Tuesday, July 30, 2013

शब्द संसार ..



अक्षर अक्षर जोड़ के बना यूँ शब्द संसार ..

जब इंसान ने अपने विकास की यात्रा आरंभ की तो इस में भाषा का बहुत योगदान रहा | भाषा समझने के लिए वर्णमाला का होना जरुरी था क्यों कि यही वह सीढी है जिस पर चल कर भाषा अपना सफ़र तय करती है | वर्णमाला के इन अक्षरों के बनने का भी अपना एक इतिहास है .| .यह रोचक सफ़र शब्दों का कैसे शुरू हुआ आइये जानते हैं ...जब जब इंसान को किसी भी नयी आवश्यकता की जरूरत हुई ,उसने उसका आविष्कार किया और उसको अधिक से अधिक सुविधा जनक बनाया| २६ अक्षरों कीवर्णमाला को भले ही अंग्रेजी वर्णमाला को रोमन वर्णमाला कहा जाए लेकिन रोमन लोगों ने इसको नहीं ईजाद किया था | उन्होंने सिर्फ लिखित भाषा को सुधार कर और इसको नए नए रूप में संवारा| हजारों वर्षों से कई देशों में यह अपने अपने ढंग से विकसित हुई और अभी भी हो रही है | वर्णमाला के अधिकतर अक्षर जानवरों और आकृतियों के प्राचीन चित्रों के प्रतिरूप ही है ..|

इसका इतिहास जानते हैं कि यह कैसे बनी आखिर | .३००० ईसा पूर्व में मिस्त्रवासियों ने कई चित्र और प्रतीक बनाए थे | हर चित्र एक अक्षर के आकार का है| इसको चित्रलिपि कहा जाता था लेकिन व्यापार करने लिए यह वर्णमाला बहुत धीमी गति की थी | खास तौर पर जो उस वक़्त विश्व के बड़े व्यपारी हुआ करते थे,१२०० इसा पूर्व के फिनिशियिंस के लिए | इस लिए उन्होंने उन अक्षरों को ही विकसित किया जिनमें प्रतीक से काम चल सकता था हर प्रतीक एक ध्वनी का प्रतिनिधितव करता था और कुछ शब्द मिल कर एक शब्द की ध्वनि बनाते थे| ...८०० इसा पूर्व में यूनानियों ने फिनिशिय्न्स की वर्णमाला को अपना लिया ,लेकिन फिर पाया कि इन में व्यंजन की ध्वनियां नहीं है .जबकि उन्हें अपनी भाषा में इसकी जरूरत थी | इसके बाद उन्होएँ १९ फ़िनिशियन अक्षर जोड़ लिए इस तरह २४ अक्षरों वाली वर्णमाला तैयार हुई |

११४ ईसवीं में रोम में लोगों ने वर्णमाला को व्यवस्थित किया बाद में इंग्लॅण्ड में नोमर्न लोगों नने इस वर्णमाला में जे ,वी और डबल्यू जैसे अक्षर जोड़े और इस तरह तैयार हुई वह नीवं जिस पर आज की अंग्रेजी वर्णमाला कई नीवं टिकी है

शब्दों का जादू यूँ ही अपने रंग में दिल पर असर कर जाता है ...पर अक्सर पहले चित्र जानवर आदि की आकृतियों से ही बनाए गए थे ...जैसे अंग्रेजी का केपिटल क्यु बन्दर का प्रतीक है पुराने चित्रों में इस क्यु को सिर कान और बाहों के साथ उकेरा गया है

सबसे छोटे शब्द यानी प्रश्नवाचक और विस्मयबोधक चिन्हों के बारे में १८६२ में फ्रांस में एक बड़े लेखक विकटर हयूगो का आभारी होना पड़ेगा हुआ यूँ कि उन्होंने अपना उपन्यास पूरा किया और छुट्टी पर चले गए लेकिन यह जानने को उत्सुक थे कि किताबे बिकती कैसे हैं ? साथ ही वह सबसे चिन्ह भी गढ़ना चाहते थे सो उन्होंने प्रकाशक को एक पत्र लिखा :?
प्रकाशक भी कुछ कम कल्पनाजीवी नहीं थे ,वह भी सबसे छोटा अक्सर बनाने का रिकॉर्ड लेखक हयूगो के साथ बनना चाहते थे सो उन्होंने भी जवाब में लिखा :!

और इसी सवाल जवाब के साथ चलते हुए वर्णमाला में सबसे छोटे अक्सर बने जिन्हें चिन्ह कहा गया ...

सबसे मजेदार बात यह है कि सबसे लम्बे वाक्य लिखने का श्री भी हयूगो को ही जाता है वह वाक्य भी उनके उपन्यास का है जिस में ८२३ अक्षर ,९३ अल्प विराम चिन्ह ,५१ अर्ध विराम ,और ४ डेश आये थे .लगभग तीन पन्नो का था यह वाक्य

अंडर ग्राउंड अंग्रेजी  भाषा का एक मात्र ऐसा शब्द है जिसका आरम्भ और अंत यूएनडी अक्षरों से होता है

टैक्सी शब्द का उच्चारण भारतीय ,अंग्रेज ,फ्रांसीसी ,जर्मन ,स्वीडिश ,पुर्तगाली और डच के लोग समान रूप से करते हैं ..

इस तरह यूँ शुरू हुआ अक्षरो का सफ़र और अपनी बात हर तक पहुंचाने का माध्यम बन गया ..आज इन्हों अक्षर की बदौलत हम न जाने कितनी नयी बाते सीख पाते हैं ,बोल पाते हैं दुनिया को जान पाते हैं ..रोचक है न यह जानकारी
आपको कैसी लगी यह बताये तो :)

Monday, July 29, 2013

नए सपने

बदमाश मौसम
...........सावन भादों
बदतमीज बरसती थमती
.............बारिश
नालायक कमबख्त दिल की
..........गुस्ताखियाँ
बहकती आँखों के
...........बेसबब इशारे
तेज तूफ़ान हवाओं के साथ
...........थिरकते बहकते उड़ते मन
पुराने संगीत की धुन पर
............बुन रहे हैं ज़िन्दगी की नयी परिभाषा ,

.ज़िन्दगी यूँ ही रोज़ बदलती है नए रंग ..और खुली आँखों से बुनते हैं न जाने कितने दिल नए सपने इसके रंग  में .....# रंजू ...

Friday, July 26, 2013

"हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह"मुंबई यात्रा भाग ४

"हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफिर की तरह"मुंबई यात्रा लिखे जाने के अब अंतिम  पडाव  पर है  अब तक के लिखे का  मुंबई की बारिश की तरह पढने वालों का रुझान भी ऊपर नीचे ग्राफ में शो होता रहा …इस लिए शोर्ट फॉर्म अपनाते हुए इस में मुंबई की बारिश का जिक्र और मुंबई से लोनावाला रास्ते की खूबसूरती देखते ही बनती है इसको पूना मुंबई का मुख्य प्रवेश दरवाज़ा  भी कह सकते हैं  बरसात के मौसम में इसकी खूबसूरती अक कोई जवाब नहीं !!!और रास्ते  में  मिलने वाले पुलिस वाले अपनी जुगाड़ की जुगत में कई तरह के टैक्स  वसूलते हुए मिले का कोई तोड़ नहीं :) ! लोनावाला महाराष्‍ट्र का एक हिल स्‍टेशन है।रस्ते भर में मिलने वाले बरसाती झरनों और सुरंगों  मन मोह लिया ।और वहां पहुँच कर जो मौसम का नजारा दिखा  उसको शब्दों में ब्यान करना मुश्किल है …।बाद्लो पर   हम थे या बीच में कहीं गुम थे वो शब्द ब्यान  नहीं कर सकते हैं बारिश के ठन्डे मिजाज में बादलों की आवाजाही कमाल थी और उस पर  गर्म गर्म कई तरह के पकोड़े उफ़ लाजवाब थे :) हमेशा याद रहने वाले जगह में से एक है यह जगह ज़िन्दगी भर … अगले दिन एलिफेंटा केव्स देखने का प्रोग्राम  तेज धूप में स्टीमर पर ऊपर बैठने का मंजर भी कभी भूला नहीं  जा सकता है  एक घंटे का सफ़र राम राम करके पूरा हुआ …और वहां पहुंचते  ही तेज बारिश शुरू हो गयी स्टीमर से उतरते ही टॉय ट्रेन में बैठने के मोह से कोई बच नहीं पाया और छुक छुक करती उस ट्रेन में मस्ती करते हुए जाना कैसे भुला जा सकता है :) और  पर एक सौ  बीस सीढियां वो भी तेज बरसात में भी नहीं भुला जा सकता :) अरब सागर के टापू पर स्थित एलिफेंटा में कुल सात गुफाएं हैं जिनमे पांच हिन्दू और दो बौद्ध हैं। बड़ी ही खूबसूरती से   पत्थर पर  शिव की नौ मूर्तियाँ बनी हुई है  जिनमे शिव के अलग अलग तरह के रूप और मुद्राओं को दर्शाया गया है।ब्रह्मा विष्णु महेश की त्रिमूर्ति तो देखने लायक है । शिव पार्वती की शादी से ले कर चौपड़ खेलने की बात और  पंचपरमेश्वर और अर्धनारीश्वर रूप को वहां गाइड ने बहुत ही रोचक ढंग से ब्यान किया अच्छा रहा यह मुंबई का सफ़र खाने पीने की मस्ती से लेकर कार में और वहां रहने वाली अपनी कजन सिस्टर की बेटी की मदद से लगता है हमने मुम्बई की हर सड़क को देख लिया ।हर अंदाज़ में मुंबई बिंदास लगी बारिश है तो वो भी  बिंदास अभी तेज धूप है तो अभी तेज बारिश जैसे सब कुछ डूब जाएगा …।अपने अंदाज़ में बरसती  यह बारिश वाकई कमाल थी ।और मुंबई भी ……दिल्ली और मुम्बई के बारे में अंतर करने लगे तो वह बहुत मुनासिब नहीं होगा ..हर शहर हर शख्स की तरह खुद में बुराई अच्छाई लिए हुए है ......और दोनों में वही बुराई भी और अच्छाई भी ......पानी का समुन्दर मुंबई के पास है तो भीड़ का समुन्दर दोनों शहरो के पास ......दिल्ली में भी धीरे धीरे खुद में मस्त रहने की आदत पनपती जा रही है ....पर फिर भी अभी खत्म नहीं हुई ....और भी बहुत कुछ जिसे वहां जा कर खुद ही महसूस किया जा सकता है और समझा जा सकता है ....अभी इतना ही ..शिव कुमार बटालवी की दो पंक्तियाँ याद आरही है .......यादों की एक भीड़ मेरे साथ छोड़ कर,क्या जाने वो कहाँ मेरी तन्हाई ले गया|.सफ़र खत्म  हो जाते हैं वहां से आने के बाद पर उसकी यादे उसी सफ़र में डूबी रहती है और कहती है कभी अपने किसी लेख में या कभी अपनी किसी कविता के माध्यम से ….वहां के कुछ शब्द रास्ता पूछने पर ।इधर से कट मारो उधर से कट मारो …सो मिलते हैं इसी तरह कोई और शहर के बारे में कट मारते हुए :)और मुंबई की बारिश पर अपनी लिखी कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है .............
देख के सावन झूमे है मन
दिल क्यूँ बहका लहका जाए
बादल की अठखेलियाँ
बारिश की बूदें
मिल के दिल में
 उत्पात मचाए

भीगे मन और तन दोनो
ताल-तलैया डुबो जाए
देख के सब तरफ हरियाली
मयूर सा दिल नाचा जाए
यात्रा समाप्त .....अगले किसी शहर की महक ले कर फिर से मुलाकात होगी आपसे ..शुक्रिया उन सभी दोस्तों का जो इस मुंबई लेखन यात्रा  के  सफ़र में हमसफर बन कर पढ़ते रहे ...:)

Wednesday, July 24, 2013

फुहारें कुछ यूँ ही

फुहारें कुछ यूँ ही

आसमान के तन पर
छिटके हुए बादल के टुकड़े
"उम्मीद" से हैं ....
और धरती पर
इन्तजार उसका
एक "शाही मेहमान "के
आगमन के इन्तजार सा है !!!

मुंबई जलमग्न है बारिश से और दिल्ली में इन्तजार है बरसने का ....और टीवी न्यूज़ है कि कल से नए शाही मेहमान(रॉयल बेबी ) के आने में पगलाई हुई है ..:)

भीगी मिटटी की गंध
थमी हुई  हवा
बरसती बूंदे
बोझिल साँसों
को कर देती हैं
और भी तन्हा
दिल में भरे गुबार को
आँखों से बरसने के लिए
किसी मौसम की भविष्यवाणी का
इन्तजार नहीं करना होता ...........

..सच है न ..? और कुछ फासले , कुछ फैसले किसी भविष्यवाणी के मोहताज नहीं होते ...रंजू भाटिया
 

Monday, July 22, 2013

बिंदास मुम्बई भाग ३


 मुंबई की दूसरी किश्त में बात थी वहां के बने  मकान बिल्डिंग मेरी नजर से ...वही बात जो जहाँ रहता है उस को वही जगह पसंद है ..बदलाव बहुत कम लोग झेल पाते हैं और जो झेल लेते हैं वह जीवन में बहुत सुखी रहते हैं ..:) जुहू बीच पर गुटका बेचने वाले (कोई मेहता या माणिक चंद )कुछ नाम साफ़ नहीं हुआ का महल नुमा बंगला देखा और उसी की दिवार से लगे ठेले पर कई तरह के दोसे खाए । उसके दूसरी तरफ गोदरेज का महल था हरे बड़े बड़े चिक या पर्दो से ढका  हुआ । जुहू समुन्दर का किनारा कूड़े के ढेर में तब्दील था पर इस पर बने बंगलों पर रहने वालों की अपनी ही दुनिया थी ...घर के पीछे की दिवार पर क्या नजारा है कौन देखे ..खिड़की से दिखने वाला समुन्द्र तो अपनी लहरों से लुभा ही लेता है न :) वैसे यहाँ के मशहूर जगह के बारे में  सब जानते हैं और सबको भाते भी हैं .जुहू  ,चौपाटी ,गेटवे ऑफ इंडिया ,होटल ताज .. सब देखा ..कुछ याद भी था हल्का सा और  जो सबसे अधिक याद था वो था एलिफेंटा  केव्स देखना वहां जाने के इरादा तो मन ने ठान ही लिया था ...क्यों कि बच्चे साथ होने के कारण सिर्फ हीरो हिरोइन के घर देखने में अधिक रूचि  रख रहे थे । पहले दिन की टैक्सी में तो पूरा दिन और आधी रात इसी कार्य को समर्पित  कर दिया गया ..हाजी अली भी दूर से देखा बारिश बहुत तेज थी तय हुआ कि  आते हुए जाया जाएगा पहले अभिताभ बच्चन का घर .देखना उन्हें अधिक सही लग रहा था :) बच्चे हैं माननी पड़ी उनकी बात ...जलसा .प्रतीक्षा बाहर से न सिर्फ देखे गए वरन उनके बाहर खड़े गार्ड से पूरे  परिवार की  जानकारी भी ली गयी ..जैसे हम  लोग उनके घर आमंत्रित थे और अफ़सोस कि  वह लोग घर पर नहीं थे ..:) यह बात और है कि  हर बड़े एक्टर के गार्ड ने यही कहा वह घर पर नहीं चाहे शाहरुख खान के गार्ड हो या सलमान खान के ..:) किसी के घर महल और सलमान के घर को देख कर निराश हुए :) अब पूछे कोई इन  बच्चो से कि क्या ख़ास बात है उनके रहने में ...कमाते हैं इतना तो रहेंगे भी वैसे " यार रहने दो वह भी इंसान है जैसे हम रहते हैं वैसे वह भी ..:) पर याद आया कि  हम भी कभी उम्र के इसी दौर से गुजरे हैं :) वह दिन तो लगता है इसी कार्य के लिए था ..दो कार में थे सब लोग ...घूमते जा रहे हैं ..भाई किस तरफ जाना है कोई पता नहीं आगे वाली कार में बच्चे थे सभी और हम बड़े  पीछे उनको फालो कर रहे थे ..पाली हिल एरिया में ही थे और जब कार रुकी तो सामने राजकपूर का कृष्णा राज बंगला था उफ्फ्फ बच्चे रणधीर कपूर को देखने के लालच में फ़ोन से उनेक घर का रास्ता तलाशते हुए वहां पहुचं ही गए ...सही कहूँ तो लालच तो था हमें भी था इस जगह को देखने का ..अभी वहां से बाहर खड़े उनके बंगले को देख ही रहे थे और बच्चो के पूछने पर की घर पर कोई नहीं है गार्ड्स का रटा रटाया जवाब सुन कर वापिस होने को ही थे कि  गेट खुला और  सामने की आती गाडी में रणधीर कपूर दिखा !वावो था!!! लो जी हो गयी मुंबई यात्रा सफल :) उस से पहले जुहू पर घूमते हुए एक बड़ा सा डॉग देखा था वहां बैठे नारियल वाले ने बताया था कि  यह एक्टर गोविंदा का डॉग है रोज़ शाम को घुमने आता है यहाँ :) तो बच्चे कह रहे थे कि  दिल्ली जा कर क्या कहेंगे की वहां देखा तो क्या देखा सिर्फ गोविंदा का डॉग चलो जी बच्चो की मुराद के साथ हमारे दिल को ठंडक मिल ही गयी आखिर :) ...उस वक़्त  आठ बजे थे मुंबई में देर रात का कोई पंगा तो देखा नहीं था सो नरीमन पॉइंट पर जा का बैठा गया और वहीँ  बैठ कर समुंदरी ठंडी हवा में चाय काफी भुट्टे का आनंद लिया गया सबसे बढ़िया समुद्नर का किनारा वही लगा मुझे तो ..मौज में आये तो ऊँचे सुर में गाना शुरू कर दिया ..मुंबई वाले शायद दिल्ली की इस बिंदास अदा  से हैरान हुए सो कुछ देर बाद देखा की भरा होने के बावजूद हमारे  आस पास खाली एरिया था इतना कि हम वहीँ पैर फैला कर लेट गए :) सुर -  ताल से क्या लेना दिल की मौज है जब आई तभी बह लिए गानों में ..जगह तो मिली भरपूर :)वहीँ बैठ कर अगले दिन का कार्यक्रम बनाया गया कि एलिफेंटा केव्स जरुर देखी जायेगी इस में भी दो लालच थे एक तो बच्चो ने समुन्दर में बोट में सैर की थी जो बारिश आने के  कारण बहुत रोमंचक लगी थी तेज बारिश में बोट के उपरी हिस्से में बैठा जाना कभी भूल नहीं पाउंगी ..क्या नजारा था ..पानी ही पानी .समुन्दर की लहरों का पानी ऊपर से तेज बरसता पानी ..और क्या चाहिये था खुश होने के लिए :) और दूसरा वह ही कुछ याद था बाकी मुंबई भूल रहा था और अधिक बदलाव भी नहीं लगा था .वही भगम भाग वही  अपने से ही मतलब ..कोई किसी से कोई न वास्ता रखने वाला अपनी दुनिया में कहीं लॉस्ट ..वैसे यह बात मुंबई की पसंद भी आई ..आस पास कुछ भी हो ..कूड़ा है बिल्डिंग है ..जाम है भागमभाग  है ........साइड में लिखा है बोर्ड पर "यहाँ पर गलत हरकत करने पर जुर्माना किया जाएगा" पर परवाह किसे है  और इस लिए फिर भी शायद वहां की हवा में रोमांच है रोमांस है ..खुलापन है ..कोई कुछ भी कैसे भी है किसी का ध्यान नहीं ..बस अपनी दुनिया अपनी सपनो की रूमानियत ..युवा .अधेड़ ,उम्र का कोई लेना देना नहीं इस रोमांस से सब कोई अपनी ही रूमानियत में ..बहन ने  कहा भी बच्चे तो बच्चे ....बाप रे बाप !!!  ..या वहां दिल्ली के मुकाबले रोमांस की जगह बहुत है:) ....दूर दूर तक फैला समुन्दर का किनारा ..और वह नमकीन हवा  या तो तेजी से असर करती है या यहाँ की मस्त रहने की वजह इसका कारण है | दिल्ली में इतना खुलापन नहीं है ..यहाँ की हर हरकत पर नजर रहती है आने जाने वालों की । लोदी गार्डन .हुमायूं  टॉम्ब .इंडिया गेट आदि जगह पर जोड़े डरे सहमे से बैठे हुए दिखते हैं कुछ पुलिस  की तेज नजर और  कुछ आने  जाने वाले यूँ घूरेंगे कि  इश्क भी तोबा कर उठे :) पर मुंबई वाकई बिंदास है ..हर शहर का अपना यही अंदाज़ उसको दसरे शहर से जुदा कर देता है ...
मुंबई की बात हो और "सी लिंक "की बात न हो तो थोड़ी गलत बात है ..इंसान का बनाया एक खूबसूरत   अजूबा जो अपनी सुन्दरता और बनावट से वाकई दिल मोह लेता है...उस पर जाना वो भी बारिश के मौसम में जन्नत सा महसूस करवा देता है । मुंबई की समुद्नर की लहरों को देखना और उनसे बाते करना मेरा प्रिय शगल रहा .बहुत लकी है मुंबई वाले कि  उनके पास समुन्दर है .:)वहां की फेमस खाऊ  गली से मुंबई के फेमस स्ट्रीट फ़ूड खा कर और कई तरह के शेक पी कर ख़ुशी हुई ..मुंबई खाने पीने के मामले में दिल्ली से सस्ता है ..यहाँ आराम से कम रकम में बड़ा पाव  खा कर पेट भरा जा सकता है शायद यही कारण है की मुंबई के बारे में सही कहा जाता है यहाँ जो भी आता है वह भूखा नहीं सोता ....और साथ ही बीतती शाम के साथ आती है याद यह खूबसूरत गजल तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे ......मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे...........

,,अगले अंक में जारी है एलिफेंटा केव्स और लोनावाला की मुंबई से वहां तक जाने वाले   सुन्दर रास्ते  की बात ................

Wednesday, July 17, 2013

मुंबई शहर के रंग मेरे नजरिये से (भाग २ )

वाह "मुंबई दर्शन भाग एक "के बहुत से कमेंट आ गए .. आपके सबके दिए कमेंट भी जैसे इस यात्रा का यादगार हिस्सा बन गए हैं ..मुंबई वाकई सपनों का शहर है और सबके अपने नजरिये अपने ख्याल और अपनी बातें हैं उस पर ....... ..मुंबई वाकई मुंबई है सही कहा अरविन्द जी ने की यह स्वर्ग भी है और नरक भी ...आशीष जी के अनुसार रूखे सूखे लोग यहीं होते हैं ..रश्मि जी अनु ने भी यही कहा ..पर रश्मि जी की बात से कुछ सहमत नहीं हो पायी की मदद करते हैं ..शायद यह तभी संभव होता यदि हम वहां अधिक दिन रहते ..अभी तो सिर्फ एक पर्यटक के तौर पर जाना हुआ ...सो यही अनुभव रहा बाकी भी जिन लोगों ने इस कड़ी को पढ़ कर अपनी राय दी ..आमची मुंबई के बारे में वह बहुत ही बढ़िया लगी तहे दिल से शुक्रिया और इसी आपके स्नेह को ले कर चलते हैं चलिए आगे की यात्रा पर .......

अभी जैसा की कहा दूसरी बार जाना हुआ  अब ..जब छोटी बहन के पतिदेव मुंबई में पोस्टेड है ..उनका  घर मुंबई की सबसे आलिशान जगह पर हीरानंदानी पवई लेक के पास ही है यही लालच और बहन के कहे से फिर से मुंबई जाने का दिल बना लिया । बारिश के मौसम में मुंबई देखने का एक सपना था ..पिक्चर में सुना गया डायलाग जहन में था मुंबई देखनी हो तो बारिश में आये तब यह अपने  ही अलग रंग में होती है । तो यह रंग जब वक़्त ने दिखाने का इरादा किया तो राजधानी एक्प्रेस से पहुचं गए मुंबई ..आप सोचे चाहे कुछ भी पर कहीं का भी दाना पानी आपको बुला ही लेता है ...अँधेरी स्टेशन उतरते ही रिमझिम तेज बारिश ने स्वागत किया और नमकीन हवा साँसों में धुलने लगी ..। स्टेशन का वही हाल था जो पीछे राजधानी पर चलते वक़्त दिल्ली निजामुद्दीन में गंदगी देख कर आये थे ...यह बात कभी समझ नहीं आई कि इतना भारी बजट का शोर मचाने वाला रेल मंत्रालय क्यों सफाई नहीं रख पाता कुछ हम आप लोगों की भी जिम्मेवारी बनती है ..पर वही खुद से ही बहाना है कि इतनी पब्लिक है इतनी जनसँख्या और आम लोगों के सफ़र की जगह ..आखिर कैसे साफ़ रहे ...जैसे तैसे भीड़ से बचाते हुए स्टेशन से बाहर आये तो एक लम्बी सी लाइन लोगों की दिखाई दी ...उस दिन मुंबई में ऑटो रिक्शा की  स्ट्राइक थी ..लगा टैक्सी के लिए यह लाइन लगी है ..क्यों की हमने भी टैक्सी लेनी थी ..और पता नहीं था की वहां से किस तरफ कैसे जाना है ..बाद में पता करने पर यह लाइन बेस्ट बस के लिए थी ..अच्छा लगा देख कर .."दिल्ली में कहाँ कोई लाइन का पालन करता है ?"...बड़े लोगों ने कहा .बच्चों ने बहस की नहीं जी "मेट्रो के लिए दिल्ली के लोग पंक्तिबद्ध होते हैं" ..खैर बहस को वही छोड़ कर टैक्सी से वहां तक ३५० में जाना तय किया गया ...पहले ३०० रूपये और जब तक हम फ़ोन कर के बहन से सही पैसे जाने के पूछते तब तक वह ३५० पर पहुँच चूका था ..उधर से बारिश जोर पकड रही थी ..सो बैठ गए और चल पड़े सपनो की नगरी को बारिश में भीगते हुए देखते हुए ..। हर शहर की अपनी एक महक होती है ..और यह आपके ऊपर है कि  वह गंध  आपको पसंद है या नहीं ..खैर मुझे थोडा वक़्त लगा इस गंध  को अपनाने में :) बारिश के पानी से भरी टूटी सड़कों से ग्रस्त और भारी ट्रैफिक जाम से पस्त फिर भी भीगा-भीगा सा भागता सा मुंबई। न रुकने की कसम खाया हुआ ही लगा ठीक पिछली बार इस शहर से हुई मुलाकात  की तरह । हाई वे पर पहुच कर मुंबई के पहाड़ दिखे और उसकी तलहटी में बसी  पवई लेक |यही पर बने हुए पवई लेक से कुछ दूर हीरानंदानी गार्डन्स और उस में बने आलिशान फ्लेट्स के उस इलाके की मुंबई को भी देखा इस बार। हरे-हरे पहाड़ों की तलहटी में सुंदर सुंदर मकान, बेहद सुंदर सी सड़कें, मुंबई के सबसे खूबसूरत और सबसे महंगे इलाकों में से एक है ये जगह। अचानक लगता है जैसे किसी बाहर के देश में आ गए हैं ..बहन ने कहा भी दीदी सिंगापुर भी इसके आगे फीका है .आलीशान फ्लैट्स ऊपर बने नीले गुम्बद वाकई दिल मोह गए बस दिल किए जा रहा था कि बरसती बारिश में जंगले लगे बालकनी से बस यही नजारा देखते रहे बहते रहे इस मौसम की हवा में बस यही गड़बड़ थी की कहीं भी वहां से जाने के लिए कम से कम दो तीन घंटे  लग जाते थे ..और इस स्वर्गिक जगह से निकलते ही जैसे किसी नरक के द्वार के दर्शन होने लगते थे .अधिकतर .काले काले बिल्डिंग में बसे घर .या हमारे जाने वाले रास्ते में वही दिखाई देते थे ...नीले प्लास्टिक से ढकी झोपड़ियां और काले अजीब से पुराने घर क्यों हैं वहां ...समुंदरी हवा के कारण शायद ? तो क्या कोई ऐसे पेंट नहीं है जो इसको सही हालात में रख सके ...? या जो नए बन रहे हैं जो अभी बढ़िया हालत में दिखे वो भी ऐसे हो जायंगे ? काले रंग और उस पर बनी टेढ़ी मेढ़ी सर्पाकार लाइन खिंची हुई होने की वजह बहुत दिमाग लगाने पर भी समझ नहीं आई ..आख़िर में हार कर ऑटो वाले से पूछा तो जवाब मिला ऐसेच ही होता है :) और हर जगह नजर आता तो सिर्फ कूड़ा प्लास्टिक और गंदगी के ढेर .. और एक अजीब सी गंध  नमकीन सी या  न जाने कौन सी ...पवई लेक दूर से बहुत सुन्दर लगी पर पास आने पर वही कूड़े से अटे हुए किनारे और उसी पानी में मछली  पकड़ कर वहीँ बेचते लोग जो जगह जगह झुण्ड बना के मशगूल थे अपने कार्य में .. शर्तिया जब पवई लेक बनायी गयी होगी तब उसकी सुन्दरता बहुत स्वर्गिक रही होगी ..पर अब वहां किनारे पर कूड़ा ही कूड़ा नजर आया ..शायद लोगों को सुन्दरता पसंद नहीं ..इस मामले में दिल्ली भी कम नहीं ..पर वहां जा कर न जाने क्यों दिल्ली अधिक साफ सुथरी लगी :)
वहां से जितनी बार क्रॉस किया बांद्रा या जुहू जाने के लिए ...कमाल अमरोही स्टूडियो बड़े बड़े पेड़ों और बड़े बंद गेट के पीछे दिखता रहा और यही विचार आता रहा कि कभी यहाँ कितनी शूटिंग होती होगी
..इन के बगीचे में लगे बड़े ऊँचे पेड़ों ने मीना कुमारी को देखा तो होगा .यहाँ के बगीचों पर चली भी होंगी अपने उन्ही नाजुक पेरों से ...न जाने कितने किस्से उन हवाओं में उस दीवारों में अभी भी वक़्त बे वक़्त महक जाते होंगे ....उत्सुकता बहुत थी की काश देख पाती उस जगह को पर इत्ता आसान थोड़े न है ........अभी तो वहां कोई शूटिंग होती भी है या नहीं पता नहीं चल पाया (वहां रहने वाले इस बारे में बता सकते हैं कुछ )....यह मुख्य फर्क था हीरानंदानी और आगे क्रॉस करते हुए मुंबई शहर के फ्लेट्स में....जो अपने बने तरीके से इसको दर्शा रहा था ...जारी है यह यात्रा अभी ....







Monday, July 15, 2013

मुंबई सपनो का शहर मेरी नजर से ......1

मुंबई सपनो का शहर माना जाता है ..वह सपने जो जागती आँखों से देखे जाते हैं ..और बंद पलकों में भी अपनी कशिश जारी रखते हैं ..पर सपना ही तो है जो टूट जाता है ...यही लगा मुझे मुंबई शहर दो बार में देख कर ........
..हम्म शायद मुंबई वाले मुझसे इस कथन पर नाराज हो जाएँ ..हम जिस शहर में रहते हैं वही उसकी आदत हो जाती है .दूसरा शहर तभी आकर्षित करता है जब वह अपनी उसकी सपने की जगमग लिए हो | हर शहर को पहचान वहां के लोग और वहां बनी ख़ास चीजे देती हैं | और मुख्य रूप से सब उनके बारे में जानते भी हैं ..जैसे मुंबई के बारे में बात हो तो वहां का गेट वे ऑफ इंडिया और समुंदर नज़रों के सामने घूम जायेंगे | उनके बारे में बहुत से लोग लिखते हैं और वह सब अपनी ही नजर से देखते भी हैं ...और वही नजर आपकी यात्रा को ख़ास बना देती है | किसी भी शहर को जानना एक रोचक अनुभव होता है ..ठीक एक उस किताब सा जो हर मोड़ पर एक रोमांच बनाए रखती है और मुंबई के समुन्दर में तो हर लहर में यह बात लागू होती है ..कि लोगो की भीड़ की लहर बड़ी व तेज रफ़्तार से भाग रही है  या समुन्दर की लहरे तेजी से आपको खुद में   समेट रहीं है |..
 मैं अभी हाल में ही मैं दूसरी बार मुंबई गयी .पहली बार ठीक शादी के बाद जाना हुआ था .तब उम्र छोटी थी और वो आँखों में खिली धूप से सपने देखने की उम्र थी जम्मू शहर से शादी दिल्ली में हुई थी और उस वक़्त मनोरंजन का जरिया बहुधा फिल्म देखना होता था ..कोई भी कैसी भी बस फिल्म लगी नहीं और टिकट ले कर सिनेमा हाल में ..लाजमी था जब इतनी फिल्मे देखी जाती थी तो उस वक़्त नायक नायिका ही जिंदगी के मॉडल थे ..खुद को भी किसी फिल्म की नखरीली हिरोइन से कम नहीं समझा करते थे ..और नयी नयी शादी फिर उसी वक़्त मुंबई जाना एक सपने के सच होने जैसा था ..पर वहां पहुँचते ही ऐसे वाक्यात और ऐसी भागमभाग देखी कि  तोबा  की वापस कभी इस नगरी में न आयेंगे ..जम्मू स्लो सीधा सा शहर दिल्ली में रहने की आदत मुंबई के तेज रफ़्तार से वाकई घबरा गयी ..लोकल पर भाग कर चढना और बेस्ट बस के भीड़ के वह नज़ारे कभी भूल नहीं पायी ..तीस साल के अरसे में ..याद रहा तो सिर्फ एलिफेंटा केव्स और जुहू चौपाटी पर घूमना ( तब वह कुछ साफ़ सा था ) खैर वह किस्से तो  फिर कभी ..चर्च गेट के किसी रेस्ट हाउस में ठहरे थे ..अधिक दिन नहीं थे सिर्फ पांच दिन .जिस में एक दिन ससुर जी के किसी दोस्त के यहाँ लंच था ..लोकल ट्रेन पकड कर टाइम पर आने का हुक्म था और वहां अधिक जान पहचान न होने के कारण मुश्किल से सिर्फ खाना खाने जितना समय बिताया और यह मन में बस गया की मुंबई के लोग बहुत रूखे किस्म के होते हैं ..वरना नयी नवेली दुल्हन घर आये खाने पर और उसके कपड़ों की गहनों की ( जो सासू माँ ने सिर्फ वही पहन कर जाने की ताकीद की थी बाकी घूमते वक़्त पहनना मना था ) क्या फायदा कोई बात ही न करें और तो और घर के लोगों के बारे में भी अधिक न पूछे ...दिल्ली वाले तो खोद खोद के एक पीढ़ी पीछे तक की बात पूछ डालते हैं .:) सो अधिक सोच विचार में समय नष्ट नहीं किया और यही सोच के दिल को तस्सली दी खुद ही "कौन से रिश्ते दार थे जो अधिक पूछते :) पर वही अपने में मस्त रहने वाली आदत इस बार भी दिखी ...एक वहां के मित्र से वापस आने पर कहा कि आपका शहर पसंद नहीं आया ..तो जवाब मिला ." हाँ लगता है कि आपको साफ़ बात बोलने वाले लोग पसंद नहीं अधिक ":) मैंने कहा साफ़ बोलने वाले लोग तो पसंद है पर उन लोगों में शहर को साफ़ रखने की भी तो आदत होनी चाहिए ..:)







जारी है आगे ...............

Friday, July 12, 2013

बेबाक आत्मकथा

इंसानों की भीड़ के झुण्ड में
कुछ अलग सी  पहचान लिए
होंठ कुछ अधिक लालिमा लिए
चेहरे पर पुता हुआ एक्स्ट्रा मेकअप
नजरों के इशारे .......................
काजल से अधिक चमक कर बातें कर रहे थे
अजब अंदाज़ से हिलते हाथ पांव और उसके खड़े होने का अंदाज़
जैसे किसी कला की नुमाइश करता लग रहा था (मज़बूरी से भरा था )
खिलखिला के हँसना बेमतलब था ( पर लग नहीं रहा था )
कोने के दबा कर कभी होंठ कभी नखरा दिखा कर (किसी रंगमंच सी कठपुतली सा था )
बहुत कोशिश थी उन उदासी .उन चिंताओं को भुलाने की
जो घर से चलते  वक़्त बीमार बच्चे के पीलेपन में दबा आई थी
सिमटे हुए बालों में गजरा लगा कर
समेट  ली थी उसने शायद अपनी सभी चिंताएं ( क्यों कि यह अभी कारोबार का वक़्त था )
 वो बाजार में थी अपने जिस्म  का सौदा करने के लिए
पर ....क्या वो इतनी ही अलग थी ?
उसके हंसने मुस्कराने की जिद
ठीक उसी एक ब्याहता या आम औरत सी ही तो थी ....
जो किसी भी हालत में जानती थी
यही अदा यही जलवे उस "आदम भूख "पर भारी होंगे
जो उसके बच्चो की आँखों  में सुबह दिखी थी .............रंजू भाटिया


अभी कुछ दिन पहले  नलिनी जमीला की किताब "एक सेक्स वर्कर की आत्मकथा" पढ़ कर यही भाव दिल से निकले।   हाल ही में हिन्दी में प्रकाशित  'एक ही पुस्तक है नलिनी जमीला की और यह है उनकी अपनी कहानी, उन्हीं की जुबानी। पुस्तक के रूप में मलयालम में यह पहली बार प्रकाशित हुई, और सौ दिन के अन्दर ही इसके छह संस्करण प्रकाशित हो गए। अब तक अंग्रेजी और अन्य कई भाषाओं  में यह प्रकाशित हो चुकी है। शायद ही कभी किसी सैक्स वर्कर ने अपने जीवन की कहानी इतने बेझिझक और बेबाक तरीके से कही हो। एक बेटी,पत्नी , माँ, व्यावसायिक महिला और सोशल  वर्कर और साथ में सैक्स वर्कर भी हैं और ये उनके सभी पहलु इस आत्मकथा में उभर कर आते हैं।
यह आत्मकथा कभी रूलाती है तो कभी हँसाती है और कभी अपने दर्दनाक सच से झकझोर कर रख देती है। मज़बूरी में किया गया यह कार्य केरल में बसी सेक्स वर्कर के दर्द को बखूबी ब्यान करता है । इस तरह का कार्य कोई अपनी  मर्ज़ी से नहीं करना चाहता हालात किस तरह से इस   को करने के लिए बेबस कर   जाते हैं यह उनकी इस आत्मकथा में ब्यान हुआ है। बाद में उन्होंने इस में एक संगठन ज्वालमुखी से जुड़ कर भी   के कार्य किया  वह भी  इस में ब्यान है । दर्दनाक है सब पढना पर कुछ भाषा मे अनुवादित होने के कारण कहीं कहीं बोझिल सी भी  लगती है पर फिर भी बहुत हिम्मत चाहिए अपनी इस आत्मकथा  को  लिखने के लिए जो नलिनी जमीला ने इसको लिख कर की है
बहुत मसाला या कोई बढ़ा चढ़ा कर इसको नहीं लिखा गया जो ज़िन्दगी ने रंग दिखाए इस राह पर चलते हुए वह ही उनकी कलम से लिखे गए हैं । बचपन में पढने की इच्छा लिए हुए ही कई काम करते हुए जैसे मिटटी ढोना आदि काम करने पढ़े फिर पैसे की जरुरत  आगे उसको इस राह पर  गयी साथ ही यह हमारे समाज  के उस पहलु भी दिखाती है जो एक तरह से हिप्पोक्रेट है । अपने आप को और अपनी बच्चो को जिंदा रखने के लिए वो हर काम करने की कोशिश में रहती है पर अंत में यह उसकी जीविका का साधन बन जाता है। एक सच्चाई से लिखी गयी यह एक बेबस बेबाक आत्मकथा है जो सच के कई पहलु से रूबरू करवाती है ।

Tuesday, July 09, 2013

ममता की छांव

माँ जो है .........
शब्दों का संसार रचा
हर शब्द का अर्थ नया बना
पर कोई शब्द
छू पाया
माँ शब्द की मिठास को

माँ जो है ......
संसार का सबसे मीठा शब्द
इस दुनिया को रचने वाले की
सबसे अनोखी और
आद्वितीय कृति

है यह प्यार का
गहरा सागर
जो हर लेता है
हर पीड़ा को
अपनी ही शीतलता से

इंसान तो क्या
स्वयंम विधाता
भी इसके मोह पाश से
बच पाये है
तभी तो इसकी
ममता की छांव में
सिमटने को
तरह तरह के रुप धर कर
यहाँ जन्म लेते आए हैं

रंजना [रंजू ] भाटिया

माँ ..की याद कहाँ भूली जा सकती है ...आज माँ की पुण्यतिथि पर

Friday, July 05, 2013

खेल


रेत के महल बना कर
उसको अपने सपनों से सजा कर
बच्चे यूँ ही
कितना प्यारा घर घर का
खेलते हैं खेल

फ़िर जब उनका भर जाता है दिल
तो यूँ ही जाते जाते एक पैर की ठोकर से
उसको गिरा के फ़िर से मिटटी में मिला देते हैं

तुम भी मुझे उन्ही बच्चो से दिखते हो "ईश्वर"
जो रचाते हो संसार को
और फ़िर ख़ुद ही उसका कर देते हो संहार
फ़िर एक बच्चे सा
उसको बिना किसी मोह के
बस बिखरते हुए देखते रहते हो .....उतराखंड की त्रासदी दिल की बेबसी को यूँ ही ब्यान कर गयी .

Tuesday, July 02, 2013

कुदरत

कहने करने की
हर हद टूट जाती
जो हर आती साँस
जिस्म से रूह जुदा कर जाती !!
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जो न होता कुदरत में
सूरज की ताप
और
बादलों की नमी का नजारा
धरती का आँचल
लगता बदरंग बेसहारा !!

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दिल में जलती
सूरज सी आग
नयनों में
टिप टिप करती
बरसात
कुदरत के रंग सी
यही प्रेम की सौगात !!
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कुछ बात बनी इन तीन क्षणिकाओं में क्या ? जो यूँ ही खिड़की से देखते हुए बादलो की आँख मिचोली देखते हुए लिखी गयी अभी अभी :) रंजू भाटिया