Thursday, November 29, 2007

किसी की प्रेरणा जीवन को कैसे बदल देती है !!


हम कभी कभी किसी व्यक्ति से या किसी स्थान से बहुत प्रेरित हो जाते हैं और वह हमे जीवन में आगे बढ़ने कुछ करने के लिए उत्साहित करते हैं ..यही आगे बढ़ना किसी से कुछ प्रेरित हो के काम करना प्रेरणा कहलाता है इसका जीवन में बहुत ही मुख्य स्थान है .इस के बिना इंसान आगे नही बढ़ सकता इस के कारण ही कई महान काव्य ,पुस्तकों का और अविष्कारों का जन्म हुआ ,कोई प्रेरणा सामने हो तो व्यक्ति काम दिल लगा के करता है अपनी मंज़िल को पाने की कोशिश करता है और अतं में कामयाब होता है ,प्रेरणा कभी किसी से भी मिल स्काती है ..किसी व्यक्ति में यह जन्म जात होती है काम को करने की लगन कूट कूट के भारी होती है ,कभी हम प्रकति के विभिन्न रूप को देख के प्रेरित हो जाते हैं ,कभी किसी की नफ़रत ही हमे आगे बढने के लिए मजबूर कर देती है कि कुछ कर के दिखाना है यह समय पर है कि, कौन कब किस से प्रभावित हो जाए
-- जन्म से मिली प्रेरणा कई लोगों में होती है, ऐसे लोग बचपन से ही तेज़ बुद्धि के होते हैं यह लोग बचपन से ही सामान्य बच्चो से अलग काम करते हैं जैसे कोई बचपन से ही कविता लिखने लगता है ,कोई गणित में बहुत तेज़ बुद्धि का होता है ,कई बच्चे कई तरह के सवाल पूछते हैं और जब तक उचित जवाब नही पा लेते उस को पूछते रहतें हैं बदल बदल कर, जब तक उनकी ख़ुद की तस्सली नही हो जाती है वो स्कूल ज्ञान से काफ़ी आगे निकल जाते हैं और उस शिक्षा में अक्सर अपने को असहज पाते हैं ..जेम्स वाट का दिल बचपन में पढ़ाई में नही लगता था लेकिन आगे चल कर उन्होने भाप के इंजन का आविष्कार किया! आइन्स्टीन भी अपने अध्यापक से ऐसे ऐसे सवाल पूछते थे कि उनका जवाब देना मुश्किल हो जाता था !एडिसन भी प्रकति के रहस्य को जानने में ज्यादा रुचि रखते थे उनका कहना था कि एक बूँद प्रेरणा और 99 बूँद पसीना तब सफलता मिलती है जब उसको सच कर के भी दिखाया जाए !उनको बचपन से ही प्रकति से प्रेरणा मिली और उन्होने अविष्कार किए !हमारे देश के रविन्द्र नाथ टेगोर भी ऐसे ही थे वो स्कूल कि पढ़ाई में रुचि नही लेते थे पर उन्होने साहित्य में बहुत नाम कमाया और नोबल पुरूस्कार भी मिला .श्रीनिवास रामानुजम भी बचपन से ही गणित में बहुत आगे थे ऐसे लोगो में जन्मजात प्रेरणा होती है !कुन्दन लाल सहगल भी बिना किसी गुरु से ज्ञान लिए बिना इतना अच्छा गाते थे .लता मंगेशकर बचपन से आज तक गा रही है ..यह सभी में एक ईश्वर का दिया गुण है प्रेरणा हैं और जिसके पास ईश्वर की दी हुई प्रेरणा हो उन्हे कोई आगे बढ़ने से कैसे रोक सकता है !!

अब बात करते हैं प्यार से मिली प्रेरणा की जो किसी भी इंसान को किसी भी इंसान से किसी भी उम्र में दी जा सकती है ,कहा भी जाता है की किसी पुरुष की आसाधारण सफलता के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है किसी इंसान का प्यार किसी दूसरे इंसान में टॉनिक का काम करता है ,प्यार में ताक़त है जो बढ़े बढे काम को आसानी से पूरा करवा देती है ..यह प्यार किसी का भी हो सकता है भाई बहन .माता पिता प्रेमी प्रेमिका आदि किसी का भी ..

नफ़रत वाला व्यवहार भी किसी में प्रेरणा शक्ति का संचार कर देता है जैसे तुलसी दास का तिरिस्कार उनकी पत्नी न करती तो राम चरित मानस ना लिखी जाती .सूरदास जी के बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से अंधे नही थे वरन किसी स्त्री के प्यार के कारण और उस से मिली नफ़रत के कारण उन्होने अपनी दोनो आँखे फोड़ ली थी जिस से वो केवल अपना ध्यान श्री कृष्णा में लगा सके और उन्होनें इसी से प्रेरित हो के महान काव्य रचना कर डाली !!


रचनात्मक प्रेरणा वो है जो किसी अन्य इंसान के कामों से प्रेरित हो के की जाती है किसी के काम को देख के अपना सोचने समझाने का अंदाज़ ही बदल जाता है और इंसान रचनात्मक काम करने लगता है परन्तु कई बार यह प्रेरणा बुरे काम से भी प्रभावित हो जाती है जैसे फ़िल्मे देख के लोग बुरा काम करने लगते हैं ,अपराधी बेईमान लोगो के काम से आज के अख़बार भरे हुए होते हैं ..सच में मानव के दिमाग़ का क्या भरोसा कब किस और चल पड़े !!

अब यह प्रेरणा का असर दिमाग़ में होता कैसे हैं शायद इंसान के अपने अंदर ही कोई ऐसी शक्ति है जो उसको ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है हमारे मस्तिष्क का कोई न कोई भाग इस के लिए जिम्मेवार है जैसे किसी भी इंसान में स्मरण शक्ति के लिए आर एस ए {राईबोन्यूक्लिक एसिड } जिम्मेवार होता है जिस इंसान में इस रसायन की मात्रा जितनी अधिक होती है उसकी स्मरण शक्ति उतनी ज्यादा होती है! इसका मतलब है कि हमारे दिमाग़ में ही कोई ग्रंथि ऐसी है जो इस शक्ति का केन्द्र है जिस में यह ज्यादा है तो वो बचपन से ही सक्रिय होता है और बाक़ी मामलों में किसी बात या घटना से प्रभावित हो के यह आर एन ए रसायन शरीर में रक्त संचार को बढ़ा देता है, जिस से इंसान अपने अन्दर एक विशेष उर्जा महसूस करता है और प्रेरित हो के काम करता है जैसे किसी व्यक्ति को बचपन से साहित्य में रुचि है, किसी को विज्ञान में और किसी को संगीत में .यह अलग अलग से प्रभावित होने वाले यह रसायन भी हर दिमाग़ में अलग अलग होंगे !!
वैसे विज्ञान अभी यह पता लागने में असमर्थ है कि हमारे मस्तिष्क का कौन सा अंग इस के लिए जिम्मेवार है और यह भो हमे सही ढंग से मालूम नही कि कौन सी घटना कौन सी बात हमे किस बात के लिए प्रेरित करेगी! अब यूँ कहें कि हमारे दिमाग़ के रसायन को प्रभावित करेगी अगर यह पता चल जाए तो सारे बुरे सोचने वाले इंसानो को सुधारा जा स्कता है ..यह रसायन हमारे दिमाग़ में हर गतिविधि के जिम्मेवार है किसी रसायन की अधिकता या कमी हो जाती तो कोई विकार पैदा हो जाता है यह बात भी मज़ेदार है की यह रसायन भी अलग अलग होते हैं मस्तिष्क को ईश्वर द्वारा बनाया कंप्यूटर कहना जयदा अच्छा होगा यह सबसे अधिक संवेदन शील संभावना वाला होता है जिसके सोचने और समझने की शक्ति इंसान द्वारा बनाए कंप्यूटर की सीमा से ज्यादा होती है !यह उन काम को भी करता है जीने इंसान द्वारा बनाया कंप्यूटर ना कर सकता जैसे भावुकता ,अपनी मर्ज़ी से कही भी जाने की आज़ादी सपने देखना और किसी से प्रेरित होना . जब हम किसी की भाषण सुनते हैं तो उसकी वेश भूषा से ज्यादा उसके बोलने के तरीक़े से ज्यादा प्रभावित होते हैं उसके मन से अपने संबंध बना लेते हैं वैसे जिनके दिल साफ और निष्कपट होते हैं उनका प्रभाव भी देखने में ज्यादा आता है कोई भी संकेत यह लोग हमारे दिमाग की छटी इन्द्री तक पहुँचा देते हैं वैसे अभी बहुत कुछ खोजा जाना बाक़ी है इस विषय में ,तभी हम इस प्रेरित करने वाली घटना को अच्छे से समझ सकेंगे !!

Monday, November 26, 2007

टेलीपेथी और ईश्वर[टेली पेथी भाग २ ]


दुनिया में इतने धर्म है और हर धर्म ने अपने अपने ईश्वर की कल्पना की है !कही ईश्वर कोई प्रतीक के रूप में है कहीं उसके प्रभाव को महसूस किया जाता है ...किसी किसी व्यक्ति विशेष में देवीय गुण पाए जाते हैं तो उसको ईश्वर का रूप मान लेते हैं !अब उसको किसी ने देखा तो है नही ...लेकिन फिर भी उसका होना अपना एहसास करवा देता है ..वह आँखो से नही दिखाई देता ,पर उस से हमारा एक अदृश्य संवाद बना रहता है जब भी हम किसी मुसीबत में होते हैं तो हम उसकी शरण में जाते हैं ,उस वक़्त हमारे दिल में यही होता है की वो है और हमारी पुकार सुन रहा है यही टेलीपेथिक सेन्स है ..जब कोई प्रार्थना सुन ली जाती है तो उसके गुण गाते हम नही थकते और नही होती पूरी मुराद तो उसकी व्याख्या अलग ढंग से करते हैं .अब वो ख़ुद तो आने से रहा सो सब अपनी सोच से अपने विचार से उस बात को कह देते हैं !

कभी कभी ऐसे चमत्कार भी हो जाते हैं जो अचरज में डाल देते हैं विज्ञान भी हैरानी से उनको देखता रह जाता है ...यह संसार अनोखी बातो से रचा है कब कहाँ क्या हो जाए ,कौन जानता है .... इस संसार में दोनो तरह के लोग हैं अच्छे भी और बुरे भी और दोनो ही ईश्वर को मानते हैं अपने अपने ढंग से कई तंत्रिक लोग ईश्वर के नाम पर जो जादू टोना करते हैं अपने स्वार्थ के कारण लोगो में ईश्वर की आस्था का ग़लत फ़ायदा भी उठाते हैं ..किसी को कोई दुख दे के तो कोई ईश्वर ख़ुश हो नही सकता यह यह झूठी टेलीपेथिक विद्या ईश्वर से बात करवाने का यक़ीन दिलवाते हैं ..

यह तो एक सच है की जो कुछ भी हम ईश्वर से कहते हैं वा आमने सामने तो होता नही वो एक टेली पेथिक संवाद ही है यह संदेश ध्यान में डूब कर छठी इन्द्री से दिए लिए जाते हैं ...सभी धर्म यूँ ही चलते हैं हम सभी अपने ईश्वर से संवाद करते हैं और अपने दिल की बात उनसे कहते हैं ..मानव के मस्तिष्क को पथ परर्द्शक की जरुरत होती है जो उसकी हर बात सुन सके पूरी कर सके..इस लिए वो जब भी मुसीबत में होता है उसकी शरण में जाता है ..इस पर एक सकारत्मक सोच हमारी आस्था उस ईश्वर के प्रति जाग जाती है हम उस बुराई से बचने की कोशिश करते हैं जो हमे लगता है कि यह ईश्वर को पसंद नही है !हमने जिस ईश्वर को मान लेते हैं या मानते हैं वा हमे अपने पूर्वजो से सुनने पर ही पता चलता है देखा तो उन्होने भी नही !बस पीढ़ी दर पीढ़ी यह आस्था चलती जाती है और हमे उस ईश्वर से लगाव टेलीपेथिक बात करने की आदत पड़ जाती है यह एक अच्छी आस्था है जिस से हम बुराई से बचे रहते हैं और अच्छे कर्म की और अग्रसर रहते हैं ...इस लिए हर धर्म ने अपने अपने इष्टदेव को माना है और उस से सदा उनसे जुड़े रहते हैं ...!!

Thursday, November 15, 2007

आपके द्वारा बनाए चित्र बताते हैं आपके दिल की बात




मानव मन चंचल होता है शान्त बैठना इसका स्वभाव नही है .हम कुछ भी करते वक़्त अक्सर सब कुछ ना कुछ यदि पेन और काग़ज़ सामने दिखे तो कुछ लिखते रहेंगे या कुछ चित्र बनाते रहेंगे ..बिना सोचे विचारे बात करते करते कभी यह चित्र बहुत ही मज़ेदार बन जाते हैं की आप ख़ुद ही तारीफ़ करने लगते हैं कभी कभी सिर्फ़ अपने नाम को अलग अलग ढंग से लिखने लगते हैं कभी फूल पत्ती या कोई जानवर की शकल बनाने लगते हैं ...यूँ ही बात करते करते बनाई इन आकृति को डूडल कहा जाता है ..कुछ दिन पहले इस पर बहुत ही रोचक लेख पढ़ा था .जब इसकी प्रद्शनी अमरीका के राष्ट्रपतियों के द्वारा बनाई गयी डूडल प्रद्शनी में लगाई गयी थी

इन चित्रो के बारे में मनोवैज्ञानिक कहते हैं की असल में यह आपके द्वारा बनाए गये चित्र आपकी अंदर चल रही मानसिक हलचल को बताते हैं .यदि आप पन्ने के बाई तरफ़ डूडल बना रहे हैं तो इसका मतलब है की आप ज्यादा किसी से घुलते मिलते नही है और अपने बीते समय के बारे में ज्यादा सोचते हैं ,यदि आप दाहिने तरफ़ ज्यादा लिख रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप बहुत सोशल हैं और ज्यादातर अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं बीच में डूडल बना रहे हैं तो आप सबका ध्यान अपनी तरफ़ खीचना चाहते हैं मनोवैज्ञानिकों ने डूडल को सिंबल बना के इस के आधार पर लोगो के दिल की बात बात बताने की कोशिश की है !यह माना जाता है कि महिलाए पुरुषों से ज्यादा डूडल बनाती हैं

अब बात है कि आप के बनाए डूडल क्या कहते हैं ??यदि आप नाव ,जहाज़ और कार बना रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप एक लंबा अवकाश चाहते हैं और कही बाहर घूमना चाहते हैं ,यदि आप तीर के निशान बना रहे हैं और उसकी नोक ऊपर की तरफ़ है तो आप बहुत आगे बढ़ने की सोचते हैं ....आपके अंदर ज़िंदगी में कुछ कर गुज़रने की तीव्र इच्छा है और यदि तीर के निशान हर दिशा में बना रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप खुले विचार वाले है

यदि आप स्टार यानी की तारे का निशान बना रहे हैं तो आप एक आदर्शवादी व्यक्ति है पाँच सितारे बनाना बताता है कि आप मह्त्वकंशी है ..!छ सितारे वाले चित्र बनाना आपके ध्यान की सिथ्ती को बताता है ,यदि आप बात करते करते या कुछ सोचते सोचते ख़ुद ही ज़ीरो कांटा का खेल खेलते हैं तो यह आपकी प्रतिस्पर्द्धि स्वभाव को बताता है

यदि आप आयताकार या त्रिभुज बना रहे हैं यानी कि ज्यामिती रचनाए बनाने लगते हैं तो यह आपकी सॉफ स्पष्ट सोच को बताता है ,सुंदर चेहरे बनाना आपके सामजिक स्वभाव के बारे में बताता है और यदि आप जानवर बना रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप दूसरों को किसी मुसीबत से बाहर निकलना चाहते हैं

यदि आप दिल के निशान बना रहे हैं तो आप बहुत भावुक हैं और फूल बनाने का मतलब कि आप किसी को चाहते हैं और उसका ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करना चाहते हैं और पत्ती बनाना आपके अंदर अपने पैसे के लिए दीवानेपन को बताता है ..

तो देखा आपने यह अनजाने में किया गया काम कैसे आपके स्वभाव और सोच को बता देता है ...अक्सर यह चित्र बनाना हम सब करते हैं .बात करते हुए किसी सोच में अनजाने में डूबे हुए या कुछ लिखते लिखते अनजाने में यह चित्र बनाने लगते हैं ...रोचक लगा मुझे इनके बारे में जानना क्यूंकि अक्सर जिज्ञासा होती है दिल में कि क्यों हम यह चित्र बनाने लगते हैं :) कुछ और रोचक जानकारी मिली इस विषय पर तो ज़रूर ले के आऊँगी फिर आपके सामने ..देखिए आपसे बात करते करते मैने कितने चाँद और सितारे बना डाले :)


::::::::::::::ranju:::::::::::
:::::::

Saturday, November 03, 2007

यूं पहुंचे हम हास्य मंच पर :)


टीवी सीरियल देखते देखते यूं ही कलम चलाई
माँ के बदलते स्वरुप में हमे हास्य कविता नज़र आई
सोचा चलो एक कविता इस पर फरमाते है
बहुत भटक लिए प्रेम गली में
अब कुछ हास्य का रंग चढाते हैं
कविता जब पूरी हुई तो पढ़ के ख़ुद ही इठ्लाई
तभी चकल्लस के अखाड़े में,
हास्य कवि कुश्ती की खबर है आई
सोचा दिल ने कि चलो इस कविता को अजमाते हैं
चुने गए तो ठीक है वरना फ़िर से अपने प्रेम रस में डूब जाते हैं
पर हमारी पहली हास्य कविता ने हमारा साथ निभाया
और हमे पहली बार हास्य कवि के मंच पर पहुँचाया
पूरी तेयारी के साथ हमने ख़ुद को होंसला बंधाया
पर बुखार और गले दर्द ने हमको ४ दिन रुलाया
फ़िर भी बंद गले और सु सु करती नाक से
हमने ख़ुद को अखाडे में पाया
बोले चक्रधर जी जो वचनं दिया है
वह तो अब निभाना होगा
कविता के अखाडे में बंद गले से ही गाना होगा
पुचकार के अपने बंद गले को ,
हमने एक विक्स की गोली खिलाई
बंद मत हो जाना मंच पर बस करते रहे यही दुहाई
पर मंच पर बंद गले ने खूब जोर से गाया
इस तरह हमने हास्य कवि होने का मान भी पाया !!


बाकी इस के बारे में यहाँ जरुर पढे :)

http://merekavimitra.blogspot.com/2007/11/blog-post_03.html