Wednesday, November 27, 2013

मुड़े हुए पन्ने

ज़िन्दगी
जैसे एक "नज्म की किताब "
साथ साथ बैठे हुए
पढ़े लफ्ज़ बेहिसाब
और फिर ...
न जाने क्यों तुम
उसको अधूरा छोड़ के
चल दिए कहाँ ?
पर ...
उस नज्म के लफ्ज़
अभी भी पढ़े जाने की राह में
उसी मुड़े हुए पन्ने पर
अटके हुए  भटक रहे हैं ............

दर्द दे कर बिछुड़ते रहे हैं कुछ लोग ज़िन्दगी के इस सफ़र में ...पर यही लोग फिर ज़िन्दगी को सही मायनों में जीने के फलसफे भी समझा गए ....#रंजू भाटिया

Tuesday, November 19, 2013

बिखराव


गुलमोहर "काव्य संग्रह एक सुन्दर गिफ्ट के साथ आज मुझे मिला बहुत सुन्दर कवर पेज और बहुत से जाने माने मित्रों की सुन्दर रचनाएं। पढ़ना अभी बाकी है पर अभी इस में प्रकाशित अपनी एक रचना के साथ इस संग्रह की एक झलक.....इसको आप भी पढ़ सकते हैं अभी ऑनलाइन आर्डर कर के..... इन लिंक्स पर
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बिखराव

समेट रही हूँ
सहज रही हूँ
घर की हर बिखरी चीज को
पुराने फोटो
पुराना ,पर महंगा फर्नीचर
कभी घर के पूर्वजों को मिले
कई अवसरों पर मिले उपहार
यूँ ही बनी रहे इनकी चमक
साल दर साल
और गर्व करे आने वाली पीढ़ी
और घर में आया हर मेहमान
इस की चमक को खोना नही है
इस लिए लिए हर पहर इनको झाड़ पौंछ के
घर के हर कोने में सज़ा रही हूँ
यह चीजे चमक खो के भी
अपने अस्तित्व का एहसास करवा देती हैं
पर नही सहज पाती मैं
उन पुरानी किताबों से
वह धूमिल होते अक्षर
वह अमूल्य हमारी धरोहर
वो शब्द जो पहचान थे हमारी
सत्य ,प्रेम .उदारता और संवेदना
जैसे मेरे हाथो से सहजने की कोशिश में
पल दर पल दूर हुए जा रहे हैं
अपनी चमक खोये जा रहे हैं !!

Sunday, November 17, 2013

फॉसिल्स

अक्सर देखा है "डिस्कवरी चेनल" पर
सदियों पुराने अवशेषों को
कुरेदते ,जमे हुए उन फॉसिल्स" से
कुछ नया पता लगाने की कोशिश करते
क्या था ?क्यों था ? और कैसे था
आदि आदि प्रश्नों का हल खोजते
और अधिकतर जवाब पाया है कि
धरती के सीने में धधकता हुआ
ज्वालामुखी जब अपने अन्दर
बहते दर्द को सह नहीं पाता
तो लावा की शक्ल में
बाहर फूट जाता है
और सब तबाह कर जाता है
ठीक वैसे ही ..
जैसे तुम पढ़ लेना चाहते हो
उस मन को ..
जो सदियों से जमा है
दिल की कई तहों में
जम चुका है अब
फॉसिल्स"  की शक्ल में
यहाँ भी एक ज्वालामुखी सुलग रहा है
धीमे धीमे ...
जो कभी फटा तो
क्या संभाल पाओगे
 उस तबाही को
और यदि संभाल गए तो
यकीन है मुझे
मेरे उस अनलिखे मन को भी
तभी तुम पढ़ पाओगे !!.........अधूरा है हर लम्हा ज़िन्दगी का न जाने कौन सी राह का इन्तजार है .......@ रंजू भाटिया

Monday, November 11, 2013

कवितायें कभी लिखी नहीं जाती

कवितायें कभी लिखी नहीं जाती
वह तो जन्म लेतीं हैं
उस भूख से
जो मन के किसी
कोने में दबी हुई
कोई अतृप्त 
इच्छा है
या यह कोई
ऐसी भूख है जो
कहीं पनप रही है
आहिस्ता आहिस्ता
और उनको शांत  करने का
कोई माध्यम
 कहीं कोई
  नजर नहीं आता
वह फिर कलम से
बहती है आतुरता से
और  कहती अपनी बात
उन अनकही 
इच्छाओं से जो
अपनी बात कहने का
स्खलित होने का माध्यम        
तलाश कर लेती हैं
अपने ही किसी मन के द्वार से
पर रह जाती हैं
फिर भी अतृप्त  सी
और फिर उसको
कोई  शैतान  कोई खुराफात
कोई प्रेम आदि आदि
के लफ़्ज़ों में ढाल कर
अपनी बात कह देते हैं
 और..........
वही लिखा  हुआ
फिर कविता कहलाता है

Wednesday, November 06, 2013

रंग

मौसमों सी रंग बदलती
इस दिल की शाखाएँ
कहीं गहरे भीतर
पनपी हुई है
जड़ों सी
जो ऊपर से सूखी दिखती
अन्दर से हरीभरी है
इन्हें कभी बीते मौसम की
बात न समझना
जरा सी फुहार मिलते ही
सींच देगी यह
दिल की उस जमीन को
जो दूर से दिखने में
बंजर सी दिखती है
प्यार का यह रंग है
सिर्फ उस एहसास सा
जो पनपता है सिर्फ
अपने ही दिए दर्द से
और अपनी ही बुनी हुई ख्वाइशों से !!