Thursday, July 31, 2008

किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार ..

''किसी की मुस्कराहटों पर हो निसार ..किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार .जीना इसी का नाम है ''

कितना प्यारा गाना है न यह ..एक छोटी सी मुस्कराहट जिंदगी में बदलाव ला देती है| हँसाना ,हँसना मुस्कराना आज कल की तनाव भरी जिंदगी में बहुत जरुरी है | नही तो अवसाद तक की हालत में पहुच सकते हैं ..जिंदगी है तो मुश्किलें तो होंगी ही उनको क्यूँ न मुस्करा कर हल किया जाए |

बहुत से ऐसे लोग दिख जाते हैं आगे की तरफ़ झुके हुए .मुहं लटका हुआ ,चेहरा खींचा हुआ | ख़ुद तो तनाव ग्रस्त होते ही हैं आस पास के माहोल भी बोझिल बना देते हैं | उन्हें देख कर ऐसा लगता है कि दुनिया कि सारी समस्या का बोझ बस उन्ही के सर पर है | हँसी और मुस्कराने से उनका कोई रिश्ता नाता ही नही है | अब ऐसे लोगो से कौन मिलना चाहेगा | कौन उनसे बात करके अपना मूड ख़राब करेगा | आपका चेहरा यूँ मुसकराता हुआ होना चाहिए कि बस जो आपसे मिले आपका ही हो का रह जाए :)

किसी की बातें अच्छी मीठी, सकारात्मक हो तो उनसे बात करने को ख़ुद ही जी चाहता है .एक मुस्कराहट से भरी तस्वीर भी आपके चेहरे पर एक मुस्कान खिला देती है .जैसे समीर जी के ब्लॉग पर समीर जी की नई तस्वीर :) उनके लिखे लेख पढ़ कर दिल खुश हो जाता है और नए ताजे विचार जहन में लिखने के लिए कुलबुलाने लगते हैं ..अब समीर जी इस को पढ़ कर कोई टैक्स न लगा दे अपने ब्लॉग पर जाने का ...ख्याल रखे :) कॉपी राइट लागू कर दे कहीं विचारों पर :)

आपकी मुस्कान और स्वास्थ का गहरा सम्बन्ध हैं | वैज्ञानिक भी कहते हैं कि अपने खोये हुए स्वास्थ को लौटाने का मूल मन्त्र है खुशी और मुस्कान | मुस्कराने से दिल मस्तिष्क हमारा श्वसन तंत्र ,पाचन तंत्र सब स्वस्थ और सक्रीय रहते हैं | घर के बुजुर्ग कहते हैं कि हँसते मुस्काराते लोग कभी बीमार नही पड़ते हैं |क्यूंकि उन में रोग से लड़ने की ताकत ज्यादा होती है |

तो फ़िर क्यूँ किस उलझन में हैं आप ? अजी मुस्कराइए .क्यूंकि आपकी एक मुस्कराहट किसी का दिल जीत सकती है ,कोई बिगडा हुआ काम बना सकती है | आपकी एक मुस्कराहट घर में खुशी का उजाला फैला देगी और आपके मित्रों की संख्या बढा सकती है | इसलिए सुबह उठ कर अपने से वादा करिए कि आज आप सिर्फ़ मुस्करायेंगे फ़िर देखिये दिन कितना हसीन बीतता है | तो मुस्कारिये..मौसम भी है ,और इसको पढ़कर वजह भी है....है की नहीं ..?

Tuesday, July 29, 2008

आख़िर कब तक ?

एक वक्त वह भी था जब सारे भारत वासियों ने अपने सारे भेदभाव मिटा कर भूलकर एक जुट हो कर अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया था |ऐसा करने के लिए उन्होंने अहिंसा मार्ग को अपनाया था और सारी दुनिया ने यह देखा था | हम लोगों ने तो सिर्फ़ सुना ही है कैसे उस समय आजादी के मतवाले थे |क्या स्त्री, क्या पुरूष और क्या बच्चे सब अपनी संस्कृति और मानवता को बचाने में लगे थे |हम सब को अपने नैतिक मूल्य और अपने बनाए आहिंसा के नियमों पर नाज़ था| उस वक्त सिर्फ़ एक ही दुश्मन था हमारा अंग्रेजी शासन |
और आज हमारी हालत क्या हो चुकी है ,? हम आज अपना संतुलन क्यूँ खो बैठे हैं ? धर्म ,जातीवाद को लेकर सब तरफ़ तांडव हो रहा है | इस वक्त में याद आते हैं मदर टेरेसा जैसे नाम जिन्होंने कभी हिंदू .मुस्लिम ,सिख इसाई में कोई भेद भाव नही किया | बाहर दूर देश में जन्मी यह सिस्टर ने लोगो के दुःख दर्द को इस तरह से अपनाया कि वह सबकी मदर बन गयीं | उनके जुड़ी के घटना पढ़ी थी वह इस प्रकार है..

एक रात को किसी ने दरवाजे पर दस्तक दे कर कहा कि पास में ही एक आठ बच्चों वाले हिंदू परिवार ने कुछ दिनों से बिल्कुल खाना नही खाया है |मदर ने यह सुना तो थाली में थोड़ा सा चावल ले कर उस घर कि तरफ़ चल पड़ी |जैसे ही उन्होंने घर जा कर वहां औरत को वह चावल दिए उसने उन चावलों को आधा कर के बाहर गयीं और कुछ देर बाद वापिस आ गई |मदर ने पूछा कि क्या हुआ ? कहाँ गई थी ? तो उस औरत ने जवाब दिया कि वह पड़ोस के घर में गई थी वहां भी मुस्लिम परिवार ने बहुत दिन से कुछ नही खाया है |मदर यह सुन कर स्तब्ध रह गई और कुछ क्षण तक कुछ न बोली | मदर का मनाना था कि उस स्त्री ने थाली में उस थोड़े से चावल को अपने पड़ोसी के साथ बाँट कर वास्तव में ईश्वर के असीम प्रेम को दूसरों के साथ बांटा | मदर का उस परिवार के लिए जो प्रेम का प्रगटीकरण था वह भी ईश्वर के प्रेम का प्रतीक था और उस औरत का भी प्रेम यही था | यह थी हमारी प्रेम भावना जो न जाने अब बम के धमाकों में कहाँ गुम हो कर रह गई है |

अगर हम ईश्वर से प्रेम करते हैं विश्वास करते हैं तो उस प्रेम को जरुर हम दूसरो के साथ बाँटेंगे और जब सभी लोग उस ईश्वर के प्रेम को सदा एक दूसरे के साथ बाँटेंगे तो एक प्रेम की कड़ी मानवीय और इश्वरिये प्रेम की कड़ी अपने आप जुड़ती चली जायेगी और फ़िर सब तरफ़ सिर्फ़ शान्ति होगी ..पर सवाल तो वहीँ है अडिग खड़ा हुआ कि कुछ लोगों के स्वार्थ कि खातिर आख़िर कितने निर्दोष लोग यूँ इन बम के धमाकों में मरेंगे और कितने लोग यूँ अपनी घिनोनी हरकत से देश को यूँ दहलाते रहेंगे ??


क्या हुआ है मेरे वतन को
न जाने किस आग में यह
हर पल सुलगता ही रहता है
जब भी लगता है कि ..
सब तरफ़ है अमन के बादल
वो बादल कोई चुरा लेता है
बढ़ते हुए क़दमों को
फ़िर से ...
कोई क्यों थाम लेता है

जी में आता है कि ...
फ़िर से वही एक जुट हो के
लड़ने की मशाल जला दूँ
अमन और शान्ति का पाठ
फ़िर से हर जहन में
चिपका दूँ ......

Saturday, July 26, 2008

बरस तू किसी सावन की बादल की तरह

महावीर ब्लॉग पर मुशायरे की एक झलक



बरस आज तू किसी सावन की बादल की तरह
मेरी प्यासे दिल को यूँ तरसता क्यूँ है

है आज सितारों में भी कोई बहकी हुई बात
वरना आज चाँद इतना इतराता क्यूँ है

लग रही है आज धरती भी सजी हुई सेज सी
तू मुझे अपनी नज़रो से पिला के बहकाता क्यूँ है

दिल का धडकना भी जैसे हैं आज कोई जादूगिरी
हर धड़कन में तेरा ही नाम आता क्यूँ है

बसी है मेरे तन मन में सहरा की प्यास सी कोई
यह दिल्लगी करके मुझे तडफाता क्यूँ है
***************************
,

Monday, July 21, 2008

सावन की यह भीगी सी बदरिया


सावन की यह भीगी सी बदरिया
बरसो अब जा के पिया की नगरिया

यहाँ ना बरस कर हमको जलाओ
बरसते पानी से यूँ शोले ना भड़काओ

उनके बिना मुझे कुछ नही भाये
सावन के झूले अब कौन झुलाये

बिजली चमक के यूँ ना डराओ
बिन साजन के दिल कांप जाये

उलझा दिए हैं बरस के जो तुमने गेसू
अब कौन अपने हाथो से सुलझाए

यह बिखरा सा काजल, सहमा सा आँचल
हम किसको अपनी आदओ से लुभायें

रुक जाओ ओ बहती ठंडी हवाओं
तेरी चुभन से जिया और भी तड़प जाये

मत खनको बेरी कंगना,पायल
तुम्हारी खनक भी अब बिल्कुल ना सुहाये


सब कुछ है सूना सूना बिन सजन के
यह बरसती बदरिया बिन उनके न भाये !!



सावन की बरसती बदरिया और लफ्ज़ भी जैसे सावन की पींग से दिल में हिलोरे भरने लगते हैं ..जो दिल कहता है बस वही लिखता जाता है मन ..कुछ समय पहले भी एक अल्हड सी बरसात की कविता पोस्ट की थी ..आज यहाँ पढने के साथ साथ बरखा बहार का आनंद महावीर ब्लॉग के मुशायरे में भी ले ...वहां बरखा के रंग कई तरह से फुहार बिखेर रहे हैं ...

Monday, July 14, 2008

ऐसा कुछ भी तो नही था जो हुआ करता था ....

रोज़ जब अखबार पढने बैठो तो एक ख़बर जैसे अखबार का अब हिस्सा ही बन गई है , कभी १२ साल की लड़की का रेप कभी घर में ही लड़की सुरक्षित नही है |क्यूँ बढता जा रहा है यह सब ? क्या इंसानी भूख इतनी बढ़ गई ही कि वह अपनी सोच ही खो बैठा है ...और वही बात जब रोज़ रोज़ हमारी आँखों के सामने से गुजरे तो हम उसके जैसे आदि हो जाते हैं |फ़िर वही गंभीर बात हमें उतना प्रभावित नही करती है जितना पहली बार पढ़ कर हम पर असर होता है और हम उसको अनदेखा करना शुरू कर देते हैं|कुछ दिन पहले अनुराग जी की एक पोस्ट ने जहन को हिला के रख दिया .कैसे कर सकता है कोई ऐसे मासूम बच्ची के साथ |
क्यूँ आज अपने ही घर में लड़की सुरक्षित नही है ? यह प्रश्न कई बात दिलो दिमाग पर छा जाता है और फ़िर दूसरी ख़बरों की तरफ़ आँखे चली जाती है .|.अब यदि अरुशी हत्याकांड का जो सच बताया जा रहा है वह भी अपने ही घर में असुरक्षित मामले से ही जुडा हुआ है यदि वह सच है तो शर्मनाक है |यह सब सोच कर गुलजार की एक कविता याद आ जाती है ..

ऐसा कुछ भी तो नही था जो हुआ करता था फिल्मों में हमेशा
न तो बारिश थी ,न तूफानी हवा ,और न जंगल का समां ,
न कोई चाँद फ़लक पर कि जुनूं-खेज करे
न किसी चश्मे, न दरिया की उबलती हुई फानुसी सदाएं
कोई मौसीकी नही थी पसेमंजर में कि जज्बात हेजान मचा दे!
न वह भीगी हुई बारिश में ,कोई हुरनुमा लड़की थी

सिर्फ़ औरत थी वह, कमजोर थी
चार मर्दों ने ,कि वो मर्द थे बस ,
पसेदीवार उसे "रेप "किया !!!

Friday, July 11, 2008

'महावीर' ब्लॉग पर मुशायरा (कवि-सम्मेलन)



वरिष्ठ लेखक, समीक्षक, ग़ज़लकार श्री प्राण शर्मा जी की प्रेरणा से जुलाई १५, २००८ एवं जुलाई २२,२००८ को 'महावीर' ब्लॉग पर मुशायरे का आयोजन किया जा रहा है।

इस ब्लाग पर मुशायरे में शिरकत के लिए कवियों और कवियों की बड़ी तादाद होने की वजह से मुशायरे को दो भागों में दिया जा रहा है। पहला भाग १५ जुलाई और दूसरा भाग २२ जुलाई २००८ को दिया जायेगा।
देश-वदेश से शायरों और कवियों में प्राण शर्मा, लावण्या शाह, तेजेन्द्र शर्मा, देवमणि पांडेय, राकेश खण्डेलवाल, सुरेश चन्द्र "शौक़",कवि कुलवंत सिंह, समीर लाल "समीर",नीरज गोस्वामी, चाँद शुक्ला "हदियाबादी",देवी नागरानी, रंजना [रंजू ]भाटिया, डॉ. मंजुलता, कंचन चौहान,डॉ. महक, रज़िया अकबरमिर्ज़ा, हेमज्योत्सना "दीप" आदि पधार रहे हैं।
आप से निवेदन है कि उनकी रचनाओं का रसास्वादन करते हुए ज़ोरदार तालियों (टिप्पणियों) से मुशायरे की शान बढ़ाएं।

महावीर शर्मा
प्राण शर्मा


Thursday, July 10, 2008

सपनो की रहस्यमयी दुनिया .....

बातें सपनो की .....सपनो की अपनी ही एक रहस्यमयी दुनिया है ...सपने शब्द भी अलग अलग अर्थ देते हैं कुछ सपने हमारे आने वाले कल से जुड़े होते हैं और कुछ हम आगे बढ़ने के लिए देखते हैं पर कई बार यही सपने किसी इंसान को मौत की कगार तक ले जाए या इतने अवसाद से भर दे की जीना मुश्किल हो जाए तो वह सोचने पर मजबूर कर देते हैं .. .कल मनविंदर [जो की मेरठ में एक पत्रकार हैं ] की यह मेल मेरे पास आई जिस में उन्होंने सपने से प्रभावित एक लड़की की कहानी जो अब इस दुनिया में नही है को कवर किया और वह इस अनोखे अनुभव को मुझ से शेयर करना चाहती थी पर जब से इसको पढ़ा तब से सोच में हुईं कि क्या सच में सपनो का कोई अस्तित्व होता है ? या हालत हमें कुछ संकेत देते हैं ? और इन हालत में क्या इंसान ख़ुद को इतना असहाय पाता है ...बहुत सी बातें कई बात अनबुझी सी पहली बन कर रह जाती हैं ...पर इनका हल और अर्थ हर कोई अलग अलग ढंग से निकालता है ..क्यूंकि मैं भी अक्सर कुछ संकेत अपने सपनों से पाती रहती हूँ ..जैसे अपनी माँ के जाने का सपना मैं बहुत छोटी उम्र से देखती रही पर कभी किसी को बताया नही की कोई क्या सोचेगा पर माँ के जाने के बाद वह सपना नही देखा मैंने कभी भी ..फ़िर जब भी अनहोनी होनी होती वह मेरे सपने में दिख जाता है जैसे बड़ी बेटी का गिरना और उसका मेरा उसी हालत में ले कर हॉस्पिटल भागना जैसे मैंने अपने सपने में देखा था और भी कई मेरी जिंदगी से जुड़े सपने हैं जो अकसर मुझे किसी अनहोनी का संकेत देते रहे हैं ...अभी हम बात करते हैं इस लड़की किरण की ..

रंजना जी ,
इस अनोखे अनुभव को आपके पास भेज रही हूं।

आफिस में सुबह की मीटिंग में मुझे असाइनमेंट मिला ´जिस लड़की ने सूसाइड किया है, उसके घर का माहौल कवर करना है।`
और मैं निकल पड़ी टीपी नगर की नई बस्ती, ज्वाला नगर की ओर। पूछते पूछते किरण , जिनसे सूसाइड किया था, का घर मिल गया। गेट के बाहर पुलिस की दो गािड़यां खड़ी थीं। मुझे ताज्जुब हुआ , किरण के घर का बाहरी गेट बंद था। तभी गेट खुला और अंदर से पुलिस निकली, उसके पीछे पीछे किरण की डेड बॉडी उठाये उसके पिता भी निकले। अचानक किरण का एक हाथ नीचे की ओर लहर गया, जिस पर लिखा था, मैं नौकरी नहीं मिलने के कारण आत्महत्या कर रही हूं। कुछ भी समझ नहीं आया कि इस दुखी परिवार से कैसे पूछूं, क्या जानूं, क्या कवर करूं । मन में आया कि उनका दुख कम करने के लिये कुछ कहूं लेकिन वो भी न कर सकी, माहौल की वजह से।
किरण की बॉडी ले कर पुलिस चली गई। घर में किरण की मां, उसकी दो बहनें और एक छोटा भाई रह गया। सभी लोग गमजदा थे। समझ नहीं पा रही थी कि मैं कहां से बात 'शुरू 'करूं, पांच मिनट यूं ही गुजर गये, मैंने होले से किरण की बहन प्रीति से पूछा, आखिर हुआ क्या, क्यों बीटेक जैसी डिग्री हासिल करने के बाद भी किरण को आत्महत्या करनी पड़ी।
प्रीति ने बताया, किरण बड़ी सेंसेटिव थी। कल रात को ही वह दिल्ली से लौटी थी, कंपनी देख कर आयी थी जिसने उसे कैंपस से सिलेक्ट किया था। उसने घर आ कर सभी को बताया कि वह दो कमरे में चलने वाली कंपनी में नौकरी नहीं करेगी लेकिन वह भीतर से आहत थी जैसे कोई बात उसे भीतर ही भीतर खाये जा रही हो। अनमने मन से किरण ने खाना खाया और अपने कमरे में चली गई और पीसी पर बैठ गई। आखिरी बार उसने जॉब साइट सर्फ की रात को पौने बारह बजे। यह बात कम्पयूटर की मेमोरी से पता चली।
सुबह जब घर के लोग उठे तो किरण रैलिंग से झूल कर आत्महत्या कर चुकी थी। उसे इस हालत में देख कर सभी रोने पीटने लगे।
मैने प्रीति से कुछ और टटोलने का प्रयास किया तो वह काफी चौकाने वाला था,
किरण दस दिन पहले छत पर गई तो उसका पैर जले हुए कागजों पर पड़ गया। उसी दिन से उसे बुरे बुरे सपने आने लगे। अकसर सपनों में उसे जलते हुए मुर्दे दिखायी देते जो उसे भी आग की ओर खीचने का प्रयास करते। इस का जिक्र उसने अपनी बुआ से किया। उसने दो दिन पहले ही सभी के सामने उसने यह भी कहा , अब सपनों वाले मुर्दे उसे नहीं छोड़ेंगे। अंदर से वह काफी अपसेट भी थी। बात बात पर चिढ़ जाती थी। बेहद डिप्रेशन महसूस कर रही थी।
डाक्टर कहते हैं कि सपनों से सच का कोई वास्ता नहीं होता है। सपने क्यों आते हैं, यह लंबी बहस का मुद्दा हो सकता है।
किरण का सपना था कि वह अच्छी नौकरी करके अपने परिवार के सपने पूरे करे लेकिन उसके सपनों पर कुछ और सपने हावी हो गये। बस कुछ अजीबो गरीब सपने उसे जग से छीन कर ले मनविंदर ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर के एडिटर को जब दी तब उनके सहयोगी ने भी कहा कि , मैडम! ये क्या लिख दिया आज, क्या आज की सदी में ऐसी बातें लिखना क्या उचित है। पर क्या सच था ...?? तो आप वह हिस्सा निकाल दो अगर नहीं उचित लग रहा है। मनविंदर ने कहा .....सुबह अखबार देखा तो पेज थ्री पर थी वह खबर, सपनों ने ले ली किरण की जान...


अब आप बताये कि क्या सपनो ने उसकी जान ली या उस वक्त उस पर बीत रहे हालात ने ....या कोई न कोई कारण बनता है मौत के सफर पर जाने का ...? क्या यह सच होता है ..? क्या सच में कोई संकेत कर जाता है इन बुरे सपनों से ..हम अकसर इन्हे नज़रंदाज़ क्यों कर देते हैं ? बहुत से सवाल है दिल में . ....पर अब यह मानती हूँ की कोई शक्ति हमारे अन्दर की ही हमे सूचना जरुर देती है पर शायद हम उस को पहचान नही पाते ..और लोगो को बताने से भी झिझक जाते हैं कि वह हमारे बारे में क्या सोचेंगे ....जैसे मैं किसी को कह नही पायी कभी भी ..

Wednesday, July 09, 2008

लव ...तब और अब ....

""अरे कहाँ थी इतनी देर ""मैंने अपनी बेटी से पूछा तो वह बोली कि अपनी एक सहेली के साथ थी "'वह बहुत अपसेट थी क्यों क्या हुआ ?"' अरे माँ उसका ब्रेकअप हो गया ""अच्छा क्या वह उस से शादी करने वाली थी क्या ॥""मैंने पूछा
कम ऑन माँ हर बात शादी तक पहुंचे यह जरुरी नही है ..तो फ़िर कहे को अपसेट है वो ..उफ्फो माँ आप कुछ नही समझती यह आपकी अमृता इमरोज़ वाला प्यार अब नही रहा की हुआ सो हुआ अब इंस्टेंट लव होता है ..और नही निभता तो बस सब खत्म अगला तलाश करो ..यह आज कल की फास्ट लाइफ है ...सब बिजी हैं

हाय ओ रब्बा !!!कह कर मैंने उसकी तरफ़ शक से देखा
माँ मुझे ऐसे मत देखो ..मेरे पास टाइम नही है इन फालतू बातों के लिए
यह सुन कर मैंने बहुत बड़ी राहत की साँस ली और आज कल के बच्चो की प्यार की परिभाषा तलाशने लगी बाप रे क्या क्या नाम हैं आज कल इस के क्रश ,डेटिंग और कहाँ जा रहे हैं हम कितना आसान कर दिया है सब कुछ विज्ञान ने मोबाईल लव ,नेट लव ..
बहुत सारे लोग इस खोज में लगे हैं कि यह प्रेम नामक चीज क्या है और यह क्यूँ हो जाता है परन्तु इस नामुराद प्रेम के आगे वैज्ञानिक भी हार गए हैं पुराने समय से चले आ रहे इस खोज में यह पता चला है कि प्रेम का कोई नुस्खा जरुर है अब नई वैज्ञानिक खोज में कहा जाने लगा है कि यह ""डोपमाइन "' नमक रसायन से होता है जो पानी के बुलबुले सा फूलता है और फूट जाता है जबकि जन्मों से प्रेम के बंधन को मानने वाले कहते हैं यह तो आत्मा से जुडा प्रेम है जो कृष्ण ने राधा से किया था विवाह तो उन्होंने रुकमनी से किया था संसार भर में किसी भी प्रेम प्रसंग में राधा कृष्ण सी प्रेम उपमाये नही मिलती है दोनों का प्रेम इतना गहरा था कि पता ही नही चलता था कि राधा कौन और कृष्ण कौन ॥यही प्रेम तो सच्चे प्रेम का प्रतीक था अब यह प्रेम कहाँ हवा हो गया ॥अब आते हैं ६० ७० के दशक में तब भी प्रेम इशारों और खतों के जरिये जाहिर होता था वो भी अक्सर पड़ोस कि लड़की से जब दिखी तभी रेडियो पर आते रोमांटिक गाने प्यार किया तो डरना क्या ..मेरा प्रेम पत्र पढ़ कर कहीं तुम नाराज़ मत होना आदि आदि गानों से दिल कि बात पहुंचाई जाती थी और ऐसे ऐसे शेर ख़त में लिखे जाते थे कि लिखते हैं ख़त खून से श्याई मत समझना ।मरते हैं तेरी याद में जिंदा न समझना ...:)क्या फड़कते हुए शेर कविता होती थी तब शीशी भरी गुलाब की पत्थर पर तोड़ दू ...सूरत तेरी न देखू तो जीना ही छोड़ दू ... क्या सोच थी तब लिखने वालों की :)


इस तरह के प्रेम में केवल आत्मा हो तो भी चलेगा इसी तरह के प्रेम से सारे साहित्य भरे पड़े हैं अक्सर कहा जाता है कि जब तक प्रेम न हो तो प्रेम पर लिखा ही नही जा सकता है और आज कल ....
आज के इंस्टेंट लव पर यानी २ मिनट लव पता नही क्या करते हैं यह आज कल के बच्चे एक दूसरे को देखा और लगे प्यार की दुहाई देने फट शादी फट तलाक ....यह पश्चिम में तो सुना था कि ८० वर्ष की उम्र में एल्जिबेथ ने १२ विवाह किया और १८ वां प्यार भी अब यह कौन से रसायन का कमाल है पता नही कालिदास ने अपने शंकुल्तम में राजा दुष्यंत द्वारा अपनी प्रेमिका को भूल जाने की बात कही है जरुर यह इसी कमबख्त रसायन डोपामाइन के कारण हुआ होगा किंतु इसकी खोज अब जा कर हुई है अब यह पता ही चल गया तो देवदास बन कर दारु पीने की जरुँरत क्या है इन दिनों प्रेम व्रेम करना वैसे भी बहुत महंगा है एक नॉरमल कमाने वाला इंसान की क्या खा के प्रेम करेगा अब तो मेगी की तरह फिल्मी प्यार है तभी मर्डर और जिस्म जैसी पिक्चर पसंद की जाने लगी हैं और वही आज कल के माहोल में देखेने में आ रहा है चलिए इनको अपनी शोध जारी रखने दे कि सा प्रेम सही है कौन सा ग़लत कौन सा शास्वत है और कौन सा मेगी मोबाईल और नेट प्रेम है

Monday, July 07, 2008

काफी विद कुश.... इंटरव्यू

जब करनी होती है ख़ुद से बातें तो गीतों की सरगम बुन लेती हूँ
यूं अपने दिल के हाल को लफ्जों में कह सुन लेती हूँ

और मेरे लफ्जों को इंटरव्यू में क़ैद किया है कुश ने ..अपने इस काफी विद कुश के एपिसोड में :) पढ़े और जाने काफी विद कुश

भेजा फ्राई एक समीक्षा ...

दिल्ली की एक उमस भरी शाम ..और घर जब ख़ुद को ही अजनबी लगे तो कहीं बाहर निकल जाना चाहिए ..अक्लमंद लोग ऐसा ही करते हैं और यही मैंने भी किया .:).दिल्ली का लोधी गार्डन के पास है एम् एल भारतीय आडोटोरियम एलाइंस फ़्रेन्साइस ..यहाँ पर एक नाटक भेजा फ्राई हिन्दी कामेडी प्ले हो रहा है यह जब पता लगा तो उसी तरफ़ का रुख कर लिया ...और सही में एक उमस भरी शाम हँसते हँसते बीत गई ...यह नाटक निर्देशित किया है अनिल शर्मा ने इसको लिखा है शंकर जी ने .. इस में काम करने वाले कलाकार सभी कलाकार अपनी भूमिका में अच्छे लगे

.नाटक शुरू होता है एक नेता के जन्मदिन से जहाँ कुछ कवि कवियत्री इस शुभ अवसर पर कविता पाठ के लिए आए हैं पर अभी इस कवि सम्मलेन की शुरुआत भी नही हुई होती और ख़बर आ जाती है कि नेता जी नही रहे ..हर कवि अपने अपने दर्द को कविता में पिरो के सुना ही रहा होता है कि कितने पैसे खर्च हो गए इस सम्मलेन के लिए कि तभी खबर आती है कि झूठी अफवाह थी नेता जी जिंदा है और तभी एक मिडिया का जर्नलिस्ट इस झूठी अफवाह फैलाने पर सरकार तक गिराने कि धमकी देता है ..फ़िर कहानी आती है स्टेज पर एक ऐसे परिवार की . जहाँ घर का हर सदस्य ख़ुद को बहुत बड़ा कवि मानता है उस घर में १०५ साल के साद दादा जी भी कवि और कहानी कार हैं और पड़दादा उस से भी बड़े कवि जो रोज़ सपना देखते हैं कि उनको ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल रहा है और इस के लिए बाकयदा घर का हर सदस्य पूरी तेयारी के साथ रहता है कैमरा माला और पुरस्कार सब उल्ट पुलट रखे जाते हैं पर पड़ दादा जी कि एक आवाज़ पर सब हाजिर हो जाते हैं दादाजी जीवन दर्शन को कविता के रूप में सुनाने कि कोशिश में लगे रहते हैं तो बेटा विश्वनाथ और कृष्ण के साथ बेटी कविता और बहू जिसकी चाय .स्वेटर सब कागज पर कविता के रूप में बनते हैं और वह दोनों भी ख़ुद को किसी बड़े कवि से कम नही समझते हैं ....और तो और घर का नौकर और उसका साला भी कमाल के कवि है ..जो रोज़ ताज़ा गजल साबुन के रैपर पर उतरा करते हैं ।:). ..पर गनपत घर के नौकर कि एक कविता उस वक्त भावुक कर देती है जब बस पर एक बूढी औरत के बिना टिकट होने पर वह कहती है कि बस में ३५ किलो बोझ ले जाना मुफ्त होता है और वह आगे बैठे अपने बेटे का बोझ है इसलिए उसका टिकट नही लग सकता ...सबसे छोटा कवि निराला है जो कविता करने में अपने बडो से पीछे नही है ..सबसे अच्छा रोल अदा किया है पडदादा और साद दादा जी ने ...बहुत ही सहज अभिनय है जो हँसने मजबूर कर देता है ..असली मजा तब आता है जब घर में मेहमान के आ जाने से सब बेहद खुश हो जाते हैं कि अब कोई तो मिला जिसको वह अपनी कविता सुना सकते हैं ...और कविता सुन सुन कर उस मेहमान का क्या हाल हो जाता है यह आप ख़ुद जा कर देखियेगा :)

नाटक और कलाकार सभी ने अपने अपने पात्र के साथ न्याय किया है ..पर सरला जो विश्वनाथ की पत्नी है उसका यूँ हर वक्त पान से भरे मुहं से कविता पाठ करना या बोलना असज सा लगता है ...कविता बनी लड़की के लिए ज्यादा कुछ कहने को है ही नही ..घर आए मेहमान के रूप में सत्यप्रकाश कहीं कहीं एक दम से भावहीन हो जाते हैं जैसे अपने चरित्र से बाहर आ गए हो ..शायद इसकी वजह अंत को ज्यादा खींच देना भी हो .नाटक वही तक दर्शकों को बांधे रखता है जब तक उस में बार बार बात को दोहराया न जाए .या वह रोचक ढंग से हो .जैसे साद दादा जी और पडदादा जी का बार बार उसी बात को दोहारना हर देखने वाले दर्शक बहुत ही मजे से देखता है और हँसता भी दिल से है .मेक अप .साज सजा प्रकाश व्यवस्था अच्छी की गई है .एक अच्छा नाटक है जिसको देखा जा सकता है

Wednesday, July 02, 2008

गूगल बाबा मदद करो

जिंदगी तेज गोल पहिये सी घूमती चलती चली जाती है और हम सब यूँ ही उसके साथ साथ चलते जाते हैं ...बहुत से किरदार जो कभी हमारे साथ हर पल रहते थे वह वक्त के साए में कहीं गुम हो जाते हैं पर उनकी याद दिल में ताजा रहती है ...ख़ास कर बचपन की सहेलियां शरारते और कालेज के दिन ...अक्सर यादो के झरोखों में से झांकने लगते हैं ....और ऐसे मे कोई पुरानी सहेली तलाश कर ले तो .जिंदगी का रंग खुशनुमा हो जाता है ..
कुछ यूँ ही हुआ मेरे साथ भी ...पिछले सन्डे अचानक भाई के फ़ोन से एक आवाज़ कुछ जानी पहचानी सुनाई दी ॥ मेरे हेल्लो कहते ही कहा ओह्ह तो तू जिंदा है अभी ...मैं थोड़ा सा हैरान हो गई की यह कौन है भाई ...फ़िर कई यादो की परते एक साथ खुली कि इस तरह तो सिर्फ़ चंद लोग हैं मेरी लिस्ट में जो इतने आराम और प्यार भरे अपनेपन से दुआ देते हैं ।:) कि जिंदा है तो कहाँ है ? और नही है तो कौन से कब्रिस्तान में है ख़बर दे ...हम भी आते हैं वहां ॥
हाय ओ रब्भा !!!यह तो कविता है ॥पर तू मेरे भाई के फ़ोन पर क्या कर रही है और वहां कैसे पहुँच गई ...और कहते हैं न की दिल से दिल को राह होती है ..उसने १८ साल मुझे तलाश किया और एक दिन अचानक उस को उसकी एक पुरानी डायरी मिल गई जिस में मेरे पापा के घर का पता लिखा था ..क्यूंकि यह परमानेंट पता था तो उसने एक चांस लिया कि जा कर देख लेती हूँ ..और वहां से मुझे फ़ोन किया .. बस फ़िर तो जो बातो का सिलसिला शुरू हुआ वह इस सन्डे मुलाकात होने पर भी खतम होने को नही आ रहा था ..क्या क्या न याद किया हमने ।कॉलेज में हम ५ लड़कियों का गैंग था मैं ,कविता आराधना ,रजनी और शोभना ....जो पढ़ाई तभी करता था जब पेपर सिर पर डांस करते थे ...बाकी समय शरारते और केंटीन ......हमारी शरारते बहुत मासूम हुआ करती थी ..."'न ...न कुछ ग़लत न सोचिये ""बहुत शरीफ थे हम सब ।वैसे भी वूमेन कालेज था और उस पर हम सबको सफ़ेद यूनीफोर्म पहननी होती थी ..बंक तभी होता था जब यूनीफोर्म में नही आना होता था नही तो पहचान लिए जाते कि यह वूमेन कॉलेज की लड़कियां है । अधिकतर शरारते सिर्फ़ कालेज के भीतर ही होती थी बहुत कम मौका मिलता था बंक करने का ..कविता लिखने का शौक तब भी था ।एक बार जब आराधना का हैप्पी वाला जन्मदिन आया तो मेरे खुराफ़ती दिमाग में एक शरारत सूझी ..मैंने उस वक्त तक जितनी रोमांटिक कविताओं की तुकबंदी की थी जैसे कि...


जब भी देखते हैं तुझे तेरी आँखों की मय में डूब से जाते हैं
आराधना हम तो बस तेरी आराधना में गुम हो जाते हैं ..

और यह ..

जब भी दिल ने घबरा कर तलाश सहारा कभी कभी
हमने घबरा कर तुमहो को पुकारा कभी कभी

अब यह न समझना कि हम दीवाने हैं तेरे
हमने तुझको भी अपना दीवाना बनाया है कभी कभी

आदि आदि अभी यही याद आ रही है ...इनको एक कापी में [डायरी लेने की अकल शायद तब आई नही :) ]उसको सजा कर उस में ऐसी ऐसी कोई २५ कविताएं लिख कर बिना किसी नाम के अच्छे से गिफ्ट पैक कर के दे दी ॥ और कहा कि इसको घर जा कर ही खोलना ..बहुत स्पेशल गिफ्ट है तुम्हारे लिए ..मेरी और कविता की तरफ़ से ...घर पहुँच कर उसकी मम्मी ने भी गिफ्ट देखे और फ़िर जो उसकी हालत हुई ..वह उसने हमें अगले दिन खूब मार कर ही बतायी ..बेचारी लाख दुहाई देती रही कि माँ यह लड़की है जिसने लिखी है .....पर उस वक्त सेल फ़ोन या कोई फ़ोन तो ज्यादा थे नही ..और वह तवी नदी के उस पार हमारा घर इस पार ..पर फ़िर बाद में उसकी मम्मी को बता दिया था कि हमने शरारत करी है ..सो बस इतनी ही मासूम शरारते करते थे बस ..:) फ़िर वक्त के साथ सब अलग होते गए कुछ समय तक एक दूसरे से बात चीत होती रही ...आख़िर में सिर्फ़ कविता के साथ ही बात हो पाती थी फ़िर मैं भी अपने घर में उलझ गई और वह भी ..पर शायद कोई याद थी जो एक दूजे को तलाश करती रही ।और उसने मुझे तलाश कर ही लिया .और जब हम दोनों मिले तो बाकी गैंग भी याद आना लाजमी था .

उस दिन मीता की कविता पढ़ रही थी तभी दिमाग में एक घंटी बजी कि शायद गूगल बाबा की मदद से बाकी सब भी मिल जाए ..वैसे भी यह इन्टरनेट की दुनिया है है और यह बहुत छोटी है ...इस लिए सोचा एक कोशिश कर ली जाए क्या पता वह भी यह पढ़े .....मैं प्रोमिस करती हूँ आराधना कि अब जो कविताएं लिखी है वह तेरे पतिदेव को बिना नाम के नही दूंगी ..:) मीता की इसी उम्मीद के साथ अब मेरी उम्मीद भी जुड़ गई है ...कि यह लिखा हुआ सच ही हो जाए कि गूगल सर्च एंजिन मे ढुंढ़ो तो मिल जाता है ......:)

यदि आप मेरे बारे में और जानना चाहते हैं तो सोमवार को काफी विद कुश पढ़े :)