Saturday, April 28, 2007

ख्वाबो की हक़ीकत



1.तुम भी भावनाओ मैं जीते हो,
इसका अहसास तब हुआ मुझको.
जब गीने दिन तुमने हमारी मुलाक़ातो के,
प्यार के, बातो के, और उन सपनो के...
जो सच नही होने थे शायद..............?
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2,यह पत्थरो का शहर हैं यहाँ ख्वाबो को तलाश मत करना
होंठो पर खिलते गुलाब देख कर कोई पेगाम ख़ुशी का ना समझ लेना
सिर्फ़ झूठी तसलियो में यहाँ कटती है ज़िंदगी हर किसी की
आईना है हर चेहरा यहाँ किसी की आँखो में भी झाँक लेना !!
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3. जो बात ज़ुबान से कही ना जाए
वह आँखो से बयान होती है

एक पल भी मिले कोई सकुन की छाँव इस दिल को
उस पल में ख्वाबो की हक़ीकत मालूम होती है

क्यूं उदास उदास सा है यह समा आज भी
मेरे दर्द की दास्तान क्यूं ऐसे मशहूर होती है !!
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4.मुझे कब चाह थी की मुझे यह चाँद मिले आसमान मिले
बस एक तमन्ना रही की मुझे मेरे सपनो का जहाँ मिले

जीए हम अपनी ज़िंदगी को कुछ ऐसे भी कभी कभी
कही ग़म के साये तो कही राही ही अनजान मिले

रंज़- ओ ग़म की रात कटती ही नही है मेरी
अब तो देखने को मेरी इन सूनी आँखो को हसीन ख़वाब मिले!!
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5. कब गुज़रा था दिन कब रात बीत गयी
बात दिल की थी दिल से हो कर गुज़र गयी

मंज़िल तलाशते रहे हम उमर भर
मुलाक़ात से पहले ही बात जुदाई की हो गयी

तलाशते रहे हम ख़ुशी को उमर भर
ख़ाली ख़ाली यह नज़र वापस मुझ तक ही लौट गयी

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6. निकले थे घर से अपनी प्यास बुझाने के लिए
ले के किसी समुंदर का पता
पर कभी उसके साहिल तक को छू भी ना पाए
हाथ में आई सिर्फ़ रेत मेरे
और लबो पर आज तक है अनबुझी किसी प्यास के साये !!
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Sunday, April 22, 2007

अमृता प्रीतम के इमरोज़ के साथ बीते मेरे कुछ यादगार हसीन पल..20.4.2007

एक ज़माने से
तेरी ज़िंदगी का पेड़
कविता कविता
फूलता फलता और फैलता
तुम्हारे साथ मिल कर
देखा है

और जब तेरी ज़िंदगी के पेड़ ने
बीज बनाना शुरू किया
मेरे अंदर जैसे कविता की
पत्तियाँ फूटने लगी हैं .

[.इमरोज़....]

एक सपना जो सच हुआ.....

सुबह उठी तब कहाँ जानती थी कि  इन पंक्ति को लिखने वाले से ख़ुद रुबरू बात होगी
और मेरा ज़िंदगी का एक सपना यूँ सच होगा ...मिलना होगा एक ऐसी  शख़्सियत से जिसको अभी तक सिर्फ़
उनके बनाए चित्रो से देखा है या अमृता की नज़मो के मध्याम से जाना है ...जाना होगा उस अमृता के घर जिसको मैने 14 साल की उमर से पढ़ना शुरू किया और उसको अपना गुरु मान लिया .....सूबह फ़ोन आया कि  आज इमरोज़ से मिलने का वक़्त तय हुआ है 2 बजे से पहले ..यदि साथ चलना चाहो तो चल सकती हो ...नेकी  और पूछ पूछ...ऐसी  ड्रीम डेट को भला कौन छोड़ना चाहेगा ...जाने में अभी दो घंटे बाक़ी थे और वो 2 घंटे कई सवाल और कई उत्सुकता लिए कैसे बीते मैं ही जानती हूँ ...

अमृता इमरोज़ के प्यार का ताजमहल उनका ख़ूबसूरत घर.......

उनका घर बिल्कुल ही साधारण ..हरियाली  से सज़ा हुआ और अमृता इमरोज़ से जुड़े उनके वजूद का अनोखा संगम लगा ....एक ख़ुश्बू सी वहाँ थी या मेरे ज़ेहन में जिस को मैने बचपन से पढ़ा था आज मैं उसके घर पर थी ....हाय ओ रब्बा यह सच था या सपना .....उनके घर की जब डोर बेल्ल बजाई तो दिल एक अजब से अंदाज़ से धड़क रहा था ...उनको देखने की जहाँ उत्सुकता थी वहाँ दिमाग़ में अमृता की लिखी कई नज़मे घूम रही थी ...दरवाज़ा खुला ..समाने अमृता के बड़े बेटे थे कहा कि  इमरोज़ अभी बाज़ार तक गये हैं आप लोग अंदर आ जाओ . इमरोज़.अभी आ जाएँगे ... ...ड्राइंग रूम में अंदर आते ही ...कई छोटी छोटी पेंटिंग्स थी एक बड़ा सा ड्राइंग रूम ..ठीक मेरे बाए हाथ की तरफ़ एक दिलीप कुमार की हाथ से बनाई पेंटिंग लगी थी ...उनके ख़ामोश लब और बोलती आँखे जैसे अपनी ही कोई बात कर रहे थे हमसे ...
थोड़ी देर हम उन्ही पेटिंग्स में गुम थे कि  पता चला की इमरोज़ आ गये हैं ...और उनसे मिलने फर्स्ट  फ्लोर पर जाना होगा ....रास्ते में सीढ़ियों पर पेंटिग्स ..एक सुंदर सी छोटी सी मटकी पेंट की हुई और अंदर दरवाज़े पर अमृता की किसी पंजाबी नज़्म की कुछ पंक्तियाँ  लाल रंग से लिखी हुई थी बहुत ही साधारण सा घर जहाँ अंदर आते ही दो महान हस्तियाँ अपनी अपनी तरह से अपने होने का एहसास करवा रही थी...सामने की दीवार पर इमरोज़ के रंगो में सजी अमृता की पंटिंग्स और साथ में लिखी हुई उनकी नज़मे .एक रोमांच सा दिल में पेदा कर रहे थे ....एक छोटी सी मेज़ जहाँ अब अक्सर इमरोज़ कविता  या नज़्म लिखते हैं ...उसके ठीक पीछे कुछ मुस्कराते से पौधे  ... सामने की तरफ़ रसोईघर ....जहाँ कभी अमृता अपना खाना ख़ुद बनाती थी और इमरोज़ साथ रह कर वही पर उनकी मदद करते थे..उनके लिए चाय बना देते थे ....यहाँ सब सामान शीशे का यानी पारदर्शी जार में है कभी कोई समान ख़त्म होने पर ..इमरोज़ उस ख्त्म हुए समान को फिर से ला कर भर दे ....और अमृता को कोई किसी चिज़ की कमी या कोई परेशानी ना हो ....यही बताते हुए इमरोज़ ने एक बहुत ही सुंदर बात कही की काश इंसान भी पारदर्शी शीशी की तरह होते ..जिस के अंदर झाँक के हम देख सकते ....कितनी सजहता से इमरोज़ कितनी गहरी बात कह गये

एक असाधारण व्यक्तिव इमरोज़ ..

वापस वही रसोई घर के सामने रखी मेज़ पर आ कर और उस इंसान को देख रही थी जिसका ज़िक्र अमृता की नज़मो में होता है ...एक सपना वो अक्सर देखा करती थी की एक लंबा सा आदमी सफ़ेद कुर्ते पायजामे में ..केनवास  और रंगो से कुछ पेंट कर रहा है ..यह सपना वह कई साल देखती रही ..इमरोज़ ने बताया कि  मुझसे मिलने के बाद वह सपना आना काम हो गया ...सच में इतना प्यार कोई करे और उसके जाने के बाद भी अपनी बातो से अपने एहसासो से उस औरत को ज़िंदा रखे किसी औरत के लिए इस से ज़्यादा ख़ुशनसीबी क्या होगी ......हमारे लिए वो अपने हाथो से कोक ले के आए ..बहुत शर्म सी महसूस हुई की इतनी बड़ा शक्श  पर कोई भी अहंकार नही कितना साधारण..दिल को छू गया उनका यह प्यारा सा मुस्कराना .और बहुत प्यार से बाते करना मैने पूछा कि  आप को अमृता की याद नही आती ...नही वो मेरे साथ ही है उसकी याद कैसे आएगी ..इसके बाद जितनी भी बात हुई उन्होने उसके लिए एक बार भी थी लफ़ज़ का इस्तेमाल नही किया ..मैने पूछा भी था उनसे की आपने हर बात में है कहा अमृता को ..थी नही ..

प्यार का एक नाम इमरोज़ ....

मैने कहा मैं अमृता जी से मिलना चाहती थी ..तो बोले की मिली क्यूँ  नही ..वह सबसे मिलती थी यह दरवाज़ा हमेशा खुला ही रहता था ..कोई भी उस से आ कर मिल सकता था ..तुमने बहुत देर कर दी आने में .....सच में बहुत अफ़सोस हुआ ...कि  काश उनके जीते जी उनसे मिलने आ पाती ... सामने जो मेरे शख्श  था वो आज भी पूरी तरह से अमृता के प्यार में डूबा हुआ ,,वहाँ की हवा में रंग था नज़्म थी और प्यार ही प्यार था ....कोई किसी को इतना प्यार कैसे कर सकता है ....पर एक सच सामने था ....एक अत्यंत साधारण सा आदमी ...भूरे रंग के कुर्ते में सफ़ेद पाजामे में ..आँखो में चमक ...और चहरे पर एक नूर ..शायद अमृता के प्यार का...सब एक समोहन..सा जादू सा बिखेर रहे थे .मैने जब उनसे पूछा ..... क्या मैं अमृता का रूम देख सकती हूँ ..जहाँ वह लिखा करती थी ..तो उन्होने मुझे पूरा घर दिखा दिया ..यह पहले ड्राइंग रूम हुआ करता था ..अब वहाँ इमरोज़ की पंटिंग्स और अमृता की नज़मो का संगम बिखरा हुआ था एक शीशे की मेज़ जिस पर एक टहनी थी जिसकी परछाई अपना ही जादू बिखेर रही थी इस से बेहतर ..कोई ड्राइंग रूम और क्या हो सकता है ....अमृता का कमरा वैसे ही है जैसा उनके होते हुए था .और बिस्तर पर पड़ी सलवटे जैसे कह रही हो की अभी यही है अमृता ..बस उठ कर शायद रसोईघर तक गयी हो ..फिर से वापस आ के कोई नज़म लिखेगी ..... इमरोज़ का कमरा रंगो में घिरा था ...और हर क़मरे की आईने में कोई न कोई नज्म  पंजाबी में लाल रंग से लिखी हुई थी ...एक और कमरे में बड़े बड़े बूक शेल्फ़ .जिस में कई किताबे ..सजी थी ...अमृता की और कई अन्य देश विदेश के लेखको की ....बस सब कुछ जो देखा वो समेट लिया अपने दिल में और वहाँ फैली हवा में उन तमाम  चीज़ो के वजूद को महसूस किया ..जो साथ साथ अपना एहसास करवा रहे थे ...

.प्यार के लिए लफ़्ज़ो की ज़रूरत नही..

उन्होने बताया कि  चालीस साल में कभी भी अमृता और मैने एक दूसरे को I LOVE U नही कहा ..क्यूकी कभी हमे इस लफ्ज़ की ज़रूरत ही नही पड़ी  ..वैसे भी प्यार तो महसूस करने की चीज  है उसको लफ़्ज़ो में ढाला भी कैसे जा सकता है ......बस हम दोनो ने एक दूसरे की ज़रूरत को समझा ....वो रात को 2 बजे उठ कर लिखती थी उस वक़्त उस को चाय चाहिए होती थी ...हमारे कमरे अलग अलग थे क्यूँकी उसको रात को लिखने की आदत थी और मुझे अपने तरीक़े से पेंटिंग करनी होती थी .हमने कभी एक दूसरे के काम में डिस्टर्ब  नही किया ...बस उठता था उसकी चाय बना के चुप चाप  उसके पास रख आता था ..वह मेरी तरफ़ देखती भी नही पर उसको एहसास है कि  मैं चाय रख गया हूँ और उसको वक़्त पर उसकी जो जरुरत  थी वोह पूरी हो गयी है ..सच कितना प्यारा सा रिश्ता है दोनो के बीच ....उसको सिगरेट की आदत है मैं नही पीता पर उसको ख़ुद ला के देता ..मैने पूछा की क्या आपने कभी उनको बदलने की कोशिश नही की ....उन्होने कहा नही की वो ख़ुद जानती थी की इसको पीने में क्या बुराई है तो मैं उसको क्या समझा सकता हूँबहुत अच्छा लगा .यही तो प्रेम की प्रकाष्ठा है ..इस से उपर प्रेम और हो भी क्या सकता है ...एक एक लफ्ज़ में प्यार था उनका अमृता के लिए

अमृता इमरोज़ का मिलना ......

मैने पूछा की आप मिले कैसे थे ..अमृता को अपनी किताब के लिए कवर पेज बनवाना था ...और इमरोज़ से उसी सिलसिले में मुलाक़ात हुई .....फिर कब यह ख़ूबसूरत रिश्ते में ढल गयी .पता ही नही चला ...अमृता इमरोज़ से 7 साल बढ़ी थी ..तब उस वक़्त बिना किसी समाज की परवाह किए बिना ..उन्होने साथ रहना शुरू किया ...इमरोज़ ने बताया की तब कई लोगो ने कहा की यह तो बूढ़ी हो जाएगी ..तुम अभी जवान हो या अमृता को भी बहुत कुछ कहा गया ..पर कुछ नही सुना ..मैने उस वक़्त जब वो 40 साल की भी नही थी उसकी पेंटिंग बनाई की 80 साल की हो के वो कैसी लगेगी .उसके बाल सफ़ेद किए ..चहरे पर झुरियाँ बनाई ..और जब उसके 80 साल के होने पर मैने उसको उसको पंटिंग से मिलाया तो वो उस पैंटिंग से ज्यादा  ख़ूबसूरत थी .....भला नक़ली रंग असली सुंदरता से कैसे मुक़ाबला कर पाते ...यह प्यार कितना प्यारा था जो करे वही समझे

कुछ यादे कुछ बातें.....

कुछ बाते आज की राजनीति पर हुई .कुछ आज कल के बच्चो जो बुढ़ापा आते ही अपने मा बाप को ओल्ड एज होम छोड़ आते हैं ...पर उनकी हर बात का अंत सिर्फ़ अमृता पर हुआ ...उनकी लिखी कविताओ में उन्होने कहा कि कोई दुख का साया या कुछ खोने का डर नही दिखेगा ...क्यूंकि  मेरे पास तो खोने के लिए कुछ है ही नही जो ज़्यादातर कविता या नज़मो में होता है क्यूँकी मेरा जो भी कुछ है वो मेरे पास ही दिखता है ...सच हो तो कहा उन्होने अमृता जी वहाँ हर रंग में हर भाव में इमरोज़ के रंगो में ढली हुई थी उन्ही के लफ़्ज़ो में

लोग कह रहे हैं उसके जाने के बाद
तू उदास और अकेला रह गया होगा

मुझे कभी वक़्त ही नही मिला
ना उदास होने का ना अकेले होने का ..

. वह अब भी मिलती है सुबह बन कर शाम बन कर
और अक्सर नज़मे बन कर
हम कितनी देर एक दूजे को देखते रहे हैं
और मिलकर अपनी अपनी नज़मे ज़िंदगी को सुनाते रहे हैं[इमरोज़]

कभी नही भूलेंगे मुझे यह ख़ूबसूरत पल ..

.यह छोटी सी मुलाक़ात मेरी ज़िंदगी के सबसे अनमोल यादगार पलो में से एक है ...उनके कहे अनुसार जल्दी ही उनसे मिलूंगी ..क्यूँकी उनके कहे लफ्ज़ तो अभी मेरे साथ हैं की जैसे अमृता को मिलने में देर कर दी .,.मुझे दुबारा मिलने में देर मत करना ..क्यूँकी मैं भी बूढ़ा हो चुका हूँ ..क्या पता कब चल दूं ... नही इमरोज़ जी आप अभी जीयें और स्वस्थ रहे यही मेरी दिल से दुआ है .....


रंजना [रंजू]

Thursday, April 19, 2007

छोटी छोटी बातो का मूल्य


यह जीवन का सत्य है की हम अक्सर छोटी छोटी बातो के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण चीज़ो का सत्यनाश करते हैं .कुछ छोटे पल जो अक्सर दिली ख़ुशी दे के जाते हैं ..हम यूँ ही बेकार के लालच में गवां देते हैं .....कुछ उदारहण के माध्यम से इन बातो को आसानी से समझा जा सकता है ...

किसी गावं में एक बहुत ही स्मरिद्ध परिवार रहता था ..उस परिवार में दो बेटे थे ..अचानक एक दिन घर के मुखिया यानी की बाप का सवर्गवास हो गया ..अब बात आई बँटवारे की ....महीनो बीत गये पर बँटवारे की लिस्ट ना बन पाई ...जिस पर दोनो भाई सहमत होते ...""यह माँ के गले का हार तू कैसे लेगा ...यह तो माँ की हार्दिक इच्छा मेरी पत्नी को देने की थीई ..तुम दोनो से तो कभी उसकी बनी ही नही .,..या ...वह सबसे उपर का कमरा मैं तुझे कैसे दे डू ? मैं क्या नीचे वाले कमरे में घुट के मार जउं ..आदि आदि ..असी कई बातो पर रोज़ बेहास होती और कोई फैलसा ना हो पाता ....अंत में पाँचो के पासस जाने का फ़ेसला किया गया..की वोह जो कह देंगे वही माना जाएगा ...पाँचो ने जब यह सब सुना तो कहा की हम यहाँ पर पाँच ताले लगा रहे हैं ..फ़ैसला कल होगा ..सुन के दोनो भाइयों ने भी अपने दो ताले और लगा दिए ...अब दोनो भाई निश्चिंत हो गये की अब कोई अंदेर नही जा पाएगा और कल तोह फ़ैसला हो ही जाएगा .....पर रात को जो चुपके से घरो में घुसते हैं वोह भी इसी समाज़ के सदस्य हैं ...उनको भी तो अपना पेट भरना है ..और वोह तो कभी सीधे दरवाज़े से अंदर जाते ही नही ..यानी की चोर महराज़ जी ...सो वह पिछले दरवाज़े से घुसे और सारा घर साफ़ .....अब सूबेह जब पाँचो ने और दोनो भाईयों ने खुअला दरवाज़ा और सब सामान साफ़ देखा तोह हेरान परेशान ...पाँचो ने कहा अब ख़ाली कमरे हैं उन्ही को बाँट लो आपस में ..अब बडा भाई बोला की मुझे तोह मुँबई में नोकरी मिल गयी है मैं तो वहीं जा रहा हौन ...छोटे तुम्ही अब इन को सँभालो ...छोटा भाई बोला की आपके बगेर में अकेला क्या करूँगा ..आप शहर में धक्के खाए और में यहाँ आराम से राहू .मुझे तोह नर्क में भी जगह नही मिलेगी .....यह कह दोनो भाई एक दूसरे से लिपट गये ...पाँच हेराँ की यही पहले कर लेते तो इतना नुक़सान ना होता ....इस तरह से कई छोटी बातो को ले कर बड़ी चीज़ो का नुक़सान कर दिया जाता है .....

फ़ोर्ड मोटर कम्पनी के मालिक एक मामूली सा इंसान था ..अपनी मेहनत से वोह संसार का सबसे धन पति आदमी बना ...सारा जीवन उसने उसी धन को कामने में लगा दिया ...दुनिया की नज़र में वो सबसे सुखी आदमी माना जाता .पर जब एक दिन किसी ने उस से पूछा की आप तो बहुत सुखी होंगे ..आपके जीवन में किसी चीज़ का अभाव ही नही है ....तब फ़ोर्ड ने दुखी हो कर कहा की धन के अलावा मेरे पास सब अभाव ही अभाव है ....मैने सिर्फ़ धन कामाया ..पर कोई अच्छा दोस्त नही बना पाया ..अब यदि कोई बने तो वोह सच दोस्त नही होगा ....अब मेरा बुढ़ापा...बिना आची मित्रो के सूना है .आस पास सिर्फ़ अब ख़ुशमदी लोग ही इख़्हट्ठे किए जा सकते हैं सचे दोस्त नही ,,मैं इतना धन कमा के भी अकेला ही रह गया ...मैं धन के पिच्छे अपने जीवन के सुख के पल खो बेता ..और अब सब कुछ होते हुए भी अकेला ही हूँ ...फिर वही की छोटी बातो के आगे . जीवन के अच्छा वक़्त यूँ ही गवां दिया ...

दुर्योधन ने पाँच गाँव नही दिए पर अपना पूरा साम्राज्या ,पूरा वंश ,और अपना जीवन दे दिया .....कुमति के कारण हम छोटी छोटी बातो को ख़ुशियों को यूँ ही जाने देते है झूठी त्रिष्णा के पिच्छे भाग कर अपने जीवन के कई सूखो को खो बेत्ततें हैं ...ज़िन्दगी बहुत छोटी है में ज्यादा से ज्यादा खुशियाँ बटोर के किसी को बिना दुख पहुँचाए .हम अपना जीवन जी ले यही ज़िंदगी जीना सही अर्थो में कहलाएगा !!