Friday, August 31, 2007

नेट की यह दुनिया

नेट की यह दुनिया भी अजीबो ग़रीब है। दो अजनबी यहाँ कब अपने से हो जाते हैं पता ही नही चलता। विज्ञान की यह तरक्की कभी-कभी दिल लगाने का सबब भी है और दिल टूटने का एक बढ़िया फ़साना भी।
यूँ ही एक पत्रिका में कहानी पढ़ते पढ़ते मैं सोच में डूब गयी, इस में लिखी एक कहानी ने मुझे सोच में डाल दिया ...कहानी कुछ यूँ थी की नेट के ज़रिए चेट पर एक लड़का और लड़की में रोज़ बात होती है दोनो घंटो ऑनलाईन चैट पर दुनिया जहाँ की बाते करते, बात पहले शौक, जॉब, पसंद नापसंद से होती हुई घर और ना जाने कहाँ-कहाँ पहुँच गयी। धीरे-धीरे दोनो को इस तरह बात करने में मज़ा आने लगा दोनो अलग-अलग शहर के रहेने वाले थे सो आसानी से मिलने का तो कोई सवाल ही नही था बस यूँ बात होती होती प्यार की कसमो-रस्मो तक जा पहुँची। लड़के की मँगनी पहले ही हो चुकी सो शादी होने में देर नही थी।
नेट वाली लड़की का जनुन इस क़दर उस पर सवार हुआ की वो अपनी मँगनी तोड़ने को तैयार हो गया। वो उस लड़की से उसके फोटो और मिलने की ज़िद करने लगा। लड़की हमेशा ख़ुद को उस से उमर में छोटा बताती थी। वेब-कैमरा था नही दोनो के पास कि एक दूसरे को देख पाते। एक दिन बहुत ज़िद करने पर वो लड़की अपनी फोटो भेजने को तैयार हो गयी और फ़िर जब उस लड़के को ई-मेल मिला तो उस में एक ओल्ड लेडी की पिक्चर थी और साथ में लिखा था " मैं इस दुनिया में बिल्कुल अकेली हूँ ...कोई बात करने वाला नही है सो नेट ही मेरा सबसे अच्छा टाइम पास है तुमसे बात शुरू हुई तो मुझे पहले लगा सच बता देना चाहिए पर दिल को अच्छा लगने लगा तो नही बताया अब और झूठ नही बोला का सकता सो बता रही हूँ"। यह पढ़ के वो लड़का स्तब्ध रह गया!!!

पत्रिका मे ही दी गई दूसरी कहानी कुछ ऐसी थी--

वो एक मासूम सी लड़की थी। हर चीज को जानने की जिज्ञासा उसके दिल में रहती। नई चीज़े आते ही उसको गहराई से जानना उसका शौक था। घर में कंप्यूटर आया फिर उस में नेट भी लग गया, घंटो उस में डूबे
रहना उसका टाइम पास। चैट की दुनिया भी उस से अनजानी ना रही और साथ में लगा वेब कैमरा उसको दुनिया दिखाने लगा पर जहाँ हर चीज़े की अच्छी है वहाँ बुराई भी है। सारा दिन नेट चालू रहता और उसका
वेब कॅमरा भी। वो आते जाते सबसे बात करती रहती। अब उस पार की दुनिया में सब अच्छे लोग तो नही होते, कुछ बुरे दिमाग़ के भी लोग हैं। एक दिन वो नेट पर ऑनलाईन थी कि किसी लड़के ने उसको कुछ वीडियो दिए डाउनलोड होने के बाद जब उसने वह वीडियो देखा तो वो उसके होश उड़ा देने के लिए काफ़ी थी। उस बंदे ने उस लड़की की वेब क्लिप की रेकॉर्डिंग कर रखी थी और फ़िर वो उस लड़की को ब्लॅकमेल कर रहा था।
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और एक किस्सा इस से जुड़ा यह है कि नेट पर एक लड़के-लड़की की दोस्ती हो गयी। कुछ दिन दोनो में ख़ूब बातें होती रहीं और फिर वही हुआ उन्हे लगा कि वो दोनो एक-दूजे के लिए बने हैं। दोनो एक ही शहर के थे सो मिलना जुलना भी शुरू हो गया।
एक दिन दोनो घूमने का प्रोग्राम बनाया कि चलो कहीं घूम आते हैं। वो शहर से दूर हाइ-वे पर निकल गये। दो जवान दिल और महकता-बरसता मौसम, ऐसे मे होश वैसे ही गुम थे दोनो के। लड़के ने अपनी कार एक सुनसान नये बनते एरिया की तरफ़ मोड़ दी। अभी कुछ दूर ही गये थे की ना जाने कहाँ से मोटर साईकिल पर दो बदमाशो ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया और उनकी कार रोकने की कोशिश करने लगे। लड़की तो कुछ समझ नही पाई। पर लड़का उन बदमाशो की मंशा समझ गया, वो तेज़ी से कार को मु्ख्य सडक पर ले आने की कोशिश करने लगा। पर वो दोनो गुंडे भी तेज़ी से उनका पीछा करते-करते उन की कार पर पत्थर मारने लगे। कार का शीशा टूट गया, पर वो बच कर किसी तरह बाहर मु्ख्य सडक पर आ गये। सोचिए क्या होता यदि वो बदमाश उन्हे पकड़ लेते, दोनो भले घर के थे, क्या पता वो उनके साथ क्या करते। उनको शारीरिक नुक़सान पहुँचा सकते थे। उनकी कार लूट सकते थे या फ़िर उस लड़की का बुरा हाल कर सकते थे।


सोशल नेट वर्किंग यानी दुसरा नाम आरकुट जहाँ दोस्त बनाये जाते हैं और पुराने दोस्त भी अक्सर मिल जाते हैं यहाँ किसके पास वक्त नही है अब ज्यादा आने जाने का सो यही से बात करके काम चला लिया जाता हैं !चीजे फायदे के लिए ही बनायी जाती हैं यहाँ कई अच्छी कमनियुटी हैं जहाँ सब अपने अपने पसंद के विषय पढ़ सकते हैं लिख सकते हैं पर यही इसके नुकसान भी हैं इस को समझते हुए देश के शिक्षा सस्थानों ने इस को अपने यहाँ बंद कर दिया है कुछ दिन पहले अखबार में पढने में आया था पुणे में कुछ दिन पहले आरकुट के ज़रिए दोस्त बनी राँची की एक लड़की की हत्या कर दी . और अभी ताजा हुआ किस्सा यह भी अखबार में ही पढने को मिला था अदनान का ...जो १६ वर्ष का था कुछ दोस्त सोशल नेटवर्किंग से दोस्त बने उसका अपहरण किया और जब मामला मीडिया और पुलिस तक गया तो उन्होंने उसको मार डाला


सोशल नेटवर्किंग की ज़रूरत इतनी बढ़ गयी की यह बीमारी के रूप में तब्दील होने लगी है हमे जितनी सुविधा विज्ञानं ने दी है यदि हम उनका उपयोग सही ढंग से करे तो यह यह सुविधा हमारे लिए एक एक अच्छा मुकाम बन जायेगी और मंज़िल तक पहुँचा देगी . नही तो धीरे धीरे यह बिमारी एक ऐसा समाज पैदा करेगी जिस में कोई इंसानियत नही होगी भावना नही होगी !खैर!! इन सब कहानियों या सच्ची घटनाओं से यह सीखने को मिलता है कि ज़माने के साथ चलें ज़रुर पर अपने होश क़ायम रखें। क्या पता हमारी एक छोटी सी नादानी कितनी बड़ी मुसीबत को न्योता दे सकती है।


Sunday, August 26, 2007

एक धागा प्यार का


ज़िंदगी पल-पल करके ढलती रही......
बस अपने रंग रूप बदलती रही..........
और उन्ही बीतते पलों का हुआ कुछ ऐसा सिला........
कि मेरा मासूम दिल तुझसे जा मिला.........

इस दिल ने प्यार का ,भावनाओं का ,सपनो का एक जाल बुना.....
जिस का एक सिरा था मेरे पास दूसरा तेरे दिल से जा मिला.........

अब यदि तेरे दिल में भी प्यार सच्चा है......
तो पकड़ के खीच लो इस धागे को........
मैं ख़ुद ही खीची चली आऊंगी

यदि छोड़ दिया तूने इस धागे को......
तो मैं इस धागे में उलझ कर रह जाऊंगी .......
फिर तुम इस धागे को सुलझाना भी चाहोगे.......
तो भी सुलझा नही पाओगे.........
क्यों कि इस धागे की उलझन में
कई नये रिश्ते ,कई नयी गाँठे पाओगे........
करना चाहोगे तब प्यार मुझे पर कर नही पाओगे........

अभी मेरा प्यार सीधा, सच्चा, मासूम है........
नही निभेगा अगर तुमसे तो अपना सिरा भी मुझे लौटा दो......
मैं अपने प्यार के धागे को यूँ ही नही उलझने दूँगी......
तुमसे जुड़ी अपनी हसीं भावनाओं, जज़्बातों को यूँ ही नही खोने दूँगी...........

करती हू तुमसे वादा की.........
मेरे तरफ़ के सिरे में तेरे लिए यही लिपटा हुआ बस प्यार होगा........
तू चाहे वापस आए ना आए.........
इस धागे मैं मेरी अंतिम साँस तक बस तेरा नाम होगा..........

पर.........बस एक सवाल पूछती हूँ तुझसे....
तेरी तरफ़ जो सिरा है.......
क्या इस पर तब भी मेरा नाम होगा?
मेरे लिए यही हसीन जज़्बात,प्यार
और बाक़ी बची ज़िंदगी को , निभाने का साथ होगा.........?

Tuesday, August 21, 2007

प्रतीक्षा


छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
नज़रों में प्यास भर के हम बस उन्हे देखते रहे

तड़पता रहा दिल कोई फ़रियाद लिए मासूम सी
एक आचमन को बस लब मेरे तरसते ही रहे

खिल के बिखरती रही चाँदनी सब तरफ़ फिजा में
हम नजरों में उनकी प्यार की किरण तो तक़ते रहे

बूँदे स्वाती की सीपी में जा के मोती बनी
हम भी उनसे ऐसे मिलन को तरसते रहे

जलाते रहे दिल में प्यार की रोशनी
अपने तक़दीर के अंधेरो से यूँ लड़ते रहे

कई ख़वाब सजते रहे इन बंद पलको में मेरी
हम हर ख्वाब में उनसे मिलने को भटकते रहे

छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
और हम बस एक आचमन को तरसते ही रहे !!


रंजना

Tuesday, August 14, 2007

देख के सावन झूमे है मन



तीज का त्योहार .सावन की फ़ुहार , देश की आज़ादी को मानने का जोश और आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगे
दिल में एक नयी उमंग से भर देती है ..सब नया नया सा खिला खिला सा लगने लगता है
कुछ उमड़ धुमड के मनवा नये गीत रचने लगता है ..















देख के सावन झूमे है मन
दिल क्यूँ बहका लहका जाए
बादल की अठखेलियाँ बारिश की बूदें
मिल के दिल में उत्पात मचाए

भीगे मन और तन दोनो
ताल-तलैया डुबो जाए
देख के सब तरफ़ हरियाली
मयूर सा दिल नाचा जाए

छम-छम बाजे बूदों की पायल
गढ़ गढ़ बदरा शोर मचाए
बिजली की चमक पढ़े जब दिल पर
जिया पियु पियु की रट है लगाए

हवा हुई आज मनचली जैसे
छेड़ गोरी का आँचल छिप जाए
मीठी इन फुहारो से मनवा
गीत मिलन के आज गाए !!













Tuesday, August 07, 2007

नारी और प्रेम..........एक विचार



प्रेम के विषय में बहुत कुछ पढ़ा और समझा गया है ... प्रेम का नाम सोचते ही ...नारी का ध्यान ख़ुद ही जाता है ...क्यूँ की नारी और प्रेम को अलग करके देखा ही नही जाता|
मैने जितनी बार अमृता ज़ी को पढ़ा प्रेम का एक नया रूप दिखा नारी में और उनकी कुछ पंक्तियां
दिल को छू गयी|उनके लिखे एक नॉवल ""दीवारो के साए'' में शतरूपा .. की पंक्तियां नारी ओर प्रेम को सही ढंग से बताती हैं ...
औरत के लिए मर्द की मोहब्बत और मर्द के लिए औरत की मोहब्बत एक दरवाज़ा होती है और इसे दरवाज़े से गुज़र कर सारी दुनिया की लीला दिखाई देती | लेकिन मोहब्बत का यह दरवाज़ा जाने खुदा किस किस गर्दो_गुबार मैं खोया रहता है की बरसो नही मिलता, पूरी पूरी जवानी रोते हुए निकल जाती है तड़पते हुए यह दरवाज़ा अपनी ओर बुलाता भी है ओर मिलता भी नही...
प्यार का बीज जहाँ पनपता है मीलों तक विरह की ख़ुश्बू आती रहती है,............ यह भी एक हक़ीकत है की मोहब्बत का दरवाज़ा जब दिखाई देता है तो उस को हम किसी एक के नाम से बाँध देते हैं| पर उस नाम में कितने नाम मिले हुए होते हैं यह कोई नही जानता. शायद कुदरत भी भूल चुकी होती है की जिन धागो से उस एक नाम को बुनती है वो धागे कितने रंगो के हैं, कितने जन्मो के होते हैं.......
शिव का आधार तत्व हैं और शक्ति होने का आधार तत्व :..वो संकल्पहीन हो जाए तो एक रूप होते हैं . संकल्पशील हो जाए तो दो रूप होते हैं ,इस लिए वो दोनो तत्व हर रचना में होते हैं इंसानी काया में भी . कुदरत की और से उनकी एक सी अहमियत होती है इस लिए पूरे ब्रह्म में छह राशियाँ पुरुष की होती है और छह राशियाँ स्त्री|
शतरूपा धरती की पहली स्त्री थी ठीक वैसे ही जैसे मनु पहला पुरुष था|ब्रह्मा ने आधे शरीर से मनु को जन्म दिया और आधे शरीर से शतरूपा को | मनु इंसानी नस्ल का पिता था,
और शतरूपा इंसानी नस्ल की माँ..|
अंतरमन की यात्रा यह दोनो करते हैं लेकिन रास्ते अलग अलग होते हैं मर्द एक हठ्योग तक जा सकता है और औरत प्रेम की गहराई में उतर सकती है ...साधना एक विधि होती है लेकिन प्रेम की कोई विधि नही होती ,इस लिए मठ और महज़ब ज्यदातर मर्द बनाता है औरत नही चलाती|
लोगो के मन में कई बार यह सवाल उठा की बुद्ध और महावीर जैसे आत्मिक पुरुषों अपनी अपनी साधना विधि में औरत को लेने से इनकार क्यूं किया ? इस प्रश्न की गहराई में उतर कर रजनीश ज़ी ने कहा ..
बुद्ध का सन्यास पुरुष का सन्यास है , घर छोड़ कर जंगल को जाने वाला सन्यास ,जो स्त्री के सहज मन को जानते थे कि उसका होना जंगल को भी घर बना देगा ! इसी तरह महवीर जानते थे कि स्त्री होना एक बहुत बड़ी घटना है..उसने प्रेम की राह से मुक्त होना है साधना की राह से नही , उसका होना उनका ध्यान का रास्ता बदल देगा |
वह तो महावीर की मूर्ति से भी प्रेम करने लगेगी ... उसकी आरती करेगी हाथो में फूल ले ले कर उसके दिल में जगह बना लेगी ,उसके मन का कमल प्रेम में खिलता है ....ध्यान साधना में बहुत कम खिल पाता है|
उन्ही की लिखी कविता एक कविता है जो प्रेम के रूप को उँचाई तक पहुँचा देती है

आसमान जब भी रात का
रोशनी का रिश्ता जोड़ते हैं,
सितारे मुबारकबाद देते हैं
मैं सोचती हूँ, अगर कही ...........
मैं , जो तेरी कुछ नही लगती

जिस रात के होंठो ने कभी
सपने का माथा चूमा था
सोच के पैंरों में उस रात से
एक पायल बज रही है,

तेरे दिल की एक खिड़की ,
जब कही बज उठती है,
सोचती हूँ , मेरे सवाल की
यह कैसी ज़रूरत है !

हथेलियों पर इश्क़ की
मेहंदी का कोई दावा नही
हिज़रे का एक रंग है ,
और
तेरे ज़िक्र की एक ख़ुश्बू


मैं जो तेरी कुछ नही लगती !!!!!!