Tuesday, September 30, 2008

छूना है मुझे आसमान .मत रोको मेरी उड़ान .

नारी शक्ति से अब कोई अपरिचित नही रहा है | हर कदम में नारी आगे बढ़ रही है और इतिहास रच रही है | अपने देश में न केवल वरन विदेश में भी वह भारतीय नारी का नाम रोशन कर रही है | कल्पना चावला के नाम से कौन अब अपरिचित रहा है | वह भारत में हरियाणा के एक छोटे से शहर से निकल कर अन्तरिक्ष कि ऊंचाई को छु गई तो सिर्फ़ अपनी मेहनत और अपने बलबूते पर | आज से दुर्गा पूजा शुरू हुई है और नारी इसी दुर्गा का अवतार हैं ..आज उनकी उड़ान को कम नही आँका जा सकता है ....देश विदेश में आज भारतीय महिलाओं की धाक जमी हुई है ...

ऐसी ही अनगिनत महिलायें हैं जिन्होंने अपनी अदभुत कामयाबी से परदेश में भी अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं | इस में एक हैं बी. बी .सी हिन्दी डाट कॉम में काम करने वाली सलमा जैदी | यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश की रहने वालीं है | इनका परिवार लेखन और पत्रकारिता से जुडा हुआ है इसी ने इन्हे लेखन की और प्रेरित किया | शुरू में इन्होने भारत में ही कई समाचार पत्रों में और कई समाचार एजंसी में कॉम किया | यहीं से इनका परिचय दिल्ली आफिस बी.बी. सी से परिचय हुआ | तब यह वहां शुरू ही हुआ था | उसके बाद यह दफ्तर लन्दन १९९९ में चला गया ,तब से यह वहीँ पर काम कर रही हैं | और आज अपनी मेहनत से एक प्रतिष्टित स्थान पर हैं |

रास्ता इनके सरल नही था ,हिन्दी ऑनलाइन टीम में काम करना भी इनके लिए एक नया अनुभव था और साथ में काम करने वाले सहयोगी भी नए | पर इन्होने हर चुनौती को स्वीकार किया | साथ ही अपने घर परिवार को भी संभाला | उनका सफल होने का मूल मन्त्र है कि असफलता आने पर ही हम सफलता के सही मायने तलाश करते हैं और फ़िर सफल भी होते हैं |

इसी तरह से एक और कामयाब महिला है जो भारत की धरती नागपुर विश्वविद्यालय से संस्कृत में पी .एच .डी हैं | शादी के कुछ समय बाद ही इनके पति विदेश चले गए | तब यह मुंबई विश्वविधालय में पढाती थी | १९७३ में यह भी अपने छोटे से बेटे को लेकर पति के पास चलीं गई | कुछ साल अपने बेटे और घर को अच्छे से संभाला ,पर जो शिक्षा हम हासिल करते हैं वह हमारे साथ हमेशा रहती है | वह इसी बीच अनेक शोध पत्र लिखने और उन्हें प्रकाशित करवाने का काम भी करती रहीं और कई पुस्तके भी लिखी इन्होने | १९८३ में इन्होने इलिनाय विश्वविधालय में लिंग्वास्तिक्स रिलीजियस स्टडीज एंड कॉपरेटिव लिटरेचर में नौकरी कर ली | यह पढाने का सिलसिला इन्होने दस साल बाद शुरू किया पर पूरे लग्न और मेहनत से आज यह ऊँचे मुकाम पर है |

अमेरिका में सफल भारतीय महिलाओं में निहारिका आचार्य का भी नाम शामिल है | वह वाइस आफ अमेरिका कि एंकर और संवाददाता हैं | २००२ में भारत से यहाँ यह पढ़ने आई थी और यहीं से इन्हे एक दिशा में काम करने का उत्साह मिला और यह उनकी ज़िन्दगी का एक नया मोड़ साबित हुआ | यहाँ पर वाइस आफ अमेरिका ने अपना हिन्दी टीवी चैनल खोलने कि घोषणा की | उनकी प्रतिभा यहाँ काम आई और वह यहाँ की एंकर और संवाददता बन गई |

अपने इस अनुभव के आधार पर वह कहती है कि महिलाओं को आत्मनिर्भर होना चाहिए ,क्यूंकि आत्मनिर्भरता के आभाव में हमारी मौलिकता और रचनात्मकता दब जाती है | उसको पनपने के लिए आगे बढे .रास्ते में मुश्किलें मिलेंगी पर आप परेशान न हो | अपनी धुन ,श्रेष्ट काम और अथक मेहनत से अपने काम में लगे रहें | सही समय आने पर आपके कामों कि सरहाना जरुर होगी और सफलता आपके कदम चूमेगी |

ऐसी कई मिसाले हैं हमारे सामने जिन्होंने अपनी लगन मेहनत और अपने आत्मविश्वास से देश के बाहर भी एक इतिहास रच कर रख दिया है | जो आज आने वाली पीढी को यह बताता है कि महिलायें अब अबला नहीं है वह अपने विश्वास से सब पा सकती हैं | वह सही में दुर्गा ,लक्ष्मी और सरस्वती का अवतार हैं .दुर्गा के नव रूप की यही सही पहचान है ..

Wednesday, September 24, 2008

मेरा प्रथम काव्य संग्रह "साया "


साया ..

मेरे द्वारा लिखित पहला काव्य संग्रह .आज पब्लिश हो कर मेरे सामने हैं ....,जिसका सपना मैंने कम और मेरी बेटियों ने ज्यादा देखा :) और इसको लिखने का पब्लिश करवाने का होंसला दिया ,आज इसको हाथ में ले कर जो अनुभूति हो रही है उसको ब्यान करना मुश्किल है ..ठीक वैसे ही जैसे माँ को अपनी प्रथम सन्तान को हाथ में लेने से होती है ...:) आप सब पढने वालों ने ..यदि आप सबका इतना प्यार साथ न होता तो शायद मैं अपनी लिखी कविताओं को यूँ किताब के रूप में कभी न ला पाती....इस लिए मैं इसका लोकापर्ण यही चिटठापर्ण के रूप में कर रही हूँ ...आप सबके स्नेह ने ही मुझे आज इस मुकाम तक पहुँचाया है | इस काव्य संग्रह में मैंने अपनी हर तरह की कविता को समेटने की कोशिश की है ..इस में प्यार की मीठी फुहार भी है ...और विरह का दर्द भी है ..

मोहब्बत अगर कभी गुजरो
मेरे दिल से दरवाजे से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
की तुम्हारे ही इन्तजार में
मैंने एक उम्र गुजारी है ..[साया से ]

इस किताब में शुरुआत राकेश खंडेलवाल जी के शब्दों से हुई है .| कभी उनसे मुलाकात नही हुई है पर उनकी लिखी कविताएं हमेशा मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत रहीं है | मैं उनका तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ | और क्या लिखूं समझ नही आ रहा है | :) बस आपका साथ चाहिए यह किताब अयन प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है ..यदि आप मेरे इस काव्यसंग्रह में रूचि रखते हैं ..तो इस आई डी पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं ..धन्यवाद ..

ranjanabhatia2004@gmail.com

Wednesday, September 17, 2008

हिन्दी ब्लॉग की दुनिया ...मेरी कलम से ....

हिन्दी ब्लागिंग अब अपनी एक पहचान बनाने लगी है | बहुत से ब्लॉग बहुत ही सार्थक ढंग से अपनी बात लिख रहे हैं | हिन्दी मिडिया ब्लॉग ने जब हिन्दी ब्लॉग पर समीक्षा लिखने को कहा तो मुझे यह काम बहुत रोचक लगा | हर लिखने वाला अपने तौर पर बहुत अच्छा लिख रहा है और सबकी अपनी एक पहचान भी है .पर बहुत से पाठक ऐसे होंगे जो किसी विशेष ब्लॉग को जानना चाहते हों और उस में क्या लिखा है ,यह समीक्षा के रूप में पढ़ना भी चाहते हो | तो इस तरह के विचार को लिखना मेरे लिए मेरा मनपसंद काम है | जब इस ब्लॉग यात्रा पर निकली तो बहुत से ऐसे ब्लॉग पढ़े जो अब तक मैंने कभी नही पढ़े थे , कई नई जानकरी मिली ..जिस ब्लॉग के बारे में लिखा उनसे बात चीत हुई मेल के जरिये , जिनसे नही हो पायी उनके बारे में सब कुछ खंगाल कर जाना उनका ब्लॉग पढ़ कर | इस तरह से कई नए मित्र बने और मेरा ब्लॉग परिवार का दायरा भी बड़ा हुआ |

यह सफर शुरू किया तो शब्दों के सफर से बेहतर ब्लॉग कोई और हो ही नही सकता था .अजित जी जिस तरह से हिन्दी शब्दों के बारे में बताते हैं वह आने वाले समय में हिन्दी ब्लागिंग के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा | उस के बाद से जो सफर शुरू हुआ वह बहुत रोचक बनता जा रहा है ..इस राह में कौन कौन से ब्लॉग हमसफर बन कर चले हैं आप भी एक नजर उन पर डाले .| इस ब्लॉग के साइड बार में मेरी कलम से की गई ब्लॉग समीक्षा के नाम से उन सब ब्लॉग के लिंक हैं जिनकी समीक्षा की जा चुकी है ...इन में दिनेश जी की कानून की दुनिया है तो अशोक पांडे जी की खेती बाडी भी है ...एक तरफ़ डाक्टर अनुराग की दिल बात है तो सागर नाहर जी के ब्लॉग का संगीत भी है ..इस तरह और भी बहुत बेहतरीन लिखे जाने वाले ब्लॉग हैं .... . और अभी तो यह सफर शुरू हुआ है ...यह पोस्ट सिर्फ़ आपको बताने के लिए हैं कि हिन्दी ब्लोगिंग की दुनिया में कितना कुछ नया हो रहा है ..सब किस तरह से अपनी कलम से क्या क्या लिख रहे हैं कभी अपनी क्षेत्र से जुडा हुआ कभी कुछ उस से हट कर | अभी तक जितने ब्लॉग की समीक्षा की गई उन सबने बहुत सहयोग किया उनका आभार | अभी बहुत आगे जाना है ...तो चलिए न साथ आप भी मेरे साथ इस सफर में ...हो सकता है अगला नंबर आपके ब्लॉग का हो ...:) आप सब के सुझाव ,विचार इस पर आमंत्रित हैं ...

Friday, September 12, 2008

ढाई आखर का जादू .



मायूस हूँ तेरे वादे से
कुछ आस नही ,कुछ आस भी है
मैं अपने ख्यालों के सदके
तू पास नही और पास भी है ....

हमने तो खुशी मांगी थी मगर
जो तूने दिया अच्छा ही किया
जिस गम का तालुक्क हो तुझसे
वह रास नही और रास भी है ....



साहिर की लिखी यह पंक्तियाँ ..अपने में ही एक जादू सा जगा देती हैं .इश्क का जादू .. इश्क की इबादत .उस खुदा से मिलने जैसा ,जो नही पास हो कर भी साथ ही है ....यहाँ "'है "'और "'नही "'का मिलन वह मुकाम है .जो दिल को वहां ले जाता है जहाँ सिर्फ़ एहसास हैं और एहसासों की सुंदर मादकता ...जो इश्क करे वही इसको जाने ...जैसे हीर, राँझा -राँझा करती ख़ुद राँझा हो गई ...यह इश्क की दास्तान यूँ ही बीतते लम्हों के साथ साथ बीतती रही |कहते हैं जब किसी इंसान को को किसी के लिए पहली मोहब्बत का एहसास होता है तो वह अपनी कलम से इसको अपने निजी अनुभव से महसूस कर लफ्जों में ढाल देता है | उसको इश्क में खुदा नजर आने लगता है |
इस से जुड़ी एक घटना याद रही है कहीं पढ़ी थी मैंने ..कि एक बार जिगर मुरादाबादी के यहाँ एक मुशायरे में एक नए गजल कार अपनी गजल सुनाने लगे .जिगर कुछ देर तो सुनते रहे फ़िर एक दम बोले कि आप अगर इश्क करना नही जानते तो गजल क्यूँ लिखते हैं ? जो एहसास पास ही नहीं उसका अनुभव न आपकी रूह कर पाएगी न आपकी कलम ..

..एक रिश्ता जो कण कण में रहता है और पूरी कायनात को अपने वजूद में समेट लेता है .यह एहसास सिर्फ़ मन में उतरना जानता है ..किसी बहस में पड़ना नही .....यह सदियों से वक्त के सीने में धड़कता रहा ...कभी मीरा बन कर ,कभी लैला मजनू बन कर ..और कभी शीरी फरहाद बन कर ..
और कभी बाहर निकला भी तो कविता बन कर या शायरी की जुबान में .....जो चुपके से उन अक्षरों में ढल गई और सीधे एहसासों में उतर गई ..पर होंठों तक अपनी मोजूदगी नही दर्ज करा पायी ..
साहिर ने भी शायद यही मुकाम देखा .कुछ बोला नही गया तो धीरे से यही कहा कि मैं अपने ख्यालों के सदके ....

पलकों पर लरजते अश्कों में
तस्वीर झलकती है तेरी
दीदार की प्यासी आँखों में
अब प्यास नही और प्यास भी है ...

यही इश्क का रिश्ता जब सब तरफ़ फ़ैल जाता है तो इस में किसी दूरी का दखल नही होता .किसी भी तर्क का दखल नही होता और न ही किसी तरह के त्याग का ..वह तो लफ्जों के भी पार चला जाता है ....सोलाह कलाएं सम्पूर्ण कही जाती है पर मोहब्बत .इश्क सत्रहवीं कला का नाम है जिस में डूब कर इंसान ख़ुद को पा जाता है ..जहाँ इंसान की चौथी कही जाने वाली अवस्था तक तो शब्द है पर अगली अवस्था पाँचवीं अवस्था है जिसको सिर्फ़ अनुभव से पाया जा सकता है .जहाँ न कोई संकेत है न कोई शब्द ..बस उस में एक अकार होने का नाम ही सच्चा रूहानी इश्क है ..जुलफियां खानम की लिखी पंक्तियाँ इस संदर्भ में कितनी सही उतरती है ..

तेरे होंठो का रंग ,दिल के खून जैसा
और रगों में एक मुहब्बत बह रही
लेकिन उस दर्द का क्या होगा
जो तूने दिल में छिपा लिया ..
इतना ...
कि किसी शिकवे का धुंआ नही उठने दिया ..
वो कौन था ?
अच्छा मैं उसका नाम नही पूछती
तेरी जुबान जलने लगेगी .....




इसी लेख से जुड़ी पहले लिखी कड़ियाँ यहाँ पर पढ़े ..

ढाई आखर प्रेम के
प्रथम कड़ी

ढाई आखर प्रेम के दूसरी कड़ी

प्रेम में स्वंत्रता

Thursday, September 11, 2008

लाइट ..साउंड .. कैमरा .. ""११ सितम्बर ""


कुछ बातें चलती भागती ज़िन्दगी में यूँ होती है कि उन्हें भुलाना मुश्किल होता है | हमारे आस पास जो भी घटता है ,हम उस से प्रभावित होते हैं | कभी कभी ज़िन्दगी में उसको बदलना अनिवार्य सा हो जाता है | सिनेमा .टीवी सीरियल्स यह सब जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ जाते हैं |

जब ११ सितम्बर २००१ को अमेरिका के ट्विन्स टावर से आतंवादियों ने जहाज टकराए तो लगा जैसे कि किसी कल्पना और सच्चाई में टक्कर हो गई है | उस जगह से भागते लोगो का दृश्य आंखों से हटता नही हैं | भागते गिरते पड़ते लोग यही कह रहे थे कि यह तो किसी फ़िल्म के दृश्य की तरह है ,पर यहाँ फिल्मों से उलट उनकी ज़िन्दगी बचाना .बचना दोनों महत्वपूर्ण थी | फ़िल्म में क्लाइमेक्स के समय हीरो इस तरह की खतरनाक हालात को टाल देता है.लेकिन इस तरह के जब हालात असली में पैदा होते हैं तो दुःख पूर्ण होता है यह सब |

अपनी ही बुनी कहानियों को यूँ इस तरह से घटते देखना न केवल अमेरिका वासियों के लिए और पूरे विश्व के लिए भी बहुत दुखद पूर्ण था | सोचिये एक्शन फिल्मों का असर किस तरह से करता है | भारतीय बालीवुड में बनी फिल्मों से .टीवी सीरियल्स से लोग बुरी तरह से प्रभावित होते देखे गएँ है | बच्चे तो हर बात को सच मान बैठते हैं | याद करे वह टीवी सीरियल शक्तिमान ..उस तरह से ख़ुद को ढालने में कितने अबोध बच्चो ने जान दी | यह नहीं कि हालीवुड ने ख़ुद को इस बात के दोषी माना .पर उनकी फिल्मो के कथानक किस तरह के होते हैं...इस बात पर वह एक बार सोचेंगे क्या ? यदि इस तरह के कथानक फ़िर से सफलता के लिए फिल्माते जाते रहेंगे ,तो जनमानस पर इसका प्रभाव अच्छा नही पड़ेगा |

पर उस घटना के बाद अमेरिका के मनोरंजन जगत ने इस बात का ध्यान रखा कि वह अब इस तरह के कार्यक्रम न बनाए जिस में आतंकवाद .साजिशों और अमेरिका विरोधी भावनाएं हों | दर्शक अब बुराई पर सच्चाई की जीत देखना चाहते हैं |
इस घटना का प्रभाव किस तरह से हालीवुड में काम करने वाले एक कलाकार पर पड़ा वह इस बात से पता चलता है ..
''यह कलाकार लोगों को हंसा कर अपनी आजीविका चलाते हैं और हँसाने के लिए रोज़ सुबह का अखबार उठा कर ताज़ी घटनाओं को पढ़ते हैं .टीवी देखते हैं कि किस तरह से लोगों के आज से जुड़ कर लोगों को हंसाया जा सकता है | पर ११ सितम्बर कि दुर्घटना के बाद जब इन्होने रोज की तरह अपना काम करना चाहा तो दिमाग ने काम करना बंद कर दिया | जैसे अन्दर से कोई खाली हो गया है .एक छेद दिखायी दे रहा है मानवता की आत्मा में छेद | कोई शो ह्यूमर से जुडा नही हो पा रहा था | देश के सारे विदूषक जैसे आज एक सामान्य नागरिक हो गएँ थे |कामेडियन की आदत होती है कि किसी भी हालत में वह हँसी मजाक खोज ही लेते हैं | पर इस घटना ने उभर कर यह हँसी मजाक कब वापस लौटेगा पता नहीं .""यह पंक्तियाँ एक पत्र में लिखी गई थी जो उस वक्त के अमेरिकी जनमानस को बताती है |

सिनेमा समाज का आईना है तो समाज भी इस से कहीं भीतर तक जुडा हुआ है | जो वह देखता है वह अपनी ज़िन्दगी से जुडा हुआ महसूस करता है | फ़िर इंसानी फितरत जल्दी से बुरी बातो को दिमाग में बिठा लेती है | वैसे भी अब सब तरफ जिस तरह से भौतिकवाद बढ़ रहा है ,वह इंसान से सब संवेदनाये खत्म करता जा रहा है | हर कोई जल्द से जल्द सब कुछ पा लेना चाहता है | यदि हमारा सिनेमा और टीवी जागृत नही हुए तो मुश्किल हो जायेगा | सपनों से जागो और सिर्फ़ अच्छे कथानक लिखो , वह निर्माण करो जो कुछ सच्चाई से जुडा हुआ हो | क्यूंकि अब पूरे विश्व को एक सच्चाई से इस आतंकवाद से लड़ना है |

Friday, September 05, 2008

कमबख्त इश्क़ ..एक नज़र एक समीक्षा

दिल्ली के एल टी जी सभागार में यह नाटक कमबख्त इश्क़ नाटक देखना एक सुखद अनुभव था। नाटक का ताना बाना बहुत अच्छे विषय पर लिया गया है | नाटक में दो बुजर्गों के बीच में प्यार हो जाता है | दो बुजर्गों के बीच में प्यार हो जाता है। दोनों शादी करना चाहते हैं, लेकिन इस नाटक के किरदार कृष्ण और राधा के बीच में उनके परिवार वाले लोग आ जाते हैं। इसके बाद एक के बाद एक होने वाली घटनाएँ पूरे नाटक को मनोरंजक और सार्थक बना देती है।

नाटक का उद्देश्य यह बताना था कि बच्चे हों या बुजर्ग सभी परिवार के साथ रहना चाहते हैं। परन्तु जैसे -जैसे माता -पिता बुढ़ापे की ओर बढ़ते जाते हैं, बच्चे उनसे और दूरी बनाते चले जाते हैं। इस कारण वे ख़ुद को तन्हा और बेबस सा महसूस करने लगते हैं। अकेलापन किसी से सहन नही होता है, इसी वजह से अकेले रहने वाले लोग अपने लिए किसी साथी को तलाशते हैं। लेकिन अभी हमारे समाज में आज बी बुजुर्गों को अपने लिए साथी खोजना और उसके साथ रहना स्वीकार्य नहीं है।


कुछ ऐसी ही परिस्थितियों से इस नाटक के मुख्य किरदार कृष्ण और राधा गुजरते हैं। नाटक के एक अन्य किरदार डॉ भट्ट एक रास्ता सुझाते हैं। वे उनके परिवार के लोगों को बताते हैं कि कृष्ण और राधा का प्रेम बहुत आगे बढ़ चुका है और राधा अब माँ बनने वाली है। यह सुन कर परिवार के लोग दोनों को घर में क़ैद कर देते हैं। इसके बाद दोनों की तबियत बिगड़ जाती है। लेकिन तामम घटनाओं के बाद नाटक का सुखांत होता है।


नाटक में हर कलाकार ने बहुत सुंदर अभिनय किया है। इसका मूल संदेश यही है कि घर के बड़े बुजुर्ग का अकेलापन बीमारी को बढ़ावा देता है। सहारे की जरुरत हर वक्त हर उम्र में होती है,खासकर बुढापे में ताकि वह अपने सुख दुःख आपस में बाँट सकें। जब यह सब घर के अन्दर नही मिलता है तो इंसान अपने सुख दुःख बांटने के लिए घर के बाहर बाहर सहारा तलाश करने लगता है। आपके शहर में यह नाटक आए तो जरुर देखें। नाटक में रंजकता और नाट्य तत्वों का प्रवाह था मगर कुछ खामियाँ अखरने वाली थी। लेकिन तमाम कमियों के बावजूद नाटक एक सार्थक संदेश देता है।

Thursday, September 04, 2008

विरह के दो रंग


सितारों के बीच में
तन्हा चाँद
और भी उदास कर जाता है
तब शिद्दत से होता है
एहसास ..
कि
विरह का यह रंग
सिर्फ़ मेरे लिए नही है ....

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सही ग़लत की उलझन में
बीता जीवन का मधुर पल,
टूटा न जाने कब कैसे
कसमों ,जन्मो का वह नाता
साथ है तो ..दोनों तरफ़
अब सिर्फ़ तन्हाई
जवाब दे जिंदगी
तू इतनी बेदर्द क्यूँ है ?..

Wednesday, September 03, 2008

पैसा बोलता है |

आज मनोरंजन व्यापार की हर शाखा अपनी तरह से मुनाफा कमाना चाहती है | पहले जहाँ सास बहू सीरियल का ज़माना था .खैर इस तरह आने तो कम अभी भी नहीं हुए हैं यह ,और होंगे भी नही जब तक दर्शक इसको सिरे से नकार नही देंगे | फ़िर भी अब जा ज़माना प्राइम टाइम पर रियलटी शो का ज़माना है | यह रियलटी शो अब दर्शकों को अधिक लुभाने लगे हैं |

अभी जारी किए गए एक आंकडे पर जब नज़र पड़ी तो बहुत हैरानी हुई | पहले जहाँ सास बहू धारावाहिकों में विज्ञापनों के लिए ६०,०००- से ७०.००० रुपये प्रति १० सेकेंड के दर से वसूले जाते थे ,वहीँ रियल्टी शो के दौरान इसकी कीमत दुगनी वसूली जा रही है | अब इस तरह के शो में दस सेकेंड के विज्ञापन के लिए १.२ लाख -१,५ लाख रुपये देने पड़ते हैं |

इसकी वजह यही है कि अब इस तरह के कार्यक्रम अधिक पसंद किए जाते हैं | कारण साफ़ है कि एक तो इस में कुछ अलग देखने को मिलता है जो मनोरंजन करता है | दूसरे इस में अधिक पैसा लगे होने के कारण इसके निर्माता इसका प्रसार जोर शोर से करते हैं | बिग बॉस का का रियल्टी शो का जिस तरह से प्रसार प्रचार किया जा रहा है वह देखने लायक है | इस में काम करने वाले अधिकतर विवादित लोग हैं | जो न जाने कब अपने अपराधों से बरी हो पायेंगे | यहाँ पर राहुल हो या मोनिका ,सब मासूमियत का चेहरा लगा कर दर्शकों से सहानुभूति की उम्मीद लगाए भले ही बैठे हों .पर बिग बॉस के घर में रहने वालों ने इन्हे घर से बेघर करने का निर्णय ले लिया था | मोनिका को इस घर से बे- दखल कर दिया गया है | बाहर निकल कर भी वह आंसू में अपनी कहानी सुनाती बाकी बस | बाकी बचे हुए में से कुछ लोग भद्दी गाली गलौज पर उतर आए हैं | डायना हेडन अब क्या गुल खिलाती है वह आगे पता चलेगा ..| इन में से एक भी ऐसा चरित्र नहीं है जो किसी का रोल मॉडल बन सके ..पर पैसा बोलता है |

दस का दम में अक्षय कुमार ,केटरीना कैफ आमिर खान आदि को बुलाना भी इस तरह से शो को और अधिक प्रचार करने का तरीका था | दर्शक को उल्लू बनाना इन चैनलों का मुख्य शगल बन चुका है | बे इन्तहा पैसा इस तरह से कार्यकर्मों पर लगाया जाता है और इस तरह से सृजनात्मकता धीरे धीरे समाप्त होती जा रही है | दर्शक को ख़ुद समझदार बनना होगा तभी नए अच्छे प्रेरणादायक सीरियल्स का निर्माण हो सकेगा |


Monday, September 01, 2008

किताबों से महक उठा प्रगति मैदान


दिल्ली के प्रगति मैदान में लगा पुस्तकों का मेला रविवार की सुबह से ही गुलजार था। शनिवार को जहाँ कम लोग दिखे वहीँ रविवार के दिन बहुत रौनक रही इस मेले में। इस दिन यहाँ साठ हजार से भी अधिक लोग पहुँचे। सबसे सुखद बात यह थी रविवार को यहाँ बच्चो की संख्या बहुत अधिक थी। शनिवार, 30 अगस्त को इस १४ पुस्तक मेले का उद्घाटन उपराष्ट्रपति डॉ हामिद अंसारी ने किया। अंसारीजी की रूचि ज्यादा साहित्य और धर्म से जुड़े विषयों में लगी। उन्होंने इस से सम्बंधित कुछ पुस्तकें भी खरीदी ।

दिल्ली में रहने वाले पुस्तक प्रेमियों के लिए यह एक सुखद अनुभव होता है ,एक ही छत के नीचे सब पुस्तकों का मिलना। इस मेले का ख़ास आकर्षण महिला साहित्यकारों पर आधारित पवेलियन है, जो हाल नंबर आठ में है। इसमें २९ महिला साहित्यकारों की कृतियों और चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। यहाँ के स्टालों में मह्श्वेता देवी, किरण बेदी, अमृता प्रीतम,अनीता देसाई, अलका सरावगी, इंदिरा गोस्वामी जैसी जानी मानी लेखिकाओं की किताबे सजी हुई है जो सहज ही पाठकों को अपनी और आकर्षित कर लेती है।

पिछली बार की तुलना में इस बार २५० नए प्रकाशकों ने इस पुस्तक मेले में स्टाल लगाए हैं और प्रकाशक स्टालों की संख्या ५५० से बढ़ कर ७०० हो गई है।मेले के दूसरे दिन यहाँ अधिक भीड़ दिखी,और सबसे अधिक आकर्षण इन्टरनेट सर्च इंजन गूगल का रहा। इसमें इन्टरनेट के माध्यम से किताबों को ढूंढने का शार्टकट माध्यम बताया गया है।

मेले में आठ विदेशी पुस्तक स्टाल भी लगाए गए हैं। पाकिस्तानी स्टाल पर भी अच्छी खासी भीड़ दिखाई दी। यहाँ लोग पाकिस्तानी संस्कृति से जुड़ी किताबों को खरीदने में बहुत अधिक रूचि ले रहे हैं। इसके अलावा लोग इरानी,चीनी और जर्मन के बुक स्टाल्स में अधिक देखे गए |

बच्चो को यह मेला अधिक पसंद आ रहा है क्योंकि इसमें उनकी रूचि की कई चीजे शामिल की गई है। जैसे एक book-fair2.jpgऑनलाइन टेस्ट लिया जा रहा है। टेस्ट ''लैब्ज डॉट कॉम'' इसका आयोजन कर रहा है। इसके तहत तीसरी से दसवीं कक्षा के छात्रों का ऑनलाइन टेस्ट लिया जा रहा है। जीते गए छात्रों को एक हजार से पाँच हजार की राशि तक के पुरस्कार भी दिए जा रहे हैं।

अब इस मेले के सबसे बड़े आकर्षण की बात करते हैं! क्या आप जानते हैं कि पुस्तके बोल भी सकती है ? यह कमाल इस मेले में देखने को मिल रहा है। हालांकि इस तरह की किताबें इंग्लैंड, अमेरिका में पहले भी बहुत लोकप्रिय हैं पर भारत में इस तरह की बोलती पुस्तकें पहली बार देखी जा रही है। इसको आप आराम करते हुए कार चलाते हुए या कहीं भी घूमते हुए सी .डी .प्लेयर से सुन सकते हैं। इस श्रृंखला में प्रेमचंद, शरतचंद, हिमांशु जोशी ,गुलशन नंदा ,अमृता प्रीतम .राजेन्द्र सिंह बेदी व अन्य कई लेखों की पुस्तकें शामिल हैं। ये बोलती किताबें अभी हिन्दी, उर्दू और पंजाबी में निकली गई है। पुस्तक प्रेमियों के लिए यह बहुत सुखद अनुभव और सुनहरा मौका है जहाँ वे एक ही जगह पर अकादमिक, तकनीकी, पाठ्यक्रम से लेकर संदर्भ, धर्मिक और साहित्य की पुस्तकों को देख और खरीद सकते हैं।