बीते वो लम्हे
जो सुख से भरे थे
हरियाले से वह पत्ते
उन पलों की सोंधी सोंधी
जब सिर्फ़ तुम्हारे छूने भर से
देह तपने लगती थी
तो झनझना के देह थिरक उठती थी
उठने लगती थी ऐसी हिलोरें
दोनों तरफ़ जैसे
कोई नदिया मचल के उमड़ती थी
पर आज वही है हम दोनों
साँसे भी वहीँ है
काँधे पर ठहरा है
कोई पुरानी याद का बोसा
और तेरी मेरी उलझी यादे कई हैं
पर न जाने कहाँ खो गया
वह स्पंदन
न जाने वह मिलने की
खुशी कहाँ गुम हुई है
सोख लिया सब रस
इस जीवन नदिया से
हमारी भागती दौडती जरूरतों ने
और जीवन का वह अनमोल पल
कहीं छिटक कर खो गया है ...
जो सुख से भरे थे
हरियाले से वह पत्ते
अब क्यों पीले पड़ चले हैं
पर अब भी याद हैउन पलों की सोंधी सोंधी
जब सिर्फ़ तुम्हारे छूने भर से
देह तपने लगती थी
लगती थी तपते होंठों की मोहर जब
कभी गर्दन और काँधे पर तो झनझना के देह थिरक उठती थी
उठने लगती थी ऐसी हिलोरें
दोनों तरफ़ जैसे
कोई नदिया मचल के उमड़ती थी
पर आज वही है हम दोनों
साँसे भी वहीँ है
काँधे पर ठहरा है
कोई पुरानी याद का बोसा
और तेरी मेरी उलझी यादे कई हैं
पर न जाने कहाँ खो गया
वह स्पंदन
न जाने वह मिलने की
खुशी कहाँ गुम हुई है
सोख लिया सब रस
इस जीवन नदिया से
हमारी भागती दौडती जरूरतों ने
और जीवन का वह अनमोल पल
कहीं छिटक कर खो गया है ...