Saturday, June 30, 2012

क्या होता है सही में पूर्वाभास ?

ज़िंदगी में अक्सर हमे पूर्वभास होने लगता है .किसी का ख़्याल अचानक से आ जाता है, संसार में जो कुछ होता है उसके पीछे कुछ ना कुछ कारण ज़रूर होता है कुछ का पता लग जाता है ! कुछ हम नही जान पाते टेलीपेथी से कई बार हम दूर घटने वाली घटनाओं को महसूस कर लेते हैं! कभी कभी ऐसी बाते आ जाती है दिल में की यह काम नही करना चाहिए ,इसको करने से अच्छा होगा या बुरा होगा ..जबकि कुछ कारण हमारे पास नही होता .किसी व्यक्ति को देख के हम ख़ुश हो जाते हैं .किसी को देख के बात करने का दिल नही होता इसका कोई स्पष्ट कारण नही है !सेन्स ना केवल इंसानो के पास बलिक जानवारों के पास भी होती है ,जानवरों  में होने वाली घटना का आभास हो जाता है जैसे भूचाल आने से पहले कुत्ते ज़ोर ज़ोर से भोंकने लगते हैं चिड़िया अपने घोंसलों से बाहर निकल आती है !

जब कोई काम ग़लत होना होता है तो बुद्धि भी वैसे ही हो जाती है इसके लिए एक पुरानी कहावत है की ""विनाश काले विपरीत बुद्धि ""कहते हैं ईश्वर ने जिसको दुख देना होता है उसकी बुद्धि पहले ही हर लेता है और यदि किसी के अच्छे दिन है तो सब काम ठीक से हो जाते हैं !!

पर आख़िर यह पूर्वभास होते कैसे हैं और क्यों होते हैं ? जब हम किसी घटना को सुनते हैं तो वो हमारे दिमाग़ पर अंकित हो जाते हैं और जब हम किसी घटना को सुनते हैं या देखते हैं उसका संकेत हमारे मस्तिष्क तक चला जाता है ,मस्तिष्क अपने पास संग्रहित अनुभवों से उस घटना का मिलान करता है तब कोई निर्णय लेता है यही निर्णय व्यक्ति को आभास या पूर्वभास के रूप में महसूस करता है ..पर कभी कभी हमारे इस निर्णय का अन्य कारणों पर भी प्रभाव पड़ता है जैसे परिवार का दबाब या अन्य कोई कारण !!
और अनुभवों के आधार पर हमेशा ही सब सही बात साबित हो यह सही नही है .कभी कभी हमारे अनुभवों से उल्टा भी कुछ घट जाता है ...अब कुछ घटनाओं पर हमारा कोई बस नही होता है ...


सकारात्मक और नकारात्मक का भी पूर्वाभासों पर प्रभाव पड़ता है अनुभवों के आधार पर पूर्वभासों पर इंसान अपनी भावी योजना बनता है अब यह बात अलग है की वो कितनी सफल हो पाती है कितनी नही ..इस लिए जैसे जैसे अनुभव बढता जाता है वैसे ही इन पर आधारित निर्णय भी सही होते जाते हैं ..

कभी कभी मौन रह कर भी मन की बात लोगों तक पहुँच ही जाती है ,शायद यही टेलीपेथिक सेन्स है इस के ज़रिए हम कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं! मन से मन के तार जुड़े होते हैं और मन से मन का अदृशय संवाद सा बन जाता है !कभी कभी ऐसा भी होता है की जो बात हम कहना चाहते हैं वह कोई और कह जाता है और जिस बात को दूसरा व्यक्ति कहना चाहता वही हमारे मुंह से निकल जाती है !
प्रकति ने मानव मस्तिष्क की सरंचना भी जटिल बनाई है और रोचक भी ...कब कई आदमी किसी वस्तु या व्यक्ति  को देखते हैं तो उस पर सबकी प्रतिक्रिया अलग अलग होती है जबकि व्यक्ति वस्तु एक ही होती है माँ बाप अपने सब बच्चो का लालन- पालन एक जैसे करते हैं और अध्यापक एक ही तरह से कक्षा में पढाते हैं पर सब अलग अलग तरह से उसको लेते हैं, एक ही संकेत को अलग अलग रूपों में ग्रहण करने की क्षमता सिर्फ़ मानव मन में  ही है और यही हमे बाक़ी प्राणियों से अलग करती है .हमारा अवचतेन मन भी एक ही बात को या एहसास को सपनो में या अवचेतन सोच में अलग ढंग से लेता है .!!

अगर हम सब बातों पर गौर करे तो जैसी जिसकी विचार धारा है वैसा ही प्रभाव सब चीज़ो पर पड़ता है अगर आकरण ही कोई पूर्वभास हो या आभास हो तो यो इसको गंभीरता से लेना चाहिए हो सकता हैं ,इस में हमारे अपने भविष्य के लिए कोई संकेत छिपा हो ,आज विज्ञान इतनी तरक्की के बाद भी मस्तिष्क की सरंचना को पूरी तरह से समझ नही पाया है अभी भी बहुत समझना बाक़ी है इस संबंध में और प्रयास भो होते रहेंगे और जानकारी मिल सकेगी !!

Wednesday, June 27, 2012

दो रंग कुछ अलग से

दो अलग रंग .....

१)
एक मृगतृष्णा
एक प्यास..
को जीया है
मैंने तेरे नाम से
दुआ न देना
अब मुझे..
लम्बी उम्र की
और ..........
न दुबारा...
जीने को कहना

२)
बंधने लगा
बाहों का बंधन..
मधुमास सा
हर लम्हा हुआ..
तन डोलने लगा
सावन के झूले सा..
मन फूलों का
आंगन हुआ..
जब से नाम आया
तेरा ,मेरे अधरों पर
अंग अंग चंदन वन हुआ |

रंजना (रंजू ) भाटिया

Friday, June 22, 2012

उम्मीद...

न जाने क्यों
ठहरे हुए पानी की तरह
मेरे लफ्ज़ भी काई से
कहीं मन में
ठिठक गए हैं ,
सन्नाटे की
आहट में
न कोई एहसास
न आंसुओं की
गिरती बूंदें
इसमें कोई
लहर नहीं बनाती
पर इस जमे हुए
सन्नाटे में
तेरे होने की
सरसराहट सी
एक उम्मीद जगाती है
की कहीं से प्रेम की
अमृत धारा
फिर से इन जमे हुए
एहसासों में
कोई लहर दे जायेगी
और फिर कोई
नयी कविता
पन्नो पर बिखर जायेगी !!!

Monday, June 18, 2012

साथ तेरा मेरा


दिखे जब रंग इन्द्रधनुष के
कुछ स्वप्न भूले बिसरे याद आए
दे के दर्द गए वह पवन के झोंके भी
जब हौले से वह यूं छु जाए

चुभी दिल में कोई फाँस सी
जब कोयल कुहू कुहू गाए
हर बीता मौसम दे याद तुम्हारी
पर गुजरा वक्त कब हाथ है आए

टीस दे इस दिल को हर वो लम्हा
जो गुजरा तुम संग साथ बिताए
भेजे कई मिलन के संदेशे हमने
दिल की बात तुम समझ न पाये

न न ...मत अब सहलाना
कोई दिल का दाग
तुम अब मेरा
जब तक दिल में .......
यह विरह की टीस घनेरी
तब तक हैं यादों में तेरा बसेरा
हर चुभती बात में याद आए तुम
हर दर्द में दिखे चेहरा तेरा
रहने दो अब टीस यह दिल में
यूं तो रहेगा साथ तेरा मेरा !!

Monday, June 11, 2012

सजे हुए से रिश्ते

अजीब है यह मन
गुलदस्ते में सजे
इन नकली फूलों को यूँ
रोज़  दुलारता है
और उस पर..
 जमी धूल को
इस गहराई से पोंछता है
कि  शायद कभी यूँ
छूने भर से  जी  उठे
:
ठीक वैसे ही जैसे
मेरे तुम्हारे बीच के
मुरझाये हुए
पर सजे हुए से रिश्ते ...........

रंजू .................

Wednesday, June 06, 2012

सवाल अनकहा

 
ऐ ज़िन्दगी ....
कभी तू .....
पढ़ लिया करती थी
मेरे उन अनकहे सफों को भी
जो आँखों के कोनो में
सिमट कर बिखर जाया करते थे
समेट लेती थी तब उन्हें
अपने इस अंदाज़ से
कि दिल के हर कोने के
अँधेरे ,उजाले में
बदल जाया करते थे
बदलते मौसम के
बिखराव की तरह
रोज़ पीले गिरते पत्ते
हरियाले और नयी कलियों की
उम्मीद में सज जाया करते थे
सोचती हूँ अब ....
तू मिले जो कहीं
तो तुझसे पूछूँ 
छोडे थे हमने जो फासले
खुशगवार लम्हों के ...
प्यार की सोगातों के ...
और मदभरी शिकायतों के ..
वो ठिठके हुए हैं
आज भी किसी
रुकी हुई झील की तरह
क्या आज भी ...??
दो किनारों पर खड़े हम
एक एक कदम बड़ा कर
कम कर सकते हैं इन एहसासों को ?
जम गए हैं जो किसी बर्फ की तरह
क्या आज भी
उन भावनाओं को ,
संवेदनाओं को ..
एक दूजे के छूने से
पिघला सकते हैं ??
रंजू .........

Friday, June 01, 2012

सपनो के पुल

क्यों बना लिए हैं
हमने ....
कुछ सपनो के पुल
जिस पर उड़ रहे हैं
हम.......
कागज की चिन्दियों की तरह
कुछ भी तो नही है शेष
अब .......
मेरे -तुम्हारे बीच
क्यों हमने....
यह कल्पना के पंख लगा के
रिश्तों को दे दिया है एक नाम ..
जिस पर .....
रुकना -चलना-मिलना
फ़िर अलग होना
सिर्फ़ हवा है .....
जो बाँध ली है बंद मुट्ठियों में
जिस में सिर्फ़
"तुम" हो और तुम्हारा " मैं"
जो रचता रहता है गुलाबी सपने
और चन्द बेजुबान से गीत
और .....
जिस में सब कुछ है....
पर सिर्फ़ ...
तुम्हारा ही बुना हुआ
जैसे जमी हुई नदी सा
रुका हुआ और ठहरा हुआ ......