Tuesday, February 02, 2010

आज का सच


आज का जन्म

पैदा होते ही
माँ के सीने से लिपटा
पर उसके दूध से दूर
बोतल और बाल आहार पर पलता
खोल के नन्ही आंखें
बिटर-बिटर दुनिया को तकता
बनूँगा इस आहार पर ही
ताकतवर
हगीज़ पहन कर भी
ख़ूब है हँसता

आज का बचपन

डगमगाते कदमो से
सूरज के संग खोल के आंखें
हाथ थाम के चलने की जगह
पेंसिल की नोक घिसता
नर्सरी कविता को
बिना समझे
अंग्रेजी में रटता

जीत लूँगा इस दुनिया को
यही सपना बचपन से पलता
माँ-बाप की अभिलाषा को
अपने जीवन का सच समझता



आज का टीनएजर

हैरी पॉटर के कारनामों में गुम
एक नई दुनिया बुनता, रचता
एम टी वी, एकता कपूर की कहानी में
मटकता ,भटकता .बहकता
जीवन का सत्य तलाश करता

या देख के रोज़ नई विज्ञान की बातें
एक दिन करुंगा मैं भी कुछ
यह वादा ख़ुद से करता
देख सुनीता कल्पना को
चाँद पर रोज़ सपने में उतरता



आज का युवा

आक्रोश बेरोजगारी
और लाचारी
इन सब से तंग आ कर
बसे फूंकता, नारे लगता
कुछ नही रखा यहाँ
विदेशी नौकरी
करके अपना जीवन
कॉल सेंटर कल्चर
अपनाता

आज का बुढापा

अकेली आंखो में सपने प्रवासी
जिन्दगी में है बस एक उदासी
अकेले कब तक बच्चो की राह निहारे
हर पल एक डर, और मौत भी नही आती…

रंजना (रंजू ) भाटिया

18 comments:

अनिल कान्त said...

kya khoob likha hai aapne aaj ke duniyaavi sach ko

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

आक्रोश बेरोजगारी
और लाचारी
इन सब से तंग आ कर
बसे फूंकता, नारे लगता
कुछ नही रखा यहाँ
विदेशी नौकरी
करके अपना जीवन
कॉल सेंटर कल्चर
अपनाता....

आज के परिदृश्य को दर्शाती... बहुत सटीक रचना....

नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....

Unknown said...

आज यहां पहली बार कुछ तो नये संदर्भ उभरे।

ठीक सी कोशिश।
कुछ चीज़ों को प्रचलित नज़रिए से हटकर देखा है आपने।

अभी सतही हैं, पर संभावनाएं हैं।

Alpana Verma said...

जीवन की सभी अवस्थाओं को वर्तमान सामाजिक सन्दर्भ में देखना और उनका शब्द चित्रण आप की इन रचनाओं में दिखाई दे रहा है.
गहन भाव लिए हैं सभी कविताएँ.

संजय भास्‍कर said...

..... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय प्रस्तुति !!!

संजय भास्‍कर said...

lajwaab rachna.........

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपने आज को बखूबी बयां किया है...जन्म से लेकर बुढ़ापे तक ....सुन्दर अभिव्यक्ति...

दिगम्बर नासवा said...

अकेली आंखो में सपने प्रवासी
जिन्दगी में है बस एक उदासी
अकेले कब तक बच्चो की राह निहारे
हर पल एक डर, और मौत भी नही आती…

जीवन के हर पहलू को बखूबी उतरा है आपने अपनी कलाम से ...... शिशु और यौवन तो आज बिल्कुल ऐसा ही है ....... बुढ़ापा को आपने हूबहू उतार दिया .......... बहुत लाजवाब .........

निर्मला कपिला said...

aआजकल की पूरी ज़िन्दगी का सच बचपन से ले कर बुढापे तक का आधुनिक सफर
पैदा होते ही
माँ के सीने से लिपटा
पर उसके दूध से दूर
बोतल और बाल आहार पर पलता
इस बचपन से बचा कितनी संवेदनायें सहे4ज सकता है शायद हम या केवल मां इस बचपने के लिये दोशी है --- शायद आज का बदला हुया परिवेश
तभी तो हालात यहां तक पहुँचे
अकेली आंखो में सपने प्रवासी
जिन्दगी में है बस एक उदासी
अकेले कब तक बच्चो की राह निहारे
हर पल एक डर, और मौत भी नही आती…
बहुत मार्मिक हो गया है आज का सच । बहुत अच्छी रचना । शुभकामनायें

वन्दना अवस्थी दुबे said...

आक्रोश बेरोजगारी
और लाचारी
इन सब से तंग आ कर
बसे फूंकता, नारे लगता
कुछ नही रखा यहाँ
विदेशी नौकरी
करके अपना जीवन
कॉल सेंटर कल्चर
अपनाता....
बचपन से जवानी तक क्या चित्र खींचा है रंजना जी. बधाई.

कडुवासच said...

.... प्रभावशाली रचनाएं !!!!

kavi kulwant said...

bahut sundar

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर लिखा है आपने रंजू जी । आज के इन्सानी जीवन के हर पडाव का यथार्थ चित्रण ।

Razi Shahab said...

wahh........kya sachchai bayan ki aapne

आलोक साहिल said...

बहुत खूब...
सही नापा है आपने बदलते वक्त के बीच के फासले को...

Asha Joglekar said...

जीवन के सारे पडावों की भावपूर्ण अभिव्यक्ती ।

अनामिका की सदायें ...... said...

jiwan k har pehlu ko badhi sateekta se utara hai...aaj jindgi ki aapa-dhapi me yahi bachpan hai..yahi childhood hai..yahi jawanai hai aur yahi budhaape ki halat hai...afsos ki ham fir bhi sayukt pariwaro se prathak ho jate hai...aur paise k peechhe bhaagte bhaagte ant me budhape me khud ko hi is bheed se juda pate hai.

Unknown said...

आज हमारा देश पुरे विशिव में सबसे अधिक yuaa sakti wala देश hai ,parantu eske shat hi आज हमारा देश े विशिव में सबसे अधिक berojgari wala देश bhi hai ,yehi haimari सबसे badi samsya hai...