Friday, August 29, 2008

अमृता की याद में ..मनविंदर की कलम से ..


आज सुबह जब ब्लागवाणी देखा तो इस लिं को देख कर दिल भावुक हो गया .अमृता इमरोज़ पर जब भी मैं कुछ लिखने लगती हूँ तो एक नशे की सी हालत मेंइस में डूब कर लिखती हूँ पर मेरे साथ साथ सब इसको इतना प्यार देते हैं यह इस लिंक को देख कर जाना ..| यह मनविंदर द्वारा लिखे आज के ,"मेरठ के हिंदुस्तान अखबार के परिशिष्ट रीमिक्स में ´ब्लाग से` कालम में आया है|मनविंदर का मेरे प्रति जो स्नेह है उसके लिए मैं उसका तहे दिल से शुक्रिया करती हूँ | मेरे लिए यह मनविंदर की तरफ़ से अमृता को प्यार करने वालों के लिए उनके आने वाले जन्मदिन का तोहफा है | अमृता का जन्मदिन ३१ अगस्त को है | इस लिए भी इसको पढ़ कर बहुत खुशी हो रही है अमृता इमरोज़ का प्यार आज एक मिसाल बन चुका है ..यह इस पर आने वाले कॉमेंट्स भी बताते हैं ..इस ब्लॉग के लिए लिखना मेरे लिए सबसे सुखद अनुभूति है आप सब का साथ यूँ ही बना रहे तो यह सफर यूँ ही प्यार की बातें करते हुए चलता रहेगा |

Wednesday, August 27, 2008

महिला साहित्यकार पर केंद्रित है इस बार का दिल्ली पुस्तक मेला ..


पुस्तक मेला यानी पुस्तकों से प्यार करने वालो के लिए काबा। जी हाँ दिल्ली में जब यह लगता है तो तब वहाँ उमड़ी भीड़ को देख कर लगता ही नहीं है कि पुस्तकों के प्रति अब भी लोगों का रुझान घट रहा है। पुस्तकें पढ़ने वाले बेसब्री से इस मेले का इन्तजार करते हैं। विश्व पुस्तक मेला फरवरी में आयोजित किया गया था ...अब बारी है दिल्ली पुस्तक मेले की। इस बार यह दिल्ली पुस्तक मेला ख़ास रहेगा, क्योंकि यह इस बार ''महिला साहित्यकार पर केंद्रित है।'' लेखन के क्षेत्र में महिलाओं को भागीदारी कम नही आँकी जा सकती। इसको और बढावा देने लिए ''फेडरेशन आफ इंडियन पब्लिशर्स'' ने महिला साहित्यकारों पर यह मेला आयोजित किया है। यह मेला प्रगति मैदान में ३० अगस्त से ७ सितम्बर तक चलेगा।

इस नौ दिवसीय मेले में इस बार करीब तीन सौ भारतीय प्रकाशकों के अलावा पाकिस्तान, अमेरिका, चीन, स्पेन, दुबई एवं ईरान जैसे कई देशों के प्रकाशक भी भाग लेंगे। आईटीपीओ व एफआईपी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित होने वाला यह मेला हॉल नं. 8, 9, 10, 11, 12 और 12 ए में आयोजित किया जाएगा।

इस बार पुस्तक मेले में स्टॉल भी पहले से अधिक हैं। पिछले वर्ष करीब 224 प्रकाशकों ने भाग लिया था, इस साल यह संख्या उससे बहुत अधिक है। मेले में साहित्य के साथ कला-संस्कृति का भी अनूठा संगम देखने को मिलेगा। इसके अतिरिक्त नए टाइटलों में साहित्यिक के साथ गैरसाहित्यिक किताबें भी होंगी। हाल नं. 8 में महिला मंडप में जानी-मानी महिला लेखिकाओं की पुस्तकें ही नहीं, उनके चित्र व आत्मवृत्त भी उपलब्ध होंगे।

पुस्तक मेला लगभग 5600 वर्ग मीटर जगह में लगाया जा रहा है। इसका समय प्रात: 10 बजे से रात 8 बजे तक रहेगा।। इसका प्रवेश शुल्क 5 रुपये प्रति बच्चा एवं 10 रुपये प्रति वयस्क है। समूह में आने पर छात्रों के लिए प्रवेश निशुल्क रहेगा। 1 से 7 सितंबर तक हॉल नं. 7 में स्टेशनरी मेला भी आयोजित किया जाएगा।


इस मेले का शुभारंभ उपराष्ट्रपति' हामिद अंसारी" करेंगे। फेडरेशन के उपाध्यक्ष नरेंद्र कुमार ने बताया कि लेखन के क्षेत्र में महिलाओं की अहम् भूमिका होती है,समाज की धुरी पर महिलाओं की बराबर की साझेदारी है। वे भावुक होती हैं इसलिए साहित्य में मन की संवेदनाओं का और स्त्री मन का चित्रण वह बहुत सहज भाव से कर लेती हैं। भूमंडलीय करण के दौर में महिलाओं ने तमाम संकटों के बावजूद एक ऐसा मुकाम हासिल किया है,जिस पर गर्व किया जा सकता है । तो ३० अगस्त से ७ सितम्बर तक सभी पुस्तक प्रेमी इस मेले को देखना और पुस्तकों की दुनिया में कुछ पल बिताना न भूलें।

Sunday, August 24, 2008

प्रीत का गीत [राधा -कृष्ण ]

राधा कृष्णा को पल पल पुकारे
यादो के पल वो लगते हैं प्यारे
झुकी झुकी यह पलके. अब क्यूँ है छलके.
जब कृष्णा भी राधा- राधा पुकारे...


मन से मन का मेल यही है ,प्रीत ऐसे ही दिल में पले
राधा ने जब कृष्ण को देखा ,आँखो में सौ दीप जले...

पंक्तियाँ बहुत पहले मथुरा में कहीं दिवार पर लिखी पढ़ी थी और तभी एक कविता लिखी थी इन्ही पंक्तियों को सोच कर ।राधा कृष्ण का प्रेम आज भी हर दिल में एक उजाला भर देता है


मन से मन का मेल यही है ,प्रीत ऐसे ही दिल में पले
राधा ने जब कृष्ण को देखा ,आँखो में सौ दीप जले
होंठो पर ठहरी बातो को, नयनो की भाषा मिले

यूँ ही आँखो आँखो में प्यार की दास्तान बढे
राधा ने जब कृष्ण को देखा दिल में प्रीत के कमल खिले

सुन बंसी की लय कृष्णा की, राधा के दिल का फूल खिले
तेरे मेरे प्यार का गीत बस वैसे प्रीत की डगर चले
राधा ने जब कृष्ण को देखा संगीत प्यार का दिल में पाले

जिस एक राग को जल उठाते दोनो दिलो के दीपक
आज अपने मधुर मिलन में उसी राग का दौर चले

प्यास जो देखी थी उस दिन तेरे मीठे लबो पर
वही मीठी मीठी प्यास अब मेरे दिल में भी पाले
राधा ने जब कृष्णा को देखा मन में सौ दीप जले!!

२६ अगस्त २००६

Thursday, August 21, 2008

गहने शक्ति के भी प्रतीक

गहने बहुत प्राचीन समय से मनुष्य को आकर्षित करते रहे हैं | आदि काल से जब उसने खाना पहना ,घर बनाना सीखा तब ही साथ गहने भी बनाए पत्थर के और ख़ुद को उनसे सजाया | वक्त के साथ साथ गहनों का सफर भी चलता रहा और यह अपने नए प्रकार के घातु में ढल कर स्त्री पुरूष दोनों के व्यक्तित्व की शोभा बढाते रहे | इनको पहनना सिर्फ़ शिंगार की दृष्टि से ही नही था बलिक शरीर के उन महत्वपूर्ण जगह पर दबाब देने से भी भी था जो मनुष्य को स्वस्थ रखते हैं | यह बात विज्ञान ने भी सिद्ध की है |

इसी सिलसले में आज आपसे कश्मीरी गहनों के बारे में बात करते हैं |जम्मू कश्मीर में बहुत समय तक रहने के कारण कश्मीरी लड़कियों के पहने हुए गहनों से बहुत प्रभावित रही हूँ मैं | हर प्रांत हर जगह की अपनी एक ख़ास पहचान होती है | और कोई न कोई बात उसके पहनावे ,गहनों और रीति रिवाजो से जुड़ी होती है |उनके बारे में जानना बहुत ही दिलचस्प लगता है | कानों से लटकती लाल डोरी ..गुलाबी चेहरों का नूर और उस पर डाला हुआ फेरन जैसे एक जादू सा करता है | कई कश्मीरी सहेलियां थी जिनसे उनके पहने जाने वाले गहनों के बारे में जाना |

.कश्मीर में हर लड़की की शादी से पहले लौगाक्ष गृह सूत्र " की रस्म अदा की जाती है जिस में लड़की के सामने सारे रहस्य खोले जाते हैं | लौगाक्ष एक ऋषि हुआ था जिस ने तन ,मन और आत्मा की चेतना के कुछ सूत्र लिखे थे ,वही सूत्र पढ़े जाते हैं और उनकी व्याख्या की जाती है |

गुणस..मटमैले रंग के एक जहरीले पहाडी सांप को गुणस कहते हैं और जो सर्प मुखी सोने का कंगन बनाया जाता है उसको भी गुणस कहते हैं | इस आभूषण को जब मंत्रित कर के लड़की की दोनों कलाई यों में पहनाया जाता है तो मान लिया जाता है की इस की शक्ति उसकी रगों में उतर जायेगी और वह अपनी रक्षा कर सकेगी |

कन वाजि- कर्ण फूल वाजि गोल कुंडल को कहते हैं और कान का कुंडल यह फूल के आकार में बना सोने का आभूषण है जिसको पहनाने से यह माना जाता है की दोनों कानो में पहनाने से इडा और पिंगला दोनों नाडीयों को जगा देंगे इडा नाडी खुलने से चन्द्र शक्ति और दायें तरफ़ पहनाने से पिंगला नाडी खुलेगी जिस से सूरज शक्ति जग जायेगी |

ड्याजी -होर काया विज्ञान की बुनियाद पर सोने का एक आभूषण पहनाया जाता है जो योनी मुद्रा आकार का होता है यह प्रतीक हैं दो शक्तियों ने अब एक होना है | ड्याजी शब्द मूल द्विज से आया है जिसका अर्थ है दो और होर का मतलब जुड़ना | इस में तीन पतियाँ बनायी जाती है जो तीन बुनयादी गुण है .इच्छा ,ज्ञान ,और क्रिया | यह सोने का तिल्ले के तीन फूलों के रूप में होती है |

तल राज तल रज इस आभूषण के दोनों सिरों पर जो लाल डोरियाँ बाँधी जाती है ,उनको तल रज कहते हैं |रज का अर्थ है --धागा और ताल से मतलब है सिर के तालू की वह जगह ,जहाँ पूरी काया में बसे हुए चक्रों का आखरी चक्र होता है सहस्त्रार | आर का अर्थ है धुरी और वह धुरी जिसके इर्द गिर्द कई चक्र बनते हैं | काया विज्ञान को जानने वाले रोगियों के अनुसार इस सहस्त्रार में कुंडलिनी जागृत होती है ,परम चेतना जागृत होती है | यह आभूषण दोनों कानों के मध्य में पहना जाता है .उस नाडी को छेद कर के जिसका संबंध सिर के तालू के साथ जुडा होता है ,और माना जाता है की इस आभूषण के पहनने से सहस्त्रार के साथ जुड़ी हुई नाडियाँ तरंगित हो जायेंगी |

कल वल्युन कलपोश---कल खोपडी को कहते हैं और पोश पहनने को | यह सिर पर ढकने वाली एक टोपी सी होती है -जो सुनहरी रंग के कपड़े को आठ टुकडों में काट कर बनायी जाती है | यह उन का सुनहरी रंग का कपड़ा सा होता है और जिस पर यदि तिल्ले की कढाई की जाए तो उसको जरबाफ कहते हैं | यह आठ टुकड़े आठ सिद्धियों के प्रतीक हैं इस एक लाल रंग की पट्टी राजस गुन की प्रतीक है और सफ़ेद रंग के जो फेर दिए जाते हैं वह सात्विक रूचि को दर्शाते हैं | इस आठ डोरियों को दोनों और से एक एक सुई के साथ जोड़ दिया जाता है जिस पर काले रंग का बटन लगा होता है | यह बटन तामसिक शक्तियों से रक्षा करेगा इस बात को बताता है |

वोजिज डूर-लाल डोरी --वोजिज लफ्ज़ उज्जवल लफ्ज़ से आया है और डूर का अर्थ है डोरी | इसको दोनों कानो में ड्याजी -- होर जो आभूषण है वह दोनी कानो में इसके साथ बाँधा जाता है | उनका लाल रंग शक्ति का प्रतीक है और बाएँ कान में स्त्री अपने लिए पहनती है और दायें कान में अपने पति के लिए पहनती है इसका अर्थ यह है की दोनों ने आपने अपने तीन गुन इच्छा ज्ञान और क्रिया अब एक कर लिए हैं |

तरंग कालपोश को सफ़ेद सूती कपड़े में लपेटा जाता है -जो सिर से ले कर पीठ की और से होता हुआ कमर तक लटका होता है |मूलाधार चक्र तक और इस तरह सब छः चक्र उस कपड़े की लपेट में आ जाते हैं इसका सफ़ेद रंग तन मन और आत्मा की पाकीजगी का चिन्ह है |

स्त्री शक्ति कश्मीर में शक्तिवाद सबसे अधिक सम्मानित हुआ है |इस लिए स्त्री की पहचान एक शक्ति के रूप में होती है और इस लिए उसके पहरन में दो रंग जरुर होते हैं सफ़ेद सत्व गुण का प्रतीक और लाल राजस गुन का प्रतीक | काले रंग का उस के पहरन में कोई स्थान नही क्यूंकि वह तामस गुण का प्रतीक होता है |

फेरन --यह सर्दियों में पश्मीने का होता है और गर्मियों में सूती कपड़े का | यह भी काले रंग का कभी नही होता है | इसकी कटाई योनी मुद्रा में की जाती है जिस पर लाल रंग की पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसको दोनों तरफ़ से चाक नही किया जाता इसका अर्थ यह होता है की शक्ति बिखरेगी नही |इसके बायीं तरफ़ जेब होती है जो स्त्री की अपनी तरफ़ है | उस तरफ़ की जेब लक्ष्मी का प्रतीक है और इस में भी लाल पट्टी जरुर लगाई जाती है | इसका अर्थ यह है की लक्ष्मी स्त्री के पास रहेगी और वह इसकी रक्षा अपने तमस गुण से करेगी |

पौंछ---यह फेरन के अन्दर पहने जाने वाला कपड़ा होता है और यह अक्सर सफ़ेद रंग का ही होता है -यानी सात्विक शक्ति स्त्री के शरीर के साथ रहेगी जिस के ऊपर लाल रंग का फेरन होगा रजस शक्ति का प्रतीक |

इसकी बाहों की लम्बाई कभी भी अधिक लम्बी कलाई तक नही होती है और इस के आख़िर में में भी लाल पट्टी लगा दी जाती है |

लुंगी --यह कई रंगों का एक पटका सा होता है जिसको फेरन के साथ कमर पर बाँध लिया जाता है और इसकी गाँठ को एक ख़ास तरकीब से बाँधा जाता है जो पटके की पहले लगी दो गांठो को लपेट लेती है जो की एक स्त्री शक्ति का प्रतीक है और एक पुरूष शक्ति का प्रतीक है और एक गाँठ में बाँधने का मतलब है की अब वह दोनों एक हैं |

पुलहोर--कुशा ग्रास को सुनहरी धागों में बुन कर स्त्री के पैरों के लिए जो जूती बनायी जाती है उसको पुलहोर कहते हैं | माना जाता है कि कुशा ग्रास की शक्ति के सामने असुरी शक्ति शक्तिहीन हो जाती हैं और ज़िन्दगी की मुश्किल राहों पर स्त्री आसानी से आगे बढ़ सकेंगी और साबुत कदम रख सकेगी |

इस प्रकार यह गहने शक्ति के भी प्रतीक बन जाते हैं और हर लड़की खुशी खुशी इनको धारण करती है | यह कोई बंधन नही एक परम्परा है जिस का सम्मान और उस से प्यार हर लड़की को ख़ुद बा ख़ुद हो जाता है |

Monday, August 18, 2008

देवताओं का नगर--रॉक गार्डन


उस बनाने वाले ने रॉक गार्डन
हर दिल में एक नयी चाहत जगा दी है
एक एहसास जीने का देकर
जीने की एक नयी राह दिखा दी है !!

चंडीगढ़ शहर और उस में बसा यह ,"देवताओं का नगर रॉक गार्डन "और सुखना झील मेरे पंसदीदा जगह में से एक है | रॉक गार्डन यानी देवताओं की नगरी ,जो इश्क की इन्तहा है ,जहाँ इश्क की इबादत करने को जी चाहता है | यह जनून जरुर किसी देवता ने ही नेकचंद के दिलो दिमाग में डाला होगा , वह कहते हैं कि जब वह छोटे थे तो जंगल और वीरानियों से पत्थर और अजीब सी शक्ल वाली टेढी मेढ़ी टहनियां चुनते रहते थे |पर कोई जमीन पास न होने के कारण वह उनको वहीँ निर्जन स्थान पर रख आते थे |फ़िर जब बड़े हो कर वह पी .डब्लू .डी में रोड इंस्पेक्टर बन गए तो चंडीगढ़ की इस निर्जन जगह पर एक स्टोर दफ्तर का बना लिया और यहाँ सब एक साथ रखता गए |
यहाँ इसी वीराने में उन्होंने इस नगरी की नीवं रख तो दी ,पर एक डर हमेशा रहता किसी सरकारी अफसर ने कभी कोई एतराज़ कर दिया तो फ़िर क्या करूँगा ? उस हालत में उन्होंने सोच रखा था कि फ़िर वही वही पर बनी गहरी खाई के हवाले कर देंगे| कितनी हैरानी की बात है कि गुरदास जिले के बेरियाँ कलां गांव के जन्मे इस अनोखे कलाकार को न ड्राइंग आती है न कभी उन्होंने की |पर जैसे देवताओं ने हाथ पकड़ कर उनसे यह सब बनवा लिया |

इस के पीछे हुई मेहनत साफ़ नज़र आती है | शाम होने पर वह दरजी की दुकानों पर जा कर लीरें इक्ट्ठी करते जहाँ कहीं मेला लगता वहां से टूटी चूडियाँ के टुकड़े बोरी में भर कर ले आते ,होटलों और ढाबों से टूटे प्याले प्लेटों के टुकड़े जमा करते ,साथ ही जमा करते बिजली की जली हुई ट्यूब और जले हुए कोयले के टुकड़े भी | और इस सब सामान को जोड़ने आकृति देने के लिए सीमेंट , जहाँ सीमेंट के पाइप बनते और जो छींटों के साथ साथ सीमेंट उड़ता उसको इकठ्ठा कर के ले आते | इस तरह पंजाब की मिटटी पर बना यह इस कलाकार का वह सपना है जो पूरी दुनिया ने इसको बन कर खुली आंखों से देखा है |
१२ साल तक यह कलाकार छिप कर यह नगरी बसाता रहा , डरता रहा कि कहीं कोई सरकारी हुक्म इसको मिटटी में न मिला दे पर जब एम् .एस .रंधावा ने यह नगरी देखी तो उनका साथ दिया फ़िर नए चीफ कमिशनर टी .एन चतुर्वेदी ने इन्हे पाँच हजार रूपये भी दिए और सीमेंट भी दिया और दिए मदद के लिए कुछ सरकारी कारीगर |काम अभी खूब अच्छे से होने लगा था तभी उनकी ट्रांसफर यहाँ से हो गई और नए कमिशनर ने आ कर यह काम यह कह कर बंद करवा दिया कि , फालतू का काम है | तीन साल तक यह काम बंद रहा | उसके बाद आए नए चीफ कमिशनर ने काम दुबारा शुरू करवाया और इन्हे जमीन भी दी | तब से या देवताओं की नगरी आबाद है और नित्य नए बने तजुरबो से गुलजार है |

यहाँ चूडियों के टूटे टुकड़े से बनी गुडिया जैसे बोलने लगती है ,पहाडी प्रपात का महोल अपने में समोह लेता है और तब लगता है की यह पत्थर हमसे कुछ बातें करते हैं .बस जरुरत इन्हे ध्यान से सुनने की है |

कभी रॉक गार्डन पर पर लिखी एक कविता पढ़ी थी जिसका मूल भाव यह था कि जिस तरह एक कलाकार ने टूटी फूटी चीज़ो से एक नयी दुनिया बसा दी है क्या कोई मेरे एहसासो को इसी तरह से सज़ा के नये आकार में दुनिया के सामने ला सकता है ?दिल तो मेरा है "रॉक" है , क्या उस पर अहसास का गार्डन बना सकता है? ...... उसको सोच कर यह नीचे लिखी कविता मैंने लिखी ..पता नही यह उस कलाकार के अंश मात्र भाव को भी छू सकी है यह नही ,पर एक कोशिश कि है मैंने .....

बना तो सकते हैं हम
अपनी चाहतों से तेरे
रॉक हुए दिल को
प्यार के महकते हुए
एहसासों का गुलिस्तान
पर क्या तुम भी
उन टूटी फूटी चीजों की तरह
अपने सोये हुए एहसासों को
जगा पाओगे ?
जिस तरह सौंप दिया था
टूटे हुए प्यालों चूडियों ने
अपना टूटा हुआ अस्तित्व
अनोखे बाजीगर को .
क्या तुम उस तरह
अपना अस्तित्व मुझे
सौंप पाओगे ??
क्या तुम में भी है ..
सहनशीलता उन जैसी
जो उन्होने नये आकार
बन पाने तक सही थी..
क्या तुम भी उन की तरह तप कर
फिर से उनकी तरह सँवर पाओगे ????

अगर मंज़ूर हैं तुम्हे यह सब
तो दे दो मुझे ..
अपने उन टूटे हुए एहसासो को
मैं तुम्हारे इस रॉक हुए दिल को
फिर से महका दूँगी ,सज़ा दूँगी
खिल जाएगा मेरे प्यार के रंगो से
यह वीरान सा कोना तेरी दुनिया का
पूरी दुनिया को मैं यह दिखा दूँगी !!

रंजू


Wednesday, August 13, 2008

दिल की रागिनी


हूँ तेरे साथ मैं आज ,
कुछ बहके हुए एहसासों से
छिपा ले मुझे बाँहों में सनम कि,
वक़्त कटे ना अब बातो से
तेरे ही सांसो से जुड़ी ,
मैं साथ तेरे हर पल चली हूँ
तेरे ही दिल की रागिनी बन के
आज मैं तेरे दिल से जुड़ी हूँ .......


दिल धड़क रहा है मेरा
आज कुछ नये अंदाज़ से
सीने में है कुछ मचले हुए जज़्बात से
नज़रो में एक मीठी सी कसक ले के जगी हूँ
तेरे नयनों में बन सपना ,मैं ही तो खिली हूँ
तेरे ही दिल की रागिनी बन के
आज में तेरे दिल से जुड़ी हूँ .......


रात है कुछ आज सुरमई महकी हुई ,
बहकी है यह मदमस्त हवा भी
कर ले तू भी नादानियां आज
दिल की बहकी फ़िज़ाओ से...
आज तेरे साथ मैं सब हदों को ..
पार करने की नीयत से खड़ी हूँ
बाँध ले आज अपने प्यार की डोर से सनम,
मैं इस पल के लिए दुनिया से लड़ी हूँ
तेरे ही दिल की रागिनी बन के
आज मैं तेरे दिल से जुड़ी हूँ ....

१३-०२ ०५

Tuesday, August 12, 2008

आठ- आठ -आठ का असर हम पर असर आखिर कर ही गया

आठ- आठ -आठ का असर हम पर असर आखिर कर ही गया | पिछले बीते कुछ दिन यह बता गए कि जो हम सोचते हैं वह नही होता अक्सर जो तय होता है वह ही होता है | आठ -आठ -आठ हर टीवी चेनल पर सुनते सुनते लगा की पता नही क्या कहर बरपा होने वाला है इस दिन | शाम के ५ बजे पतिदेव घर पधारे और चाय पीते पीते मैंने कहा कि कुछ नही हुआ इस आठ आठ का असर यूँ ही हल्ला मचा देते हैं मिडिया वाले भी |

मुस्कराते हुए यह बोले ,''टीवी भी तुम्ही देखती रहती हो ..चलो मैं यह अलमारी हिल रही है इसको ठीक कर देता हूँ ...और कुछ देर बाद रसोई के पास से छन्नं से कई कप टूटने की आवाज़ आई .भाग कर देखा तो यह अपनी कटी ऊँगली को वाशबेसिन में धो रहे हैं और सब तरफ़ खून ही खून ..बाबा रे !!यह क्या कर दिया ...कुछ नही ऊपर लगे शीशे की शेल्फ को पकड़ कर ऊपर से कील उठा रहा था लगता है वह टूट कर ऊँगली काट गया है | ओहोहो आप भी देख कर काम नही कर सकते क्या ..मैं इतना सारा बहता खून देख कर घबरा गई थी

हल्ला मत मचाओ चलो डाक्टर के पास लगता है ज्यादा कट गई है .कैसे क्यों ? पूछने का अभी समय नही था ..भागी साथ वाले डाक्टर के पास ले कर इन्हे ..उसने कहा लगता है कि नस कट गई है कोई ...मूलचंद ,या सफ़दर ज़ंग ले कर जाओ ,मैं फर्स्ट एड कर देता हूँ ..|

वहां से ले कर इन्हे सफ़दरज़ंग भागी |क्यूंकि वहां एक दो बार इमरजेंसी में जाना हो चुका था कुछ वहां कि जानकरी थी कि कैसे जल्दी से सब होगा | वहां इमर्जेंसी में डाक्टर ने जल्दी ही देख कर कहा कि कमरा नम्बर १०५ में ले कर जाए इन्हे वही टिटनेस का इंजेक्शन भी लग जायेगा और स्टिचिस भी | पर वहां जा कर जैसे ही डाक्टर ने वह बंधी पट्टी खोली तो खून का फव्वारा मेरे अब तक लगातार आंसूं की तरह बह निकला ॥| "'

"अरे अरे"'! यह तो बहुत ज्यादा कट गया है आप इनको ओ टी में ले जाओ वहीँ से वह प्लास्टिक सर्जरी में रेफर कर देंगे आपको | मेरा सब्र का बाँध तो कब से साथ छोड़ चुका था पर यह मुझे यूँ ले कर ओ टी की तरफ बढे जैसे हाथ इनका नही मेरा कटा है | लगातार बहता खून देख कर मेरी घबराहट बढती जा रही थी और यह उतने ही सब्र से डाक्टर को सब बता रहे थे | आधे घंटे बाद डाक्टर ने ओ टी से बाहर आ कर कहा अब इन्हे पल्स्टिक सर्जरी वाली विंग में ले जाओ यहाँ मैंने जो करना था कर दिया है ..नस कट के अलग हो गई थी उसका खून बहना अब इतना खतरनाक नहीं है फ़िर भी आप जल्दी से जल्दी वहां पहुँचो ..|

यहाँ तक सब तुंरत फुरंत हुआ था पर प्लास्टिक सर्जरी में जा कर एहसास हुआ कि यह सही गवर्मेंट हॉस्पिटल है जहाँ इलाज डाक्टर की मर्ज़ी से ही होगा :) हम वहां ६.३० पर पहुँच गए थे और अब ८ बजने को थे डाक्टर का कोई अता पता नही | जो दो नर्स ड्यूटी पर थी वह इतने बुरे बुरे मुहं बना कर कह रही थी सब्र करो अभी आ जायेंगे डाक्टर शायद राउंड पर होंगे ..| दर्द यह सह रहे थे और तकलीफ मुझे हो रही थी ऐसे में सब्र कहाँ |

८.१५ पर डाक्टर साहब पधारे और देख कर कहा कि एक्स रे करवाओ पहले फ़िर आगे का काम होगा जब एक्स रे की रिपोर्ट आ जाए नर्स को बता देना वह मुझे बुला लेगी बहुत रूखे ढंग से कह कर चले गए |

अब इन्हे ले कर एक्स रे करवाने भागी | वहां एक्स रे वाले ने कहा एक घंटे बाद आ कर रिपोर्ट लेना |
कहाँ फंस गए हम यह सोच रही थी मैं और यही सोच कर इनसे कहा की चलो कहीं और चलते हैं यहाँ तो देर लग रही है बहुत ॥
नहीं अब यही करवा लेते हैं फ़िर आगे का देख्नेगे राजीव ने कहा और मैं इस बन्दे की सहनशीलता देख रही थी कि इतना खून बहता देख कर भी उफ़ नहीं | एक घंटे के बाद एक्स रे मिला नर्स को बताया | उसने कहा कि अब तो डाक्टर साहब डिनर पर चले गएँ हैं अब जब आएंगे तब आयेंगे | मेरा पारा अब तक हाई पिच पर जा चुका था कहा आप उनके सेल पर फ़ोन करे यहाँ खून बहना बंद नही हो रहा है और वहां उनको डिनर की पड़ी है | यह मुझे रोक रहे थे कि यही होता है गवर्मेंट हॉस्पिटल में कुछ मत कहो यहाँ | नर्स ने दो तीन बार फ़ोन कर दिया उनके सेल पर |९.३० बजे डाक्टर जी पधारे
और नर्स जो अब तक हमें कह रही थी कि डाक्टर साहब कि मर्ज़ी जब आए मैंने तो आपके कहने पर फ़ोन कर दिया है | वह डाक्टर को देखते ही पासा पलट गई कि इन लोगों ने हल्ला मचा रखा था , अब क्या डाक्टर खाना भी न खाए ..उसके कहते ही मैंने उसकी तरफ़ गुस्से से जैसे ही देख कर डाक्टर साहब को कुछ कहने कि कोशिश की ही थी कि
वह गुस्से में जो गरजे कि आप लोग ख़ुद को समझते क्या है ? क्या इमर्जेंसी है क्या नही ...यह मुझे आपसे बेहतर पता है ..
तो लगा कि क्या यह डाक्टर बनते समय जो शपथ ग्रहण की जाती है वह भूल गए हैं वो याद दिलाऊं इन्हे या इस वक्त हमें इनकी जरूरत है चुप हो जाऊं ?

राजीव ने कहा सॉरी डाक्टर असल में यह घबरा गई थी सो जल्दी करने को कहा .!

''आप चुप हो जाइये ""
'।इतनी जल्दबाजी है तो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाते यहाँ क्यों आए ? "

जी हाँ यही गलती हो गई हमसे मैंने गुस्से में कहा | राजीव ने जोर से मुझे आँखे दिखायी और कहा प्लीज़ डाक्टर साहब आप गुस्सा न हों | पर उस डाक्टर का गुसा शांत होने के मुझे कोई असार नही नज़र आ रहे थे | एक्स रे एक तरफ फेंक कर गुस्से से बोले साइन करिए यहाँ पर कि आप ही इस सर्जरी की जिम्मेवार है और शायद यह ऊँगली अब काम नही कर पाएगी ।मैं कोशिश करूँगा ॥ और जहाँ पहले गई थी वहां से लिखवा के लाये कि यह पुलिस केस नही है | मैं अभी सकते में खड़ी थी कि यह सुन कर और हाय ओ रब्बा अब यह कहाँ से पुलिस केस बन गया |

जाओ जाओ लिखवा लाओ राजीव ने फॉर्म दे कर मुझे जाने को कहा | उसके बाद राम राम कर के प्लास्टिक सर्जरी शुरू हुई जो तीन घंटे चली | यही लगता रहा बाहर बैठे हुए कि अन्दर वह गुस्सा शांत रखे और सब ठीक हो जाए | तीन घंटे बाद बाहर आ कर दवाई बतायी और सोमवार आने को बोला ,अब उनका गुस्सा शांत था |

रात के ३ बज चुके थे आठ -आठ -आठ अपना असर हम पर पूरी तरह से दिखा गई थी |

पर कल यानी कि सोमवार को जब ड्रेसिंग करवाने गई तो वहां इतना दर्द बिखरा हुआ था चारों तरफ़ कि देख कर दिल रो पड़ा और तब लगा कि हमारे लिए उस वक्त अपनी तकलीफ बहुत बड़ी थी ,पर उस डाक्टर के लिए नही |क्यूंकि वह सिर्फ़ एक ऊँगली कटी हुई नही देखता है वह तो यहाँ उन मरीजों को भी देखता है जो न जाने अपने शरीर का कौन कौन सा अंग खो कर उसके पास आते हैं और वह एक जीने की आस दे कर उन्हें ठीक करने की कोशिश में लगा होता है | यह सब देख कर उस डाक्टर के प्रति गुस्सा शांत हो गया और लगा कि दर्द बहुत है दुनिया में....और अपने उस छोटे से दर्द से जो बहुत बड़े हैं |फ़िर भी एक उम्मीद पर यहाँ आते हैं कि ठीक हो जायेंगे |और यही डाक्टर रूपी मसीहा उनके दर्द को कम कर देगा |

Friday, August 08, 2008

फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!


कल कमरे की खुली खिड़की से
चाँद मुस्कराता नज़र आया
खुल गई भूली बिसरी
यादो की पिटारी...
हवा ने जब गालों को सहलाया,
उतरा नयनो में फ़िर कोई लम्हा
जीवन के उदास तपते पल को
मिली जैसे तरुवर की छाया..

कांटे बने फूल फ़िर राह के ..
दिल फ़िर से क्यों भरमाया..
हुई यह पदचाप फ़िर किसकी..
दिल के आँगन में गुलमोहर खिल आया..

कहा दिल ने कुछ तड़प कर
जो चाहा था ,वही तो पाया
वक्त ने कहा मुस्करा कर...
कहाँ परिणाम तुम्हे समझ में आया?
तब तो रखा बंद मन का हर झरोंखा
आज फ़िर क्यों गीत प्रीत का गुनगुनाया
भरे नैनों की बदरी बोली छलक कर
खोनी ही जब प्रीत तो....
फ़िर क्यों दिखती प्रीत की छाया..!!!

Tuesday, August 05, 2008

होता है कुछ ऐसा भी ......

कवि निराला जी के बारे में एक घटना पढ़ रही थी कि ,वह एक दिन लीडर प्रेस से रोयल्टी के पैसे ले कर लौट रहे थे | उसी राह में महादेवी जी का घर भी पड़ता था |उन्होंने सोचा की चलो मिलते चलते हैं उनसे .|ठण्ड के दिन थे अभी कुछ दूर ही गए होंगे कि सड़क के किनारे एक बुढिया उन्हें दिखायी दी जो ठण्ड से कांप रही थी और याचक भाव से उनकी तरफ़ देख रही थी | उस पर दया आ गई उन्होंने उसको न सिर्फ़ अपनी रोयल्टी के मिले पैसे दे दिए बलिक अपना कोट भी उतार कर दे दिया ..., और महदेवी के घर चल दिए किंतु चार दिन बाद वह यही भूल गए कि कोट क्या हुआ | उस को ढूढते हुए वह महादेवी जी के घर पहुँच गए ,जहाँ जा कर उन्हें याद आया कि वह कोट तो उन्होंने दान कर दिया था |

पढ़ कर लगा कि इस तरह जो डूब कर लिखते हैं या प्रतिभाशाली लोग होते हैं ,वह इस तरह से चीजो को भूल क्यों जाते हैं ? क्या किसी सनक के अंतर्गत यह ऐसा करते हैं ? या इस कद्र डूबे हुए होते हैं अपने विचारों में कि आस पास का कुछ ध्यान ही नही रहता इन को ।विद्वान मन शास्त्री का यह कहना है कि जब व्यक्ति की अपनी सारी मानसिक चेतना एक ही जगह पर केंद्रित होती है वह उस सोच को तो जिस में डूबे होते हैं कामयाब कर लेते हैं पर अपने आस पास की सामान्य कामो में जीवन को अस्तव्यस्त कर लेते हैं जो की दूसरों की नज़र में किसी सुयोग्य व्यक्ति में होना चाहिए |

इसके उदाहरण जब मैंने देखे तो बहुत रोचक नतीजे सामने आए .,.जैसे की वाल्टर स्काट यूरोप के एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं ,वह अक्सर अपनी ही लिखी कविताओं को महाकवि बायरन की मान लेते थे और बहुत ही प्यार से भावना से उनको सुनाते थे |उन्हें अपनी भूल का तब पता चलता था ,जब वह किताब में उनके नाम से प्रकशित हुई दिखायी जाती थी |

इसी तरह दार्शनिक कांट अपने ही विचारों में इस तरह से गुम हो जाते थे कि , सामने बैठे अपने मित्रों से और परिचितों से उनका नाम पूछना पड़ता था और जब वह अपने विचारों की लहर से बाहर आते तो उन्हें अपनी भूल का पता चलता और तब वह माफ़ी मांगते |

फ्रांस के साहित्यकार ड्यूमा ने बहुत लिखा है पर उनकी सनक बहुत अजीब थी वह उपन्यास हरे कागज पर ,कविताएं पीले कागज पर ,और नाटक लाल कागज पर लिखते थे | उन्हें नीली स्याही से चिढ थी अत जब भी लिखते किसी दूसरी स्याही से लिखते थे |

कवि शैली को विश्वयुद्ध की योजनायें बनाने और उनको लागू करने वालों से बहुत चिढ थी | वह लोगो को समझाने के लिए लंबे लंबे पत्र लिखते |पर उन्हें डाक में नही डालते, बलिक बोतल में बंद कर के टेम्स नदी में बहा देते और सोचते की जिन लोगो को उन्होंने यह लिखा है उन तक यह पहुँच जायेगा | इस तरह उन्होंने कई पत्र लिखे थे |

जेम्स बेकर एक जर्मन कवि थे वह ठण्ड के दिनों में खिड़की खोल कर लिखते थे कि , इस से उनके दिमाग की खिड़की भी खुली रहेगी और वह अच्छा लिख पायेंगे |

चार्ल्स डिकन्स को लिखते समय मुंह चलाने की और चबाने की आदत थी | पूछने पर कि आप यह अजीब अजीब मुहं क्यों बनाते लिखते वक्त ..,तो उसका जवाब था कि यह अचानक से हो जाता है वह जान बूझ कर ऐसा नही करते हैं |

बर्नाड शा को एक ही अक्षर से कविताएं लिखने की सनक थी |उन्होंने अनेकों कविताएं जो एल अक्षर से शुरू होती है उस से लिखी थी ..,पूछने पर वह बताते कि यह उनका शौक है |

तो आप सब भी प्रतिभशाली हैं ,खूब अच्छे अच्छे लेख कविताएं अपने ब्लॉग पर लिखते हैं .| सोचिये- सोचिये आप किसी आजीबो गरीब सनक के तो शिकार नही :) कुछ तो होगा न जो सब में अजीब होता है .. | जब मिल जुल कर हम एक दूसरे के अनुभव, कविता, लेख पढ़ते हैं तो यह क्यूँ नही ।:).जल्दी जल्दी लिखे आप सब में क्या अजीब बात है मुझे इन्तजार रहेगा आप सब की सनक को जानने का ॥:)