Monday, November 02, 2015

ज़िंदगी की रात

खोई खोई उदास सी है
मेरी ज़िंदगी की रात
दर्द की चादर ओढ़  कर
याद करती हूँ तेरी हर बात
तुम बिन
ना जीती हूँ ना मरती हूँ मैं
होंठो पर रहती है
हर पल तुमसे मिलने की फ़रियाद
बहुत उदास सी है मेरी ज़िंदगी की रात

रूठ गए  मेरे अपने
टूट गये सब मेरे सपने
तुम्ही से तो थी मेरी ज़िंदगी में बहार
तुम थे तो था मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार
सजते थे तुम्ही से मेरे सोलह सिंगार
अब तो याद आती है बस तेरी हर बात
बहुत उदास सी है मेरी ज़िंदगी की रात

अब तो अपनी छाया से भी डरती हूँ मैं
तुम्ही बताओ अपने तन्हइयो से कैसे लड़ूं मैं
ले गये तुम साथ अपने मेरी हर बात
बहुत उदास तन्हा सी है मेरी ज़िंदगी की रात


5 comments:

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन: प्रधानमंत्री जी के नाम एक दुखियारी भैंस का खुला ख़त , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Madan Mohan Saxena said...

सुन्दर प्रस्तुति , बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/

रचना दीक्षित said...

विरह के पल ऐसे ही होते हैं. मन से निकले उदगार.

बहुत सुंदर.

Mohinder56 said...

सुंदर भाव अभिव्यक्ति

Asha Joglekar said...

सच है पिया बिन सब सूना सूना,
काटन दौडे घर और अंगना।