Tuesday, July 31, 2007

थाम लो सजना हाथ हमारा......


कविराज जी ने एक कविता लिखी थी . कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा ...?
http://merekavimitra.blogspot.com/2007/07/blog-post_22.html...जो मुझे बहुत पसंद आई थी उसको मैने अपना स्वर भी दिया:) http://ranjubhatia.mypodcast.com/2007/07/kaise_thaam_lu_haath_tumahra-30873.html

और
उनसे बहुत पूछा की किसका हाथ आप थाम नही पा रहे हैं ...:)उनका जवाब तो हमे मिला नही
पर उनकी अनामिका उनको क्या जवाब देती ..मैने वो अपने लफ़्ज़ो में ढालने की कोशिश की है .:).::)).:)





मैं चंचल बहते झरने सी
तुम शांत नदी की धारा

जैसे चूमे लहरे साहिल को
वैसे छू लो तुम दिल हमारा

थाम लो सजना हाथ हमारा......

मैं हूँ नयी खिलती कली सी
भरे दिल में नयी उमंग सी
राह तकूँ हर पल तुम्हारी
बन जाओ तुम बंसत हमारा

थाम लो सजना हाथ हमारा ....


मैं हूँ चपल बिजली सी चंचल
नयनो में भरे प्रीत की मधुशाला
तुम भटकते किसकी तलाश में
पढ़ ना सके क्यूं तुम मन हमारा

थाम लो सजना हाथ हमारा ....

मैं जग-मग ज्योति आशा की
भर दूँ तेरे दिल में उजियारा
बसा लो मुझे अपने मन मंदिर में
छूटे ना अब यह साथ हमारा

थाम लो सजना हाथ हमारा ......

मैं हूँ धुन जैसे कोई प्रीत की
अधरो पर बजाति कोई बाँसुरी सी
हर पल बुनू गीत प्रीतम का प्यारा
तुम मेरे कान्हा ,राधा नाम हमारा

थाम लो सजना हाथ हमारा ......

Friday, July 27, 2007

तुम्हारे शहर का मौसम बहुत सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा ना लगे

भारत देश इतनी विवधता से भरा हुआ है की जितना देखा जाए उतना कम है .. अभी कुछ काम से अहमदाबाद जाना हुआ . दिल में एक कोतूहल और कुछ बदलाव देखेने की इच्छा मन में दबी थी..बहुत साल पहले द्वारका जाना हुआ था उस यात्रा की एक धुधंली सी याद कही दिल में अब भी छिपी थी ....उस के बाद कुछ साल पहले इस शहर ने भूकंप का कहर झेला था ...दिल में कही था की कैसा होगा अब यहाँ सब .पर सच में यहाँ के लोग जीना जानते हैं ... वही शहर अपने पूरे शबाब से जी रहा था ...वही चहल पहल ...और वही टू-वीह्लरर्स की भाग-दौड .. सच में अच्छा लगा .... दिन बहुत गरम और पसीने से नहला देना वाला उस पर बेटी के लिए चंद महीनो के लिए एक अदद रहने का ठिकाना तलाश करने की मुहिम ने हमे पूरे अहमदाबाद की सैर करवा दी ....शायद वहाँ के लोकल लोग इतना नही देख पाए होंगे जो हमने वाहना 4 दिन में देख डाला ... आश्रम रोड से दूर हाई रोड पर बने पेंटा हाउस तक हमने देख डाले ...


अंतःता
पसंद आया वहाँ के सबसे अच्छे इलाक़े वस्तरापुर में बना एक सुंदर सा घर ..जहाँ कई जगह से आई लड़कियाँ रहती है .... हर घर में झूला और बा :) सच में मेरे दिल को तो भा गये ......जगह जगह खाने की मौज ... क़दम क़दम पर आपको रेस्तोरेंट मिल जायंगे .... एक बात और वहाँ की अच्छी लगी की वहाँ के लोग जीना जानते हैं ... शनिवार, एतवार की शाम शहर को ज़िंदा दिली से भर देती है ...... दिन भर की गर्मी को शाम की ख़ुशनुमा हवा बरबस यह बात दिल से कहलवा ही देती है की .तुम्हारे शहर का मौसम बहुत सुहाना लगे मैं एक शाम चुरा लूं अगर बुरा ना लगे[:)]





सुरमई शाम बहती मस्त ब्यार
कल कल बहता यह नदिया का पानी
दिल में जगा देता है यह सब कुछ
एक नयी प्रीत कोई अनजानी

उगता सूरज ढलता चाँद
कह देता है एक कहानी
सोख चंचल लहरे
आते जाते सुना देती हैं
कुछ बाते सुहानी



साइन्स
सिटी ... में शाम को चलते रंगीन म्यूज़िकल फाउंटन ने हमारा दिल छू लिया ....तो गाँधी आश्रम और साबरमति के किनारे ने एक शांति सी दी दिल को ..... अभी पूरे शहर को देखने की प्यास दिल में रह गयी ... और बहुत से ख़ास लोगो से मिलना भी रह गया .... चद लफ़ज़ो में शायद इस शहर को ब्याँ करना मुश्किल होगा .. गाँधी नगर की खूबसूरती... अक्षर धाम का मनमोहक नज़ारा बांधँा कैसे जाएगा ... वैसे यहाँ के लोग बहुत ही मदद करने वाले हैं ...लॅंग्वेज भी यहाँ की थोडा ध्यान देने पर समझ जाती है
चार दिन में इस शहर को समझने के भरपूर मोका मिला ... बाक़ी अगले अंक में .. अभी के लिए इतना ही काफ़ी है ..कुछ पंक्तियाँ साबरमति के बहते जल को देख कर दिल में गयी ,








बहती
यह नदिया कब कौन सा राग सुना गयी
अनजान शहर था यह बेगाना
बसंत हवा ख़ुशनुमा फ़िज़ा
दिल को मेरे अपना बना गयी!!!! !!!!

Thursday, July 26, 2007

प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है


सुख -दुख के दो किनारों से सजी यह जिदंगानी है
हर मोड़ पर मिल रही यहाँ एक नयी कहानी है
कैसी है यह बहती नदिया इस जीवन की
प्यासी है ख़ुद ही और प्यासा ही पानी है

हर पल कुछ पा लेने की आस है
टूट रहा यहाँ हर पल विश्वास है
आँखो में सजे हैं कई ख्वाब अनूठे
चाँद की ज़मीन भी अब अपनी बनानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जवानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद और प्यासा ही पानी है

जीवन की आपा- धापी में अपने हैं छूटे
दो पल प्यार के अब क्यूं लगते हैं झूठे
हर चेहरे पर है झूठी हँसी, झूठी कहानी है
कैसी यह यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद प्यासा ही पानी है

हर तरफ़ बढ़ रहा है यहाँ लालच का अँधियारा
ख़ून के रिश्तो ने ख़ुद अपनो को नकारा
डरा हुआ सा बचपन और भटकी हुई सी जवानी है
कैसी है यह प्यास जो बढ़ती ही जानी है
प्यासी है नदिया ख़ुद ही प्यासा ही पानी है

Friday, July 13, 2007

तू ही तू नज़र आए


हमे सब तरफ़ एक तू ही तू नज़र आए
दिल तलाशता है जिस मंज़र को वो नज़र तो आए


हम छोड़ देंगे पीना जाम से सनम
पहले तेरी आँखो में हमे मय मोहब्बत की तो नज़र आए

तय कर लेंगे हम तेरे साथ यह इशक़ का सफ़र
पर तेरे साथ हमे अपनी मंज़िल भी तो कोई दिखाए

निभा दी हैं हमने तो मोहब्बत की सब रस्मे
तेरी बातो से भी हमे कुछ वफ़ा की महक तो आए

सो जाएँगे तेरे बाहों के घेरे में हम सकूँ की नींद
पर तुझे भी तो कभी हमारी याद इस तरह शिद्दत से आए!!





Monday, July 09, 2007

माँ



माँ लफ्ज़ ज़िंदगी का वो अनमोल लफ्ज है ... जिसके बिना ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं कही जा सकती ...आज मेरी माँ की पुण्य तिथि है ..और मेरे पास कविता लिखने से अच्छी श्रदांजलि और क्या हो सकती है ..



मेरा बचपन थक के सो गया माँ तेरी लोरियों के बग़ैर
एक जीवन अधूरा सा रह गया माँ तेरी बातो के बग़ैर

तेरी आँखो में मैने देखे थे अपने लिए सपने कई
वो सपना कही टूट के बिखर गया माँ तेरे बग़ैर.....



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माँ हर पल तुम साथ हो मेरे, मुझ को यह एहसास है
आज तू बहुत दूर है मुझसे, पर दिल के बहुत पास है।
तुम्हारी यादों की वह अमूल्य धरोहर

आज भी मेरे साथ है,

ज़िंदगी की हर जंग को जीतने के लिए,
अपने सर पर मुझे महसूस होता
आज भी तेरा हाथ है।

कैसे भूल सकती हूँ माँ मैं आपके हाथों का स्नेह,

जिन्होने डाला था मेरे मुंह में पहला निवाला,
लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में,

दुनिया की राहों में मेरा पहला क़दम था जो डाला

जाने अनजाने माफ़ किया था मेरी हर ग़लती को,

हर शरारत को हँस के भुलाया था,
दुनिया हो जाए चाहे कितनी पराई,
पर तुमने मुझे कभी नही किया पराया था,
दिल जब भी भटका जीवन के सेहरा में,
तेरे प्यार ने ही नयी राह को दिखाया था

ज़िंदगी जब भी उदास हो कर तन्हा हो आई,
माँ तेरे आँचल ने ही मुझे अपने में छिपाया था

आज नही हो तुम जिस्म से साथ मेरे,
पर अपनी बातो से , अपनी अमूल्य यादो से
तुम हर पल आज भी मेरे साथ हो..........
क्योंकि माँ कभी ख़त्म नही होती .........
तुम तो आज भी हर पल मेरे ही पास हो.........


रंजू


Monday, July 02, 2007

मैं ख़्याल रखूँगी...


तुम प्यास की तरह मेरे लबों पे रहो..
मैं ख़याल रखूँगी की यह प्यास जगती रहे

बसे रहो मेरे दिल में सुरीला राग बन के
मैं ख़्याल रखूँगी यह धुन प्यार की बजती रहे

सजाओ मेरे आशियाँ को अपने ख्वाबो से
मैं ख़याल रखूँगी की यह रात सितारों सी चमकती रहे

प्यार की बरसती घटाओ को मुझ पे जम के बरसाओ
मैं ख़याल रखूँगी की यह सावन की रुत यूँ चलती रहे

ढल जाओ मेरे गीतो में प्यार का लफ्ज़ बन के तुम
मैं ख़्याल रखूँगी की एक आग इन लफ़्ज़ो में सुलगती रहे

कर दो अपनी पवन छुअन से मुझ पत्थर को पारस
मैं ख़्याल रखूँगी की धड़कनो में धुन तेरे नाम की बजती रहे

ज़िंदगी ना लगे कभी यूँ ही बेवजह सी जीती हुई सी
मैं ख़याल रखूँगी की जीने की आस दिल में पलती रहे

कब चल पाया है यह संसार नफ़रत की बातों से
मैं ख़्याल रखूँगी की प्यार की शमा दिल में जलती रहे !!