Saturday, August 31, 2019

सौ साल की हुई अमृता प्रीतम




आज गूगल भी अमृता प्रीतम के जन्मदिन को मना रहा है । अमृता प्रीतम एक ऐसी लेखिका जिनके लिखे का असर मन को अपने मे ही समेट लेता है। मैं उनके लिखे से बहुत प्रभावित रही । इतनी कि कहीं अपने लिखे में भी उनकी छाया दिखी । उनके लेखन ने ही नहीं उनके बिंदास जीने के अंदाज़ ने भी बहुत प्रभावित किया है । बेशक आज लोग उन्हें उनके जीने के अंदाज़ से " बदचलन "नाम दें पर उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की। उन्होंने अपनी किसी भी बात को कभी छिपाया नहीं। साहिर उनकी अंतिम साँसों तक उनकी यादों में रहे । मुझे लगता है कि पहले प्यार का अधूरापन अंतिम सांस तक उसी याद और उसी पल में अटका रहता है । और यही अधूरा प्रेम फिर आपसे क्या क्या नहीं लिखवा लेता । साहिर अमृता मिल गए होते तो हमे इतना अच्छा लिखा हुआ न अमृता का मिलता , न साहिर के गीतों में वह बात दिखती जो आज भी सुन कर दिल खींच जाता है । इमरोज़ ने अमृता को उसके सब सच के साथ स्वीकार किया । इमरोज़ का प्रेम अमृता के लिए इबादत बन गया । आज भी इमरोज़ के आलोचकों की कमी नहीं है। पर प्रेम तो प्रेम है और जब वह प्रेम से ऊपर उठ कर इबादत का रूप ले ले तो फिर उसके बारे में कोई कुछ भी लिखे वो उस लिखने वाली की अज्ञानता है । 

@#विदेह निर्मोही की लिखी यह कविता इस सच को बयां करती है।
सुनो अमृता!

सुनो अमृता!
अच्छा हुआ
जो तुम लेखिका थी
क्योंकि अगर तुम लेखिका न होती
तो निश्चित तौर 
तुम्हें "चरित्रहीन "और
"बदलचलन "की श्रेणी में रखा जाता।

अच्छा हुआ तुम ,असाधारण थी
क्योंकि साधारण स्त्रियों की ज़िंदगी में
"तीन-तीन पुरुषों "का होना
"वैश्यावृत्ति" माना जाता है

अच्छा हुआ ,अमृता
तुम बोल्ड थी
इसीलिए तुम्हारे मुंह पर
किसी ने कुछ न कहा
किन्तु यह भी सत्य है
आज इमरोज की कामना करने वाली 
कोई भी स्त्री अमृता बनना नहीं चाहेगी
क्योंकि दहलीज़ों को लांघना
कोई मज़ाक नहीं है।

#विदेह निर्मोही द्वारा लिखित 

मेरे लिए वो हमेशा इसलिए आईडल रही कि वो एक सच्ची इंसान थी । ज़िन्दगी जीने के तरीके को समझती थीं ।कभी भी इसके चलते उन्होंने अपने किसी फ़र्ज़ से मुहं नहीं मोड़ा ।आज उनके 100 वें जन्मशताब्दी पर मेरी यह पोस्ट उन्ही के लिखे को मेरी कलम से कह रही  है ।

वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये….
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
           
     तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौटकर नहीं आती। उम्र दिल का साथ नहीं दे रही है। दिल उसी जगह पर ठहर गया है, जहाँ ठहरने का तुमने उसे इशारा किया था। सच, उसके पैर वहाँ रूके हुए हैं। पर आजकल मुझे लगता है, एक-एक दिन में कई-कई बरस बीते जा रहे हैं, और अपनी उम्र के इतने बरसों का बोझ मुझसे सहन नहीं हो रहा है.....अमृता

.......यह मेरा उम्र का ख़त व्यर्थ हो गया। हमारे दिल ने महबूब का जो पता लिखा था, वह हमारी किस्मत से पढ़ा न गया।.......तुम्हारे नये सपनों का महल बनाने के लिए अगर मुझे अपनी जिंदगी खंडहर भी बनानी पड़े तो मुझे एतराज नहीं होगा।......जो चार दिन जिंदगी के दिए हैं, उनमें से दो की जगह तीन आरजू में गुजर गए और बाकी एक दिन सिर्फ इन्तजार में ही न गुजर जाए। अनहोनी को होनी बना लो मिर्जा।..... .अमृता 
कमरे में जाना और यह रिकॉर्ड चलाना और बर्मन की आवाज सुनना- सुन मेरे बंधु रे। सुन मेरे मितवा। सुन मेरे साथी रे। और मुझे बताना, वे लोग कैसे होते हैं, जिन्हें कोई इस तरह आवाज देता है। मैं सारी उम्र कल्पना के गीत लिखती रही, पर यह मैं जानती हूँ - "मैं वह नहीं हूँ जिसे कोई इस तरह आवाज दे। "और मैं यह भी जानती हूँ, मेरी आवाज का कोई जवाब नहीं आएगा। कल एक सपने जैसी तुम्हारी चिट्ठी आई थी। पर मुझे तुम्हारे मन की कॉन्फ्लिक्ट का भी पता है। यूँ तो मैं तुम्हारा अपना चुनाव हूँ, फिर भी मेरी उम्र और मेरे बन्धन तुम्हारा कॉन्फ्लिक्ट हैं। तुम्हारा मुँह देखा, तुम्हारे बोल सुने तो मेरी भटकन खत्म हो गई। पर आज तुम्हारा मुँह इनकारी है, तुम्हारे बोल इनकारी हैं। क्या इस धरती पर मुझे अभी और जीना है जहाँ मेरे लिए तुम्हारे सपनों ने दरवाज़ा भेड़ लिया है। तुम्हारे पैरों की आहट सुनकर मैंने जिंदगी से कहा था- अभी दरवाजा बन्द नहीं करो हयात। रेगिस्तान से किसी के कदमों की आवाज आ रही है। पर आज मुझे तुम्हारे पैरों का आवाज सुनाई नहीं दे रही है। अब जिंदगी को क्या कहूँ? क्या यह कहूँ कि अब सारे दरवाजे बन्द कर ले......। ....अमृता
देख नज़र वाले, तेरे सामने बैठी हूँ
मेरे हाथ से हिज्र का काँटा निकाल दे

जिसने अँधेरे के अलावा कभी कुछ नहीं बुना
वह मुहब्बत आज किरणें बुनकर दे गयी

उठो, अपने घड़े से पानी का एक कटोरा दो
राह के हादसे मैं इस पानी से धो लूंगी... 

रास्ते कठिन हैं। तुम्हें भी जिस रास्ते पर मिला, सारे का सारा कठिन है, पर यही मेरा रास्ता है।.....मुझ पर और भरोसा करो, मेरे अपनत्व पर पूरा एतबार करो। जीने की हद तक तुम्हारा, तुम्हारे जीवन का जामिन, तुम्हारा जीती।....ये अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य का पल्ला तुम्हारे आगे फैलाता हूँ, इसमें अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य को डाल दो।.....इमरोज


आज ३१ अगस्त है ...अमृता जन्मदिन तुम्हे मुबारक ....हर जन्मदिन पर लगता है क्या लिखूं तुम्हारे लिए ...सब कुछ कह के भी अनकहा है वक़्त बीत रहा है ...तलाश जारी है खुद में तुमको पाने की ..तुम जो .मेरे प्रेरणा रही ..मेरी आत्मा में बसी मुझे हमेशा लगा जैसे जो प्यास .जो रोमांस ,जो इश्क की कशिश तुम में थी वह तुमसे  कहीं कहीं बूंद बूंद मुझ में लगातार रिस रही है ...इमरोज़ भी एक ही है और अमृता भी एक थी ..पर ..फिर भी अमृता तुम्हारे लिखे ..को पढ़ के ...अमृता तुम्हारी तरह जीने की आस टूटती नहीं ..जन्मदिन बहुत बहुत मुबारक  अमृता 

3 comments:

अजय कुमार झा said...

अभी अभी मैंने आपके ब्लॉग अमृता प्रीतम की याद में की एक पांच साल पुरानी पोस्ट आज ३१ अगस्त है साझा की | बहुत ही सुखद लगा आपको दुबारा पढ़ कर | उस ब्लॉग में भी पोस्टें डालते रहिये न बीच बीच में , हम लौट लौट के आते रहेंगे पढ़ने के लिए | साधुवाद आपको

रंजू भाटिया said...

जरूर जी ,धन्यवाद बहुत बहुत

धीरेन्द्र वीर सिंह said...

लेख के लिए धन्यवाद