Thursday, January 31, 2013

खाली पैमाने

जाने कैसे हैं यह इश्क  के अफ़साने
राह है   मुश्किल मंजिल अनजाने

क्यों है तेरे दिल में तड़पन मेरी
क्यों तू पूछे मुझसे सवाल बेगाने

दर्द मिला हर राह में दिल को
जख्म भरे न अब खाली पैमाने

हर तरफ़ दिखे बस तेरा ही  साया
तन्हा धडकन खुदा ही पहचाने!!

Friday, January 25, 2013

रंगोली

समय की आंधी में ,
मिट जाती है.....
लम्हों  की रेत पर
लिखी हुई कहानियाँ,
पर मिटने के डर से
कहाँ थम पाती है यादें
जो बिना किसी रंग के
दिल की गहराई में
रंगोली सी  खिलती रहती है !!

Tuesday, January 22, 2013

पगडंडियाँ

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Monday, January 21, 2013

वो किसका नाम था

कुछ गीत  लिखने की कोशिश में
जो भी शब्द हमसे लिखा  गया
वो किसका नाम   था
जो बार बार  यूं लिखा  गया
मांगता  रहा मेरा अक्स
उनसे एक पनाह प्यार की
वो सिर्फ दे कर तस्सली
पास से यूँ ही गुजर गया
बहुत चाह थी कि
छु ले चाँद की पलकों को
पर था वो ख्वाब
जो सुबह होते हो बिखर गया
चाहते थे उसकी गहरी नजरों में डूबना
वो सिर्फ एक लहर बन कर बिखर गया
अपनी हाथो की लक्रीरो में
हमने ना पाया था नाम उनका
फिर भी क्या था उस वजूद में
जो साथ न हो कर भी राह साथ चलता गया ###


Wednesday, January 16, 2013

एतबार

यह दिल
कैसे करे कोई
किसी का एतबार
मौसम के रंग सा
कभी है झरता पतझड़ भीतर
तो कभी बच्चो सा पुलकित मन
बहार सा गुलजार
दिल में कूके यही सवाल बार बार
क्यूँ कभी सन्नाटे की फुहार
कभी शोर की गुहार
जीवन हुआ न आर पार
हर बीतता  लम्हा है बेकल
और हर पल करे जीना मुहाल !!

Monday, January 14, 2013

नए चमकते सूरज की आशा में

सुदूर कहीं
गहरे नीले आसमान में
लहरा उठती है
"ढेरों पतंगे "
और नीचे धरती पर
झूमती आँखों में
चमक जाते हैं " कई सूरज "
धीरे धीरे  धूमती  रहती है
धरती अपनी धुरी पर यूँ ही
और साथ ही घूमते रहते हैं
नक्षत्र अपनी गति से
और इन सबके बीच में
झुक आती है फिर संध्या
किसी आँचल के छाँव सी
उड़ते रहते है
न जाने कितने पाखी मन के
होले  से उन कटी  पतंगों की छांव में
फिर फिर बुनते रह जातें सपने
कुछ अनदेखे,अनकहे से
रात की बीतती वेला में
अधखुली आँखों के
पतंगों के पेच से
शोर करते मन में देते हुए शब्द
वो काटा !! वो काटा
फिर से एक नए चमकते सूरज की आशा में # रंजू भाटिया ...कुछ यूँ ही अभी अभी दिल में उगता हुए से लफ्ज़ ..."कुछ मेरी कलम से" कहने की कोशिश में :)

Friday, January 11, 2013

छोटी कवितायें

डायरी के पुराने पन्नो में कुछ लफ्ज़ धुंधले हुए दिखते हैं जो अब पढने में नहीं आते .. पर ......... एक अक्स अभी भी दिखाई देता है उन धुंधले अक्षरों में साफ़ साफ़ उजला सा !!! ******************** जब मन पर छा जाता है अकेलापन और साँसे हो मद्धम तब कुछ लिख कर भावों से साँसे उधार ले लेती हूँ !! ***************** और भी छोटी छोटी बातें जल्द ही आने वाले संग्रह कुछ मेरी कलम से भी ..पढना न भूलें ...शुक्रिया :)

Tuesday, January 08, 2013

एन्जॉय चाय की चाह ..........:)

ठण्ड के मौसम में चाय की चाहत के बिना चैन कहाँ ..पर यह चाय कहाँ से कैसी आई ...?जानिये तो सही जरा ... चाय के सम्राट शेनतुंग ने खोजी चाय २७३७ इसवी पूर्व चीन का सम्राट था शेनतुंग ..वह अक्सर बीमार रहता एक दिन उसके वेद्ध ने कहा पानी उबाली ठंडा करके पीते रहो बादशाह ने वैसा ही किया ..बहुत दिनों तक यही चलता रहा एक दिन राजमहल के रसोईघर में पानी उबाला जा रहा था हवा चली ,कुछ पत्तियां उड़ती हुई आई उबलते पानी में गिर गयीं इसी पानी को सम्राट ने पी लिया उसको पानी का स्वाद कुछ बदला बदला सा लगा और पसंद भी आया बस फ़िर क्या था राजा ने वैसी ही पत्तियां मंगवाई और उबाल कर पीता रहा ...यह कर्म जारी रहा इसको देख कर अन्य लोगों ने भी इसको इस तरह से पीना शुरु कर दिया । चीनी लोगी ने इसको ""चाह"" कहना शुरू कर दिया वही ""चाह"" बाद में "चाय" कहलाई जैसे जैसे यह अन्य देशों में गई वहां अलग अलग नाम दे दिए गए जैसे भारत में इसको "चाय "कहा और अंग्रजी में यह "टी "कहलाई सबने इसको अपने स्वाद में ढाला और खूब इसका स्वागत किया इस समय विश्व में प्रति चाय की खपत के हिसाब से आयरलैंड प्रथम ब्रिटेन दूसरे तथा कुवेत तीसरे स्थान पर आते हैं इस तरह सम्राट के इस उबले पानी ने हमें चाय से परिचित करवा दिया ..एक बार बहुत पहले चाय पर लिखी थी कुछ पंक्तियाँ मैंने कि .. काश ........ उसका दिल एक चाय की केतली सा होता जिसको बार बार गर्माना न पड़ता पर उसका दिल तो कम्बखत बर्फ सा निकला जो सर्द आहों से भी पिघल नहीं पाता है नज़रों से करे चाहे इशारे कितने वह नासमझ इस चाह को समझ न पाता है :):) चलिए जी चाह की चाहत को समझे न समझे कोई ..पर चाय की चाह सबको इस सर्द मौसम में राहत दे जाती है :) एन्जॉय चाय की चाह ..........:)

Monday, January 07, 2013

सर्द ठंडी रातों में

सर्द ठंडी रातों में
 नग्न अँधेरा
एक भिखारी सा
यूं ही इधर उधर डोलता है
 तलाशता है
एक गर्माहट
 कभी बुझते दिए की रौशनी में
कभी कांपते पेडों के पत्तों में
 कभी खोजता है
 कोई सहारा टूटे हुए खंडहरों में ,
या फ़िर टूटे दिलों में
 कुछ सुगबुगा के
 अपनी ज़िंदगी गुजार देता है
यह अँधेरा कितना बेबस सा
यूं थरथराते ठंड के साए में
बन के याचक सा वस्त्रों से हीन राते काट लेता है !!

#रंजू