Tuesday, January 29, 2008

अमृता की ज़िंदगी के कुछ पन्ने ..भाग २

अमृता की ज़िंदगी के कुछ पन्ने ..भाग २

अमृता जी के बारे में जितना लिखा जाए मेरे ख्याल से उतना कम है , जैसा की मैंने अपने पहले लेख में लिखा था की मैंने इनके लिखे को जितनी बार पढ़ा है उतनी बार ही उसको नए अंदाज़ और नए तेवर में पाया है .उनके बारे में जहाँ भी लिखा गया मैंने वह तलाश करके पढ़ा है ...उनकी ज़िंदगी की कुछ और बातें उन पर ही लिखी के किताब से ..एक बार किसी ने इमरोज़ से पूछा की आप जानते थे की अमृता जी साहिर से दिली लगाव रखती हैं और फ़िर साजिद पर भी स्नेह रखती है आपको यह कैसा लगता है ?
इस पर इमरोज़ जोर से हँसे और बोले की एक बार अमृता ने मुझसे कहा था की अगर वह साहिर को पा लेतीं तो मैं उसको नही मिलता .तो मैंने उसको जवाब दिया था की तुम तो मुझे जरुर मिलती चाहे मुझे तुम्हे साहिर के घर से निकाल के लाना पड़ता "" जब हम किसी को प्यार करते हैं तो रास्ते कि मुश्किल को नही गिनते मुझे मालूम था कि अमृता साहिर को कितना चाहती थी लेकिन मुझे यह भी बखूबी मालूम था कि मैं अमृता को कितना चाहता था !""

साहिर के साथ अमृता का रिश्ता मिथ्या व मायावी था जबकि मेरे साथ उसका रिश्ता सच्चा और हकीकी.वह अमृता को बेचैन छोड़ गया और मेरे साथ संतुष्ट रही .

उन्होंने एक किस्से का बयान किया है कि जब गुरुदत्त ने मुझे नौकरी के लिए मुम्बई बुलाया तो मैं अमृता को बताने आया ! अमृता कुछ देर तक तो खामोश रही फ़िर उसने मुझे एक कहानी सुनाई .यह कहानी दो दोस्तों की थी इसमें से एक बहुत खूबसूरत था दूसरा कुछ ख़ास नही था .एक बहुत खूबसूरत लड़की खूबसूरत दोस्त की तरफ़ आकर्षित हो जाती है वह लड़का अपने दोस्त की मदद से उस लड़की का दिल जीतने की कोशिश करता है उस लड़के का दोस्त भी उस लड़की को बहुत प्यार करता है पर अपनी सूरत कि वजह से कभी उसक कुछ कह नही पाता है आखिरकार उस खूबसूरत लड़की और उस खूबसूरत लड़के की शादी हो जाती है इतने में ज़ंग छिड जाती है और दोनों दोस्त लड़ाई के मैदान में भेज दिए जातें हैं

लड़की का पति उसको नियमित रूप से ख़त लिखता है लेकिन वह सारे ख़त अपने दोस्त से लिखवाता है कुछ दिन बाद लड़ाई के मैदान में उसकी मौत हो जाती है और उसके दोस्त को ज़ख्मी हालत में वापस लाया जाता है लड़की अपने पति के दोस्त से मिलने जाती है और अपने पति के ख़त उसको दिखाती है दोनों खतों को पढने लगते हैं तभी बिजली चली जाती है पर उसके पति का दोस्त उन खतों को अंधेरे में भी पढता रहता है क्यूंकि वो लिखे तो उसी ने थे और उसको जबानी याद थे ,लड़की सब समझ जाती है ,पर उस दोस्त कीतबीयत भी बिगड़ जाती है और वह भी दम तोड़ देता है ..लड़की कहती है की मैंने एक आदमी से प्यार किया लेकिन उसको दो बार खो दिया !

एक गहरी साँस ले कर इमरोज़ ने यही कहा कि अमृता ने सोचा था कि मुझे कहानी का मर्म समझ मैं नही आया पर मैं समझ गया था कि वह कहना चाहती थी कि पहले साहिर मुझे छोड़ के चला गया अब तुम मुझे छोड़ के जा रहे हो और जो चले जाते हैं वह आसानी से वापस कहाँ आते हैं ..जब इमरोज़ मुम्बई पहुंचे तो तीसरे दिन ही अमृता को कहत लिख दिया कि मैं वापस आ रहा हूँ उन्होंने कहा कि मैं जानता था कि अगर में वापस नही लौटा तो हमेशा के लिए अमृता को खो दूंगा
इमरोज़ ने बताया कि अमृता ने कभी भी अपने प्यार का खुले शब्दों में इजहार नही किया और न मैंने उसको कभी कहा अमृता जी ने अपनी एक कविता में लिखा था कि .

आज पवन मेरे शहर की बह रही
दिल की हर चिनगारी सुलगा रही है
तेरा शहर शायद छू के आई है
होंठो के हर साँस पर बेचैनी छाई है
मोहब्बत जिस राह से गुजर कर आई है
उसी राह से शायद यह भी आई है

इमरोज़ जी अपने घर की छत पर खड़े उस गाड़ी का इंतज़ार करते रहते थे जिस में अमृता रेडियो स्टेशन से लौटती थीं .गाड़ी के गुजर जाने के बाद भी वह वहीं खड़े रहते और अवाक शून्य में देखते रहते वे यहाँ इंतज़ार करते और वह वहाँ कविता में कुछ लिखती रहती

जिंद तो हमारी
कोयल सुनाती
जबान पर हमारे
वर्जित छाला
और दर्दों का रिश्ता हमारा


अमृता जी की जीवनी पर आधारित एक किताब से यह प्रसंग लिया गया है जिसकी लेखिका हैं उमा त्रिलोक जी ..बाकी अगले अंक में ..अभी अमृता जी की लिखी एक रचना के साथ यही पर विराम लेती हूँ

यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वोही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी

चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा

चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो

मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा

उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,

देखो यह आखरी टुकड़ा है
उन्गलियों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी उंगली ना छू ले

ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!

Friday, January 25, 2008

आजादी की पूर्व संध्या पर एक सवाल ...

अभी अखबार उठाया तो सामने उसके मेग्जिन सेक्शन मैं कुछ पंक्तियाँ लिखी हुई थी आजादी के ५८ साल और साथ मैं सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता थी ....सोच में है दिल की यह सच है या आज का सच क्या है ?

सिहासन हिल उठे राजवंशो ने भाकुटी तानी थी
बूढे भारत मैं भी आई फ़िर से नई जवानी थी
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगो को करने की सबने मन मैं ठानी थी
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हर बोलों के मुहं हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी

पर आज आजादी के इतने साल बाद आज की अजन्मी बेटी हमसे यह सवाल पूछती है ....


जब में आई कोख में माँ तेरी
दिल में एक नयी ज़िंदगी की उमंग थी
बंद आँखो में भी थे ढेर सारे सपने
और नन्हे नन्हे पैरों में उड़ने की ललक थी


तेरा खाया हर निवाला
मुझ तक आ जाता था
पापा का एक हलका सा साया
मेरे लबो पर मुस्कराहट ले आता था

एक दिन अचानक यह क्या हुआ
मेरे अंदर जैसे कोई दर्द का हादसा हुआ
बिखर गयी मैं कई टुकड़ो में
मेरा हर सपना अब फिर से एक सपना हुआ


जाने कब तक यूँ ही जन्म दर जन्म
मैं बस तेरी कोख में सपने सजाउंगी
जानती हूँ जैसे ही कदम रखूँगी तेरे अंदर
इस जहान से वापस फिर मोड़ दी जाऊंगी !!

आख़िर कब तक मेरा देखा सपना ..
यहाँ सच ना हो पाएगा
क्या मेरा जन्म लेना इस दुनिया में
बस एक सपना ही बन के रह जाएगा

बोलो जवाब दो मुझे कोई .... ??????????


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Thursday, January 24, 2008

तरकश पुरस्कार २००७

दोस्तों मेरा ब्लॉग http://ranjanabhatia.blogspot.com/ तरकश पुरस्कार - २००७ के लिये नामांकित २० चिट्ठों में से एक है. आप से अनुरोध है कि अपना कीमती वोट दे कर आप मुझे अनुग्रहित करें. वोटिंगं के लिये निम्न लिखित लिन्क का प्रयोग करें

http://www.tarakash.com/poll/

इस पेज के खुलने पर अपना नाम और अपना ईमेल पता लिख कर आप एक पुरुष और एक महिला ब्लोगर को वोट दे सकते है. मेरा नाम आपको महिला ब्लागेर्स में पहले नम्बर पर दिख जायेगा ..रंजना भाटिया :) उसे क्लिक कर के submit क्लिक करें.

तरकश पुरस्कार पर पूरी जानकारी के लिये निम्न लिन्क है

http://www.tarakash.com/special/poll-begin-best-hindi-blog-2007.html

आभारी

रंजू

Monday, January 21, 2008

अमृता प्रीतम जो नाम है ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीने का


पिछले कुछ दिनों से मैं अमृता जी की लिखी हुई कई नज्म और कहानी लेख पढ़ रही थी ..यूं तो इनको मैं अपना गुरु मानती हूँ .पर हर बार इनके लिखे को पढ़ना एक नया अनुभव दे जाता है ..और एक नई सोच ..वह एक ऐसी शख्सियत थी जिन्होंने ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी ..एक किताब में उनके बारे में लिखा है की हीर के समय से या उस से पहले भी वेदों उपनिषदों के समय से गार्गी से लेकर अब तक कई औरतों ने अपनी मरजी से जीने और ढंग से जीने की जरुरत तो की पर कभी उनकी जरुरत को परवान नही चढ़ने दिया गया और अंत दुखदायी ही हुआ ! आज की औरत का सपना जो अपने ढंग से जीने का है वह उसको अमृता इमरोज़ के सपने सा देखती है ..ऐसा नही है की अमृता अपनी परम्पराओं से जुड़ी नही थी ..वह भी कभी कभी विद्रोह से घबरा कर हाथो की लकीरों और जन्म के लेखो जोखों में रिश्ते तलाशने लगती थी ,और जिस समय उनका इमरोज़ से मिलना हुआ उस वक्त समाज ऐसी बातों को बहुत सख्ती से भी लेता था ..पर अमृता ने उसको जी के दिखाया ..

वह ख़ुद में ही एक बहुत बड़ी लीजेंड हैं और बंटवारे के बाद आधी सदी की नुमाइन्दा शायरा और इमरोज़ जो पहले इन्द्रजीत के नाम से जाने जाते थे, उनका और अमृता का रिश्ता नज्म और इमेज का रिश्ता था अमृता की नज़मे पेंटिंग्स की तरह खुशनुमा हैं फ़िर चाहे वह दर्द में लिखी हों या खुशी और प्रेम में वह और इमरोज़ की पेंटिंग्स मिल ही जाती है एक दूजे से !!


मुझे उनकी लिखी इस पर एक कविता याद आई ..

तुम्हे ख़ुद से जब लिया लपेट
बदन हो गए ख्यालों की भेंट
लिपट गए थे अंग वह ऐसे
माला के वो फूल हों जैसे
रूह की वेदी पर थे अर्पित
तुम और मैं अग्नि को समर्पित
यूं होंठो पर फिसले नाम
घटा एक फ़िर धर्मानुषठान
बन गए हम पवित्र स्रोत
था वह तेरा मेरा नाम
धर्म विधि तो आई बाद !!

अमृता जी ने समाज और दुनिया की परवाह किए बिना अपनी ज़िंदगी जी उनमें इतनी शक्ति थी की वह अकेली अपनी राह चल सकें .उन्होंने अपनी धार दार लेखनी से अपन समय की सामजिक धाराओं को एक नई दिशा दी थी !!बहुत कुछ है उनके बारे में लिखने को .पर बाकी अगले लेख में ...

अभी उन्ही की लिखी एक सुंदर कविता से इस लेख को विराम देती हूँ ..

मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दीं

दिल के घाट पर मेला जुड़ा ,
ज्यूँ रातें रेशम की परियां
पाँत बाँध कर आई......

जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
काग़ज़ के उपर उभर आयीं
केसर की लकीरें

सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गयी,
हमारी दोनो की तकदीरें



अमृता जी पर लिखी एक जानकरी के आधार पर लेख

Wednesday, January 16, 2008

रेत से गीले पल


ज़िंदगी तो मिल जाती हैं सबको चाही या अनचाही
बीच में मिल जाते हैं ना जाने कितने अनजान राही

बिताते हैं कुछ पल वोह ज़िंदगी के साथ साथ
कुछ मीठे- कड़वे पलो की सौगाते दे जाते हैं

यह ज़िंदगी का खेल बस वक़्त के साथ यूँ ही चलता जाता है
बचपन जवानी में ,जवानी को बुढ़ापे में तब्दील कर जाता है

सब अपने सुख दुख समेटे इस ज़िंदगी को बस जीते जाते हैं
बह जाते हैं यह रेत से गीले पल फिर कब हाथ आते हैं !!
रंजू

Saturday, January 12, 2008

-क्या मरने के बाद भी जीवन है ?



-क्या मरने के बाद भी जीवन है ? क्या कोई मरने के बाद भी यूं सेवा कर सकता है ? अभी कुछ दिन पहले यह लेख पढ़ा तो सोच में डूब गई क्या सच में आत्माओं का अस्तित्व होता है ? कहते हैं कि मरने के बाद भी जीवन है ,इसको अब झुठलाया नही जा सकता है ..इस के बारे में कई प्रमाण भी मिले हैं .उस के आधार पर यह कह सकते हैं कि मरने के बाद सब कुछ समाप्त नही हो जाता ,जीव चेतना का अस्तित्व बना रहता है और समय आने पर वह सहायता भी करते हैं और सीमा की रक्षा भी .ऐसी ही दो आत्माओं की गाथा पिछले दिनों पढने में आई ...इस में से एक केप्टन हरभजन सिंह की आत्मा थी और दूसरी जसवंत सिहं रावत की ..दोनों ही अशरीरी होते हुए भी सीमाओं की रक्षा में जुटे रहे !

केप्टन हरभजन सिंह पंजाब रेजिमेंट की २३ वी बटालियन के सिपाही थे .उनकी मृत्यु सिक्किम सिथ्त नाथुला में भारत -चीन सीमा पर तब हो गई थी ,जब वे अपने साथियों के साथ ड्यूटी पर थे और सीमा पर गश्त लगा रहे थे !उनकी मृत्यु ऐसे समय पर हुई जब वह अपने साथियों से कुछ पीछे रह गए और उन पर बर्फ की चट्टान गिर पड़ी ,वे उसी के नीचे दब गए उनके साथियों का कहना है कि जब कई दिन तक उनका कोई पता नहीं चला तो उनकी आत्मा ने सपने में आ कर अपने साथियों को बताया उसका शव अमुक स्थान पर बर्फ के नीचे चट्टान में दबा हुआ है उसके बाद ही उनकी खोज ख़बर ली गई और उनके बताये स्थान पर जब देखा गया तो उनका शव वहीं से मिला बाद में उसना अन्तिम संस्कार कर दिया गया ! जब उनकी मृत्यु हुई तब उनकी उम्र २६ साल की थी इसके बाद से लगातार उनकी आत्मा अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थी ...बताते हैं कि सर्दी के दिनों में जब सिक्किम की चोटियां बर्फ से ढक जाती थी तब भी उनकी आत्मा वहाँ पर ड्यूटी देती देखी गई ! इसको चीनी गश्ती दलों ने भी देखा था और वह हैरान थे की मज्जा तक को ठिठुरा देने वाली इस ठंड में बिना गर्म कपडों के गश्त लगाने वाला यह भारतीय सिपाही कौन है ?बताया जाता है कि हरभजन की आत्मा ने अपने अधिकारियों को यह विश्वास दिला रखा था कि वह सीमा कि रक्षा कि चिंता छोड़ दे उस पर भरोसा रखे वह सीमा पर कोई भी गड़बड़ होने से ७० घंटे पहले सूचना दे देगा ,अधिकारियों ने अन्य सैनिकों की भांति हरभजन कि आत्मा को भी सारी सुविधा दे रखी थी सिपाहियों को वर्ष में २ महीने कि छुट्टी मिलती है तो हरभजन की आत्मा को भी इस से वंचित नही रखा जाता था !! छुट्टियों के दौरान सिलीगुड़ी एक्सप्रेस में उनके नाम की सीट बुक करवाई जाती .यात्रा वाले दिन उनका साथी उनका समान बर्थ के नीचे रख कर बर्थ पर उनका बिस्तर लगा देते उनकी वर्दी भी वही बर्थ के ऊपर टांग दी जाती ,यह सब करने के लिए एक सिपाही उनके साथ जाता था .....जालंधर स्टेशन आने पर उनका समान उतारा जाता और उन्हें उनके घर पहुँचाया जाता था... उनके परिवार को पूरा वेतन भी दिया जाता था और फ़िर बाद में पदोन्नति भी दी गई ,तभी वह एक सैनिक से केप्टन बने सके !
यह सिलसिला पिछले ३० सालों से चलता रहा ,बाद में उनकी आत्मा ने सेवानिरवती की इच्छा जाहिर की उनकी इस इच्छा को मान दिया गया बाद में ससम्मान उनकी विदाई भी की गई !!


इस से मिलती जुलती एक कहानी एक और भारतीय सैनिक जसवंत सिंह रावत की भी है ! वह सेना की चौथी गढ़वाल राईफल्समें सेवारत थे ! उनकी नियुक्ति अरुणाचल प्रदेश की नुरानांग चौकी पर हुई थी ! सन् १९६२ के चीन युद्ध के समय उन्होंने अकेले दम पर चीनियों को तीन दिन तक रोके रखा था ,बाद में जब उनको पता चला की एक अकेले भारतीय ने उन्हें तीन दिन तक रोके रखा तो वह गुस्से में उनका सिर काट के ले गए ! लड़ाई के बाद जब एक चीनी अधिकारी तो इस बात का पता चला तो उसने उनका कटा हुआ सिर लौटा दिया और साथ में एक पीतल की आवक्ष परितमा भी दी .वहाँ बाद में उसी जगह जहाँ उन्होंने प्राण त्यागे थे वहाँ उनकी समाधि बना दी गई आज वह स्थान बहादुर सैनिक के नाम पर जसवंत गढ़ कहलाता है .आज भी उनकी आत्मा वहाँ पर रात के सन्नाटे में गश्त लगाते देखी जाती है और जो अपनी ड्यूटी पर कोई आलस्य करते हैं उनको वह चांटा भी लगा देती है उनसे प्रेरित हो कर वहाँ हर सैनिक चुस्त दुरस्त रहता है उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया है !!

इस तरह की घटने वाली घटनाएं कई बार बहुत हैरानी में डाल देती है और हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं की क्या सच में मरने के बाद भी जीवन है और वह भी ऐसा की स्थूल शरीर की तरह देश की सेवा करता और बाकी लोगों की सहायता करता रहे ...अजब रंग है इस संसार के जो आज भी अपनी ऐसी बातों से हमको सोचने पर मजबूर कर देतें हैं !!
अखंड ज्योति में पढे गए एक लेख के आधार पर आधारित है यह लेख

Wednesday, January 09, 2008

जय श्रीकृष्ण ,ॐ नमो शिवाये ......यूं किया हमने नए साल का स्वागत पार्ट २


गुजरात जब मैं आज से लगभग २० साल पहले गई थी तो उस वक्त सोचा भी नही था की दुबारा फ़िर यहाँ आना होगा ..पर जो बांके बिहारी की इच्छा ...इस बार का घूमना तो एक याद गार पल बन गया सब बहने और उनके बच्चे अपने बच्चे ,और एक नया जोश विश्वास .सब कुछ अदभुत था ..हमारा सफर शुरू हुआ २६ दिसम्बर से रात को ८ बजे राजधानी से चले और सुबह ठीक १० बजे अहमदाबाद ..रास्ते में की खूब मस्ती आगे घूमने का जोश बढे से ले कर छोटे सब में था ..अहमदाबाद में गेस्ट हॉउस बुक था ..सब जा के पहले फ्रेश हुए ..और बढ़िया सी चाय पी कर चल पढे सबसे पहले अपने मनपसंद जगह शापिंग ...यह जगह लाल दरवाज़ा नाम से मशहूर है जम के शापिंग की हम सबने और फ़िर परेशान हो गए कि अब आगे तो इतनी यात्रा करनी है जो खरीदा है उस समान का क्या करें ...बहुत मुश्किल से बेटी जहाँ रहती है पी जी के रूप में उसके कमरे में वह सब समान रखा ..समय भी कम था और आगे जाना था तो शापिंग को दी यही मन मार के लगाम ..और इस के बाद चला हमारा कारवां यू एस पिज्जा की तरफ़ ..यह भी एक मजेदार जगह है ..अहमदाबाद की ..१५५ रुपीस में जितना मरजी आए सलाद खायो . पिज्जा खाओ सूप पीयो ...गार्लिक ब्रेड खाओ .सच में हर बार कुछ नया सलाद और दिल भर के खाने की छुट .पर बेचारा पेट भी क्या करे :) इन सबको खाने के बाद देते हैं आइस क्रीम ..वह एक ही देते हैं ..दिल किया सुझाव दूँ भाई यह भी अनलिमिटेड कर दो ...उनसे पूछा की इतनी बेहतरीन है आपकी यह सर्विस आप दिल्ली या एन सी आर में इस को क्यों खोलते ..जवाब दिया धीरे से मेरी छोटी बहन ने की शायद यह जानते हैं की वहाँ के लोग बिंदास है और खूब खाते हैं .. खैर द्वारका जाने का समय Tavera से रात को १२ बजे तय हुआ था अभी जाने में समय था क्या करे ..बच्चो ने शोर मचाया की चलो यहाँ एक मूवी देखेते हैं .टिकेट लिए और देखी वेलकम :) बस मूवी खत्म होते ही जाने का समय भी हो गया ...सबने अपने समान को पैक करके आगे की यात्रा शुरू की ...एक बात माननी पड़ेगी की गुजरात की हाई वे रोड्स और रोशनी सड़कों पर खूब हैं ..पुरा रास्ता साफ सुथरा कही से एक बार नही लगा की हम इतनी रात को सफर कर रहे हैं .दिन में गरम रहने वाला गुजरात रात को काफ़ी ठंडा था ..कहीं कहीं कोहरा भी घना सा आया पर सुबह ५ बजे हम द्वारका में थे यहाँ हमारी कोई बुकिंग नही थी ...और जिस धर्मशाला रेस्ट हॉउस या होटल में पता कर वही फुल ..सुबह होने में अभी देर थी ...हलका सा अँधेरा था अभी माहोल में और कुछ ठंडक भी ..एक ऑटो वाले ने कहा की वह हमारे साथ चल कर बता सकता है की कोई होटल या कुछ देर रहने को झ्गाह मिल जाए ..बहुत तलाश करने के बाद एक कमरा मिला ५०० रुपीस में .हमने कुछ देर ही रुकना था फ़िर आगे निकालना था बेट द्वारका और आगे पोरबंदर के लिए श्री द्वारका नाथ जी का मन्दिर पश्चिम समुन्दर के किनारे है यह हिंदू धरम के चार धामों में से एक माना जाता है यहाँ पर कृष्ण जी की प्रतिमा बहुत ही प्रभावशाली है ...द्वारकानाथ जी के वस्त्र समय अनुसार बदले जाते हैं ,होली ,दिवाली .जन्माष्टमी के मौके पर इनका शिंगार देखने वाला होता है ..यहीं पर पास ही संगम स्थान भी है गोमती नदी के दर्शन भी यहीं होते हैं सब बहुत ही पावन है ..पर वही बात की पण्डे आपको बहुत परेशान करेंगे और गोमती नदी के दर्शन हेतु जायेंगे तो वहाँ इतनी काई है की पैर फिसलने का डर होता है ..और उस पर पंडो का इजहार की यहाँ पर आचमन करो ..खैर हम सबने तो श्रद्धा पूर्वक बस हाथ जोड़े और प्रसाद अपनी श्रद्धा से वहाँ अर्पण किया .अब पेट पूजा की बारी थी सुबह से सबको हिदायत दे दी थी की पहले दर्शन होंगे फ़िर खाने पीने की बात कोई करेगा ,,खाने की लिए जब जगह देखी तो सब तरफ़ ढोकला .दाल वडा,और कुछ नमकीन दिखी ..बताया गया की यहाँ के लोग यही नाश्ता करते हैं ..अब बच्चे यह सब खाने की तेयार नही थे .बहुत मुश्किल से कुछ दूर जाने पर एक पंजाबी होटल मिला ..पर वहाँ का सर्विस करने वाला बन्दा शायद हमसे भी ज्यादा थका था ..इतनी देर में पूरी आलू ,लाया कि हम सब कि भूख भी बाय बाय बोल गई :) आगे चले बेट द्वारका की तरफ़ ...यह समुन्दर के बीच में बना द्वारका नाथ जी का मन्दिर है .इस पर जाने के लिए मोटर बोट करनी पड़ती है ..अब तक १२ बज चुके थे और गरमी पूरी तरह से हावी थी ...एक तो धूप तेज सामने सारा समुन्दर जिसका पानी बहुत ही साफ था और उस पर मोटर बोट वाले टैब तक नही चलते जब तक सवारी पूरी से भी जायदा न हो जाए ..कृष्ण कृष्ण करके मोटर बोट चली ..वहाँ पहुंचे तो पता चला की मन्दिर के द्वार अभी ४ बजे से पहले नही खुलेंगे ,बहार से माथा टेका ...फ़िर वही की मोटर बोट तभी चलेगी जब तक यह पूरी तरह से भर नही जाती है ..उस दिन जो धूप में हम सब टेप ..भूल नही सकते हम उस समय को ..किनारे पहुँचते ही पीया खूब सारा पानी ठंडा तो जान में जान आई ...आगे बढ़ा हमारा कारवां इसके बाद पोरबंदर ...
यहाँ पर हमारी बुकिंग पहले से ही तोरण गेस्ट हॉउस में बिटिया ने करवा रखी थी बहुत ही सुंदर जगह समुन्दर के किनारे ..खुला सा गेस्ट हॉउस देख के ही आधी थकावट उतर गई ...थोड़ा फ्रेश हुए ..और सामने बीच पर जा के बहुत देर तक बेठे रहे .यहाँ के समुन्दर का पानी इतना खारा है कि किनारे पर बालू सख्त चट्टान सी हो चुकी है ..ठंडी हवा में जितनी देर बैठ सकते थे बैठे फ़िर भूख लगने पर वहाँ के स्वागत होटल में गए .बहुत ही अच्छा खाना था वहाँ का अब सब बहुत थके हुए थे ..पर कोई सोने के मूड में नही था . सो क्कुह देर बात गपशप कि ..कुछ देर हँसी मजाक के बाद सब कि आँखे बंद होने लगी ...और जब सुबह उठे तो सब एक दम उगते सूरज से फेश थे सब फटाफट नहाए और हमारा शुरू हुआ सबका फोटोशेशन ..सबने खूब फोटो लिए और चल पढे फ़िर गाधी जी के जन्म स्थान की और ...बहुत ही सुंदर जगह .वहाँ पग पग पर गांधी जी के होने का एहसास था और दिल में था ख़ुद के भारतीय होने का गर्व ..यहाँ कुछ देर रुकने के बाद चल पढे हम सोमनाथ की तरफ़ ...पोरबंदर से सोमनाथ का रास्ता बहुत ही सुंदर है ..बहुत ही हरियाला सा ..नारियल और केले के खेत मन मोह लेते हैं ..इसी रास्ते में आया माधवपुर बीच बहुत ही सुंदर और साफ ..कुछ देर रुक के हमने यहाँ खूब मस्ती की ..फोटो और यहाँ पर खूब सारा नारियल पानी पीने के बाद ..चल पड़े आगे ..सोमनाथ मन्दिर ..यहाँ पर बुकिंग नही थी और यही पर एक अनजान ऑटो वाले ने हमारी बहुत मदद की ..बिना किसी स्वार्थ के उसने हमे उस अनजान जगह पर कई अच्छे होटल दिखाए ..पर नए साल के स्वागत में वहाँ सब होटल फुल थे ...उस अनजान ऑटो वाले ने हमारी बहुत मदद की और आखिर हमे मिल ही गया एक गेस्ट हॉउस ..समान रखा और सोमनाथ मदिर के दर्शन किए .बहुत ही सुंदर मन्दिर है यह समुन्दर के किनारे बना हुआ ख़ुद में कई इतिहास समेटे ..पहले भी कई लुटा गया कई बार बना कई बार टुटा और अब भी शायद आतंकवाद के निशाने पर है तभी बहुत ही ज्यादा सिक्यूरिटी थी ....यहाँ हमे पता नही था पहले सो ज्यादा फोटो नही ले पाये यहाँ के ..रास्ते में विरावल भी देखा जहाँ कृष्ण जी को तीर लगा था और रात को देखा लाईट एंड साउंड शो जो सोमनाथ मन्दिर बनने और टूटने की पूरी कथा बताता है ..अच्छा लगा इसको और अच्छा बनाया जा सकता है ..पर जितना भी देखा बहुत पसंद आया ... समुन्दर की लहरों की आवाज़ उस पर शिव की आरती .सुंदर मन को मोह लेने वाली थी यह ..कभी न भूलने वाला समां है यह ....रात के दस बजने वाले थे हमने रात्रि दर्शन किए और खाना खा के सो गए ..नही नही चुप चाप नही ..कुछ देर आज के घूमने की बातें और कुछ गाने और शरारते कर के ..छोटी बेटी को थोड़ा सा बुखार आ गया था सो सबको कहा अब सो जाओ ..ताकि कल दियू के निकला जा सके .जो वहाँ से सिर्फ़ ८० किलोमीटर की दूरी पर है ..रास्ता बहुत ही सुंदर वही नारियल और केले के पेड़ ..और जब गेस्ट हॉउस पहुंचे तो बस वह देख के मज़ा आ गया यह जगह उन थी दियू से १० किलोमीटर दूर ..दियू शहर बहुत ही सुंदर है .घर इतने सुंदर है की बस वही देखते रहने को दिल करता है ..पर बीच उतना ही गंदे पानी का ..शायद वहाँ होने वाली वाटर गेम्स और चलने वाली मोटर बोट ने पानी को साफ नही रहने दिया .खूब मौज की यहाँ खूब वाटर गेम्स पैरा सीलिंग की ..पानी गन्दा था ...पर हम कहाँ बाज आने वाले थे खूब पानी में खेले ..और रात को दियू का नजारा लिया रात का .अगले दिन था इस साल का आखरी दिन ..इस दिन वहाँ का फमुस फोर्ट देखा चर्च देखा और फ़िर की वाटर गेम्स ..पर शाम होते ही यहाँ का माहोल अजब रंग से रंगने लगा ..सब तरफ़ पिय्कड़ ही पिय्कड़ दिखने लगे .वहाँ से हम भागे क्रूस में जहाँ जम के डांस किया और नए साल का स्वागत ..फ़िर वापस होटल में अपने ..अगले दिन वापसी थी ...कभी न भूलने वाली याद गार यात्रा थी यह ...बहुत मदद की हमारी गाड़ी के ड्राइवर हितेश ने ,और बच्चो के हँसते गाते जोश वाले माहोल ने ..अब फ़िर से इंतज़ार है एक ऐसे ही और यादगार सफर का ...!!

Monday, January 07, 2008

यूं किया हमने स्वागत नए साल का ..[तेरे शहर का मौसम सुहाना लगे ...२ .जीत लिया दिल गुजरात के लोगों ने ]





कुछ समय पहले मैंने लिखा था तेरे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे ..यह पंक्ति थी अहमदाबाद शहर के लिए .एक बार फ़िर से जाना हुआ गुजरात ..और इस बार दिल जीत लिया वहाँ के रहने वालो ने ,हर जगह हमारे लिए नई थी .पर पग पग पर वहाँ के कुछ लोगो ने इतना साथ दिया की नया शहर भी अपना सा लगने लगा चाहे वह हमारे साथ चलने वाला ड्राइवर हितेश हो ..या सोमनाथ मन्दिर ,द्वारका मन्दिर में ऑटो वाला हो ... .......नया साल मनाने की उमंग और बेटी से मिलने की चाह ने दिल को एक महीने पहले ही तैयारी करने को बेताब कर दिया ...बेटी से मिलना और गुजरात घूमने की इच्छा ,और सब बहने और उनके बच्चे साथ ..सच में एक नए साल के स्वागत की नई तैयारी थी ....सफर शुरू हुआ हमारा २६ दिसम्बर से और खत्म हुआ १ जनवरी को ..यह कुछ दिन कैसे पलक झपकते ही गुजरे इसको मेरी बेटी पूर्वा ने बहुत अच्छे से अपनी इस कविता में लिखा है ....इस के बाद मेरे लायक लिखने को क्कुह बचा ही नही ..........हम सबको उसका यह लिखा और पूरी यात्रा को यूं कुछ शब्दों में समेट लेना बहुत अच्छा लगा ...कुछ याद गार लम्हे मैं समय समय पर लिखूंगी जरुर ..पर पहले आप यह पढे और हमारे गैंग के साथ इस यात्रा में शामिल हो जाए :)


इस trip को किया हमने खूब ENJOY

बहुत अच्छे से कहा 2007 को GOODBYE



बहती WAVES के साथ भेज दिया अपने SORROWS को

GANG OF GIRLS ने अकेले घूम के भगा दिया अपने HORRORS को



CRUISE पे DANCE या जगह जगह POSE

मस्ती की WITHOUT TENSION, WITHOUT ANY बोझ


27th को की अहमदाबाद में SHOPPINg

शाम को की US PIZZA में जमकर HOGGING



द्वारका के TEMPLES देखे on 28th

bet द्वारका में नाव में किया बहुत WAIT



एक DIRTY BEACH देखा in Porbandar

29th को गए Gandhiji के घर के अन्दर



थक कर सवारी पहुँची सोमनाथ

GUEST ROOM मिला फ़िर आई जान में जान



30th को हम पहुंचे DIU

PARASAILING से मिला पानी का अच्छा VIEW



पता चला वहाँ की जनता का थोड़ा ढीला है SCREW

पी के टुन्न थे सभी on the BEACH

शक्ल से ही लग रहे थे काफ़ी नीच



ANYWAYS, हमने किया उन्हें ROYALLY IGNORE

और नही करने दिया उन्हें हमें BORE



CRUISE पे मिलाई ताल से ताल

इस तरह we welcomed the नया साल……….पूर्वा द्वारा लिखित:)

Friday, January 04, 2008

टीस


दिखे जब रंग इन्द्रधनुष के
कुछ स्वप्न भूले बिसरे याद आए
दे के दर्द गए वह पवन के झोंके भी
जब हौले से वह यूं छु जाए

चुभी दिल में कोई फाँस सी
जब कोयल कुहू कुहू गाए
हर बीता मौसम दे याद तुम्हारी
पर गुजरा वक्त कब हाथ है आए

टीस दे इस दिल को हर वो लम्हा
जो गुजरा तुम संग साथ बीताये
भेजे कई मिलन के संदेशे हमने
दिल की बात तुम समझ न पाये

न न मत अब सहलाना
कोई दिल का दाग तुम अब मेरा
जब तक दिल में .......
यह विरह की टीस घनेरी
तब तक हैं यादों में तेरा बसेरा
हर चुभती बात में याद आए तुम
हर दर्द में दिखे चेहरा तेरा
रहने दो अब टीस यह दिल में
यूं तो रहेगा साथ तेरा मेरा !!