मेरी पहली हवाई यात्रा और विशाखापट्टनम के यादगार लम्हे
इंसान की ख्वाइशें हर पल नयी होती रहती है ...कभी यह चाहिए कभी वह ..ऊपर उड़ते नील गगन में उड़ते उड़नखटोले को देख कर बैठने की इच्छा हर दिल में होनी स्वाभविक है .सो मेरे दिल में भी थी ...कब दिन आएगा यह बात सोच में नहीं थी बस जब वक़्त आएगा तो जाउंगी जरुर ...यही था दिमाग में और फिर वह दिन आ गया ..कुछ सपने बच्चे पूरे करते हैं ..सो छोटी बेटी के साथ जाना हुआ विशाखापट्टनम ..पहली हवाई यात्रा दिल में धुक धुक कैसे कहाँ जाना होगा ..बेटी अभ्यस्त थी हवाई यात्रा कि सो आराम से चली ....वहां जा कर जो भाग दौड़ हुई वह याद रहेगी :)भाग के प्लेन पकड़ने के चक्कर में हवाई अड्डा निहार ही नहीं पायी ...फिर चेकिंग ... और लास्ट में मिला अपना "स्पाइस जेट विमान" ..
"इसकी लाल ड्रेस में एयर होस्टेस एकदम लाल परी सी लग रही थी । दो दिन की यात्रा थी सो समान अधिक था नहीं ..खिड़की वाली सीट मिल गयी इस से अधिक और क्या चाहिए था ...बस इन्तजार था इसके उड़ने का और मन का बादलों को छूने का ..अपने एक मनपसन्द रंग अर्थ (धरती के सोंधे पन) से दूसरे मनपसन्द रंग नील गगन की नीली आभा को निहारने का .. दरवाज़े बंद हुए और एक एयर होस्टेस को कई तरह से मुसीबतों से बचने के नियम कानून ..हाथ को व्यायाम की मुद्रा में हिलाते देखा ..कुछ समझ आया कुछ नहीं ...छोटे से सफ़र में यह बालाएं सब कुछ समझाती किसी नर्सरी स्कूल की मैडमें लगीं ...कम से कम मेरी जैसी पहली बार यात्रा करने वाली को तो :)
जहाज के बाहर का आसमान फैला हुआ विस्तृत अपार सा था । जहाज धीरे धीरे हिचकोले सा खाता हुआ बादलों के ऊपर आ गया था। और बादल रुई के गोले, फ़ाहे, पहाड़ से लग रहे थे और कल्पना के घोड़े दौडाते हुए
मैंने तो यही पर स्वर्ग में नाचती मेनका की भी कल्पना कर डाली :)जैसे इंद्र का दरबार है पूरा और सब हाथ बांधे खड़े नृत्य देख रहे हैं ........ और नीचे धरती की हर चीज धीरे धीरे छोटी होते होते एकदम से अदृश्य हो गईं । बड़े बड़े शहर यूं नजर आए जैसे चींटी। नदियां, पहाड़, शहर, गांव सब एक ऊंचाई पर आने के बाद एकाकार हो गए ..:) यात्रा छोटी थी सो जल्द ही यह खत्म हो गयी ..बाहर आने पर वही चेकिंग और समुद्र की नमकीन हवा ने स्वागत किया .
विशाखापट्टनम प्राचीन भूवैज्ञानिक चमत्कार, प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साथ समय के साथ कदम रखने वाला शहर है, यह अपने समृद्ध अतीत के संरक्षण के प्रति सजग भी हैऔर नए के प्रति उम्मीद भरा भी | इस शहर के प्रमुख उद्योग, जहाज निर्माण यार्ड, एक बड़ी तेल रिफाइनरी, एक विशाल इस्पात और बिजली संयंत्र है। इसके सुंदर घाट बंगाल की खाड़ी के नीले पानी पर एक जादू की दुनिया में पंहुचा देते हैं और पहुँचते ही यह जैसे अपने आगोश में समेट लेते हैं
हमें रुकना था नोवाटेल होटल विशाखापत्तनम, यह वरुण बीच के सामने हवाई अड्डे के करीब है, यहाँ के हर कमरे से समुन्द्र दिखायी देता है बंगाल की खाड़ी की लहरें जैसे आपसे बात करती दिखती है आधुनिक हर सुविधा से यह होटल जैसे आपको वहां पर रह जाने का निमंत्रण देता लगता है , |
होटल स्टाफ बहुत ही बढ़िया हेल्प करने वाला है और आप जैसा जो खाना चाहे वो वहां पर बने रेस्टोरेंट में खा सकते हैं ..बुफे सिस्टम मुझे वहां का बहुत बहुत अच्छा लगा ..शेफ ,स्टाफ इन सबकी जितनी तारीफ की जाए कम है ..
विशाखापत्तनम एक पर्यटक स्वर्ग जैसा है! यहाँ के समुन्दर तट बहुत ही सुन्दर है .लाल रेतमिटटी में खिले फूल और हरियाली बरबस रोक लेती है |
|
लाल मिटटी का जादू बिखरा हुआ |
.अछूते साफ़ पानी वाले समुन्दर तट जैसे दिल को अजीब सा सकून करवाते हैं ....समुन्दर किनारे बने हुए घर ..आधुनिक और पुराने दोनों का मिश्रण है ...
.भाग दौड़ से दूर शांत जगह वाकई कई बार वहां यही दिल हुआ कि काश यही रह पाते :)आदिवासी और नेवी हलचल में सिमटा यह शहर अपने में अनूठा है |
|
अरकु वेळी का मनमोहक रास्ता |
देखने लायक यहाँ बहुत सी जगह हैं सबसे पहले हम गए आरकु वेळी .. अरकु घाटी यह हार्बर सिटी विशाखापट्टनम से 112 किमी दूर है। घाटी में फैली ऊंची नीची पहाडि़यों को देख कर लगता है जैसे वह कोई माला ले कर आपके स्वागत को आ गयी है काफी के पौधो से सजी इस अरकु घाटी की सुन्दरता जैसे मन मोह लेती है |
|
कैप्शन अरकु वेळी जोड़ें |
आदिवासी सहज लोग आपका दिल जीत लेते हैं एकांतप्रिय पर्यटकों के लिए अरकु वैली सचमुच एक बहुत अच्छा पर्यटन स्थल है
इस घाटी में ही है बोरा गुफाएं तेलुगु में बुर्रा का अर्थ है-'मस्तिष्क'. इसी शब्द का एक अर्थ यह भी है कि ज़मीन में गहरा खुदा हुआ.बोरा गुफाएं विशाखापत्तनम से 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
ये ईस्टर्न घाट में दो वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई हैं। यह गुफाएं १५ करोड़ साल सालों पुरानी बताई जाती हैं.इन्हें विलियम किंग जोर्जे नमक एक अंग्रेज ने सन् १८०७ में खोज निकला था.|भूवैज्ञानिकों के शोध कहते हैं कि लाइमस्टोन की ये स्टैलक्लाइट व स्टैलग्माइट गुफाएं गोस्थनी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं। हालांकि अब नदी की मुख्य धारा गुफाओं से कुछ दूरी पर स्थित है लेकिन माना यही जाता है कि कुछ समय पहले यह नदी गुफाओं में से होकर और उससे भी पहले इनके ऊपर से होकर गुजरती थी।
नदी के पानी के प्रवाह से कालान्तर में लाइमस्टोन घुलता गया और गुफाएं बन गयीं। अब ये गुफाएं अराकू घाटी का प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।गुफाएं अन्दर से काफी बड़ी हैं। उनके भीतर घूमना एक अदभुत अनुभव है। अंदर घुसकर वहां एक अलग ही दुनिया नजर आती है। कहीं आप रेंगते हुए मानों किसी सुरंग में घुस रहे होते हैं तो कहीं अचानक आप विशालकाय बीसियों फुट ऊंचे हॉल में आ खडे होते हैं। सबसे रोमांचक तो यह है कि गुफाओं में पानी के प्रवाह ने जमीन के भीतर ऐसी-ऐसी कलाकृतियां गढ दी हैं कि वे किसी उच्च कोटि के शिल्पकार की सदियों की मेहनत प्रतीत होती हैं। कोई आकृति किसी जानवर के आकार जैसी दिखती है तो कहीं कोई किसी पक्षी जैसी नजर आती है।इतने शिल्प कि उन्हें नाम देते-देते आपकी कल्पनाशक्ति नए नाम देते देते थक जाए | एक जगह तो चट्टानों में थोडी ऊंचाई पर प्राकृतिक शिवलिंग बन गया है कि उसे बाकायदा लोहे की सीढियां लगाकर मंदिर का रूप दे दिया गया है। कहीं आपको जमीन को बांटती एक दरार भी नजर आ जायेगी तो कहीं आपको बडे-बडे खम्भे या फिर लम्बी लटकती जटाओं सरीखी चट्टानें मिल जायेंगी।
इन गुफाओं को खोजने की कहानी भी काफी रोचक है। पुरानी कहानी है कि उन्नीसवीं सदी के आखिरी सालों में निकट के गांव से एक गाय खो गयी। लोग उसे ढूंढने निकले और खोजते-खोजते पहाडियों में गुफाओं तक पहुंच गये। बताया जाता है कि गाय गुफा के ऊपर बने छेद से भीतर गिर गयी थी और फिर भीतर-भीतर होती हुई नदी के रास्ते बाहर निकल गई। गाय मिलने से ही नदी को भी "गोस्थनी" नाम दे दिया गया। बाद में किसी अंग्रेज भूशास्त्री ने गुफाओं का अध्ययन किया। इन्हें मौजूदा पहचान आजादी के बहुत बाद में मिली। अब ये देश की प्रमुख गुफाओं में से एक हैं।
गुफा का प्रवेश द्वार काफी बड़ा है। अंदर रौशनी की व्यवस्था है और गाइड भी उपलब्ध हैं जो अन्दर की सैर कराते हैं। गुफा का प्रबन्धन आन्ध्र प्रदेश पर्यटन विभाग के हाथों में है। आसपास खाने-पीने की पर्याप्त व्यवस्था है। अराकू होते हुए पहाडियों में यहां आने का रास्ता भी बडा मनोरम है। रास्ते में जगह जगह मिलता नारियल पानी और मक्की भुट्टा आपको सहज ही रोक लेंगे |गुफा के निकट तो रुकने की जगह नहीं लेकिन लगभग बीस किलोमीटर पहले अरकू घाटी में रुकने के लिये अच्छे होटल हैं। अराकू घाटी में कुछ और स्थान हैं जो आप वहां देख सकते हैं
आंध्र प्रदेश के प्रमुख हिल स्टेशन अरकू का जनजातीय संग्रहालय देखने लायक है यह संग्रहालय हालांकि बहुत बडा तो नहीं है, परन्तु सहज प्रवेश और बीच जगह पर होने से यहां पर पर्यटन सीजन के दिनों में दिन भर मेला सा लगा रहता है। इसकी खासियत अनूठा डिजाइन तो है ही साथ में इसमें आदिवासी जनजीवन की झलक का प्रस्तुतिकरण भी बेहद प्रभावी है। अपनी बात यह वहां बने शिल्प .कला मूर्ति के कारण समझा देता है | गोलाकार संरचना लिये यह संग्रहालय दो मंजिल का है। इसमें राज्य के आदिवासी क्षेत्र के जनजीवन को दिखाया गया है।
‘रामोजी फिल्म सिटी’।
यहाँ इसका छोटा रूप बनाया गया है यहाँ फ़िल्मी हस्पताल जेल मार्किट आदि सब देखे जा सकते हैं| बहुत सी फिल्मों की शूटिंग यहाँ होती है | बहुत सारे फिल्मों के चित्र और कलाकारों के फोटो यहाँ देखने को मिले |ऋषि कोंडा बीच के पास ऊँची पहाड़ी पर बना खुद ही आपको बुलाता है
ऋषिकोंडा बीच आंध्र प्रदेश के सबसे सुंदर समुद्र तटों में से एक है ,यहाँ का पानी जैसे आपको बांध लेता है अभी अधिक पर्यटक न होने के कारण यह अभी साफ सुथरा है और कई तरह के समुन्द्र में खेले जाने वाले खेलों के लिए उपयुक्त है |
विशाखा पट्टनम की यह यात्रा मैंने पिछले साल फ़रवरी में की थी ..तब से इसको यूँ ही यादो में जी रही हूँ बहुत कुछ बता के भी अनकहा रह गया है ..तस्वीरों में सब याद सिमटी हुई है ..कैलाश हिल ,की वो उंचाई और वहां से समुद्र को निहारना अभी भी यादो में रोमांचित कर देता है .
.एक बार मौका मिले तो फिर से जाना चाहूंगी वहां ..आखिर समुंदर की लहरे की वहां से आती पुकार अनसुना नहीं किया जा सकता है न वो भी तब मुझे हर वक़्त यह लगता हो की वह लहरे मुझे बुला रही है ...:)
यूँ ही
अपने ख़्यालो में देखा
है
तेरी आँखो में
प्यार का समुंदर
खोई
सी तेरी इन नज़रो में
अपने लिए प्यार की
इबादत पढ़ती रही हूँ मैं......:)