-- जन्म से मिली प्रेरणा कई लोगों में होती है, ऐसे लोग बचपन से ही तेज़ बुद्धि के होते हैं यह लोग बचपन से ही सामान्य बच्चो से अलग काम करते हैं जैसे कोई बचपन से ही कविता लिखने लगता है ,कोई गणित में बहुत तेज़ बुद्धि का होता है ,कई बच्चे कई तरह के सवाल पूछते हैं और जब तक उचित जवाब नही पा लेते उस को पूछते रहतें हैं बदल बदल कर, जब तक उनकी ख़ुद की तस्सली नही हो जाती है वो स्कूल ज्ञान से काफ़ी आगे निकल जाते हैं और उस शिक्षा में अक्सर अपने को असहज पाते हैं ..जेम्स वाट का दिल बचपन में पढ़ाई में नही लगता था लेकिन आगे चल कर उन्होने भाप के इंजन का आविष्कार किया! आइन्स्टीन भी अपने अध्यापक से ऐसे ऐसे सवाल पूछते थे कि उनका जवाब देना मुश्किल हो जाता था !एडिसन भी प्रकति के रहस्य को जानने में ज्यादा रुचि रखते थे उनका कहना था कि एक बूँद प्रेरणा और 99 बूँद पसीना तब सफलता मिलती है जब उसको सच कर के भी दिखाया जाए !उनको बचपन से ही प्रकति से प्रेरणा मिली और उन्होने अविष्कार किए !हमारे देश के रविन्द्र नाथ टेगोर भी ऐसे ही थे वो स्कूल कि पढ़ाई में रुचि नही लेते थे पर उन्होने साहित्य में बहुत नाम कमाया और नोबल पुरूस्कार भी मिला .श्रीनिवास रामानुजम भी बचपन से ही गणित में बहुत आगे थे ऐसे लोगो में जन्मजात प्रेरणा होती है !कुन्दन लाल सहगल भी बिना किसी गुरु से ज्ञान लिए बिना इतना अच्छा गाते थे .लता मंगेशकर बचपन से आज तक गा रही है ..यह सभी में एक ईश्वर का दिया गुण है प्रेरणा हैं और जिसके पास ईश्वर की दी हुई प्रेरणा हो उन्हे कोई आगे बढ़ने से कैसे रोक सकता है !!
अब बात करते हैं प्यार से मिली प्रेरणा की जो किसी भी इंसान को किसी भी इंसान से किसी भी उम्र में दी जा सकती है ,कहा भी जाता है की किसी पुरुष की आसाधारण सफलता के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है किसी इंसान का प्यार किसी दूसरे इंसान में टॉनिक का काम करता है ,प्यार में ताक़त है जो बढ़े बढे काम को आसानी से पूरा करवा देती है ..यह प्यार किसी का भी हो सकता है भाई बहन .माता पिता प्रेमी प्रेमिका आदि किसी का भी ..
नफ़रत वाला व्यवहार भी किसी में प्रेरणा शक्ति का संचार कर देता है जैसे तुलसी दास का तिरिस्कार उनकी पत्नी न करती तो राम चरित मानस ना लिखी जाती .सूरदास जी के बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से अंधे नही थे वरन किसी स्त्री के प्यार के कारण और उस से मिली नफ़रत के कारण उन्होने अपनी दोनो आँखे फोड़ ली थी जिस से वो केवल अपना ध्यान श्री कृष्णा में लगा सके और उन्होनें इसी से प्रेरित हो के महान काव्य रचना कर डाली !!
रचनात्मक प्रेरणा वो है जो किसी अन्य इंसान के कामों से प्रेरित हो के की जाती है किसी के काम को देख के अपना सोचने समझाने का अंदाज़ ही बदल जाता है और इंसान रचनात्मक काम करने लगता है परन्तु कई बार यह प्रेरणा बुरे काम से भी प्रभावित हो जाती है जैसे फ़िल्मे देख के लोग बुरा काम करने लगते हैं ,अपराधी बेईमान लोगो के काम से आज के अख़बार भरे हुए होते हैं ..सच में मानव के दिमाग़ का क्या भरोसा कब किस और चल पड़े !!
अब यह प्रेरणा का असर दिमाग़ में होता कैसे हैं शायद इंसान के अपने अंदर ही कोई ऐसी शक्ति है जो उसको ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है हमारे मस्तिष्क का कोई न कोई भाग इस के लिए जिम्मेवार है जैसे किसी भी इंसान में स्मरण शक्ति के लिए आर एस ए {राईबोन्यूक्लिक एसिड } जिम्मेवार होता है जिस इंसान में इस रसायन की मात्रा जितनी अधिक होती है उसकी स्मरण शक्ति उतनी ज्यादा होती है! इसका मतलब है कि हमारे दिमाग़ में ही कोई ग्रंथि ऐसी है जो इस शक्ति का केन्द्र है जिस में यह ज्यादा है तो वो बचपन से ही सक्रिय होता है और बाक़ी मामलों में किसी बात या घटना से प्रभावित हो के यह आर एन ए रसायन शरीर में रक्त संचार को बढ़ा देता है, जिस से इंसान अपने अन्दर एक विशेष उर्जा महसूस करता है और प्रेरित हो के काम करता है जैसे किसी व्यक्ति को बचपन से साहित्य में रुचि है, किसी को विज्ञान में और किसी को संगीत में .यह अलग अलग से प्रभावित होने वाले यह रसायन भी हर दिमाग़ में अलग अलग होंगे !!