Monday, December 31, 2012

2012 विदा लेने को है .नया साल आने को है .

दोस्तों दुआ मांगों कि मौसम खुशगवार हो !
यह कुल्हाडियों का मौसम बदल जाए
पेड़ों की उम्र पेड़ों को नसीब  हो
टहनियों  के आँगन में
हरे पत्तों को जवानी की दुआ लगे
मुसाफिरों के सिरों  को छाया -
और राहों को फूलों की आशीष मिले !

2012  विदा लेने को है .नया साल आने को है ...नया आने वाला साल एक नयी रौशनी .एक नयी चेतना और एक नया विश्वास रौशनी ले कर आये यही दुआ मांगते हैं

दुआ ...

दोस्तों ! उदासियों का मौसम बहुत लंबा है
हमारा एक शायर है कई सालों से --
जब भी कोई साल विदा होता है
तो कैद बामुशक्कत काट कर
कैद से रिहा होते साल को मिलता है
पाले में ठिठुरते कन्धों पर
उसका फटा हुआ खेस लिपटाता
उसे अलविदा कहता
वक्त के किसी मोड़ पर छोड़ आता है ..
फ़िर किसी दरगाह पर अकेला बैठ कर
नए साल की दुआ करता है --
कि  आने वाले ! खैर से आना खेरियत से आना !

जिस तरह वक्त को दो हिस्सों में बाँट दिया गया है .क्राइस्ट से पहले और क्राइस्ट के बाद      ..वक्त को तकसीम करने की यह तरकीब पश्चिम से आई इस लिए क्राइस्ट का नाम सामने आया .पूरब से आती तो कोई और नाम होता ..इस लिए यह तकसीम सहूलियत के हिसाब से जबकि दर्शन की तकसीम बहुत गहरे अर्थों में हैं ....
..आज इंसानियत कहीं खो गयी है .दरिदंगी हावी हो चुकी है ..सब तरफ एक अविश्वास का माहौल है |जिस देश में बेटियाँ सुरक्षित नहीं वहां जीना कितना मुश्किल लगता है |एक जगह कहा गया है कि ...अरे जा ! तुझे अपने महबूब का नाम भूल जाए ! सचमुच कितनी भयानक गाली है -इंसान के पास क्या रह जायेगा ,जब उसको उसके महबूब का नाम ही भूल जाए ..इंसान का महबूब उसकी इंसानियत है ..और हम आज उसी का नाम भूल गए हैं .....आज के गुजरते वक़्त में , दुराचार के  नाम पर जितने  दुष्कर्म हुए ,जितने बुरे हादसे हुए वह हमारे देश की आजादी के लिए एक बहुत बड़ा उलाहना है हम पर .और अब इसी तरह के माहौल में नया साल आने को है ...अमृता के लफ्जों में ...

जैसे रातों की नींद ने अपनी उँगलियों में
सपने का एक जलता हुआ कोयला पकड़ लिया हो ..
जैसे दिल के फिकरे से कोई अक्षर मिट गया हो
जैसे विश्वास के कागज पर स्याही  बिखर गई हो
जैसे समय के होंठो से एक ठंडा साँस निकल गया हो
जैसे आदमजात की आंखों में एक आंसू भर आया हो
नया साल कुछ ऐसे आया ...
जैसे इश्क की जुबान पर एक छाला उभर आया हो
जैसे सभ्यता की कलाई की एक चूड़ी टूट गई हो .
जैसे इतिहास की अंगूठी से एक मोती गिर गया हो
जैसे धरती को आसमान ने एक बहुत उदास ख़त लिखा हो 
नया साल कुछ ऐसे आया ........सोच चिन्तन की आत्मा का होता है ..आत्मा लोप हो जाए सोच  एक जड़ता बन जाती  है ......
एक थी राबिया बसरी ..जिसके बारे में कहा जाता है कि  एक दिन वह एक हाथ में मशाल और एक हाथ में पानी ले कर भागती हुई गांव गांव से गुजरने लगी ...बहुत से लोग पूछने लगे यह क्या कर रही हो ? कहते हैं राबिया ने कहा ...मेरे लाखों मासूम लोग हैं जिन्हें बहिश्त का लालच दे कर उनकी आत्मा को गुमराह किया जा रहा है और उन्हें दोजख का खौफ दे कर उनकी आने वाली नस्लों को खौफजदा किया जा रहा है .मैं इस आग से बहिश्त को जलाने जा रही हूँ और इस पानी से दोजख को डुबोने जा रही हूँ ....

और अब चलते चलते  अमृता की बात उन्ही के लफ्जों में ...
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ? किस से  कहूँ ?
अगर कोई हो ..
इल्म  के सूरज वंशी जैसा ,कलम के चन्द्रवंशी जैसा
तो मैं साल मुबारक किस से कहूँ .मैं साल मुबारक किस से कहूँ
अगर कोई हो ...
इस मिटटी की रहमत जैसा ..इस काया की अजमत जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ..मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ....
मन सागर के मंथन जैसा और मस्तक के चिंतन जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ .मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?
अगर कोई हो ..
धर्म लफ्ज़ के अर्थों जैसा .कर्म लफ्ज़  के अर्थों जैसा
मैं साल मुबारक किस से कहूँ ..मैं साल मुबारक किस से कहूँ ?

बहुत दिल में उदासी है ..नया साल यह यूँ आएगा सोचा नहीं था इस साल ले शुरू होने पर ..न हमने ,न उस जाने वाली बच्ची ने ...आज सोच में  हूँ कि 2012 का स्वागत उस जाने वाली बच्ची ने भी खूब उम्मीद और जोश में किया होगा पर अंत वह कहाँ जानती थी इस साल का ऐसे होगा ..वह मासूम बच्ची न जाने कितने सपने ले कर इस साल कि सुबह में जागी होगी ..पर ..अंत यूँ होगा ...उफ़ बहुत दर्दनाक है ..और अफ़सोस कि यह सिलसला थमता ही नजर नहीं आ रहा है .इस घटना के बाद रोज़ आने वाली घटना और भी इस जख्म को नासूर बनाती चली जा रही है ....जैसे औरत सिर्फ जिस्म बन कर रह गयी है ..मर्द के लिए जिसे वह जैसे ,जब चाहे नोच खसोट रहा है .. ..कोई डर नहीं कोई इंसानियत नहीं ...बस गुलजार के लिखे शब्दों की  तरह ....
ऐसा कुछ भी तो नही था जो हुआ करता था फिल्मों में हमेशा
न तो बारिश थी न तूफानी हवा और न जंगल का समां ,
न कोई चाँद फलक पर की जुनू खेज करे
न किसी चश्मे न दरिया की उबलती हुई फनुसी  सदायें
कोई मौसीकी नही थी पसेमंजर में की जबात हेजान मचा दे
न वह भीगी हुई बारिश में कोई हुरनुमा  लड़की थी 

सिर्फ़ औरत थी वह कमजोर थी
चार मर्दों ने ,कि  वो मर्द थे बस .
पसेदीवार   उसे "रेप" किया !!!

पर उम्मीद का दामन हाथ से न छुट जाए इसी उम्मीद के साथ कि शायद कहीं कुछ बदले ...कुछ सकरात्मक हो ..... दिल  से  इसी दुआ के साथ .

.रंजू भाटिया

Saturday, December 29, 2012

सन्नाटा सा है दिल में

सुनो ...
आज कुछ लफ्ज़ दे दो मुझे
ना जाने मेरी कविता के
सब मायने
कहाँ खो  गये हैं
मेरे अपने लिखे लफ्ज़ अब
ना जाने क्यों ,
बेमानी  से हो गये हैं
दिखते  हैं अब सिर्फ़ इसमें
विस्फोटक ,बलात्कार,  भ्रष्टाचार
और कुछ डरे सहमे से शब्द
जो मुझे किसी कत्लगाह से
कम नही दिखते...
हो सके  तो दे देना अब मुझे
विश्वास  और प्यार के वो लफ्ज़
जो मेरे देश की पावन  मिटटी  की
खुशबु  थे कभी!!

सन्नाटा सा है दिल में ,और एक अजब सी बैचनी ,जो रह रह कर दिल को और भी मायूस कर रही है ...कोई शब्द नहीं है कहने को ,लिखने को ..बारह दिन तक वह एक मशाल की तरह जली और अब वह खामोश  है पर क्या सच में वह खामोश है ...? चुप सी लगी हुई आँखे टी वी पर आने वाली खबर को देख रही है और दिल कह रहा है कुछ नहीं होगा बस यह शोर है ..फिर से किसी अगले हादसे के लिए तैयार रहे .चाहे जितने बंद कर लो ,चाहे जितनी रेलियाँ निकाल लो ..न अब वह लड़की वापस आएगी जो अपने माँ पिता और भाइयों की आस थी . न वह लड़का जो उसके साथ था उस रात इस  हादसे से कभी उबर पायेगा ...हर होने वाली घटना के पीछे कुछ अच्छा होता है ..इस में क्या अच्छा होगा ..?कौन जाने ? कोई जवाब नहीं है .........है तो मेरे जहन में तो सिर्फ एक सन्नाटा ......जो किसी तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी से कम नहीं .....और सवाल क्या इस तरह से चेतना जागने के लिए ,और कानून नए बनाने के लिए कीमत किसी की जान औरवह भी इतने वीभत्स तरीके से देनी होगी ? तब देश और इसको चलाने वाले जागेंगे ?


यह सोच है हर उस लिखने वाली एक कॉमन महिला की ..जो रोज़ इस तरह के हादसों को सुनती है ,झेलती है और फिर आश्वासन पा कर अगले हादसे के लिए डरती है ,सहमती है और अपनी दिनचर्या में लग जाती है .....

Thursday, December 27, 2012

शहरो के इस जंगल में हर शख्स बेगाना है

आज यह कैसा
अजब सा फ़साना है
  उनके होंठो  पर
ख़ामोशी   का ज़माना है

शहरो के इस जंगल में
हर शख्स बेगाना है
मौसम अक्सर भटका है यहाँ
तूने भी भटक जाना है

मुझ में तो ताप है सूरज का
हर पल जलते जाना है
चाँद समझ कर तूने कभी
 दिखना कभी छिप जाना है

कब काम आया
पेडो का साया ही ख़ुद पेडो के
हर मुसाफ़िर ने यहाँ
 पल दो पल ठहर के चले जाना है

तेज़ हवा है यहाँ
वक़्त का बदलता हर साया
इस तेज़ बहती हवाओं में भी
एक उम्मीद का दीप जलाना है

हम तुम दोनो
 शब्द भी हैं और अर्थ भी
एक गीत में ढल कर
हमने इस ज़िंदगी को गुनगुनाना है!!

Tuesday, December 25, 2012

हैप्पी क्रिसमिस ....

चलो मिल कर ज़िंदगी को मीठे केक सा कर जाए:) आओ सिखाएं आपको इस केक को बनाना इसके लिए जरा यह सब सामान तो ले के आना एक कप प्यार , में १०० ग्राम दयालुता , ५०० ग्राम दुआ [प्रार्थना ] मिला के इसको नरम बनने तक हिलाना फ़िर इस में १५० ग्राम भावना त्याग की , और १०० चम्मच मदद सबके लिए ५ मिनट तक रख जाना अब इस में १०० बूंदे मुस्कराहट की १ चम्मच सहन शक्ति के साथ अच्छे से इन सबको मिला के फ़िर इसको पकाना अब देखो इन सब चीजों को मिला के ज़िंदगी का स्वाद है कितना मीठा सबको प्यार से अपने अब यही केक तुम खिलाना तो था न यह बहुत अच्छा सा केक ...क्रिसमिस आते ही केक के साथ साथ याद आते हैं सांता क्लाज ..सांता क्लाज आया ढेर से तोहफे लाया ..:) क्रिसमस का त्योहार आते ही बच्चो की खुशी का ठिकाना नही रहता सांता क्लाज आयेंगे ढेर से तोहफे लायेंगे यही उम्मीद लिए सारी दुनिया के बच्चे इनका इंतज़ार करते हैं शायद ही दुनिया का कोई बच्चा ऐसा होगा जिसे इनका इंतज़ार न होगा दुनिया भर का प्यार समेटे अपनी झोली में यह आते हैं और बच्चो को इंतज़ार होता है अपने तोहफों का जो वो चिठ्ठी [पाती] लिख के अपनी मांग उनको लिख के भेजते हैं .क्या आप जानते हैं की सांता क्लाज को हर साल कितनी पाती मिलती है आपको यकीन नही होगा लेकिन यह सच है की हर साल उन्हें ६० लाख से भी ज्यादा पाती मिलती है और सांता उनका जवाब देते हैं . सयुंक्त राष्ट्रीय की यूनीवर्सल पोस्ट यूनियन के अनुसार सांता क्लाज़ को ढेरों नन्हें मुन्ने बच्चों की पाती मिलती हैं सांता कितने लोकप्रिय हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि कम से कम २० देशों के डाक विभाग सांता के नाम से आने वाली चिट्ठियों को अलग करने और फ़िर उनका जवाब देने के लिए अलग से कर्मचारी भरती करते हैं .....कई पाती पर तो सिर्फ़ इतना ही लिखा होता है सांता क्लाज़ नॉर्थ पोल ..इन चिट्ठियों का दिसम्बर में तो अम्बार लग जाता है कनाडा डाक विभाग २६ भाषा में इनका जवाब देता है जबकि जर्मनी कि डयुश पोस्ट १६ भाषा में इन का जवाब देती है कुछ देशो में तो ई-मेल से भी जवाब दिए जाते हैं पर सांता रहते कहाँ है यह अभी साफ साफ नही पता चल पाया है :)पर कनाडा और फ्रांस के डाक कर्मी सबसे ज्यादा व्यस्त रहते हैं क्यूंकि इन दोनों देशों में १० लाख से भी ज्यादा नन्हें मुन्ने चिट्ठी लिखते हैं सर्दियों में मनाया जाने वाला यह त्योहार लगभग सभी देशों में मनाया जाता है लेकिन सांता को कई नामों से जाना जाता है कहीं फादर क्रिसमस तो कहीं सेंट निकोलस ,रूस में इन्हे डेड मोराज़ के नाम से जाना जाता है 1)_यह तो हम सभी जानते हैं कि क्रिसमिस पर सबको उपहार देने की परम्परा है लोग तरह तरह के उपहार देते हैं ..पर एक उपहार अब तक का सबसे व्यक्तिगत उपहार माना जाता है...वह था १९६९ की क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अरबपति अमेरिकी व्यवसायी रास पैरेट ने वियतनाम में अमेरिकी युद्धबंदियों के लिए ईमान सेवा से २८ टन दवाइयां और उपहार भिजवाये थे |यह अब तक का सबसे बड़ा व्यक्तिगत उपहार माना जाता है | 2)नेशनल क्रिसमिस ट्री एसोसिएशन के अनुसार अमेरिका में हर साल ३७.१ मिलियन क्रिसमिस ट्री खरीदे जाते हैं |अमेरिका का राष्ट्रीय क्रिसमिस वृक्ष कैलोफोर्निया के किंग कैनन नॅशनल पार्क में हैं | ३०० फीट ऊँचे इस सिकाओ वृक्ष को यह दर्जा १९२५ में दिया गया | 3) पूरी दुनिया में क्रिसमस २५ दिसम्बर को मनाया जाता है पर सिर्फ़ यूक्रेन में यह ७ जनवरी को मनाया जाता है इसकी वजह यह है कि यहाँ पर रोमन कैथोलिक गेग्रोरियन कैलेंडर के साथ ही आर्थोडाक्स जुलियन कैलेंडर भी समान रूप से प्रचलित है यूक्रेन का क्रिसमस कुछ और कारणों से भी बहुत ख़ास है ..यहाँ क्रिसमस ट्री पर नकली मकडी और उसका जाल सजाया जाता है इस से यह माना जाता है कि घर में सोभाग्य आता है | यहाँ क्रिसमिस की रात घरों में दावत की जबरदस्त तैयारी होती है और घर का सबसे छोटा बच्चा इवनिंग स्टार को देखने के बाद पार्टी शुरू करने का संकेत देता है 4)ग्रीस में क्रिसमिस ट्री को सजाने और उपहार देने की परम्परा नहीं है | क्रिसमिस की सुबह स्थानीय पादरी गांव के तालाब में एक छोटा सा क्रास इस विश्वास के साथ फेंकता है कि वह अपने साथ बुरी आत्माओं को भी डुबो देगा | इस के बाद पादरी गांव के घर घर जा कर पवित्र जल फेंकते हैं ताकि घर से बुरी आत्माएं निकल जाए | इस बुरी आत्माओं को भगाने के प्रयास में ही वहां के लोग पुराना जूता या नमक जलाते हैं | 5)नार्वे में क्रिसमस पर रात्री भोज और उपहार को खोलने के बाद घर के झाडू को छुपा दिया जाता है |इस के पीछे यह मान्यता है कि हर रात बुरी आत्माएं बाहर निकलती है और वह झाडू को चुरा कर उस पर सैर करती हैं | 6)अमेरिका में बच्चे क्रिसमिस की रात सांता क्लाज से उपहार लेने के लिए जुराबे टांग देते हैं तो नीदरलैंड में बच्चे नवम्बर से ही अपने जुटे इस विश्वास के साथ टांग देते हैं घर के बाहर की सांता क्लाज उन्हें उपहार दे जायेंगे | इस तरह क्रिसमिस के रंग हर देश में खूब नए तरीके से मनाये जाते हैं ..किसी भी तरह मनाया जाए पर यह बच्चो को तो बहुत ही प्यारा त्यौहार लगता है क्यों कि बहुत सारे उपहार जो मिलते हैं ..और सब तरफ शान्ति रहे सब को सद्द्बुद्धि मिले इसी दुआ के साथ आप सबको हैप्पी क्रिसमिस ......

Wednesday, December 19, 2012

टीस

गर्भ में आते ही जान लिया था मैंने
कि लड़की का जन्म लेना इस युग में
इतना आसान नही होता
सहनी पड़ती है हर टीस
चलाना पड़ता है यहाँ
जलते अंगारों पर
आई गर्भ में तो लगा
जैसे बाहर अजब सी
हुई है कुछ हलचल

सुनाई देती मुझे भीतर
माँ की सिसकियाँ
और पापा का परेशान सा
कोई स्वर सुनाई देता था

वेदना की साँसे
इस क़द्र थी गहरी
कि अपनी हर धड़कन
एक टीस देती सी लगती था

नासमझ मैं क्या जान पाती
कि मेरा गर्भ में होना
कोई खुशी का सबब नही
एक वेदना है एक टीस है
जो देगी उम्र भर ऐसी पीड़ा
जिसका हल शायद पिता को
एक बहुत बढे कर्जे से ,
माँ को दुनिया के तानों से
सिर्फ़ चुकाना होगा

Monday, December 17, 2012

मुक्ति की भाषा

"सुनो .."
तुम लिखती हो न कविता?"
"हाँ " लिखती तो हूँ
चलो आज बहुत मदमाती हवा है
रिमझिम सी बरसती घटा है
लिखो एक गीत प्रेम का
प्यार और चाँदनी जिसका राग हो
मदमाते हुए मौसम में यही दिली सौगात हो
गीत वही उसके दिल का मैंने जब उसको सुनाया
खुश हुआ नज़रों में एक गरूर भर आया,

फ़िर कहा -लिखो अब एक तराना
जिसमें इन खिलते फूलों का हो फ़साना
खुशबु की तरह यह फिजा में फ़ैल जाए
इन में मेरे ही प्यार की बात आए
जिसे सुन के तन मन का
रोआं रोआं महक जाए
बस जाए प्रीत का गीत दिल में
और चहकने यह मन लग जाए
सुन के फूलों के गीत सुरीला
खिल गया उसका दिल भी जैसे रंगीला

वाह !!....
अब सुनाओ मुझे जो तुम्हारे दिल को भाये
कुछ अब तुम्हारे दिल की बात भी हो जाए
सुन के मेरा दिल न जाने क्यों मुस्कराया
झुकी नज़रों को उसकी नज़रों से मिलाया
फ़िर दिल में बरसों से जमा गीत गुनगुनाया
चाहिए मुझे एक टुकडा आसमान
जहाँ हो सिर्फ़ मेरे दिल की उड़ान
गूंजे फिजा में मेरे भावों के बोल सुरीले
और खिले रंग मेरे ही दिल के चटकीले
कह सकूं मैं मुक्त हो कर अपनी भाषा
इतनी सी है इस दिल की अभिलाषा..


सुन के उसका चेहरा तमतमाया
न जाने क्यों यह सुन के घबराया
चीख के बोला क्या है यह तमाशा
कहीं दफन करो यह मुक्ति की भाषा
वही लिखो जो मैं सुनना चाहूँ
तेरे गीतों में बस मैं ही मैं नज़र आऊं...

तब से लिखा मेरा हर गीत अधूरा है
इन आंखो में बसा हुआ
वह एक टुकडा आसमान का
दर्द में डूबा हुआ पनीला है.....

Friday, December 14, 2012

आजीबो गरीब सनक

कवि निराला जी के बारे में एक घटना पढ़ रही थी कि ,वह एक दिन लीडर प्रेस से रोयल्टी के पैसे ले कर लौट रहे थे | उसी राह में महादेवी जी का घर भी पड़ता था |उन्होंने सोचा की चलो मिलते चलते हैं उनसे .|ठण्ड के दिन थे अभी कुछ दूर ही गए होंगे कि सड़क के किनारे एक बुढिया उन्हें दिखायी दी जो ठण्ड से कांप रही थी और याचक भाव से उनकी तरफ़ देख रही थी | उस पर दया आ गई उन्होंने उसको न सिर्फ़ अपनी रोयल्टी के मिले पैसे दे दिए बलिक अपना कोट भी उतार कर दे दिया ..., और महदेवी के घर चल दिए किंतु चार दिन बाद वह यही भूल गए कि कोट क्या हुआ | उस को ढूढते हुए वह महादेवी जी के घर पहुँच गए ,जहाँ जा कर उन्हें याद आया कि वह कोट तो उन्होंने दान कर दिया था |

पढ़ कर लगा कि इस तरह जो डूब कर लिखते हैं या प्रतिभाशाली लोग होते हैं ,वह इस तरह से चीजो को भूल क्यों जाते हैं ? क्या किसी सनक के अंतर्गत यह ऐसा करते हैं ? या इस कद्र डूबे हुए होते हैं अपने विचारों में कि आस पास का कुछ ध्यान ही नही रहता इन को ।विद्वान मन शास्त्री का यह कहना है कि जब व्यक्ति की अपनी सारी मानसिक चेतना एक ही जगह पर केंद्रित होती है वह उस सोच को तो जिस में डूबे होते हैं कामयाब कर लेते हैं पर अपने आस पास की सामान्य कामो में जीवन को अस्तव्यस्त कर लेते हैं जो की दूसरों की नज़र में किसी सुयोग्य व्यक्ति में होना चाहिए |

इसके उदाहरण जब मैंने देखे तो बहुत रोचक नतीजे सामने आए .,.जैसे की वाल्टर स्काट यूरोप के एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं ,वह अक्सर अपनी ही लिखी कविताओं को महाकवि बायरन की मान लेते थे और बहुत ही प्यार से भावना से उनको सुनाते थे |उन्हें अपनी भूल का तब पता चलता था ,जब वह किताब में उनके नाम से प्रकशित हुई दिखायी जाती थी |

इसी तरह दार्शनिक कांट अपने ही विचारों में इस तरह से गुम हो जाते थे कि , सामने बैठे अपने मित्रों से और परिचितों से उनका नाम पूछना पड़ता था और जब वह अपने विचारों की लहर से बाहर आते तो उन्हें अपनी भूल का पता चलता और तब वह माफ़ी मांगते |

फ्रांस के साहित्यकार ड्यूमा ने बहुत लिखा है पर उनकी सनक बहुत अजीब थी वह उपन्यास हरे कागज पर ,कविताएं पीले कागज पर ,और नाटक लाल कागज पर लिखते थे | उन्हें नीली स्याही से चिढ थी अत जब भी लिखते किसी दूसरी स्याही से लिखते थे |

कवि शैली को विश्वयुद्ध की योजनायें बनाने और उनको लागू करने वालों से बहुत चिढ थी | वह लोगो को समझाने के लिए लंबे लंबे पत्र लिखते |पर उन्हें डाक में नही डालते, बलिक बोतल में बंद कर के टेम्स नदी में बहा देते और सोचते की जिन लोगो को उन्होंने यह लिखा है उन तक यह पहुँच जायेगा | इस तरह उन्होंने कई पत्र लिखे थे |

जेम्स बेकर एक जर्मन कवि थे वह ठण्ड के दिनों में खिड़की खोल कर लिखते थे कि , इस से उनके दिमाग की खिड़की भी खुली रहेगी और वह अच्छा लिख पायेंगे |

चार्ल्स डिकन्स को लिखते समय मुंह चलाने की और चबाने की आदत थी | पूछने पर कि आप यह अजीब अजीब मुहं क्यों बनाते लिखते वक्त ..,तो उसका जवाब था कि यह अचानक से हो जाता है वह जान बूझ कर ऐसा नही करते हैं |

बर्नाड शा को एक ही अक्षर से कविताएं लिखने की सनक थी |उन्होंने अनेकों कविताएं जो एल अक्षर से शुरू होती है उस से लिखी थी ..,पूछने पर वह बताते कि यह उनका शौक है |

तो आप सब भी प्रतिभशाली हैं ,खूब अच्छे अच्छे लेख कविताएं  लिखते हैं .| सोचिये- सोचिये आप किसी आजीबो गरीब सनक के तो शिकार नही :) कुछ तो होगा न जो सब में अजीब होता है .. | जब मिल जुल कर हम एक दूसरे के अनुभव, कविता, लेख पढ़ते हैं तो यह क्यूँ नही ।:) वैसे मेरी सनक है बस जब दिल में आ गया तो लिखना ही है ....और जब दिल नहीं है तो नहीं लिखना ......चाहे कितना भी जरुरी क्यों नहीं हो ...मतलब मूड स्विंग्स :)जल्दी जल्दी लिखे आप सब में क्या अजीब बात है मुझे इन्तजार रहेगा आप सब की सनक को जानने का ॥:)#रंजू भाटिया

Wednesday, December 12, 2012

ख्वाइश एक छोटी सी

तुम्हे सुना देंगे
अपने दिल की हर बात यूँ ही
शायद कुछ दर्द
थम भी जायेगा
पर कैसे मिटा पायेंगे
इस  रूह के जख्म
:
:
बस एक छोटी सी ख्वाइश है .........
दिल चाहता है कि..

तेरा कन्धा मिले तो
जी भर के रो सकूँ मैं सिर्फ़ एक बार ....

Monday, December 10, 2012

एक टुकडा धूप का

कुछ भीगे से एहसास
एक टुकडा धूप का
चाहती हूँ मिल जाए
छुए मेरे अंतर्मन को
और जमते सर्द भावों को
गुदगुदा के जगा जाए
गुजरे रात हौले धीरे
वह एहसास जो जीने की चाहत दे जाए
डूबती साँसों के इन लम्हों में
अब तो यह धुंधलका छट    जाए
उदय हो अब तो वह सुबह
जो शून्य से धड़कन बन जाए
बस एक टुकडा नर्म धूप के एहसासों का
एक बार तो ज़िन्दगी में मेरी आए !

Friday, December 07, 2012

किशोर चौधरी और उनका लिखा मेरी कलम से .............

किशोर चौधरी ..........


.परिचय .....रेत के समंदर में बेनिशाँ मंज़िलों का सफ़र है. अतीत के शिकस्त इरादों के बचे हुए टुकड़ों पर अब भी उम्मीद का एक हौसला रखा है. नौजवान दिनों की केंचुलियाँ, अख़बारों और रेडियो के दफ्तरों में टंगी हुई है. जाने-अनजाने, बरसों से लफ़्ज़ों की पनाह में रहता आया हूँ. कुछ बेवजह की बातें और कुछ कहानियां कहने में सुकून है. कुल जमा ज़िन्दगी, रेत का बिछावन है और लोकगीतों की खुशबू है.
रुचि ----आकाशवाणी से महीने के 'लास्ट वर्किंग डे' पर मिलने वाली तनख्वाह
पसंदीदा मूवी्स--- जब आम आदमी किसी फिल्म को देखने का ऐलान करता है, टिकट खिड़की पर मैं भी अपना पसीना पौंछ लेता हूँ.
पसंदीदा संगीत ---लोक गीत और उनसे मिलते जुलते सुर बेहद पसंद है. कभी-कभी उप शास्त्रीय और ग़ज़लें सुनता हूँ.
पसंदीदा पुस्तकें ---किताबों को पढने की इच्छा अभी भी कायम है.























जिसका परिचय ही इतना रोचक हो ..उसके लिखे हुए को पढना कैसा होगा ,यह पढने वाला खुद ही जान सकता है :)

किशोर चौधरी के लिखे से मैं वाकिफ हुई जब से मैंने उनका ब्लॉग हथकड़  और बातें बेवहज पढ़ी | बातें जो कविता की तरह से    लिखी गयी थी वह बेवजह ही लिखी गयी थी पर वह इतनी पसंद आने की वजह बन गयी कि  मैंने उनके प्रिंट आउट ले कर कई बार पढना शुरू किया और किशोर जी को सन्देश भी भेजा हो सके तो आप इन बातो को एक किताब की शक्ल में ले आयें ..मेरी तरह बहुत से पाठक आपको यूँ पढना चाहेंगे ..पर मैं अदना सी पाठक ,बात गोल मोल जवाब में खतम हो गयी | अब किशोर जी के दो संग्रह बातें बेवजह और चौराहे पर सीढियां एक साथ आये और उनसे दिल्ली में मिलना भी हुआ तो मैंने उन्हें यह बात याद दिलाई ..और ख़ुशी जाहिर की ..कि मेरे जैसे उनके पढने वालों के लिए यह एक बहुत बढ़िया तोहफे जैसा है | किशोर जी से मिलना भी एक तरह से मेरे लिए उनके लिखे से मिलना था | वह अक्सर पूछी गयी बातों का बहुत मुक्तसर सा जवाब देते हैं ...जिस से पता चलता है कि वह बहुत कम बोलने वाले इंसान हैं ,पर मिलने पर ऐसा नहीं लगा ..जितनी देर उनके साथ बैठने का वक़्त मिला उनको सुना ,उनके लिखने की वजह को सुना ..और वह क्या सोच कर कैसा लिखते हैं वह पढ़े गए कई किरदार .कई बातें बेवजह मेरे मन में अन्दर चलती रही|उनकी ज़िन्दगी की बातें उनकी  बाते बेवजह में ..सामने आती रही
ज़िन्दगी गुल्लक सी होती तो कितना अच्छा होता
सिक्के डालने की जगह पर आँख रखते
और स्मृतियों के उलझे धागों से बीते दिनों को रफू कर लेते.
...सच में ऐसा होता तो क्या न होता फिर ..
लिखना कैसे शुरू हुआ ....कहानी का पूछने पर उन्होंने बताया कि वह लिखते थे बहुत पहले से पर हर साल उन डायरी /कापी को फाड़ दिया करते थे .ताकि उनको कोई और न पढ़ सके क्यों कि उस समय उस में उम्र की वो नादानियाँ भी शामिल हो जाती थी जो समय के साथ हर इंसान जिनसे वाकिफ होता है ..फिर खुद उन्ही के शब्दों में "मैंने यूं ही कहानियाँ लिखनी शुरू की थी। जैसे बच्चे मिट्टी के घर बनाया करते हैं। ये बहुत पुरानी बात नहीं है। साल दो हज़ार आठ बीतने को था कि ब्लॉग के बारे में मालूम हुआ। पहली ही नज़र में लगा कि ये एक बेहतर डायरी है जिसे नेट के उपभोक्ताओं के साथ साझा किया जा सकता है।"हर महीने कहानी लिखी। कहानियाँ पढ़ कर नए दोस्त बनते गए। उन्होने पसंद किया और कहा कि लिखते जाओ, इंतज़ार है। कहानियों पर बहुत सारी रेखांकित पंक्तियाँ भी लौट कर आई। कुछ कच्ची चीज़ें थी, कुछ गेप्स थे, कुछ का कथ्य ही गायब था। मैंने मित्रों की रोशनी में कहानियों को फिर से देखा। मैंने चार साल तक इंतज़ार किया। इंतज़ार करने की वजह थी कि मैं समकालीन साहित्यिक पत्रिकाओं से प्रेम न कर सका हूँ। इसलिए कि मैं लेखक नहीं हूँ। मुझे पढ़ने में कभी रुचि नहीं रही कि मैं आरामपसंद हूँ। मैं एक डे-ड्रीमर हूँ। जिसने काम नहीं किया बस ख्वाब देखे। खुली आँखों के ख्वाब। लोगों के चेहरों को पढ़ा। उनके दिल में छुपी हुई चीजों को अपने ख़यालों से बुना। इस तरह ये कहानियाँ आकार लेती रहीं।..और आज हमारे सामने एक संग्रह के रूप में है |
           उनके डे  ड्रीमर में एक रोचक बात उन्होंने पेंटिंग सीखने की भी बताई कि कैसे उनके पिता जी ने उन्हें पेंटिंग सीखने के लिए भेजा और सिखाने वाले गुरु जी तो अपनी पेंटिंग सामने कुदरती नज़ारे को देख कर खो कर सीखा गए और किशोर जी आँखे खोले ड्रीम में खोये रहे कि उनकी पेंटिंग बहुत बढ़िया बनी है और लोग वाह वाही कर रहे हैं ..और गुरु जी के कहने पर ,आँख खुलने पर सामने खाली कैनवास था ..मजेदार रहा यह सुनना उनके खुद की  जुबानी ..पर क्या यह मन का कैनवास वाकई कोरा रहा होगा .??.यहाँ तो कई सुन्दर कहानियाँ और बाते बेवजह जन्म ले रही थी |
उनसे हुई बात चीत में यह बातें वहां उनके जुबानी भी सुनी और उनकी नजरों से उनके लफ़्ज़ों में दिल्ली को भी देखा ..आईआईटी की दूजी तरफ
पश्चिमी ढब के बाज़ार सजे हैं
कहवाघरों के खूबसूरत लंबे सिलसिलों में
खुशबाश मौसम, बेफिक्र नगमें, आँखों से बातों की लंबी परेडें
कोई न कोई कुछ तो चाहता है मगर वो कहता कुछ भी नहीं है।

सराय रोहिल्ला जाते हुये देखता हूँ कि
सुबह और शाम, जाम में अकड़ा हुआ सा
न जाने किस ज़िद पे अड़ा ये शहर है। ये अद्भुत शहर है, ये दिल्ली शहर है।
...दिल्ली शहर को इस नजर से देखना वाकई अदभुत लगा |मुझे पढ़ कर ऐसा लगा कि  लिखने वाला दिल, दिमाग अपनी ही सोच में उस शहर को लिखता है परखता है ..वह बहुत बार दिल्ली आये होंगे पर मैं अब भी याद करूँ तो उनकी वही उत्सुक सी निगाहें याद आती है जो बरिस्ता कैफे के आस पास घूमते .बैठे लोगो को देख रही थी .सोच रही थी .और मन ही मन कुछ न कुछ लफ्ज़ बुन  रही थी |पक्के तौर पर कह सकती हूँ कि  जो सोचा बुना गया उस वक़्त ,वह हम हो सकता है आगे आने वाली कहानियों में पढ़े या बातें बेवजह में सुने |
             उनके संग्रह चौराहे पर सीढियां कहानियों पर कुछ लिखा है पहले भी ..पर वो सिर्फ तीन पढ़ी कहानियों पर था .जैसे जैसे उनकी और कहानियाँ पढ़ी ..उनके लिखे से उन्हें और समझने की कोशिश जारी रही ..कोई भी कहानी यदि आपके जहन पर पढने के बाद भी दस्तक देती रहे तो वह लिखना सार्थक हो जाता है | और जब पढने वाला पाठक यह महसूस करे की उन में लिखे कई वाक्य  बहुत कुछ ज़िन्दगी के बारे में बताते हैं और उन में साहित्य ,ज़िन्दगी का फलसफा मौजूद है .साथ ही यह भी कि  हर कहानी ऐसी नहीं की आप समझ सको पर उसने में लिखी बातें आपको कुछ सोचने समझने पर मजबूर कर दे तो लिखना वाकई बहुत असरदार रहा है लिखने वाले का | यह संग्रह अपनी चौदह कहानियों में कही गयी किसी न किसी बात से पढने वाले के दिलो दिमाग पर दस्तक देता रहेगा ...बेशक यह एक बैठक में न पढ़ा जाए पर यदि आप अच्छा साहित्य पढने वालों में से हैं तो यह संग्रह आपकी बुक शेल्फ में अवश्य होना चाहिए | चौराहे पर सीढियां यह शीर्षक ही पढने वाले को एक ऐसी जगह में खड़ा कर देता है कि  आप अपना रास्ता किस तरह से कहाँ कैसे चुनना चाहते हैं वह आपके ऊपर है |समझना भी शायद आपके ऊपर है कि  आप उसको कैसे लेते हैं .बाकी पढने वालों का पता नहीं .पर मैं अक्सर कई कहानियों में गोल गोल सी घूम गयी ..और वह मेरे पास से हो कर गुजर गयी ..यही कह सकती हूँ शायद वह सीढियां जो बुनी गयी लफ़्ज़ों में ,मैं उन पर चढ़ने समझने में नाकाम रही ...लिखने वाले ने अपनी बात पूरी ईमानदारी से लिखी होगी |
....अब कुछ बातें उनकी बेवजह बातों पर ....मुझे वह बातें कभी कविता सी नहीं लगी .बस बातें लगी जो अक्सर हम खुद बा खुद से करते हैं ,या अक्सर मन ही मन कुछ बुनते रहते हैं लफ़्ज़ों में .....मुझे यह बेवजह बातें दिली रूप से पसंद हैं क्यों कि मुझे यह दिल की  आवाज़ लगीं और जब जब पढ़ा सीधे दिल में उतरीं ..और जब किशोर जी से जाना की क्यों उन्होंने यह बेवजह बातें लिखनी शुरू की तो एक मुस्कान मेरे चेहरे पर आ गयी .अक्सर ज़िन्दगी आपको उन लोगो से मिला देती है जिस को आप बहुत कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते हैं ..मेरे ख्याल से यदि वह बाते कहने वाले के हाथ में कलम है तो इस से बेहतर जरिया कोई नहीं हो सकता अपनी बातों को कहने का ..पर चूँकि यह बातें बेवजह है ..सो यह आसानी से अपनी जगह आपके दिल में भी बना लेती है .और  मुझे लगता है कि  हर इंसान कभी न कभी इस मोड़ से इस राह से गुजरा
जरुर है ....

तुम ख़ुशी से भरे थे
कोई धड़कता हुआ सा था
तुम दुःख से भरे थे
कोई था बैठा हुआ चुप सा. ....
......और यह सब कुछ  उसके बारे में है जो है ही नहीं

सब कुछ उसी के बारे में है
चाय के पतीले में उठती हुई भाप
बच्चों के कपड़ों पर लगी मिट्टी
अँगुलियों में उलझा हुआ धागा
खिड़की के पास बोलती हुई चिड़िया।

....इन बातों बेवजह में अक्सर शैतान  का जिक्र आया है जो कहीं अपनी ही आवाज़ सा लगता है ....
हवा में लहराती हरे रंग की एक बड़ी पत्ती से
प्रेम करने में मशगूल था, हरे रंग का टिड्डा
पीले सिट्टे की आमद के इंतज़ार में थी पीले रंग की चिड़िया
शैतान ने सोचा आज उसने पहना होगा, कौनसा रंग.
....यह सवाल बहुत साधारण सा होता हुआ भी ख़ास सा लगता है | उनकी बाते बेवजह में उनके रहने की मिटटी का रंग भी अक्सर कई जगह पढने को मिला है जो एक स्वाभविक रंग है आप जहां रहते हैं वहां का होना आपके लिखे में सहजता से अपनी जगह बना लेता है ..........उन्ही के शब्दों में ..किसी शाम को छत पर बैठे हुये सोचा होगा कि यहाँ से कहाँ जाएंगे। बहेगी किस तरफ की हवा। कौन लहर खेलती होगी बेजान जिस्म से। किस देस की माटी में मिल जाएगा एक नाम, जो इस वक़्त बैठा हुआ है तनहा। उसको आवाज़ दो। कहो कि तनहाई है। बिना वजह की याद के मिसरे हैं। रेगिस्तान में गीली हवा की माया है। पूछो कि तुम कहीं आस पास हो क्या? अगर हो तो सुनो कि मेरे ख़यालों में ये कैसे लफ़्ज़ ठहरे हैं…. "
स्त्री मन के कई रंग भी उतरे हैं उनकी बाते बेवजह में ........
ख़ूबसूरत औरतें नहीं करती हैं
बदसूरत औरतों की बातें
वे उनके गले लग कर रोती हैं। 
दुःख एक से होते हैं, अलग अलग रंग रूप की औरतों के।  ......यदि कोई पुरुष मन इस बात को समझता है तो वह बहुत बेहतरीन तरीके से ज़िन्दगी को समझ सकता है |बाते बेवजह बहुत सी है और उन पर जितना लिखा जाए वह बहुत कम ...किशोर जी का लिखा और उनसे मिलना मुझे कहीं से भी एक दूजे से जुदा नहीं लगा | एक बहुत सरल ह्रदय इंसान जो लिखता तो खूबसूरती से है ही उतना  ही जुड़ा हुआ है अपनी मिटटी से अपने परिवार से ...और अपने पढने वाले पाठकों से ...बाते बेवजह चढ़ रही है धीरे धीरे कहानी बुनती हुई अपनी सीढियां कदम दर कदम और अपने होने के एहसास जगा रही है हर पढने वाले के दिल में |यही बहुत बड़ी बात है | कोई भी लिखने वाला आगे तभी बढ़ पाया है जब उसको पढने वालों से सरहाना मिली है प्यार मिला है और किशोर जी की झोली में उनके पाठकों ने यह भरपूर दिया है |
           पहले कदम हैं अभी इन सीढ़ियों पर चढ़ने पर ..कुछ अलग से लग सकते हैं पर मजबूत हैं और अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे जरुर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है और साथ ही यह भी कि ब्लॉग के लेखन से शुरू हुआ यह सफ़र अब आगे और भी लिखने वालों को ,पढने वालों को एहसास दिलवा देगा की ब्लॉग लेखन सिर्फ समय खर्च या पास करने का जरिया नहीं है यह आगे साहित्य को समृद्ध करने का रास्ता भी है | चलते चलते उन्ही का बताया हुआ याद आया कि उनके डे ड्रीम में एक ऐसा मंच भी है या था अब भी (किशोर जी यह  बेहतर जानते होंगे) कि वह रेड कारपेट पर चल रहे हैं आस पास बहुत सी सुन्दर कन्याएं  हैं :)  और वाकई उनको आज प्यार करने वालों और चाहने वालों की कमी नहीं है ...आज जब उनके दो संग्रह आ चुके हैं तो लगता है यह ड्रीम असल में रंग जरुर जाएगा यही दुआ है कि वह ज़िन्दगी के सुन्दर रास्ते पर ..यूँ ही मंजिल दर मंजिल सीढियां चढ़ते रहे | उन्ही की लिखी एक बेवजह बात ..जो मुझे बेहद बेहद पसंद है ,क्यों कि यह बहुत सच्ची है ज़िन्दगी सी . और कम से कम मेरे दिल के तो बहुत ही करीब है

दरअसल जो नहीं होता,
वही होता है सबसे ख़ूबसूरत
जैसे घर से भाग जाने का ख़याल
जब न हो मालूम कि जाना है कहां.

लम्बी उम्र में कुछ भी अच्छा नहीं होता

ख़ूबसूरत होती है वो रात, जो कहती है, न जाओ अभी.

ख़ूबसूरत होता है दीवार को कहना, देख मेरी आँख में आंसू हैं

और इनको पौंछ न सकेगा कोई
कि उसने जो बख्शी है मुझे, उस ज़िन्दगी का हाथ बड़ा तंग है.

कि जो नहीं होता, वही होता है सबसे ख़ूबसूरत. 



 चौराहे पर सीढ़ियाँ/कहानियाँ/ पृष्ठ 160/ मूल्य 95 रु./ प्रकाशक हिन्द युग्म/

यह जीवन यूँ ही चलेगा

बदल गयी है सभी प्रथाएं
बदली बदली सी सभी निगाहें
उगने लगी है अब अन्याय की खेती
मुट्ठी में बस रह गयी है रेती

पर यह जीवन तब भी चलेगा
लिखा वक़्त का कैसा ट्लेगा

खो गये सब गीत बारहमासी
ख़्यालो में रह गये अब पुनू -ससी
अर्थ खो रही हैं सब बाते
सरगम के स्वर अब ना रिझाते

पर यह जीवन कैसे रुकेगा
लिखा वक़्त का हो के रहेगा

लोकतंत्र बीमार यहाँ है
जनमानस सहमा खड़ा है
मूक चेतना ठिठुर गयी है
चिरपरिचित भी अब अनजान मिलेगा

पर यह जीवन यूँ ही चलेगा
हर रंग में ढल के बहेगा

हरी धरती अब बंजर हुई है
अधरो की प्यास सहरा हुई है
सूखी शाखो पर फूल कैसे खिलेगा
यह पतझर अब कैसे वसंत बनेगा

पर यह जीवन यूँ ही चलेगा
लिखा वक़्त का कैसे ट्लेगा

माया के मोह में बँधा है जीवन
हर श्वास हुई यहाँ बंजारिन
जीना यहाँ बना है एक भ्रम
आँखो का सुख गया ग़ीलापन

पर भावों का गीत यह दिल  फिर भी बुनेगा
यह जीवन यूँ ही चला है ,
चलता रहेगा 

Tuesday, December 04, 2012

चौराहे पर सीढियां




समपर्ण ..--अत्याचार की मौन स्वीकृति ,वफ़ा -तू जो चाहे करने की अनुमति दे .पतिता --जो साथ सोने से इनकार कर दे .वार्डन--सरकार की ओर  से नियुक्त किये गए दलाल .इसके बाद ज़िन्दगी लिख कर कई सारे अपमानजनक शब्द लिखे गए हैं ......यह परिभाषाएं हैं चौराहे पर सीढियां ..किशोर चौधरी द्वारा लिखित कहानी संग्रह की .अंजली तुम्हारी डायरी से तुम्हारे ब्यान मेल नहीं खाते ..कहानी  से ........हर कहानी अपनी बात मन के गहरे में यूँ कह जाती है कि  उसको भूलना मुश्किल हो जाता है ...इस किताब की समीक्षा करना बहुत मुश्किल है ..क्यों कि  यह कहानियाँ सिर्फ कहानियाँ ही नहीं है ,ज़िन्दगी में रोज़ उगते सूरज ओर ढलती शाम के बीच की बातें हैं ...जिन में रात के अनकहे अंधेरों की सच्चाई भी है और सुबह उगते सूरज की रौशनी में ओस की बूंदों में छिपी दर्द की आवाज़ भी है | यह कहानियाँ एक ही बैठक में पढ़ ली जाएँ ,यह मुमकिन नहीं है .इनको पढना और फिर जुगाली की तरह उनको मन में मंथन में डुबोना ही सही समझने की बात को समझ पाना है |
..मैंने अभी तक इस संग्रह में तीन कहानियाँ ही पढ़ी हैं और वह ही मेरे जहन से उतर नहीं रही हैं ....आज की इस बात में सिर्फ उन कहानियों में आई पंक्तियों की बात .और उनको समझने की बात ...: यह लिखी पंक्तियाँ ही इन कहानियों की समीक्षा है .....जो खुद ही अपनी बात कहती है ...
अंजलि तुम्हारी डायरी से बयान मेल नहीं खाते .."ज़िन्दगी आज में तुम्हारा आभार व्यक्त करना चाहती हूँ |सिगरेट के कडवे और नशे भरे स्वाद के लिए .मुह्बब्त के होने और खोने का एहसास को समझाने के लिए ,सबको अलग सुख और अलग तरीके की तकलीफ देने के लिए ,भेड़ियों के पंजो से भाग जाने का साहस देने के लिए और मनुष्य को बुद्धि देने के लिए की वह शुद्ध और पीड़ा रहित जहर बना सकने में कामयाब हुआ |" ....यह पंक्तियाँ और यह कहानी इतनी सच्ची है की यह भूल नहीं सकते आप इसको पढने के बाद ...अंजली करेक्टर आपके आस पास घूमता रहता है और हर लिखी पंक्ति में अपनी बात अपने होने के एहसास दिलाता रहता है |

दूसरी कहानी जो मैंने पढ़ी इस संग्रह में गली के छोर पर अँधेरे में डूबी एक खिड़की ..शुरू होती है बहुत साधारण  ढंग से यह कहानी सुदीप और रेशम की मुलाकतों की ....और फिर पढने वाला पाठक भी खुद को उस गली ,खिड़की के पास होने को महसूस करता है .किशोर जी की लिखी कहानी की यह विशेषता उसे पढने वाले को अलग नहीं होने देती ..."वह पगलाया हुआ दुधिया रौशनी के बिछावन पर खड़ा खिड़की को चूमता रहता था |कुछ नयी खुशबुएँ भी उस खिड़की में पहली बार मिली |एक रात इसी उन्माद में वह अपने सात रेशम की चुन्नी ले आया|वह रेशम के वजूद को टुकड़ों में काट कर अपने भीतर समेट लेना चाहता था |"पर यही कहानी आगे चल कर ऐसा मोड़ ले लेती है समझ के भी सब कुछ अनजाना सा महसूस होने लगता है ..ठीक इन लिखी पंक्तियों की तरह ..चाहे आप खुश हैं या दुखी .ये ज़िन्दगी अजब गलतफहमियों का पिटारा है |हरे भरे जंगलों में आग लगती है और वे राख में बदल जाया करते हैं |हम सोचते हैं कि  जंगल बर्बाद हो गया लेकिन उसी राख से नयी कोंपलें फूटती है |" पढने में यह पंक्तियाँ किसी फिल्सफी सी लगती है पर ज़िन्दगी के सच के बहुत करीब हैं |
इस कहानी का अंत .मुझे अभी तक असमंज में डाले हुए हैं कि  ..आखिर उस रात खिड़की पर कौन था ?इस कहानी के नायक सुदीप की तरह :)
तीसरी कहानी जो पढ़ी है वह है एक फासले के दरम्यान खिले हुए चमेली के फूल ....सफ़ेद खिले हुए यह फूल जब किसी याद से जुड़े हुए होते हैं तो कैसा सर्द और जलन का आभास देते हैं यह इस कहानी को पढ़ कर जाना जा सकता है ...एक घर ..घर के आँगन में लगी चमेली के फूल की बेल ...नैना और तेजिन्द्र सिंह के लिए एक यादों का जरिया है जो अपने खिले सफ़ेद फूलों से नैना के लिए बीती ज़िन्दगी का दर्द हैं वहीँ तेजिंदर के लिए उस बेटे की लगाईं बेल जो उसने अपनी माँ की पसंद को जान कर वहां लगाई थी पर  अब वहां नहीं रहता  ...उन फूलों की खुशबु दोनों के लिए एक दर्द की कसक है पर दोनों सिर्फ उसी कसक में अपनी जिंदगी सहजते रह जाते हैं .इंसान जिस चीज़ से पीछा छुड़ाना चाहता है कभी कभी वो ही अतीत सबसे ज्यादा शिद्द्त से पीछा करता है....यही इसी कहानी में नजर आता है |
 ...आसमां से टूटे तारे के बचे हुए अवशेष जैसा या फिर से हरियाने के लिए खुद को ही आग लगाते जंगल जैसा. जैसे जंगल खुद को आग लगता है वैसे ही कई पंछी भी आग में कूद जाते हैं. जंगल अपनी मुक्ति के लिए दहकता है या अपने प्रिय पंछियों के लिए,.....किशोर जी लिखने की यही विशेष शैली मन्त्र मुग्ध कर देती है .....यह कहानी भी ज़िन्दगी की सच्चाई के बहुत करीब की लगती है .वो परिवेश जिस में यह ढली है अपना सा ही लगता है ...यह कहानी बहुत दिनों तक याद रहने वाली है ..अपने कुछ विशेष भावों के साथ और आपकी लिखी इस जैसी कई पंक्तियों के साथ .जैसे यह ...."ये तुम्हारी ज़िद थी, और घर भी... मैं इसका भागीदार नहीं हूँ"किशोर जी की लिखी कहानियाँ भी यूँ ही कसक सी दे जाती है अंतर्मन में और महकती हैं इन्ही  सफ़ेद फूलों की तरह ..हर कहानी का अंत सुखद हो यह जरुरी नहीं है ...अतीत में डूबे दोनों पात्र क्यों अपनी ज़िन्दगी के दर्द से उभर नहीं पाते यह सवाल भी सहसा मन में आता है | क्यों उस सफ़ेद फूलों में अपने अतीत के साथ वर्तमान को जी रहे हैं यह सोच साथ साथ छलकती रही है उनके लिखे शब्दों में |
इनकी लिखी कहानियों के बारे में अधिक लिखना मेरे लिए बहुत संभव नहीं है ,बस यह वह कहानियाँ है जिस में आप खुद को पाते हैं ,इन में लिखे वाक्य आपको अपने कहे लगते हैं ..दर्द की लहर जब पढ़ते हुए पैदा होती है तो वह लहर अपने दिल से उठती हुई सी लगती है .."जगह जगह उगा हुआ खालीपन" जैसे शब्द आपको अपने अन्दर खालीपन का एहसास करवाते हैं |
बहुत कुछ लिखा जा चुका है अब तक किशोर जी के लिखे इस संग्रह के बारे में ...अधिक क्या लिखूं यह अभी तक पढ़ी गयी कहानियों में मेरी पंसद की पंक्तियाँ है ....बहुत बढ़िया शुरुआत है यह हिंदी कहानी में इस संग्रह के साथ ..आगे और भी बेहतर पढने को मिलेगी इसी उम्मीद के साथ फिर कोशिश करुँगी कुछ और लिखने की उनकी पढ़ी कहानियों पर .....आप यह किताब इन्फीबीम और फ्लिप्कार्ट से ले सकते हैं 

Monday, December 03, 2012

बेसूझ साया

किसी के प्यार की बाते
मुझे सोने नही देती
दिल के धड़कनो में गूँजती
उसकी आहटे सोने नही देती

बहक रहा है यह
किस बात से यह रात का आलम
फूलो सी महकती
उस बेसूझ साये की ख़ुश्बू
मुझे सपनो में खोने नही देती

सितारे भी चल दिए हैं
अब तो रात का आँचल छोड़ कर
सुबह की ओस में डूबी
दिल के धड़कनो में गूँजती
उसकी आहटे सोने नही देती
सुबह होने नही देती

छाया हुआ है वही
मेरे वजूद पर एक बेसुझ साए की तरह
उसकी यही परछाईयाँ
मुझे किसी और का होने नही देती !!