Wednesday, March 21, 2012

चुप्पी के बोल



सुबह की पहली किरणे सी
मैं न जाने कितनी उमंगें
और सपनों के रंग ले कर
तुमसे बतियाने आई थी ...

लम्हे .पल सब बीत गए
मिले बैठे मुस्कराए हम दोनों ही
पर चाह कर भी कुछ कह न पाये

बीते जितने पल वह
बीते कुछ रीते
कुछ अनकहे
भीतर ही भीतर
रिसते रहे छलकते रहे
चुप्पी के बोल  
इस दिल से उस दिल की
गिरह पड़ी राह को खोजते रहे ...

15 comments:

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर मनोभाव..

सदा said...

वाह ...बहुत ही अनुपम भाव लिए हुए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ।

प्रवीण पाण्डेय said...

बिन कहे ही सब कहता रहता है समय।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत बार कुछ अनकहे, चुप्प से लम्हे भी बहित कुछ कह जाते हैं बिनकहे ..

ANULATA RAJ NAIR said...

मौन की अपनी एक भाषा है......
कह जाता है वो सब कुछ...बिना लब हिले...

Shalini Khanna said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति...........

Arvind Mishra said...

चुप्पी के बोल मुखर हैं -दर्द का हद से गुजरना

Shalini Khanna said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति...........

Shalini Khanna said...

सुन्दर भावाभिव्यक्ति........

sonal said...

bahut khoob

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुंदर रचना...
सादर.

निवेदिता श्रीवास्तव said...

कभी-कभी चुप्पी बहुत कुछ समझा जाती है .....

Asha Joglekar said...

कितनी ही बार मौन कितना मुखर होता है ।

Asha Joglekar said...

कितनी ही बार मौन शब्दों से ज्यादा मुखर होता है ।

ghughutibasuti said...

सुन्दर!
घुघूतीबासूती