचैन सा हो जाता है. गाँव की पृष्ठभूमि से शहर में आये हुओं के लिए तो आपकी ये बातें बिलकुल जज्बाती बातें हैं.

Arvind Mishra said...

एक गृह विरहिणी के ज़ज्बात !
थोडा विलम्बित जन्म दिन की शुभकानाएं !

Science Bloggers Association said...

सॉरी थोडा लेट हो गया, पर शुभकामनाऍं देने में पीछे नहीं रहना चाहता।

-----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

गौतम राजऋषि said...

विलंब से आया मैम...
कविता-ये बेजोड़ कविता तो पहले ही पढ़ ली थी, कुछ लिख नहीं पाया था तब। यहाँ पर नेट की गति तो बस पूछिये मत....

जन्म-दिन की-देर से ही सही-ढ़ेरों शुभकामनायें!!!

Mumukshh Ki Rachanain said...

बचपन की याद हमारी भी ताज़ा हो उठी, चलचित्र की तरह सबकुछ आँखों के सामने तैर गया.

अपनी कविता के माध्यम से ही सही मेरे पुराने दिन तो फिर से याद आये.

आभार.

चन्द्र मोहन गुप्त
www.cmgupta.blogspot.com

hem pandey said...

'बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी'

Smart Indian said...

बस ,एक ख़त लिखना है मुझे
उन बीते हुए लम्हों के नाम
उन्हें वापस लाने के लिए
बहुत दिन हुए ..
यूँ दिल ने
पुराने लम्हों को जी के नहीं देखा ....

बहुत खूब! कुछ भी खोया नहीं है. सारा विगत वहीं का वहीं खडा है. हाँ, थोड़ी धुल ज़रूर जम गयी है.
शुभकामनाएं!

Anonymous said...

सब कुछ वही,जो आम तौर पर बच्चे करते हैं.गुड़ियों का खेल लडकियां ज्यादा खेलती है शायद बचपन से एक माँ उनमे बडी होने लगती है अपनी माँ को देख देख कर. मुझे आज भी मौका मिलते ही बचपन को जी लेती हूँ अपने नन्हे बच्चो के साथ.पडोस की बच्चियों के साथ.
अपने बच्चो में,उनके बच्चो में अपने बचपन को जीना सबसे अच्छा तरीका है.
'यादो की इक नाव गुजरती बीते समय के पिछवाड़े से'
कभी ना भुलाए जाने वाले बचपन को याद किया है वो भी आज के दिन जब रंजन ने जन्म लिया था.हा हा हा आओ माथे पर एक पप्पी दे दूँ और कह दूँ 'हेप्पी बर्थडे टू यु'