Friday, March 29, 2013

कहो सच है न ...:)

बुन नहीं सकते
एहसासों को
भावनाओं को
और ख्वाइशों को
किसी
कल पुर्जे से ,संबंधों से ...
क्यों कि
दिल के यह गीत
जो बुने जातें हैं रेशम से
किसी "जुलाहे सी रूह" से
वह अब भी
इस मशीनी युग में
किसी मशीन से बुनना
मुमकिन नहीं !!!

कहो सच है न ...:)

Monday, March 25, 2013

मन पखेरू उड़ चला है फिर (सुनीता शानू )

मन पखेरू उड़ चला है फिर (सुनीता शानू )



शब्द को मिलती गयीं
नव अर्थ की उंचाइयाँ
भाव पुष्पित हो गए
मिटने लगी तन्हाईयाँ
गीत में स्वर भर दिए हैं
प्यार के अलाप ने
मन पखेरू उड़ चला फिर
आसमाँ को नापने ...
सुनीता शानू का यह काव्य संग्रह अपनी पहली उड़ान में लिखे शब्दों के
माध्यम से दिल के हर गहराई में उतरना की कोशिश में है ....प्रेम से रची
इन रचनाओं में अधिकतर प्रेम भाव ही उपजा दिखाई देता है ..जो ज़िन्दगी से
मिलने पर कविता बन जाता है ..
तुमसे मिल कर ज़िन्दगी
बन गयी मैं एक कविता
और
मैं एक कलम
जो हर वक़्त
तुम्हारे प्यार की स्याही में
बनाती है तस्वीर तुम्हारी ..........
.दिल जब यूँ ही प्यार में पगा होता
है तो अपने एहसास को शब्दों में ढाल देता है ..मन का पंछी एक पेखुरु ही
तो है जो जहाँ तहां बिना लगाम के उड़ता रहता है ...सुनीता की कई रचनाये
बहुत प्रभवित करती है क्यों की यह सीधे दिल से लिखी गयी हैं ..
फेंक कर पत्थर जो मारा
तड़प उठी मौन लहरें
डूबने से डर रहे तुम
शांत मन की झील में !!...
यहाँ पर एक ख़ामोशी है लफ़्ज़ों की सतह पर जो बात
करती है ...श्याम सखा से बाते भी है इस उड़ते विचरते संग्रह में तो नारी
मन की व्यथा भी मुखुर हुई है लफ़्ज़ों में ..मैं अपना घर ढूंढ़ती  हूँ
रचना में हर नारी मन का सवाल है जो न जाने कितने युगों से है और हर लिखने
वाली नारी मन की कलम से लिख दिया जाता है ...
की बेटी तो पराई है
मगर माँ, सच बतला
घर कौन सा है अपना
जहाँ बेटी बस बेटी है
तभी से आज तक माम
मैं अपना घर  ढूंढ़ती हूँ
खबर दुनिया बदलने की .काम वाली बाई, माँ ,कन्यादान आदि रचनाये
अपनी बात
कहने में पूर्ण रूप से  सक्षम रही है ...
छोटी रचनाएं मुझे अधिक रूप से पसंद आई ..पहले वाली कुछ रचनाये कुछ भटकाव
लिए हैं ..पर आखिरी पेज पर लिखी रचनाये पूर्ण हैं ..बचपने से आगे जैसे एक
उम्र को जीने के अनुभव को लिए ...हुए जैसे
कुदरत के लिए भी सुनीता के दिल की कलम बोल उठती है “अमलतास” ओढ़ा दी चुनर
आदि रचनाये बहुत ही बढ़िया लगी इस सिलसिले में ..
कई कवितायें सुनीता की
कहानी जैसी लगी है मैंने चुना हर वो रास्ता /जो जाता था /तेरे घर की
ओर/परन्तु /आज तुम्ही ने अपना घर बदल लिया ..कम शब्दों में बहहुत सुन्दर
कहानी नजर आती है इस में ...
रचनाओं के बीच में बने चित्र बहुत मनमोहक है ..यह सुनीता के कलापक्ष को
दर्शाते हैं ...अभी यह पहला काव्य संग्रह है सुनीता का ..पर इस संग्रह के
शुरू से किया गया सफ़र जब जैसे पन्ना दर पन्ना आगे बढता है तो लगता है की
आगे आने वाला संग्रह निश्चित तौर पर बहुत बढ़िया होगा !
मन पखेरू फिर उड़ चला
रोक सकी न दीवारें
तुम बांधते रह गए
अशरीरी को सांकलों में !
दिल के लफ्ज़ हैं यह कोई इन्हें बाँध के रोक भी कैसे पायेगा ...जैसे इस
रचना के लिखे भाव बेहद सुन्दर है सच्चे हैं ..जीना चाहती थी मैं”
“दीमक भी पूरा नहीं चाटती
ज़िंदगी दरख्त की
फिर तुमने क्यों सोच लिया
कि मैं वजह बन जाऊँगी
तुम्हारी साँसों की घुटन
तुम्हारी परेशानी की
और तुम्हें तलाश करनी पड़ेगी वजहें
गोरख पांडॆ की डायरी या फिर
परवीन शाकिर के चुप हो जाने की।
ये सच है मैं जीना चाहती थी
तुमसे माँगी थी चंद सांसें-
वो भी उधार।“
सुनीता व्यंग ,लेख ओर हास्य रचनाये भी खूब लिखती है ..इस संग्रह में उनके
यह भाव नजर नहीं आये .उसके लिए उनसे आग्रह रहेगा की वह एक हास्य व्यंग पर
संग्रह लिखे ...नीले आवरण से सजा कवर पेज अपनी उड़ान लफ़्ज़ों के माध्यम से
बहुत हद तक सफल रहा है हिंद-युग्म से प्रकाशित इस पुस्तक का कवर पेज़ विजेन्द्र एस बिज़ ने तैयार किया है. ..आगे भी इन्तजार रहेगा इस मन के पखेरू की उड़ान का
..
जो दिल की गहराई में अपनी बात सफलता से कह सके ..चूँकि इस संग्रह के बारे में मैंने इसको होली के अवसर पर ही पोस्ट किया है ..तो उनके संग्रह के आखिरी पन्ने पर दोहे फागुन के मेरे साथ होली खेल गए ...आप सब भी रंग जाइये उनके लिखे इन दोहों में ..

फागुन आया झूम कर .ऋतु वसंत के साथ 
तन मन हर्षित कर रहे मोदक दोनों हाथ ........वाह वाह ..!! इस से अच्छा और क्या हो सकता है ..आया न मुहं में पानी .:)..अगला देखिये ..

मधुकर ले कर आगया , होंठो पर मकरंद 
गाल गुलाबी हो गए .हो गयी पलके बंद .....प्यार की मीठी फुहार से सरोबार है यह दोहा ..:)

गली गली रंगत भरी ,कली -कली सुकमार 
छली छली सी रह गयी ,भली भली सी नार ......छल गया मोहे कान्हा अपने ही किसी रंग से :)
 

तो आप सबको होली मुबारक ...:)
 
पुस्तक: "मन पखेरू उड़ चला फिर"
लेखिका: सुनीता शानू
प्रकाशक: हिंद-युग्म१, जियासराय, हौजखास, नई दिल्ली-110016
मूल्य: 195 रुपये मात्र















Thursday, March 21, 2013

मेरी पहली हवाई यात्रा और विशाखापट्टनम के यादगार लम्हे




मेरी पहली हवाई यात्रा और विशाखापट्टनम के यादगार लम्हे

इंसान की ख्वाइशें हर पल नयी होती रहती है ...कभी यह चाहिए कभी वह ..ऊपर उड़ते नील गगन में उड़ते उड़नखटोले को देख कर बैठने की  इच्छा हर दिल में होनी स्वाभविक है .सो मेरे दिल में भी थी ...कब दिन आएगा यह बात सोच में नहीं थी बस  जब वक़्त आएगा तो जाउंगी जरुर ...यही था दिमाग में और फिर वह दिन आ गया ..कुछ सपने बच्चे पूरे  करते हैं ..सो छोटी बेटी के साथ जाना हुआ विशाखापट्टनम  ..पहली हवाई यात्रा दिल में धुक धुक कैसे कहाँ जाना होगा ..बेटी अभ्यस्त थी हवाई यात्रा कि सो आराम से चली ....वहां जा कर जो भाग  दौड़ हुई  वह याद रहेगी :)भाग के प्लेन पकड़ने के चक्कर में हवाई अड्डा निहार ही नहीं पायी ...फिर चेकिंग ... और लास्ट में मिला अपना "स्पाइस जेट विमान" .."इसकी लाल ड्रेस में एयर होस्टेस एकदम लाल परी सी लग रही थी । दो दिन की यात्रा थी सो समान अधिक था नहीं ..खिड़की वाली सीट मिल गयी इस से अधिक और क्या चाहिए था ...बस इन्तजार था इसके उड़ने का और मन का बादलों को छूने का ..अपने एक मनपसन्द रंग अर्थ (धरती के सोंधे पन)  से दूसरे  मनपसन्द रंग नील गगन की नीली आभा को निहारने का .. दरवाज़े बंद हुए और एक एयर होस्टेस को कई तरह से मुसीबतों से बचने के नियम कानून ..हाथ को व्यायाम की  मुद्रा में हिलाते देखा ..कुछ समझ आया कुछ नहीं ...छोटे से सफ़र में यह बालाएं  सब कुछ समझाती  किसी नर्सरी स्कूल की मैडमें लगीं ...कम से कम मेरी जैसी पहली बार यात्रा करने वाली को तो :)
पहली उड़ान ...पहली बार उड़न खटोले पर बैठना अच्छा लगा .... — in Vizag, Andhra Pradesh.ड़ें
जहाज के बाहर का आसमान फैला हुआ विस्तृत अपार सा था । जहाज धीरे धीरे हिचकोले सा खाता हुआ बादलों के ऊपर आ गया था। और  बादल रुई के गोले, फ़ाहे, पहाड़ से लग रहे थे और कल्पना के घोड़े दौडाते हुए मैंने तो यही पर स्वर्ग में नाचती मेनका की भी कल्पना कर डाली :)जैसे इंद्र का दरबार है पूरा और सब हाथ बांधे खड़े नृत्य देख रहे हैं ........ और नीचे धरती  की हर चीज धीरे धीरे छोटी होते होते एकदम से अदृश्य हो गईं । बड़े बड़े शहर यूं नजर आए जैसे चींटी। नदियां, पहाड़, शहर, गांव सब एक ऊंचाई पर आने के बाद एकाकार हो गए ..:) यात्रा छोटी थी सो जल्द ही यह खत्म हो गयी ..बाहर आने पर वही चेकिंग और समुद्र की  नमकीन हवा ने स्वागत किया .विशाखापट्टनम  प्राचीन भूवैज्ञानिक चमत्कार, प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साथ  समय के साथ कदम रखने वाला शहर है, यह  अपने समृद्ध अतीत के संरक्षण के प्रति सजग भी हैऔर नए के प्रति उम्मीद भरा भी |  इस शहर के प्रमुख  उद्योग, जहाज निर्माण यार्ड, एक बड़ी तेल रिफाइनरी, एक विशाल इस्पात और बिजली संयंत्र  है। इसके सुंदर  घाट बंगाल की खाड़ी के नीले पानी पर एक जादू की दुनिया में पंहुचा  देते हैं और पहुँचते ही यह जैसे अपने आगोश में समेट लेते हैं
हमें रुकना था नोवाटेल  होटल विशाखापत्तनम, यह वरुण बीच के सामने हवाई अड्डे के करीब है, यहाँ के हर कमरे से समुन्द्र दिखायी देता है बंगाल की खाड़ी की  लहरें जैसे आपसे बात करती दिखती है  आधुनिक हर सुविधा से यह होटल जैसे आपको वहां पर रह जाने का निमंत्रण देता लगता है  , |

धरती क्षितिज ..यह भी भ्रम पर धरती से जुडा हुआ ...खिड़की से दिखता समुद्र और धरती का एक विहंगम दृश्य ...
— at Novotel Visakhapatnam Varun Beach.
होटल स्टाफ बहुत ही बढ़िया हेल्प करने वाला है और आप जैसा जो खाना चाहे वो वहां पर बने रेस्टोरेंट में खा सकते हैं ..बुफे सिस्टम मुझे वहां का बहुत बहुत अच्छा लगा ..शेफ ,स्टाफ इन सबकी जितनी तारीफ की जाए कम है ..

विशाखापत्तनम एक पर्यटक स्वर्ग जैसा  है! यहाँ के समुन्दर तट बहुत ही सुन्दर है .लाल रेतमिटटी में खिले फूल और हरियाली बरबस रोक लेती है |
लाल मिटटी का जादू बिखरा हुआ
.अछूते साफ़ पानी वाले समुन्दर तट जैसे दिल को अजीब सा सकून करवाते हैं ....समुन्दर किनारे बने हुए घर ..आधुनिक और पुराने दोनों का मिश्रण है ....भाग दौड़ से दूर शांत जगह वाकई कई बार वहां यही दिल हुआ कि काश यही रह पाते :)आदिवासी और नेवी हलचल में सिमटा यह शहर अपने में अनूठा है |
अरकु वेळी का मनमोहक रास्ता

देखने लायक यहाँ बहुत सी जगह हैं सबसे पहले हम गए आरकु वेळी  .. अरकु घाटी  यह हार्बर सिटी विशाखापट्टनम से 112 किमी दूर है। घाटी में फैली ऊंची नीची पहाडि़यों को देख कर लगता है जैसे वह कोई माला ले कर आपके स्वागत को आ गयी है काफी के पौधो से सजी इस अरकु घाटी की  सुन्दरता जैसे मन मोह लेती है |
कैप्शन अरकु वेळी जोड़ें
आदिवासी सहज लोग आपका दिल जीत लेते हैं  एकांतप्रिय पर्यटकों के लिए अरकु वैली सचमुच एक बहुत अच्छा पर्यटन स्थल है
इस घाटी में ही है   बोरा गुफाएं तेलुगु में बुर्रा का अर्थ है-'मस्तिष्क'. इसी शब्द का एक अर्थ यह भी है कि ज़मीन में गहरा खुदा हुआ.बोरा गुफाएं विशाखापत्तनम से 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं। ये ईस्टर्न घाट में दो वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई हैं। यह गुफाएं १५ करोड़ साल सालों पुरानी बताई जाती हैं.इन्हें विलियम किंग जोर्जे नमक एक अंग्रेज ने सन् १८०७ में खोज निकला था.|भूवैज्ञानिकों के शोध कहते हैं कि लाइमस्टोन की ये स्टैलक्लाइट व स्टैलग्माइट गुफाएं गोस्थनी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं। हालांकि अब नदी की मुख्य धारा गुफाओं से कुछ दूरी पर स्थित है लेकिन माना यही जाता है कि कुछ समय पहले यह नदी गुफाओं में से होकर और उससे भी पहले इनके ऊपर से होकर गुजरती थी।
नदी के पानी के प्रवाह से कालान्तर में लाइमस्टोन घुलता गया और गुफाएं बन गयीं। अब ये गुफाएं अराकू घाटी का प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।गुफाएं अन्दर से काफी बड़ी  हैं। उनके भीतर घूमना एक अदभुत अनुभव है। अंदर घुसकर वहां एक अलग ही दुनिया नजर आती है। कहीं आप रेंगते हुए मानों किसी सुरंग में घुस रहे होते हैं तो कहीं अचानक आप विशालकाय बीसियों फुट ऊंचे हॉल में आ खडे होते हैं। सबसे रोमांचक तो यह है कि गुफाओं में पानी के प्रवाह ने जमीन के भीतर ऐसी-ऐसी कलाकृतियां गढ दी हैं कि वे किसी उच्च कोटि के शिल्पकार की सदियों की मेहनत प्रतीत होती हैं।  कोई आकृति किसी जानवर के आकार जैसी दिखती है तो कहीं कोई किसी पक्षी जैसी नजर आती है।इतने शिल्प कि उन्हें नाम देते-देते आपकी कल्पनाशक्ति नए नाम देते देते थक जाए  | एक जगह तो चट्टानों में थोडी ऊंचाई पर प्राकृतिक शिवलिंग  बन गया है कि उसे बाकायदा लोहे की सीढियां लगाकर मंदिर का रूप दे दिया गया है। कहीं आपको जमीन को बांटती एक दरार भी नजर आ जायेगी तो कहीं आपको बडे-बडे खम्भे या फिर लम्बी लटकती जटाओं सरीखी चट्टानें मिल जायेंगी।

इन गुफाओं को खोजने की कहानी भी काफी रोचक है। पुरानी कहानी है कि उन्नीसवीं सदी के आखिरी सालों में निकट के गांव से एक गाय खो गयी। लोग उसे ढूंढने निकले और खोजते-खोजते पहाडियों में गुफाओं तक पहुंच गये। बताया जाता है कि गाय गुफा के ऊपर बने छेद से भीतर गिर गयी थी और फिर भीतर-भीतर होती हुई नदी के रास्ते बाहर निकल गई। गाय मिलने से ही नदी को भी "गोस्थनी" नाम दे दिया गया। बाद में किसी अंग्रेज भूशास्त्री ने गुफाओं का अध्ययन किया। इन्हें मौजूदा पहचान आजादी के बहुत बाद में मिली। अब ये देश की प्रमुख गुफाओं में से एक हैं।

 गुफा का प्रवेश द्वार काफी बड़ा  है। अंदर रौशनी की व्यवस्था है और गाइड भी उपलब्ध हैं जो अन्दर की सैर कराते हैं। गुफा का प्रबन्धन आन्ध्र प्रदेश पर्यटन विभाग के हाथों में है। आसपास खाने-पीने की पर्याप्त व्यवस्था है। अराकू होते हुए पहाडियों में यहां आने का रास्ता भी बडा मनोरम है। रास्ते में जगह जगह मिलता नारियल पानी और मक्की भुट्टा आपको सहज ही रोक लेंगे |गुफा के निकट तो रुकने की जगह नहीं लेकिन लगभग बीस किलोमीटर पहले अरकू घाटी में रुकने के लिये अच्छे होटल हैं।  अराकू घाटी में कुछ और स्थान हैं जो आप वहां देख सकते हैं

आंध्र प्रदेश के प्रमुख हिल स्टेशन अरकू का जनजातीय संग्रहालय देखने लायक है  यह संग्रहालय हालांकि बहुत बडा तो नहीं है, परन्तु सहज प्रवेश और बीच जगह पर  होने से यहां पर पर्यटन सीजन के दिनों में दिन भर मेला सा लगा रहता है। इसकी खासियत  अनूठा डिजाइन तो है ही साथ में इसमें आदिवासी जनजीवन की झलक का प्रस्तुतिकरण भी बेहद प्रभावी है। अपनी बात यह वहां बने शिल्प .कला मूर्ति के कारण समझा देता है | गोलाकार संरचना लिये यह संग्रहालय दो मंजिल का है। इसमें राज्य के आदिवासी  क्षेत्र के जनजीवन को दिखाया  गया है।

‘रामोजी फिल्म सिटी’। यहाँ इसका छोटा रूप बनाया गया है यहाँ फ़िल्मी हस्पताल जेल मार्किट आदि सब देखे जा सकते हैं| बहुत सी फिल्मों की शूटिंग यहाँ होती है | बहुत सारे फिल्मों के चित्र और कलाकारों के फोटो यहाँ देखने को मिले |ऋषि कोंडा बीच के पास ऊँची पहाड़ी पर बना खुद ही आपको बुलाता है

ऋषिकोंडा बीच आंध्र प्रदेश के सबसे सुंदर समुद्र तटों में से एक है ,यहाँ का पानी जैसे आपको बांध लेता है अभी अधिक पर्यटक न होने के कारण यह अभी साफ सुथरा है और कई तरह के समुन्द्र में खेले जाने वाले खेलों के लिए उपयुक्त है |

 विशाखा पट्टनम की  यह यात्रा मैंने पिछले साल फ़रवरी में की थी ..तब से इसको यूँ ही यादो में जी रही हूँ बहुत कुछ बता के भी अनकहा रह गया है ..तस्वीरों में सब याद सिमटी हुई है ..कैलाश हिल ,की वो उंचाई और वहां से समुद्र को निहारना अभी भी यादो में रोमांचित कर देता है ..एक बार मौका मिले तो फिर से जाना चाहूंगी वहां ..आखिर समुंदर की लहरे की  वहां से आती पुकार अनसुना नहीं किया जा सकता है न वो भी तब मुझे हर वक़्त यह लगता हो की वह लहरे मुझे बुला रही है ...:)
यूँ ही अपने ख़्यालो में देखा है
तेरी आँखो में प्यार का समुंदर
खोई सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की इबादत पढ़ती रही हूँ मैं......:)

Wednesday, March 20, 2013

सोचती हूँ एक सवाल

सोचती हूँ
एक सवाल बार बार
कि क्या
तब कोई चाहेगा मुझे ?
जब ...
आँखों पर छा जाएँगी
बीतती उम्र की परछाईयाँ..
उड़ान कह देगी
मेरे "सपनो के परों " को अलविदा
शब्द जो अभी पहचान है मेरी
रूठ जायेंगे मेरी कविताओं से
पड़ जायेगा रंग फीका
 मेरी लिखी श्याही का
तो क्या तब भी मेरे गीतों को
गुनगुनाएगा के दोहराएगा मुझे
सोच में हूँ क्या तब भी
कोई यूँ ही
चाहेगा मुझे :) !!

Tuesday, March 19, 2013

कुछ दोस्तों की कलम से ८

जब आज की युवा पीढ़ी भी हिंदी कविता को पसंद करती है तो लगता है हिंदी अभी जिंदा है ...बहुत ख़ुशी होती है इस तरह से पढ़े हुए पर लिखे को पढना ....

नितिन पारिक

Dear Mam
Reading your book "Kuch Meri Kalam Se" was a complete delight.
Your poems connect with the heart instantly. One of my personal favourite is "Ek Ghoont Mein" . You have penned down the moments of your life in a very subtle way...and that's the beauty of your poems.

Waiting for your next book!

Regards
नितिन   

शुक्रिया नितिन ...:)

Monday, March 18, 2013

सपनो का आकाश



मेरे दिल की ज़मीन को
सपनो का आकाश चाहिए,
उड़ सकूँ या नही ,
किंतु पँखो के होने का अहसास चाहिए......

मौसम दर मौसम बीत रही है यह जिंदगानी ,
मेरी अनबुझी प्यास को
बस एक "मधुमास" चाहिए.

लेकर तेरा हाथ, हाथो में काट सके
बाक़ी ज़िंदगी का सफ़र.
मेरे डग-मग करते क़दमो को बस तेरा विश्वास चाहिए.

साँझ होते ही
तन्हा उदास हो जाती है मेरी ज़िंदगी,
अब उन्ही तन्हा रातो को तेरे प्यार की बरसात चाहिए.

कट चुका है अब तो मेरा" बनवास" बहुत
मेरे बनवास को
अब "अयोध्या का वास" चाहिए. !!

डायरी के पुराने पन्नो से ..रंजू भाटिया

Friday, March 15, 2013

कुछ दोस्तों की कलम से .....७


 लिखते रहे शब्द और वह दिलो में यूँ दस्तक देंगे यह मालूम नहीं था ...लिखते हुए तो बस दिल की बात लिख दी थी ..पर जब यह संग्रह में ढलेंगे और पढ़े जाने के बाद अपनी बात यूँ मुझ तक पहुंचाएंगे ..सच में सपने में भी नहीं सोचा था .....पर यह हुआ और हो रहा है ...बहुत से दोस्त जिन्हें सिर्फ ब्लॉग में पढ़ा ..उनसे जब मिलना हुआ तो बहुत से लोगों से मिलना वाकई सुखद अनुभव रहा ...सरस जी  उन में से एक वही शख्सियत रही .
 पहले भी जब जब उन्होंने मेरे लिखे पर कोई भी टिप्पणी करी तो मैं बहुत ख़ुशी महसूस करती थी ....और जब उनसे मिलना हुआ तो बहुत बहुत अच्छा लगा ..उनका मुझसे इतने प्यार ,इतने आत्मीय तरीके से मिलना वाकई बहुत दिल को छु गया ....और अब जब उन्होंने कुछ मेरी कलम से पढ़ कर अपने विचार व्यक्त किये तो आँखे गीली हो गयी ...आखिर इतने मिले स्नेह से भी आँखे भीग जाती है न ....सरस जी के के शब्दों में कुछ मेरी कलम से संग्रह की बात 


' कुछ मेरी कलम से '...एक अविस्मर्णीय अनुभव

एक एक कर रचनायें पढ़ती जा रही हूँ और डूबती उतराती जा रही हूँ ...
कहीं कुम्भलाये अहसासों की टीस-
कहीं उम्मीदों से अंकुआती खुशियाँ -
कहीं बेपनाह अकेलेपन का दर्द -
तो कहीं गदराई रात की रानी की खुशबू -
मानो हर औरत के अहसासों को साँस देदी !
एक एक रचना -
एक एक ज़ख्म सी खुलती जा रही है
ज़ख्म -जो अपनों से मिले
उन्हें सौगातों की शक्ल देकर ...मानो पोंछे हैं अपने ही आंसू.
यह हर उस औरत की टीस है -
जो सब कुछ निछावर कर ..बदले में चाहती है -
सिर्फ मोहब्बत !!!!

पल पल छूटते ज़िन्दगी के सिरे ...हर दर्द के साथ उभरते हैं ...
'कहा-सुना', 'शौक ', ' सजे हुए रिश्ते', 'खुदे हुए नाम', 'चाँद कुछ कहता है '......
यह महज़ कवितायेँ नहीं
शब्दों में भिंचा..गहरा अवसाद है,
बिछोह का ...इंतज़ार का ..मायूसियों का ..
एक रचना पढ़ी थी कभी ..
" कागा सब तन खइयो , चुन चुन खइयो मांस ,
दो नयना मत खइयो , मोहे पिया मिलन की आस "
वही दर्द इन रचनाओं को पढ़कर उभरा !
' ज़िन्दगी का रुख' 'अस्तित्व' , 'एक आस' ...
इनमें उपेक्षाओं की किरचें चुभतीं हैं ..
कोई रचना हौले से कन्धा थपथपाती है ...
तो कोई आँचल का कोना लगभग खींचती हुई सी-
अपने साथ चलने को कहती है ...और पाठक खिंचा चला जाता है ...
यही है इसकी मिलकियत!!!!

आपकी किताब के माध्यम से आपको जाना ...
कभी भावनाओं के सुन्दर स्वच्छ आकाश में -
एक स्वछन्द परिंदे सी उड़ान भरते हुए ..
और दूसरे ही क्षण -
लहूलुहान परों की चोट से
ज़मीन पर छटपटाते हुए
यह दर्द भेद जाता है इस कद्र
की छितरे और अस्तव्यस्त वजूद के साथ जीना बेमाने लगने लगता है ...
कभी थके हारे मनकी पीड़ा तो कभी उम्र की सीढियां चढ़ता थका शरीर
उस दर्द के जाने की बाट जोहता हुआ
जो एक अनचाहे मेहमान सा जम गया है जोड़ो में ...
लगा जैसे मेरे ही दर्द को, अहसासों को मेहसूसकर लिख दिया ....
और शायद हर पाठक के ..!!!
एक बात और -
आपकी किताब का यह गहरा नीला आवरण
उस भोर के आगमन का प्रतीक लगा ....जिसका इस किताब की हर रचना को इंतज़ार है ....
मेरे लिए 'कुछ मेरी कलम से' एक अविस्मर्णीय अनुभव रहा ...
शत शत नमन आपको रंजू जी..


और एक बार फिर से तहे दिल से आपका शुक्रिया सरस जी ..:)

Wednesday, March 13, 2013

अपनी बात...: कुछ मेरी कलम से और रंजू......

अपनी बात...: कुछ मेरी कलम से और रंजू......: रंजू की किताब मुझे लगभग बीस दिन पहले मिल गयी थी..... सपरिवार पाठ भी हो गया. लेकिन "कुछ मेरी कलम से’ के बारे में लिखने आज बैठी हूं. उ...

कुछ दोस्तों की कलम से ..6 ..:)

कुछ दोस्तों की कलम से ..बहुत ख़ुशी होती है दिल को जब इतने प्यार से स्नेह से लिखे हुए शब्द मिलते हैं और दिल में गहरे असर करते हैं ....लिखा हुआ सार्थक नजर आता है ..तहे दिल से शुक्रिया आप सब के स्नेह का ...आज के दो विचार अरुन और अरुन के हैं ..:)

कुछ मेरी कलम से" कविता संग्रह पर मेरे विचार ......अरुन शर्मा अनंत

"कुछ मेरी कलम से" कविता संग्रह एक सुन्दर सोच का अच्छा सृजन है जो पाठक को अपनी ओर आकर्षित करता है. यह सुन्दर कविता संग्रह एक बार जो पढ़ना शुरू करता हूँ तो अंत तक पढ़ने को विवश करता है. कवयित्री ने सम्पूर्ण जीवन के उतार चड़ाव को बहुत ही बारीकी से जाना पहचाना और फिर भाव रूपी कलम से ह्रदय की पूर्ण व्यथा इस पुस्तक में भर दी. "कहा सुना" से शुर हुआ प्रेम का अद्भुत सुन्दर मनभावन सफ़र "अनकहा चाँद" तक जाते जाते पाठक के ह्रदय को भेदता हुआ रोम रोम में समावेश हो जाता है. कुछ पंक्तियों के भाव जितने गहरे हैं उन्हें उतनी ही सरलता से पिरोया भी है जो कि मुझे अवाक कर जाता है.
"कुछ मेरी कलम से" का यह सुन्दर संग्रह, कविता का ऐसा सुन्दर संगम है, जिसमे डूबकर आत्मा तृप्त हो जाती है. इसमें सूरज की तपती धूप है, चाँद की शीतलता है, वियोग की व्यथा है तो प्रेम मिलन का सुन्दर वर्णन भी है, इसमें पतझड़ भी है वसंत भी है.
आदरणीया रंजू जी आपकी "कुछ मेरी कलम से" कविता संग्रह पाठक ह्रदय स्पर्शी है, आप एक अच्छी और बेहतर कवयित्री हैं यह संग्रह इसका प्रमाण है. कुछ और अधिक कहने के लिए शब्द नहीं हैं कुछ पंक्तियाँ जो कविता समाप्ति के बाद स्वतः मन में उभर आईं आपको सादर भेंट कर रहा हूँ स्वीकार करें.

हर पंक्ति प्रेम में भीगी है,
शब्द-शब्द रसीले मीठे हैं,
भावों का सागर गहरा है,
पाठक ह्रदय में ठहरा है,
कविता की सुन्दर फुलवारी,
मन भावन निर्मल है प्यारी,
यह संग्रह प्रेम का चन्दन है,
हे कवयित्री आपको वंदन है।।

सादर
अरुन शर्मा 'अनंत'


नीचे लिखी पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर है जो बहुत दिल को अभिभूत कर रही रही है ..शुक्रिया अरुन तहे दिल से इस स्नेह के लिए ... 



आपकी कविताओं की किताब मिली ! पढकर बहुत अच्छा लगा ! शुरू में किताब का नाम पढकर लगा कि कुछ और होना चाहिए था ! लेकिन जल्द ही सोच बदलती गई ! जब पढ़ने लगा तो पढते पढते सोचा कि जल्द ही खत्म कर लूँगा लेकिन कविताएँ पढता गया और डूबता गया ! कविताएँ मन की मासूम उँगलियाँ थामे उसे अपने साथ बहुत ऊँचे अंतरिक्ष में ले जाती हैं ! कहीं कहीं किसी पंक्ति पर आँखें अटक गईं तो फिर आगे बढ़ने का मन नही किया ! कहीं कविताएँ प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा को छूती हैं तो कभी उलाहना को भी मिश्री सा मीठा बना देती हैं ! कहीं प्रौढ़ सोच तो कहीं अल्हड़पन ! परिपक्वता ये कि कभी नायिका अपने प्रिय से शिकायत करती है कि जब परिस्थितियां प्रतिकूल तो तुमने मुझे पुकारा क्यों नही , और कभी ऐसी बेफिक्री कि वो पहली बारिस में भीगना चाहती है टपकते हुए छत की मरम्मत से पहले ! कविताएँ तो मानों स्त्रियों का सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर रही हों ! उम्र , वर्ग आदि से परे सिर्फ एक प्रतिनिधि की तरह ! निश्चित ही खुद से जुड़े लोगों के मनोभावों को समझने में मदद मिलेगी मुझे इस किताब को पढकर ! इससे बड़ी उपयोगिता और क्या होगी कि कोई किताब अनुभव बनकर जीवन में उतरे !
अब जब पूरा पढ़ चूका हूँ तो समझा कि इस विविधरंगी कविताओं के भरे गुलदस्ते को किसी शीर्षक से न बांधकर यही लिखना ठीक था “कुछ मेरी कलम से” !
और हाँ , सबसे खूबसूरत पन्ना वो लगा जिसपर आपने लिखा था “प्रिय अरुन को शुभकामनाओं सहित” :-) ! सादर !

Thursday, March 07, 2013

कुछ दोस्तों की कलम से (५ )

कुछ दोस्तों की कलम से (५ )

ब्लॉग की दुनिया के  शुरूआती दिनों में बहुत से मित्र बने .जिनसे लगातार कुछ सीखने को नया मिलता रहा और यह साथ फिर अब तक यूँ ही अनवरत चल रहा है ..मोहिन्दर जी उन में से एक हैं।।बहुत हक से मैंने इनको "कुछ मेरी कलम से संग्रह "लेने को कहा और उतने ही हक और प्यार से इन्होने इस संग्रह के बारे में लिखा ....
हम में से प्रत्येक व्यक्ति जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में से गुजरता है। स्वयं द्वारा जीये गए उन पलों को अथवा अपने आस पास घटित होते किसी प्रकरण को शब्दों का जामा पहनाना कोई सहज कार्य नहीं है। किसी रचनकार की सर्जनता का विश्लेषण उसकी रचनाओं को मन से समाहित कर एंव दृश्या पूर्ण चित्रित कर ही किया जा सकता है।
रंजना जी ने अपने कविता संग्रह "कुछ मेरी कलम से" में जीवन के विभिन्न पलों को जीवंत रूप से चित्रित किया है।
पहली कविता "कहा-सुना " प्रेम संवाद के रूप में दर्शाता है कि कही हुई बात और सुनी हुई बात में अंतर हो सकता है जो कि सुनने वाले की मनोस्थिति पर निर्भर करता है। "तस्वीर" जीवन में ओढे मुखोटे, "गुजरती ट्रेन" मन की उलझन को दर्शाते हैं। प्रतीक्षा, विरह और मिलन के रंगों को चाँद के प्रतीकों के रूप में उकेरा गया है। जीवन में वार्तालाप, अंतरंगता की आवश्यकता को "आस" "अहसास" में उतारा है "आईना" दिखाता है कि यह दुनिया कितनी छद्म भेषी है। "तेरा आना" प्रेमिका द्वारा मिलन की आस और प्रसन्नता का अक्स लिए है। "मुस्कान", "कविता", "विरह के दो रंग", "बुढापा" जीवन को इनकी परिभाषाओं से जोडने का प्रयास है। "अंतर्मन" जहां प्रेमी की निष्ठुरता को उजागर करता है वहीं "पनीली आंखें" मन में उठते हुए द्वन्द और उलझन को चित्रित करते हैं। स्वप्नों, विरह, रिश्तों, घुटन, अकेलेपन, यादों और मौन को भी क्षणिकाओं के रूप में खूबसूरती से इस संकलन में जिया गया है। 'जिंदगी से सवाल" में कवित्री जिन्दगी को कटघरे में खडा कर अपने प्रश्नों के उत्तर चाहती है। "फूल पलाश के", "तेरे मेरे बीच का फासला", "फ़ैंटेसी" प्रेयसी के मन में उठते प्यार के ज्वार , अतृप्त कामनाओं, स्त्री सुलभ संकोच और विद्रोह के भावों का सम्प्रेषण है। "कामना" और "अनकहा चांद" समर्पण, प्रेम की फुहार में भीगने और पूर्ण तृप्ति की कामना का द्योतक हैं। रंजना जी ने नारी होने के नाते नारी सुलभ सभी भावों और संवेदनाओं के सम्प्रेषण में पूर्ण रूप से न्याय किया है और जीवन की बारीकियों को भी शब्दों में सफलता से पिरोया है। यह संकलन पाठकों के लिए पठनीय रुचिकर बन पडा है। ईश्वर से कामना है कि वह उनकी कलम को इसी प्रकार अनवरत रूप से लेखन की शक्ति प्रदान करें मोहिन्दर कुमार

मेरे पास अब कुछ कहने को रहा ही नहीं सिर्फ इतना ...........बहुत बहुत शुक्रिया मोहिन्दर जी :आपका .. :)