Wednesday, April 30, 2008

यह भी एक सच है .

यह भी एक सच है ..

आज की जनरेशन कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है वह एक आंकलन पढ़ कर सामने आया ..जिस तेजी से देश तरक्की कर रहा है उस के साथ ही हमारी संस्कृति और सभ्यता किस क़द्र कहाँ जा रही है इसको जानने के लिए एक नज़र जरा इन बातो पर डालिए

हमारी आज की मोबाइल यंग जनरेशन शराब पीने के लिए बे इन्तहा पैसा खर्च करती है इसका साबुत है पिछले कुछ सालों में पी गई है २२० मिलियन लीटर वाइन दिल्ली मुम्बई कोलकाता पुणे और बेंगलूर जैसे शहरों में पानी की तरह पी जाती है यह चलन अब छोटे शहरों तक भी पहुँच रहा है और अनुमान है की २०१० तक घरेलू वाइन उपभोग नो मिलियन लीटर तक पहुँच जायेगा

भारत की सिलिकान वैली को अब देश की बियर कैपिटल या पब सिटी के नाम से भी जाना जाता है देश की सबसे जायदा पब वाले इस शहर में नाईट क्लब म्यूजिक और ड्रिंक की मस्ती में लोग डूबे रहते हैं


दिल्ली मुम्बई और बेंगलूर में नाईट क्लब में आने वाले युवा १०.००० रुपये तक एंट्री फीस देते हैं

ज्यादातर युवा सिर्फ़ सिगरेट पर ही २,००० रुपया महीना खर्च कर देते हैं

फाइव स्तर होटल्स में हर महीने ९० से १०० पार्टी आयोजित की जाती हैं और एक \व्यक्ति का यहाँ पर खर्च ३.००० से १०.००० रुपये तक आता है

भारत का लाटरी बाज़ार २५० रूपये है जिस में ५ % सिर्फ़ ऑनलाइन खाते में आता है हर रोज़ २ मिलियन से भी ज्यादा पेपर या ऑनलाइन टिकेट खरीदे जातेहैं वही यदि अनोपचारिक रूप से देखे तो जुए का बाज़ार ५०० रुपए अरब का है

नालेज कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार ४५.00, 000 रुपए की वार्षिक आय वाला प्रत्येक परिवार हर साल कम से कम ४ .००.०००० रुपये अपने एशो आराम से जुड़ी चीजो पर आराम पर खर्च करता है जिस से यह बाज़ार ६४.००० करोड़ का बन चुका है

एक औसत भारतीय जोडा विदेश घूमने और छुट्टियां मनाने में १ .४१ लाख रुपया खर्च कर देता है

१६ से २५ साल की उम्र अवधि में लगभग ८ से १० मोबाइल बदल लिए जाते हैं

एक भारतीय शहरी युवा २००० रुपये अपने हेयर कट और ५००० रुपये अपने जूतों पर खर्च कर देता है

२५० से ३०० मिलियन मध्यम वर्गी परिवार अपनी कमी का १६.१% हिस्सा अपनी लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट पर खर्च कर देते हैं ..
यह जानकारी आज के भारत के सोजन्य से :) है न हम तरक्की पर कितने :) क्या कहते हैं आप इसको पढ़ के :)

Tuesday, April 29, 2008

दिल में हो बुलंद होंसले तो हर मुश्किल आसान है

यदि दिल में होंसले बुलंद हो और जीने कि लौ दिल में जलती रहे तो हर ज़िंदगी की हर मुश्किल आसान लगने लगती है ..इसी दुनिया में रहने वाले कुछ लोग हमे वह राह दिखा देते हैं की लगता है अपना दुःख बहुत कम है और जीने के लिए जिस साहस की जरुरत है वह तो अपने दिल में ही कहीं छिपा है बस जरुरत है उसको जगाने की और उस होंसले से ज़िंदगी जीने की ..कौन भूल सकता है वह २६ सितम्बर २००६ का दिन जब सुनामी ने सब तहस नहस कर दिया था ..कितने लोग न जाने मौत की गर्त में अचानक से समां गए ..कितने गंभीर रूप से घायल हो गए ..हम तो सिर्फ़ अखबार या न्यूज़ में देखते पढ़ते रहे ..पर वही देख के दिल कांप गया जिन्होंने यह देखा और झेला है .उनका हाल क्या हुआ होगा यह अच्छे से समझा जा सकता है .एक ऐसे ही जीवट दिल की कहानी है यह ..नाम है इस का अजारी वह डॉ बनना चाहता है वह कहता है कि मैं जरुरत मंद लोगों के काम आना चाहता हूँ .पर अजारी पहले डॉ नही बनाना चाहता था उसके सारे सपने उसके प्रिय खेल फुटबाल के लिए ही थे .वह एक बहुत बड़ा फुटबॉलर बनाना चाहता था पर २६ सितम्बर को आए सुनामी ने उसके जीवन कि दिशा मोड़ दी ...उसने उस तूफ़ान में अपने माँ बाप भाई बहन सबको खो दिया और साथ ही उसका सपना भी उन तूफानी लहरों के साथ टूट गया इन लहरों ने उसका एक पैर भी उस से छीन लिया पर कुछ लोग यूं जीने में भी एक आशा का दीप जलाये रखते हैं और अजारी उन्ही में एक है ..परिवार में उसके सिर्फ़ दादा जी बचे हैं इतनी मुसीबतों के बाद भी अजारी ने हिम्मत नही हारी है ....रेड क्रॉस की सहायता से उसने एक बार फ़िर से अपने अन्दर जीने का विश्वास पैदा किया वह आज भी उसी जोश के साथ फुटबाल खेलता है .वह कहता है कि मैं जानता हूँ मैं अब फ़ुटबालर नही बन सकता ,लेकिन ज़िंदगी में इस से जायदा जरुरी और भी बहुत कुछ है मैंने अब अपनी नई मंजिल तलाश कर ली है मैं अब डॉ बनूँगा और लोगों की सेवा करूँगा उसका यह होंसला जगाने में रेडक्रॉस के साइकोलाजिकल सपोर्ट ने अजारी को ज़िंदगी जीने नया विश्वास दिया है और एक नई जीने की प्रेरणा ...

Monday, April 28, 2008

हमराह



कभी राह का हर निशान
हर पेड़ और हर पत्ता
खिलते फूलों की महक,
बहती मीठी मंद बयार
आसमान पर खिलता चाँद
और अनगिनत चमकते सितारे
मिल के हमने ...
एक साथ ही तो देखे थे...
तब से इन्ही अधखुली आंखों में
मेरी नींद तो क्वारी सो रही है
पर
जन्म दिया है ...
उन्ही अधूरे ख्यालों ने
सपनो को
जो दिन ब दिन
पल पल कुछ तलाश करते
आज भी तुझे हमराह बनाने को
उसी मंजिल को दिखा रहे हैं !!

Thursday, April 24, 2008

उलझन ....

ईश्वर ने जब रचा यह संसार
तब शायद बनाया
ज़मीन को एक किताब
चाँद सितारों की जिल्द
से उसको सजा कर
फूलों और नज़ारों
से कुछ पन्ने लिख डाले
वही उस किताब में ही
लिखे कुछ बेकारी और
जुल्म के किस्से
और ....
कई अनचाहे दर्द भर डाले
अब यह उस किताब में लिखी
कोई सच्ची कहानी है
या खुदा की लिखावट
से छूटी हुई कुछ गलतियां ??

Wednesday, April 23, 2008

ज़िंदगी जीने का नाम है ...

जीने की जिजीविषा ..मुश्किलों से लड़ने की हिम्मत हो तो कोई काम मुश्किल नही होता है और मेरा मनाना है कि यदि ज़िंदगी आसान हो तो जीने का मज़ा ही क्या ? कुछ मुश्किल आएगी तो ही हमे जीने की प्रेरणा मिलेगी ..यही मुश्किलें हमे रास्ता दिखाती है आगे बढ़ने का .अब कोई इसको हंस के निभा लेता है कोई रो के ..और वक्त अपनी चाल चलता रहता है ...सबका अपना अपना तरीका है इस से निपटने का :) ....मेरे सामने जब कोई मुश्किल आती है तो मैं पहले एक बार तो परेशान जरुर हो जाती हूँ ..इंसान हूँ आखिर कोई एलियन तो नही.....फ़िर सोचती हूँ कि बेटा रंजू इसको सोच समझ के हंस के ही हल करना पड़ेगा नही तो सामने वाला आपको और कमजोर करेगा ...अपने आस पास देखे तो अपने से ज्यादा दुःख नज़र आते हैं ..मैं अपनी इसी श्रृंखला में आपको एक घटना बताती हूँ जो मैंने अभी हाल में ही एक न्यूज़ में पढी ...घटना आकलैंड की है लोग एक ताल के सामने हैरान से खड़े थे , बात ही कुछ ऐसी थी क्यूंकि सामने जो तैर रही थी वह जलपरी थी ..सब लोग हैरान परेशान से आँखे फाड़े उसको देख रहे थे ..दरअसल वह कोई जलपरी नही थी वहाँ की रहने वाली एक लड़की थी नाम था उसका नादिया .....अपने जीवन के पचास वर्ष पूरे कर चुकी नादिया को बचपन से ही तैरने का शौक रहा है लेकिन एक दुर्घटना में वह अपने दोनों पैर खो बैठी ..उन्होंने अपना पहला पैर सात साल की उम्र में ही खो दिया था जबकि दूसरा पैर सोलह वर्ष की उमर में खो दिया वह कुछ ऐसा काम करना चाहती थी जो कुछ चुनौती से भरा हुआ हो इतना कुछ होने पर भी उन्होंने अपनी हिम्मत नही खोयी ..और ही ख़ुद को कमजोर साबित होने दिया उन्होंने अपने बचपन के सपने को पूरा करने का निश्चय किया उन्होंने अपने दिल में ठान लिया की वह तेरेंगी ..बिना पांव के यह होना केवल मुश्किल था बलिक नामुमकिन भी था पर जहाँ चाह वहाँ राह तभी एक संस्था जिसने हालीवुड में फ़िल्म लार्ड आफ थे रिंग्स में स्पेशल इफेक्ट दिए थे वह उनकी सहायता के लिए तैयार हो गई उनके लिए उन्होंने एक जलपरी की संकल्पना तैयार की एक ख़ास तरह की पूंछ तैयार करवाई गई और इसकी सहायता से उन्होंने इस काम को अंजाम दिया नादिया ने तैरते वक्त अपनी खुशी का इजहार किया और कहा की मैं इस वक्त ख़ुद को जलपरी सा महसूस कर रही हूँ मेरे लिए यह अनुभव कभी भूलने वाला है .. ऐसे जीने वाले दिल दूसरो के लिए एक प्रेरणा बन जाते हैं ..और बता देते हैं अपने कामों से कि ज़िंदगी जीने का नाम है ...

रंजू भाटिया

Saturday, April 19, 2008

आगे भी जाने न तू पीछे भी न जाने तू ,जो भी बस यही एक पल है

आज कल सुबह जब भी अखबार उठाओ तो एक ख़बर जैसे अखबार की जरुरत बन गई है कि फलानी जगह पर इस बन्दे या बंदी ने आत्महत्या कर ली ..क्यों है आखिर जिंदगी में इतना तनाव या अब जान देना बहुत सरल हो गया है ..पेपर में अच्छे नंबर नही आए तो दे दी जान ...प्रेमिका नही मिली तो दे दी जान ...अब तो लगता है जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है लोग इसी तनाव में आ कर इस रेशो को और न बड़ा दे ...कल एक किताब में एक कहानी पढी इसी विषय पर लगा आप सब के साथ इसको शेयर करूँ ..एक नाम कोई भी ले लेते हैं ...राम या श्याम क्यूंकि समस्या नाम देख कर नही आती ..और होंसला भी नाम देख कर अपनी हिम्मत नही खोता है .खैर ...राम की पत्नी की अचानक मृत्यु हो गई और पीछे छोड़ गई वह बिखरी हुई ज़िंदगी और दो नन्ही मासूम बच्चियां ..सँभालने वाला कोई था नही नौकरी पर जाना जरुरी .और पीछे से कौन बच्चियों को संभाले ..वेतन इतना कम कि आया नही रखी जा सकती . और आया रख भी ली कौन सी विश्वास वाली होगी ..रिश्तेदार में दूर दूर तक कोई ऐसा नही था जो यह सब संभाल पाता..क्या करू .इसी सोच में एक दिन सोचा कि इस तरह तनाव में नही जीया जायेगा ज़िंदगी को ही छुट्टी देते हैं ..बाज़ार से ले आया चूहा मार दवा ..और साथ में सल्फास की गोलियां भी ...अपने साथ साथ उस मासूम की ज़िंदगी का भी अंत करके की सोची ..परन्तु मरने से पहले सोचा कि आज का दिन चलो भरपूर जीया जाए सो अच्छे से ख़ुद भी नहा धो कर तैयार हुए और बच्चियों को भी किया ...सोचा की पहले एक अच्छी सी पिक्चर देखेंगे फ़िर अच्छे से होटल में खाना खा कर साथ में इन गोलियों के साथ ज़िंदगी का अंत भी कर देंगे ...

सड़क क्रॉस कर ही रहे थे एक भिखारी देखा जो कोढी था हाथ पैर गलते हुए फ़िर भी भीख मांग रहा था .इसकी ज़िंदगी कितनी नरक वाली है फ़िर भी जीए जा रहा है ऑर जीने की किस उम्मीद पर यह भीख मांग रहा है .? कौन सा इसका सपना है जो इसको जीने पर मजबूर कर रहा है ? क्या है इसके पास आखिर ? फ़िर उसने अपने बारे में सोचा कि मूर्ख इंसान क्या नही है तेरे पास ..अच्छा स्वस्थ ,दो सुंदर बच्चे घर ..कमाई ...आगे बढे तो आसमान को छू ले लेकिन सिर्फ़ इसी लिए घबरा गया कि एक साथ तीन भूमिका निभा नही पा रहा है वह पिता .,अध्यापक ,ऑर माँ की भूमिका .निभाने से वह इतना तंग आ गया है कि आज वह अपने साथ इन दो मासूम जानों का भी अंत करने लगा है ..यही सोचते सोचते वह सिनेमाहाल में आ गया पिक्चर देखी उसने वहाँ ""वक्त ""'..और जैसे जैसे वह पिक्चर देखता गया उसके अन्दर का कायर इंसान मरता गया ..और जब वह सिनेमा देख के बाहर आया तो जिजीविषा से भरपूर एक साहसी मानव था जो अब ज़िंदगी के हर हालत का सामना कर सकता था ..उसने सोचा कि क्या यह पिक्चर मुझे कोई संदेश देने के लिए ख़ुद तक खींच लायी थी ..और वह कोढी क्या मेरा जीवन बचाने के लिए कोई संकेत और संदेश देने आया था ..उसने वह गोलियाँ नाली में बहा दी .और जीवन के हर उतार चढाव से लड़ने को तैयार हो गया
..जिंदगी जीने का नाम है मुश्किल न आए तो वह ज़िंदगी आखिर वह ज़िंदगी ही क्या है ..जीए भरपूर हर लम्हा जीए ..और तनाव को ख़ुद पर इस कदर हावी न होने दे कि वह आपकी सब जीने की उर्जा बहा के ले जाए ...क्यूंकि सही कहा है इस गीत में कि आगे भी जाने न तू पीछे भी न जाने तू ,जो भी बस यही एक पल है ..जीवन अनमोल है . इसको यूं न खत्म करे ..

Tuesday, April 15, 2008

विडंबना



दिख रहा है ......
जल्द ही दिल्ली का नक्शा बदल जायेगा
खेल कूद के लिए ख़ुद रहा है
दिल्ली की सड़कों का सीना
हर तरफ़ मिटटी खोदते
संवारते यह हाथ
जाने कहाँ खो जायंगे

सजाती दिल्ली को
यह प्रेत से साए
गुमनामी में गुम हो जायेंगे

घने ठंड के कुहरे में
दूर गावं से आए यह मजदूर
फटे पुराने कपडों से ढकते तन को
ख़ुद को दे सके चाहे एक छत
पर आने वाले वक्त को मेट्रो और सुंदर घरों का
एक तोहफा सजा संवार के दे जायेंगे !!

रंजना





Tuesday, April 08, 2008

ब्लाग्स की दुनिया में एक और मुकाम



अहमदाबाद टाइम्स की दीपिका साहू की नज़र से आज की ब्लॉगर महिला







http://epaper.timesofindia.com/Repository/ml.asp?Ref=VE9JQS8yMDA4LzA0LzA4I0FyMDI1MDM=&Mode=HTML&Locale=english-skin-custom




(B)Log in It’s time to revel in an addiction called blogging. And women of India can’t just have enough of it. AT checks out DEEPIKA SAHU Times News Network

From heartbreaks, travel joys, motherhood anxieties to recipes — the blogsphere seems to be the perfect place for the Indian women now to create, share and bond. The virtual world has become the latest meeting place for venting out one’s innermost feelings. And age is no bar in this ‘blogging business’.

Ask 45-year-old Ranjana Bhatia about her initiation into blogging, and she says with a laugh, “It’s my daughter who introduced me to blogging. I was always interested in writing but it was only meant for me. Through blogs, I discovered a whole new world and today I have five blogsites.” Interestingly, Bhatia has marked out different days in the week for different blogs and proudly claims that she can now “teach her daughter a thing or two about blogging”.

For many, it as a celebration of their own space and freedom. As says Frenchita R, a US-based medico, “It’s a celebration of I, me, myself. I cherish the freedom to write on any topic and find the interaction with fellow bloggers enriching.”

In the virtual world, there are no rules, no repressive social structures with fixed guidelines within which one can operate. There’s complete freedom to express one’s inner self. Move over lock and key diaries, blogsites are now becoming the urban woman’s new companion!

According to a survey, a phenomenally high number of women in India (51 per cent) use blogs to express their pent-up feelings. Whether sharing a photograph of your garden or granny’s favourite recipe, many women in India are now discovering new forms of companionship through their blog.

As says Tanushri Podder,

a self-confessed addictive blogger, “From travel writing to short stories, blogging comes across as a wide canvas. I also write on issues that angers me and I have developed a bonding with my fellow bloggers. Many young bloggers also ask for guidance from seniors like me.”

Tea exporter Sunita Chotiya today finds blogging more exciting than her business. As she says, “Every day I spend four to five hours on blogging. Even in my office, my mind wavers to the thought of my writing. It gives me a high expressing my thoughts through writing.”

And if you think that blogging is only limited to the Queen’s language, then you are wrong. In recent times, even regional languages are seeing an increase in the number of women bloggers. Ahmedabad-based media services company has been promoting blogging in Hindi and Gujarati.

As says Sanjay Bengani of the same company, “Our main aim was to provide a multi-lingual forum. Our Hindi bloggers have been very actively involved. The Non-Resident Gujaratis (NRGs) are having their share of connection to their roots through blogging in Gujarati.”

Money might be slow to come through blogging in India, but many of these women are getting their share of fame and recognition. As says Bhatia, who has also won an award in 2007 for her blogs, “I have gained confidence and constant feedback from readers have added an element of maturity to my writing. And we had a stall in the book fair at Pragati Maidan and I couldn’t believe myself when people actually asked me to give autographs.”

So, it’s time for some net gain!

deepika.sahu@timesgroup.com