Monday, December 10, 2012

एक टुकडा धूप का

कुछ भीगे से एहसास
एक टुकडा धूप का
चाहती हूँ मिल जाए
छुए मेरे अंतर्मन को
और जमते सर्द भावों को
गुदगुदा के जगा जाए
गुजरे रात हौले धीरे
वह एहसास जो जीने की चाहत दे जाए
डूबती साँसों के इन लम्हों में
अब तो यह धुंधलका छट    जाए
उदय हो अब तो वह सुबह
जो शून्य से धड़कन बन जाए
बस एक टुकडा नर्म धूप के एहसासों का
एक बार तो ज़िन्दगी में मेरी आए !

15 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

नर्म धूप का हिस्सा ज़रूर है एहसास में... तभी न धूप नर्म लग रही है ... सुंदर अभिव्यक्ति

सदा said...

अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने इस अभिव्‍यक्ति में
बेहतरीन प्रस्‍तुति

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सर्दी में धूप की कवि‍ता

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत ही सुन्दर और कोमल भाव लिए रचना...
:-)

विभूति" said...

खुबसूरत अभिवयक्ति.....

Swapnil Shukla said...

आपके द्वारा लिखी गई हर पंक्तियाँ बेहद खूबसूरत होती हैं....... आपकी समस्त रचनाओं को लिये आपको नमन .....

कृ्पा कर एक बार यहाँ भी आएं ......

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धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह ,,, बहुत उम्दा,लाजबाब अहसास ....

recent post: रूप संवारा नहीं,,,

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह ,,, बहुत उम्दा,लाजबाब अहसास ....

recent post: रूप संवारा नहीं,,,

प्रवीण पाण्डेय said...

एक टुकड़ा धूप, न जाने कब से ढूँढ़ रहे हैं हम।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

dr sunil arya said...

excellent....
वह एहसास जो जीने की चाहत दे जाए

दिगम्बर नासवा said...

नर्म धूप का एहसास ... मन को दासी से उभार लेता है ...
बहुत लाजवाब शेब्द ...

Khare A said...

behad narm narm si bhavnaye!

andar tak bhigo gayi!

badhai!

Unknown said...

behtareen